पंजाब में एकबारगी फिर ज़हरीली अथवा नकली दारू का कहर ग़रीब श्रेणी के श्रमिकों पर टूटा है। सूबे के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान के गृह ज़िले संगरूर के गांव गुज्जरां (नजदीक क़स्बा दिड़बा) में ज़हरीली दारू पीने से चार व्यक्तियों की मौत हो गई और चार गंभीर हैं। एक व्यक्ति ने सदमे में दम तोड़ दिया। सभी मज़दूर वर्ग से वाबस्ता हैं।
पंजाब सरकार और पुलिस-प्रशासन दावे व वादे दोहराते रहते हैं कि राज्य को पूरी तरह से नशा मुक्त करने के लिए दिन-रात एक किया जा रहा है लेकिन इसके विपरीत तक़रीबन प्रतिदिन नशे के चलते कुछ घरों का सूरज सदा के लिए डूब जाता है और मातम छा जाता है। लोकसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। कानून-व्यवस्था कायम रखने के लिए ज़िम्मेदार एजेंसियां हाईअलर्ट पर हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री के गृह जिले में ज़हरीली शराब कांड पर सवाल उठ रहे हैं।
संगरूर के गांव गुज्जरां में ज़हरीली शराब पीकर मरने वालों की पहचान जगजीत सिंह (26 वर्ष), लाडी (37), परगट सिंह (46) और भोला सिंह (58 साल) के रूप में हुई है। जबकि परगट सिंह के जुड़वां भाई निर्मल सिंह ने भी सदमे में दम तोड़ दिया। इस और आसपास के गांवों में नक़ली/ज़हरीली शराब की खूब तस्करी होती है।

संगरूर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) सरताज सिंह चहल के अनुसार ज़हरीली शराब कांड में फ़िलहाल तीन दोषियों मनप्रीत सिंह, गुरलाल सिंह व सुखविंदर सिंह के ख़िलाफ़ भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 334 और एक्साइज़ एक्ट 61 के तहत मामला दर्ज़ किया गया है। तीनों गिरफ्तार हैं। इनमें से मनप्रीत सिंह के ख़िलाफ़ इसी साल 29 जनवरी को शराब तस्करी का मामला दर्ज़ किया गया था।

गुज्जरां के ग्रामीणों ने दिल्ली-लुधियाना राष्ट्रीय राजमार्ग पर धरना देकर यातायात ठप कर दिया और तब तक मृतकों को के अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया; जब तक मामले की गहन पड़ताल और तमाम गिरफ़्तारियां नहीं हो जातीं। संगरूर के उपायुक्त जतिंदर जोरवाल ने एसडीएम दिड़बा की अगुवाई में कमेटी बनाकर 72 घंटे में मामले की विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।
ग्रामीणों का कहना है कि गांव के बाहर शराब का एक ठेका है। लेकिन सस्ती शराब का लालच देकर एक दर्जन से ज़्यादा लोग शराब की तस्करी करते हैं। सस्ती शराब लोगों को घरों तक मुहैया कराई जाती है। लालच में लोग नक़ली और ज़हरीली शराब की चपेट में आ रहे हैं। वैसे, पंजाब का शायद ही कोई ऐसा शहर, क़स्बा या गांव होगा-जहां इस मानिंद शराब की तस्करी न होती हो। ‘ऊंची पहुंच वाले’ रसूखदारों के जेरे-साया यह नापाक धंधा खूब फला-फूला हुआ है। हज़ारों बेरोजगारों की फ़ौज इनके लिए तस्करी करती है। सरकारी मशीनरी पर भी संलिप्तता के दोष लगाते रहते हैं।
ग़ौरतलब है कि पंजाब में ज़हरीली शराब से मौतौं का यह पहला मामला नहीं है। अगस्त 2020 में बड़ा शराब कांड हुआ था। तीन सरहदी ज़िलों अमृतसर, गुरदासपुर और तरनतारन में ज़हरीली शराब पीने से 131 लोगों की मौतें हुईं थीं। 15 की आंखों की रोशनी चली गई थी। उस कांड के बाद दो डीएसपी, चार एसएचओ और सात आबकारी कर्मी निलंबित किए गए थे लेकिन बाद में सभी बहाल हो गए। 9 एफ़आईआर दर्ज़ की गई थीं। इनमें 179 लोग नामजद किए गए थे। हैरानी की बात है कि 30 से ज़्यादा तस्कर अभी तक पुलिस के हाथ नहीं आए। पुलिस ने लगभग डेढ़ साल बाद मुख्य तस्कर को गिरफ़्तार किया था। बीते एक साल में इस कांड के 22 आरोपी ज़मानत पर बाहर आ चुके हैं। साफ़ ज़ाहिर है कि पुलिस मामलों की पैरवी सही तरीके से करने में नाकाम रही।प
(पंजाब से अमरीक की रिपोर्ट।)
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