बीकानेर, राजस्थान। “जैसे जैसे गर्मी बढ़ रही है गांव में पानी की समस्या भी बढ़ती जा रही है। जो स्रोत उपलब्ध हैं उसमें इतना खारा पानी आता है कि हम लोगों से पिया भी नहीं जाता है। यदि मजबूरीवश पी लिया तो पेट में दर्द और दस्त होने लगते हैं। पिता जी और गांव वाले मिलकर पानी का टैंकर मंगवाते हैं, जिससे हमें पीने का पानी उपलब्ध होता है। लेकिन स्कूल में ऐसी सुविधा उपलब्ध नहीं है। वहां हमें यही खारा पानी पीने पर मजबूर होना पड़ता है। इसलिए स्कूल भी जाने का दिल नहीं करता है।” यह कहना है 9वीं कक्षा की छात्रा 15 वर्षीय किशोरी पूजा राजपूत का, जो राजस्थान के बीकानेर स्थित लूणकरणसर ब्लॉक के कालू गांव की रहने वाली है। पूजा के साथ खड़ी उसकी हमउम्र दोस्त कविता कहती है कि घर पर टैंकर के माध्यम से पीने का पानी उपलब्ध हो जाता है, परंतु स्कूल में इतना अधिक खारा पानी आता है कि उसे पीने के बाद बच्चों की तबीयत खराब हो जाती है। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है पानी की आवश्यकता भी बढ़ेगी, ऐसे में हमें स्कूल में वही खारा पानी पीना पड़ेगा”।
वास्तव में, राजस्थान में जैसे-जैसे गर्मी का प्रकोप बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे कालू गांव और उसके जैसे अन्य गांवों में पीने के पानी की समस्या भी विकराल होती जा रही है। ब्लॉक मुख्यालय से 20 किमी और जिला मुख्यालय बीकानेर से 92 किमी दूर आबाद कालू गांव की जनसंख्या लगभग 10334 है। अनुसूचित जाति बहुल इस गांव के लोगों के लिए सितम यह है कि प्रचंड गर्मी के साथ-साथ उन्हें पीने के साफ पानी की समस्या से भी जूझना पड़ रहा है। गांव में कुछ स्थानों पर पानी के जो स्रोत उपलब्ध हैं, इनमें फ्लोराइड की मात्रा इतनी अधिक है कि वह पानी खारा हो चुका है जो पीने के लायक नहीं होता है। इतना ही नहीं, पूरे गांव में समान रूप से सभी घरों में पीने का पानी भी नहीं आता है। दरअसल गांव की बसावट कुछ इस प्रकार है कि कुछ घर ऊंचाई पर हैं और कुछ घर नीचे की तरफ ढलान पर आबाद हैं। गांव में पानी ट्यूबवेल के माध्यम से आता है। सभी घरो में पाईप लाईन लगी हुई है। ऐसे में, जिनके घर ढलान (नीचे की तरफ) पर हैं उनके घरों में तो पानी आसानी से पहुंच जाता है। लेकिन जिनके घर ऊंचाई पर स्थित हैं वहां पानी पहुंचने में समस्या आती है।
इस संबंध में 45 वर्षीय जगदीप कहते हैं कि “जैसे-जैसे राज्य में गर्मी का प्रकोप बढ़ रहा है, वैसे-वैसे पानी की समस्या भी बढ़ती जा रही है। पहले गांव में बावड़ी समेत पानी के बहुत सारे प्राकृतिक स्रोत हुआ करते थे। लेकिन बेहतर रखरखाव नहीं होने के कारण धीरे धीरे या तो सभी सूख चुके हैं या उनमें इतना खारा पानी होता है कि उसे हम अपने मवेशियों को भी नहीं पिला सकते हैं। वर्तमान में गांव में ट्यूबवेल के माध्यम से पानी आता है, लेकिन हमारे घर जो ऊंचाई पर स्थित हैं, वहां ट्यूबवेल के माध्यम से पानी आने में समस्या आती है। ऐसे में हमें या तो कहीं स्रोत ढूंढ कर पानी लाना होता है अथवा पैसे देकर टैंकर मंगवाना पड़ता है। जो बहुत ही महंगा पड़ता है। एक बार में टैंकर मंगवाने पर 1500 रुपए तक का खर्च आता है। हमारी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि हम बार-बार पानी का टैंकर मंगवा सकें। जब ज्यादा गर्मी पड़ती है तो टैंकर भी हमें कई बार समय पर उपलब्ध नहीं हो पाता है। ऐसे में फिर मटके से ही पानी भरकर लाना पड़ता है, वह भी बहुत दूर दूर से”।

खारे पानी की समस्या से परेशान गांव की एक महिला कमला देवी का कहना है कि “गर्मी के दिनों में ट्यूबवेल से बहुत कम समय के लिए पानी आता है। ऐसे में हम बहुत मुश्किल से दूसरी जगहों से पीने का पानी इकठ्ठा करते हैं। कभी-कभी तो एक दिन में 5 से 6 बार पानी लेने जाना पड़ता है। पानी के लिए हम महिलाओं को तपते रेगिस्तान में मीलों चलना पड़ता है। यही कारण है कि हम कपड़े भी दो या तीन दिनों में एक बार धोते हैं”। जब मनुष्यों के लिए मुश्किल से पानी इकठ्ठा होता है तो पशुओं विशेषकर मवेशियों के लिए कितनी बड़ी समस्या होती होगी इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। कमला देवी कहती हैं कि “हमें अपने साथ-साथ अपने मवेशियों के लिए भी पानी की चिंता करनी होती है। लेकिन जब हमें इतनी मुश्किल से पानी उपलब्ध होता है तो हम अपने मवेशियों के लिए कहां से प्रबंध कर सकते हैं? ऐसे में उन्हें वर्षा का इकठ्ठा किया हुआ पानी पिलाते हैं जो अक्सर दूषित होता है। इसे पीकर कई बार हमारे पशु बीमार भी पड़ जाते हैं। फ्लोराइड युक्त खारा पानी पीने से हमारी हड्डियां भी कमजोर होने लगी हैं। जिसकी वजह से चलने में बहुत थकान लगती है और कमजोरी भी महसूस होती है”।

वही गांव की एक अन्य महिला शारदा का कहना है कि “हमें पीने के पानी के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। गर्मी बढ़ने के साथ ही ट्यूबवेल से आने वाले पानी की समस्या भी बढ़ जाती है। हमारे घरों में सप्ताह में सात दिनों में केवल तीन दिन ही पानी आता है। वह भी कभी-कभी इतना खारा होता है कि उससे पानी भर के केवल कपड़े ही धोने में इस्तेमाल किया जा सकता है। पीने का पानी हमें दूर-दूर से लाना पड़ता है। पशुओं को पानी पिलाने के लिए घरों से दूर लेकर जाना पड़ता है”। वह बताती हैं कि “यहां के पानी में नमक की मात्रा इतनी अधिक होती है जिसके कारण हमें जोड़ों के दर्द की समस्या होने लगी है, थकावट जल्दी लगने लगती है। कम उम्र में ही युवा पीढ़ी भी बुजुर्ग जैसे दिखने लगी है। वह अक्सर बीमार रहते हैं। हमारे पशुओं को भी खारे पानी से बहुत दिक्कत होती है। इसकी वजह से असमय ही कई मवेशियों की मौत हो जाती है। जबकि वही हमारी आय का एक प्रमुख साधन होते हैं। गांव के युवा अपनी पढ़ाई छोड़कर ऊंटों के साथ दिन भर पानी की तलाश में भटकते रहते हैं”।
इस संबंध में गांव की सरपंच सुगनी देवी का कहना है कि “गांव में खारे पानी की समस्या को दूर करने के लिए 3 ट्यूबवेल लगवाए हैं, जिसमें पीने योग्य पानी आता है। हालांकि इतनी बड़ी आबादी के लिए यह तीनों ट्यूबवेल कम हैं। इसलिए पंचायत ने सर्वसम्मति से ब्लॉक अधिकारी के पास अभी एक और बोरवेल लगाने का प्रस्ताव भेजा है। इसे जल्द पूरा करवाने के लिए तहसील कार्यालय में बात चल रही है। यदि चौथा ट्यूबवेल भी लग जाता है तो गांव में पानी की समस्या लगभग दूर हो जाएगी और इस गर्मी में भी गांव वालों को पानी के लिए दर-दर भटकने की जरूरत नहीं होगी”। सरपंच इस बात को स्वीकार करती हैं कि गांव में कुछ स्थानों पर खारा पानी आता है। वह कहती हैं कि “हमने पानी की जांच करवाई है। कुछ जगहों पर पानी में फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा है, लेकिन इतना भी नहीं है कि वह शरीर के लिए नुकसानदायक हो”।
बहरहाल, जैसे-जैसे तापमान चढ़ेगा कालू गांव के लोगों के लिए पानी की समस्या भी बढ़ती जाएगी। ऐसे में राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन को इस बात को गंभीरता से लेने की जरूरत है कि इंसान और पशुओं सभी के लिए समान रूप से पानी उपलब्ध हो जाए। विशेषकर स्कूलों में इसका विशेष प्रबंध किया जाए। प्रशासन को इस बात को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि कम से कम जहां पानी उपलब्ध है वह पीने योग्य हो ताकि कालू गांव की महिलाओं और किशोरियों को तपते रेगिस्तान में पानी के लिए मीलों चलना न पड़े।
(लूणकरणसर, बीकानेर से आरती बी की ग्राउंड रिपोर्ट।)