नई दिल्ली। रूसी संघ की ओर से 13 अक्टूबर को सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव पेश किया गया था, जिसमें मौजूदा इज़राइल-फिलिस्तीन संकट में तत्काल मानवीय युद्ध विराम का आह्वान किया गया था।
मसौदा प्रस्ताव पर रूस के अलावा एक अन्य स्थायी परिषद सदस्य- चीन ने सहमति जताई है, और तीन गैर स्थायी सदस्यों गैबॉन, मोजाम्बिक और संयुक्त अरब अमीरात ने प्रस्ताव को अपना समर्थन दिया। प्रस्ताव के खिलाफ मतदान करने वाले देश थे- फ्रांस, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम।
शेष छह परिषद सदस्य मतदान से अनुपस्थित रहे। सुरक्षा परिषद में 5 स्थायी सदस्य अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ़्रांस हैं, जबकि बाकी 10 सदस्य देश अस्थायी सदस्य के तौर पर दो वर्ष की अवधि के लिए परिषद में शामिल किये जाते हैं।
प्रस्ताव को पारित कराने के लिए कम से कम 9 सदस्य देशों की सहमति आवश्यक है, और अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ़्रांस में से किसी भी देश द्वारा प्रस्ताव पर वीटो नहीं किया जाता है। यह तथ्य सार्वजनिक है कि संयुक्त राज्य अमेरिका अपने पारंपरिक सहयोगी इजराइल को सुरक्षा परिषद की किसी भी कार्रवाई से बचाता आ रहा है।
अस्थायी सदस्यों में अल्बानिया, ब्राजील, एक्वाडोर, गेबॉन, घाना, जापान, माल्टा, मोजाम्बिक, स्विट्ज़रलैंड और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं। वर्तमान में सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष का पदभार ब्राजील के हाथ में है। संयुक्त राष्ट्र परिषद के 50 से भी अधिक सदस्य देश हैं, जो आज तक सुरक्षा परिषद के सदस्य नहीं हैं। वे इसकी बैठक में हिस्सा ले सकते हैं, लेकिन वोट डालने का अधिकार नहीं है।
यदि यह प्रस्ताव पारित हो जाता, तो इसमें नागरिकों के खिलाफ निर्देशित सभी प्रकार की हिंसा एवं शत्रुता और आतंकवाद के सभी कृत्यों की कड़ी निंदा का बयान जारी होता। इसके साथ-साथ सभी बंधकों की सुरक्षित रिहाई एवं मानवीय मदद के तौर पर भोजन, ईंधन और चिकित्सा उपचार के निर्बाध प्रावधान एवं इनके वितरण का भी आह्वान किया गया होता।
हमास द्वारा शनिवार 7 अक्टूबर के दिन इज़राइली इतिहास में सबसे घातक हमला किया गया था, जिसमें 1,300 से अधिक लोग मारे गए और कई बंधकों को गाजा ले जाया गया। इसके जवाब में इज़राइल द्वारा फिलिस्तीनियों के साथ अपने 75 साल के संघर्ष में सबसे जबरदस्त हवाई हमलों द्वारा जवाब दिया है। कल तक गाजा में 2,800 लोगों के हताहत होने की खबर थी, और 1,000 से अधिक लोगों के मलबे में दबे होने की खबर है।
रूस की ओर से यह पहल तब की गई, जब इजराइल की ओर से विशेषकर उत्तरी गाजा पर लगातार एयर स्ट्राइक के बाद 11 लाख फिलिस्तीनी नागरिकों को 24 घंटे के भीतर वहां से निकलने का अल्टीमेटम जारी किया गया था। इजराइल का इरादा उत्तरी गाजा को एयर स्ट्राइक और जमीनी हमलों में पूरी तरह से नेस्तनाबूद करने का था। रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक रूसी प्रस्ताव में जहां इजराइल और फिलिस्तीन का जिक्र किया गया है, लेकिन हमास का नाम सीधे तौर पर नहीं लिया गया था।
मतदान से पूर्व रूसी संघ के प्रतिनिधि द्वारा प्रस्ताव को “विशुद्ध रूप से मानवीय इबारत” के रूप में व्याख्यायित किया था, जिसे अरब समूह के सदस्य देशों के साथ-साथ फिलिस्तीन राज्य से भी समर्थन मिला हुआ था। इसमें इस बात पर जोर दिया गया था कि युद्ध विराम के बगैर मानवीय प्रयास संभव नहीं हो सकता।
मसौदा प्रस्ताव सभी प्रकार की हिंसा की निंदा के साथ मानवीय गलियारे को खोलने और सभी बंधकों की सुरक्षित रिहाई का आह्वान करता है। प्रस्ताव खारिज हो जाने बाद रूसी पक्ष का कहना है कि पश्चिमी देशों ने पूरी दुनिया की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है, इसके बावजूद मसौदे ने सुरक्षा परिषद में इस विषय पर एक ठोस चर्चा शुरू करने में अपना योगदान दिया है।
इसके बाद सदन में वोटिंग हुई, जिसमें रूस द्वारा पेश किया गया प्रस्ताव गिर गया। वोटिंग के बाद रूसी संघ के प्रतिनिधि नेबेंजिया ने प्रस्ताव न अपनाए जाने पर अफ़सोस जताते हुए कहा कि समूची दुनिया दम साधे सुरक्षा परिषद से इस खून-खराबे को खत्म करने के लिए कदम उठाये जाने की उम्मीद लगाये हुए थी।
लेकिन पश्चिमी देशों ने उन उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। अपने विशुद्ध स्वार्थ एवं राजनीतिक हितों के लिए उनके द्वारा परिषद को सम्मिलित संदेश भेजने से रोक दिया गया। उन्होंने आगे कहा, हालांकि मसौदे ने अपना काम पूरा कर लिया है क्योंकि इसने इस विषय पर एक ठोस चर्चा को आरंभ करने में अपना योगदान दिया है, वरना इसके बिना, “खाली बयानबाजी और चर्चा तक ही सबकुछ सीमित रह जाना था।”
प्रस्ताव के विरोध में बोलते हुए अमेरिका की प्रतिनिधि लिंडा थॉमस ग्रीनफ़ील्ड ने इस संकट के लिए हमास को जिम्मेदार ठहराया, और जोर देकर कहा कि इस हमले में होलोकॉस्ट के बाद यहूदी लोगों का सबसे भयानक नरसंहार हुआ है, जिसमें अमेरिकी नागरिकों सहित एक हजार से अधिक नागरिकों की हत्या हुई है। इस तरह के कृत्यों से इराक में इस्लामिक स्टेट और लेवंत (आईएसआईएल), जिसे दाएश के नाम से भी जाना जाता है, के जघन्य अत्याचारों की याद आती है और हमास के इन्हीं कृत्यों के कारण गाजा में गंभीर मानवीय संकट पैदा हुआ है। नागरिकों को इन अत्याचारों के लिए पीड़ित नहीं होना चाहिए, और यह परिषद की जिम्मेदारी है कि वह संकट का समाधान निकाले।
उन्होंने कहा कि हमास की निंदा एवं संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के तहत आत्मरक्षा के इज़राइल के अधिकार का समर्थन करें। प्रस्ताव में हमास का उल्लेख करने में विफल रहने पर, उन्होंने इसे “अपमानजनक और अक्षम्य” बताया। उनके अनुसार, “संयुक्त राज्य अमेरिका ऐसे प्रस्ताव के लिए मतदान नहीं कर सकता जो पीड़ितों का अपमान करता हो। यह हमास ही है जिसने संकट को जन्म दिया है, और इसके लिए सदस्य परिषद को इजराइल पर दोष मढ़ने की अनुमति नहीं दे सकते। संयुक्त राज्य अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन इजराइल सरकार के अधिकारियों और क्षेत्र के अन्य हितधारकों के साथ गहन चर्चा में लगे हुए हैं, उन्होंने नागरिकों के लिए भोजन, पानी और दवा तक पहुंच की महत्वपूर्ण आवश्यकता को रेखांकित किया है।”
इज़राइली प्रतिनिधि के अनुसार उनके देश को अपने आत्म-संरक्षण के लिए हमास को ख़त्म करने की ज़रूरत है। दुनिया ने अपना सिर रेत में छिपा रखा है, जबकि हमास ने अपनी युद्ध मशीन को गाजा के नागरिकों के बीच में जमा रखा है। लेकिन उनका देश “अपने बंधकों को बचाने, इजराइल के भविष्य और गाजा के लोगों को उनके क्रूर अत्याचारियों से बचाने” के लिए एक बचाव अभियान पर है।
इसके साथ ही इजराइली प्रतिनिधि ने सवाल उठाया कि प्रस्ताव में हमास को अपने हथियार डालने के लिए क्यों नहीं कहा गया और जोर देकर कहा कि किसी भी प्रकार की सहायता या शांति के आह्वान से पहले हमास को एक हत्यारा आतंकवादी संगठन घोषित किया जाना चाहिए। इसके साथ ही परिषद को इजराइल के अपनी रक्षा के अधिकार को समर्थन देना चाहिए, गाजा में जो कुछ हो रहा है उसके लिए हमास को पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराना चाहिए और सभी बंधकों को रिहा करने का आह्वान करना चाहिए।
वहीं फ़िलिस्तीन की ओर से सुरक्षा परिषद में स्थायी पर्यवेक्षक रियाद एच मंसूर का कहना था कि ज्यादा संख्या में फ़िलिस्तीनियों को मारने से इज़राइल अधिक सुरक्षित नहीं हो जाएगा। फ़िलिस्तीनियों का जीवन मायने रखता है, और हाल के दिनों में अब तक मारे गए 3,000 फ़िलिस्तीनियों में अधिकांश आम नागरिक थे, जिनमें से आधे से अधिक महिलाएं और बच्चे हैं।
फिलिस्तीनियों पर हमले और गाजा से उनके जबरन पलायन को रोकने के साथ-साथ पूरे गाजा पट्टी में मानवीय पहुंच का आह्वान करते हुए उन्होंने बताया कि लोग अपने प्रियजनों को दफना भी नहीं पा रहे हैं और यहां तक कि उनके लिए शोक भी नहीं मना सकते। परिषद के सदस्यों से पश्चिम और अरब एवं मुस्लिम विश्व के बीच गहराते विभाजन पर विचार करने का आग्रह करते हुए उन्होंने संयुक्त राष्ट्र द्वारा अनेक अवसरों पर फिलिस्तीनियों से शांति को चुनने के लिए किये गये आह्वानों को याद करते हुए पूछा कि “यह परिषद युद्ध विराम का आह्वान करने में खुद को असमर्थ क्यों पा रही है?”
अरब समूह की तरफ से बोलते हुए जॉर्डन के प्रतिनिधि ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी गाज़ा वासियों को मानवाधिकार से वंचित कर रही है। इजराइल द्वारा मानवीय सहायता वितरण को रोकना अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है, ऐसे में सदस्य देशों से आग्रह है कि वे इजराइली नागरिकों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले मानकों का उपयोग करते हुए फिलिस्तीनियों की हत्या की निंदा करें।
उनका कहना था कि, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की एडवाइजरी के मुतबिक इजराइल को कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्र के भीतर अपनी रक्षा करने का अधिकार नहीं है, ऐसे में इस क्षेत्र को हिंसा के दुश्चक्र से बचाने के लिए व्यापक एवं न्यायपूर्ण शांति ही एकमात्र उपाय है।
जापान के इशिकाने किमिहिरो ने कहा कि उनके देश ने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया, लेकिन वे इसके कंटेंट के विरोध में नहीं हैं। जापान का ट्रैक रिकॉर्ड ज़मीनी स्तर पर फ़िलिस्तीनियों और इज़राइलियों की मानवीय स्थिति की सेवा करने में किसी से पीछे नहीं है। लेकिन जिस तरह से इसे संभाला गया, उसके कारण जापान ने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया।
उनके अनुसार, प्रस्ताव पर एकमत होने के लिए सभी सदस्यों को विश्वास में लेकर बातचीत कर प्रस्ताव पारित कराने की जरूरत थी, जिसे नहीं किया गया। उनके शब्दों में, “हमें एक एकजुट संकल्प की ज़रूरत है जो वास्तव में लोगों की मदद के लिए, फ़िलिस्तीनी लोगों की मदद के लिए ज़मीनी स्तर पर चीज़ें ला सके।” चूंकि ऐसा नहीं किया गया, इसलिए उनके देश ने इसके खिलाफ मतदान किया।
ब्रिटेन की बारबरा वुडवर्ड के अनुसार वे ऐसे किसी भी दस्तावेज़ का समर्थन नहीं कर सकती जो हमास के आतंकवादी हमलों की निंदा करने में विफल है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री का हवाला देते हुए, उन्होंने कहा “हमास की कार्रवाई यहूदी लोगों की एक सुरक्षित मातृभूमि के रूप में इज़राइल के विचार पर एक अस्तित्ववादी हमला थी।” परिषद के लिए इजराइल के इतिहास के सबसे बड़े आतंकी हमले को नजरअंदाज करना अनुचित है।
माल्टा की वैनेसा फ्रेज़ियर ने अपने देश के मतदान में हिस्सा न लेने के पीछे हमास के उल्लेख न करने का हवाला दिया और एक बार फिर हमास द्वारा इजराइल पर किए गए आतंकवादी कृत्यों की कड़े शब्दों में निंदा की। एक्वाडोर के हर्नान पेरेज़ लूज़ ने हमास के आतंकवादी हमलों का उल्लेख न होने को अनुपस्थित रहने का कारण बताया, और उसे हिंसा में वृद्धि का प्रत्यक्ष कारण बताया है। इसके अलावा स्विट्ज़रलैंड, अल्बानिया और यहां तक कि जॉर्डन ने भी मतदान में हिस्सा नहीं लिया।
इस प्रकार निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि रूस की ओर से गाजा में शांति युद्ध-विराम के प्रस्ताव को सुरक्षा परिषद में हार का मुंह देखना पड़ा है, लेकिन इसने अंतर्राष्ट्रीय मंच के गूंगे-बहरे बने रहने की स्थिति से इसे उबारते हुए अमेरिका-परस्त पश्चिमी देशों को सोचने के लिए मजबूर किया है।
रूस-चीन सहित अरब मुल्कों में बढ़ती बैचेनी और यूरोप सहित अमेरिका के विभिन्न शहरों में गाजापट्टी में हो रहे कत्लेआम के खिलाफ लाखों की संख्या में जिम्मेदार नागरिकों के सड़कों पर प्रदर्शन का ही यह मिला-जुला असर है कि अब संयुक्त राज्य अमेरिका को इजराइल को आगाह करने के लिए मजबूर होना पड़ा है कि गाजा में निर्दोष नागरिकों की जान-माल की हिफाजत होनी चाहिए, और जमीनी हमले की स्थिति में उसे बाद में वापस फिलिस्तीनी नागरिकों को आबाद करना होगा।
इजराइल के पूर्व विदेश मंत्री के एक बयान से भी यह तब साफ़ हुआ, जब उनका कहना था कि हम हर हाल में हमास को उसके द्वारा गाजा में बनाई गई सुरंगों में खत्म कर, फिलिस्तीनियों के लिए गाजा को सिंगापुर जैसा बनाकर देना चाहते हैं।
स्पष्ट है कि हमास की आतंकी कार्रवाई के नाम पर इजराइल द्वारा इस बार गाजा से फिलिस्तीनी नागरिकों के समूल विस्थापन (जिसे दूसरा नकबा कहा जा रहा है) की योजना को वैश्विक बिरादरी की इस पहल से धक्का पहुंचा है। देखना है, अगले कुछ दिनों में विभिन्न देशों की आपसी बातचीत एवं चीन में जारी बेल्ट एंड रोड की बैठक में शामिल 140 देशों की ओर से फिलिस्तीन-इजराइल संकट पर शेष विश्व के लिए क्या संदेश प्रेषित किया जाता है।
(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)
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