जयपुर। राजस्थान यूनिवर्सिटी के संविदा कर्मचारी बहुत सालों से अपने वेतन में बढ़ोत्तरी और स्थाईकरण की मांग कर रहे हैं अपनी मांगों को लेकर कई बार हड़ताल पर भी जा चुके हैं लेकिन कोरे आश्वासन के आलावा कुछ नहीं मिला।
बता दें कि करीब 28000 हजार छात्रों वाला ये विश्वविद्यालय प्रदेश के सबसे पुराने और सबसे बड़े विश्वविद्यालयों में से एक है, जहां प्रदेश के लगभग हर जिले से छात्र आकर पढ़ते हैं। लेकिन राजस्थान यूनिवर्सिटी के संविदा कर्मचारी 7000 से 8000 के मामूली वेतन पर काम करने को मजबूर हैं।
करीब 700 की संख्या में यहां के संविदा कर्मचारी काफी लम्बे समय से अपने समान कार्य समान वेतन और स्थाईकरण की मांग कर रहे हैं। यूनिवर्सिटी के विभिन्न पदों पर अलग-अलग विभागों में कार्यरत संविदाकर्मियों में शामिल टीसीओ (trained computer operator) का वेतन 8476 है। पीऍफ़ (PF), ईइसआईसी (ESIC) कट कर उन्हें 7300 रुपये वेतन मिलता है। जबकि पिओन का वेतन 5000 है और ऐसे ही एलडीसी के पद पर कार्यरत कर्मियों को वेतन के तौर पर लगभग 5700 रुपये मिलते हैं।
एजेंसियां करती हैं नियुक्तियां
दरअसल विश्वविद्यालय प्रशासन इन कर्मियों की नियुक्तियां ठेके पर एजेंसियों द्वारा करता है जिसमें मैसर्स ओम सिक्योरिटी सर्विसेज, मैसर्स साई सर्विसेज, मैसर्स जीएस एंड आदि कम्पनियां प्रमुख हैं। इन एजेंसियों के माध्यम से दो या तीन माह के लिए कर्मियों को नियुक्त किया जाता है उसके बाद ये एजेंसियां या विश्वविद्यालय प्रशासन चाहे तो उस कर्मी को हटा सकते हैं या उसका कार्यकाल बढ़ा दिया जाता है। संविदाकर्मियों की एक मांग यह भी है कि कम से कम उनकी नियुक्ति वार्षिक हो। कमाल की बात ये है 2013 के बाद से इन कर्मियों को संविदा कर्मी भी मानना बंद कर दिया गया है। यूनिवर्सिटी ने 2013 में अपने आखिरी नोटिफिकेशन में इन्हें संविदाकर्मी के नाम से संबोधित किया था उसके बाद यूनिवर्सिटी की तरफ से निकलने वाले नोटिफिकेशन में कभी सहायक कर्मी तो कभी कॉंट्रैक्चुअल वर्कर के नाम से ही पोस्ट विज्ञापित की जाती है।

मयंक (बदला हुआ नाम) पिछले 6 साल से यूनिवर्सिटी में टीसीओ के पद पर कार्यरत हैं। उनका कहना है कि “आप ही बताइये कि मात्र 7300 रूपए में घर कैसे चलायें। बहुत मुश्किल होती है। हम अपने वेतन में बढ़ोत्तरी की काफी समय से मांग कर रहे हैं। कई बार धरना दे चुके हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन से मांग कर चुके हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती। यहाँ ऐसे कई कर्मी हैं जो साल से अधिक समय से काम कर रहे हैं उनकी उम्र 35-40 साल के लगभग हो चुकी है अब वो यहाँ से छोड़ कर कहीं और जा भी नहीं सकते। विश्वविद्यालय प्रशासन और सरकारें हमारी मज़बूरी का फायदा उठा रही हैं”।
पियोन के पद पर कार्यरत विक्रम (बदला हुआ नाम) का कहना है कि “हम 2019 में हड़ताल पर थे। प्रशासन की तरफ से लिखित में नहीं मिला केवल मौखिक रूप से कहा गया कि आप लोगों का वेतन बढ़ाया जाएगा। राज्य सरकार भी कुछ कदम नहीं उठाती जबकि गहलोत सरकार ने अपने चुनावी वादे में कहा था कि हम सरकार में आते ही संविदाकर्मियों को परमानेंट करेंगे लेकिन सब चुनावी वादे ही निकले”।

उन्होंने आगे बताया कि “हमें हाल ही में आयी नई संविदा नीति से कुछ उम्मीद थी लेकिन उससे भी कुछ फायदा नहीं हुआ और तो और यूनिवर्सिटी का प्रशासन हमें संविदा कर्मी मानने को ही तैयार नहीं है। जब भी हम अपनी मांग उठाते हैं हमें प्रशासन की तरफ से हटाने की धमकी दी जाती है इस लिए कोई खुल कर सामने भी नहीं आ पाता। हमारी कोई जॉब सिक्योरिटी भी नहीं है। अब तक यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा हमारा डेटा सरकार को भी नहीं भेजा गया। मुझे 6751 का वेतन मिलता है जिसमे कटकटा कर मुझे …….. मिलते हैं अब जयपुर जैसे शहर में महज इतने से पैसों में क्या कोई गुजरा कर सकता है। बहुत मुश्किल होती है”।
यूनिवर्सिटी प्रशासन को संविदा कर्मियों की लिस्ट बनाकर राज्य सरकार को भेजनी थी जो अभी तक नहीं भेजी गयी है। अब संविदाकर्मी चाहते हैं कि प्रशासन उनका डेटा जल्द राज्य सरकार के पास भेजे जिससे उन्हें समान कार्य का समान वेतन के हिसाब से न्यूनतम 18000 हजार रूपए वेतन मिल सके। साथ ही अगर परमानेंट न सही तो कम से कम उन्हें 1 साल के लिए नियुक्त किया जाये।
(जयपुर से मानस भूषण की रिपोर्ट।)