तमिलनाडु: सैमसंग कर्मचारियों की हड़ताल दूसरे सप्ताह में पहुंची

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नई दिल्ली। तमिलनाडु में सैमसंग कर्मचारियों की हड़ताल दूसरे सप्ताह में प्रवेश कर गयी है। कर्मचारी कंपनी में खुद की यूनियन बनाने की मांग कर रहे हैं। गौरतलब है कि ये कर्मचारी सैमसंग की उस फैक्टरी से जुड़े हैं जो घरेलू सामानों को बनाने का काम करती है। तमिलनाडु को आजकल ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग का केंद्र माना जाता है। कर्मचारियों के इस हड़ताल पर पूरे सूबे की नजर है।

यह हड़ताल 9 सितंबर को शुरू हुई थी। कर्मचारियों की प्रमुख मांगों में उनकी यूनियन को मान्यता देना, वेतन वृद्धि पर वार्ता और काम की स्थितियों को दुरुस्त करना शामिल है। हड़ताल में कुल 1723 मजदूरों में 1350 मजदूर शामिल हैं। अभी तक के सैमसंग के भारत के इतिहास में कंपनी में इतनी बड़ी कोई स्ट्राइक नहीं देखी। सोमवार को सैकड़ों की तादाद में मजदूरों ने जिलाधिकारी कार्यालय की तरफ मार्च किया। बगैर इजाजत के मार्च निकालने के आरोप में तमिलनाडु पुलिस ने 120 मजदूरों को हिरासत में ले लिया था। हालांकि बाद में सभी को रिहा कर दिया। हड़ताल को सीपीएम की आधिकारिक ट्रेड यूनियन सीटू का समर्थन हासिल है।

सूबे में सत्तारूढ़ डीएमके को इस बात का भय है कि अगर हड़ताल और फैलती है तो यह सैमसंग और उसके कर्मचारियों के बीच तनाव को और बढ़ा देगी। इसके साथ ही कंपनी और राज्य सरकार के बीच भी एक मामला खड़ा हो जाएगा।

हड़ताल सैमसंग के श्रीपेरुंबदूर प्लांट में हो रही है जहां कंपनी घरेलू सामानों को बनाने का काम करती है। और बताया जाता है कि कंपनी की भारत में होने वाली आय का एक तिहाई यहीं से आता है।

इस बीच मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के अमेरिकी दौरे के दौरान उन्हें निवेश के कई प्रस्ताव मिले हैं और कई पर उन्होंने हस्ताक्षर भी किए हैं। बताया जा रहा है कि तकरीबन 7000 करोड़ रुपये के ये प्रस्ताव हैं। जिसमें अमेरिका की कई बड़ी कंपनियां भी शामिल हैं।

राज्य सरकार के एक बड़े अफसर ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि सरकार के सामने चुनौती ये है कि उसमें मजदूरी बढ़ाने जैसा कोई बुनियादी मुद्दा नहीं है ऐसे में सरकार कैसे हस्तक्षेप करे और मामले को हल करे। यह सबसे बड़ी चिंता का विषय है। और कंपनी भी उनकी मुख्य यूनियन बनाने की मांग को हल नहीं करना चाहती है क्योंकि वह इसके पीछे षड्यंत्र देख रही है। 

अधिकारी ने कहा कि सैमसंग को इसके पीछे सीटू का हाथ दिख रहा है और उसको लगता है कि वही समस्या पैदा कर रही है। इसके पहले 2007 से कंपनी शुरू हुई लेकिन उसको किसी भी इस तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ा। 

सीटू के राज्य अध्यक्ष ए सौंदराजन ने बताया कि कंपनी की स्थापना के 16 साल बाद मजदूरों ने यूनियन बनाने की घोषणा की। यह बात दिखाती है कि मैनेजमेंट ने उन्हें बिल्कुल दीवाल तक धकेल दिया था।

उन्होंने कहा कि मुख्य मांग यूनियन बनाने का अधिकार है, सामूहिक तौर पर लेन-देन का अधिकार, और बहुमत वाली यूनियन के साथ सार्थक बातचीत। मजदूरी में बढ़ोत्तरी पर बाद में बातचीत हो सकती है। लेकिन मैनेजमेंट किसी भी तरह के यूनियन के गठन का विरोध कर रहा है। 

सैमसंग इंडिया इंप्ल्वाइज यूनियन का गठन जून में हुआ था। और उसकी मान्यता की मांग को कंपनी के मैनेजमेंट ने खारिज कर दिया था। सौंदराजन का कहना था कि कंपनी ने छुट्टियां रद्द करने और तबादले आदि धमकी भरे रास्तों से यूनियन के गठन पर रोक लगाने की कोशिश की। एक स्थिति में पहुंच जाने के बाद हम लोगों ने तय कर लिया कि अब हम और बर्दाश्त नहीं करेंगे और हम लोगों ने हड़ताल शुरू कर दी।

सैमसंग के एक अधिकारी ने कहा कि डर इस बात का है कि सीटू के इससे जुड़े होने के चलते दूसरे प्लांटों में भी इसी तरह से हड़ताल शुरू हो जाएगी। मैनेजमेंट ने पहले ही सरकार को बता दिया है कि वो कर्मचारियों से बात करने के लिए तैयार है लेकिन सीटू के साथ कोई बात नहीं होगी। पिछले सप्ताह सैमसंग ने बयान जारी कर कहा था कि वो सभी मुद्दों को जितनी जल्दी हो सके हल करने के लिए प्रतिबद्ध है। और उसी कड़ी में कर्मचारियों के साथ बातचीत की पहल हुई। लेकिन उस दिशा में बहुत ज्यादा प्रगति नहीं हो पायी।  

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