पुलवामा: बैंगनी रंग के सुगंधित ‘लेवेंडर’ के फूल

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बोनेरा, पुलवामा। कश्मीर के पुलवामा कांड के पीछे नरेंद्र मोदी सरकार की पोल-पट्टी दुनिया के सामने अब पूरी तरह खुल चुकी है। उस कांड के समय जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे सतपाल मलिक समेत कई लोगों ने इसके पीछे पाकिस्तानी हाथ होने के मोदी सरकार के बयान की बखिया उधेड़ कर रख दी है।

श्रीनगर से करीब 40 किलोमीटर दूर दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिला का बोनेरा गांव है। उस गांव के पास 60 हेक्टेयर के फार्म में भारत के वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद के बैंगनी रंग के सुगंधित ‘लेवेंडर ‘ पौधों के फूल उगाए जाते हैं।

उसके पास ही भारतीय समन्वित औषधीय संस्थान के दूसरे फार्म में लेवेंडर, रोजमेरी, गुलाब, सुगंधित गेरानियम, आर्टमिसिया, जाफरानी आदि पौधों के फूल और कश्मीरी मसालों का उत्पादन किया जाता है। इस फार्म के प्रभारी डॉ. शाहिद रसूल के अनुसार वहां सबसे ज्यादा लेवेंडर के फूल खिलते हैं, जो पहले सर्फ पुलवामा में उगाए जाते थे।

बाद में उनकी जम्मू कश्मीर के दूसरे 20 जिलों के अलावा उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्यों में भी व्यावसायिक खेती की जाने लगी। उन्होंने बताया था कि लेवेंडर के पौधे मूल रूप से कश्मीर के नहीं हैं और इनकी खेती वहां भारतीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक संस्थान के डॉ. अख्तर हुसैन द्वारा बल्गेरिया से 1970 में लाए गए इनके पौधे लगाने के प्रयासों से संभव हो सकी।

डॉ. रसूल ने 2007 से इस खेती का प्रसार किया जिसका मुख्य उद्देश्य इनकी झाड़ियों से लेवेंडर के तेल, पानी, हाइड्रोसॉल आदि निकाल कर उनका औषधीय उपयोग करना था। शुरू में बोनेरा गांव में हर वर्ष करीब 500 किलोग्राम लेवेंडर पैदा होता था। इसकी लागत प्रति किलो करीब 10 हजार रुपये पड़ती थी।

लेवेंडर के तेल का उपयोग अनिंद्रा, चिंताओं, अवसाद, मानसिक तनाव, अलर्जी, फंगल इन्फेक्शन आदि के मनोदैहिक विकारों, खुजली आदि त्वचा रोगों के उपचार में किया जाता है। इनका उपयोग महिलाओं में माहवारी की समस्याओं के निवारण में भी किया जाता है।

लेवेंडर की झाड़ियों से उच्च गुणवत्ता के तेल और हाइड्रोसॉल को निकालने के लिए उनको वाष्पीकरण के बाद छाना जाता है। इसके लिए इस फार्म में प्रोसेसिंग यूनिट लगा है, जिससे स्टीम को तांबा से बनाई नली के जरिए एक कंडेंसर तक ले जाया जाता है। कंडेंसर का ठंढा पानी भाप को ठंढा कर देता है।

मुझे बताया गया कि इस फार्म में हर दिन करीब चार हजार लोग दैनिक मजदूरी पर काम करते हैं। बाद में इस फार्म मे करीब चार हजार लड़कियों को भी विशेषज्ञों की देख-रेख में काम पर लगाया गया।

(चंद्र प्रकाश झा स्वतंत्र पत्रकार हैं और बिहार में रहते हैं।)

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