बेगम मलेरकोटला मुनव्वर को सम्मानित करके सिखों ने एक और ‘कर्ज’ उतारा

बहुत पुराने किलों-महलों में रहने वाले लोग महज हाड-मांस के चलते-फिरते बाशिंदे भर नहीं होते बल्कि तवारीख का पूरा एक पुलिंदा होते हैं। दीगर है कि सौ साल की उम्र आजकल मिलती किसे है? पंजाब के ऐतिहासिक और एकमात्र मुस्लिम बहुल जिले मलेरकोटला में 150 साल पुराना एक महल है। खंडहर होते इस महल में एक शख्सियत के रूप में एक बेगम साहिबा रहती हैं।

अतीत की बेशुमार परछाइयों तले। बेगम साहिबा की देह स्वाभाविक रूप से (बढ़ती उम्र के लिहाज से) अब जर्जर हो चली है और महल भी खस्ताहाल है। महल को ‘मुबारक मंजिल’ कहा जाता है और बेगम साहिबा का नाम मुनव्वर उल निसा है।

इस महल में अपने एक सहायक के साथ बेगम एकांकी जीवन व्यतीत कर रही हैं। यह उनका जीवन संध्या काल है और वक्त उनके बगल से बीतता हुआ खामोशी से गुजर रहा है। मलेरकोटला का कोई शख्स कभी कभार ही ‘मुबारक मंजिल’ के दरवाजे पर दस्तक देता है। या फिर इतिहास में दिलचस्पी रखने वाले जो सुदूर विदेशों से आते हैं और भारतीय पुरातत्व विभाग के अधिकारीगण।

चार फरवरी की दोपहर बाद यहां सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी यानी एसजीपीसी के कुछ नुमाइंदों ने बामकसद दस्तक दी। बेगम मुनव्वर उल निसा उन मलेरकोटला के नवाब शेर मोहम्मद खान के वंशजों में से हैं, जिन्होंने सरहिंद के सूबेदार की जोरदार खिलाफत करते हुए दशम गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह के साहिबजादों को कुर्बान नहीं करने की आवाज शिद्दत से उठाई थी।

इसी वजह से सिख इतिहास में मलेरकोटला के नवाब और उनके वंशज अलहदा रुतबा रखते हैं। यह रुतबा आज भी कायम है। इसीलिए चार फरवरी की दोपहर बाद महल मुबारक मंजिल एकबारगी फिर गुलजार हुआ और वहां रहने वाली बेगम साहिबा को खासतौर पर सम्मानित किया गया।

गौरतलब है कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने हाल ही में फैसला किया था कि सिख कौम की रिवायत को बखूबी अदा करते हुए नवाब शेर मोहम्मद खान की अंतिम वंशज को मलेरकोटला स्थित उनके महल में जाकर सम्मानित किया जाए और उनकी सुध ली जाए। इसके लिए चार फरवरी का दिन मुकर्रर था।

बेगम साहिबा की देखरेख करने वाले मोहम्मद महमूद ने बताया कि शनिवार दोपहर बाद शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सचिव सिमरजीत सिंह और ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब के प्रबंधक भगवंत सिंह तथा एसजीपीसी के कुछ अन्य प्रतिनिधि मुबारक मंजिल पैलेस पहुंचे।

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पदाधिकारियों ने बेगम मुनव्वर उल निसा से मुलाकात करके उन्हें बाकायदा सम्मानित किया और उनसे कहा कि सिखों की सर्वोच्च संस्था और समूची सिख कौम उनके पूर्वजों की कर्जदार है और इस नाते वह किसी किस्म की दिक्कत में बेहिचक उन्हें याद कर सकती हैं।

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के नुमाइंदों ने हाथ जोड़कर बेगम से विनती की कि वह बतौर निशानी नवाब शेर मोहम्मद खान साहिब को, दसवें गुरु गोविंद सिंह द्वारा भेंट की गई तलवार विरसे के तौर पर एसजीपीसी को सौंपने की वसीयत कर दें तो दुनियाभर के करोड़ों सिख फिर उनके परिवार के एहसानमंद होंगे।

मोहम्मद महमूद के मुताबिक बेगम साहिबा ने विनम्रता से हाथ जोड़कर कहा कि वह पहले ही ऐसा कर चुकी हैं और कागजात उन्होंने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के नुमाइंदों के सुपुर्द कर दिए।

सिखों की सर्वोच्च संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के मुखिया एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी कहते हैं, “सिख कौम नवाब शेर मोहम्मद खान और उनके वंशजों की कर्जदार है। गुरु साहिब की निशानियां को उन्होंने पूरी अकीदत से संभाल रखा है। अब एक और एहसान उन्होंने सिख कौम पर किया है।”

धामी कहते हैं कि “यह मुसलमान और सिखों के सद्भाव भरे रिश्तों की एक और नई बानगी है। जब तक बेगम मुनव्वर उल निसा सलामत रहेंगीं, तब तक एसटीपीसी हर तरह से उनका ख्याल रखेगी और खंडहर होते महल मुबारक मंजिल की मरम्मत भी कराएगी।”

बेगम मुनव्वर उल निसा ने 97 साल की ढलती उम्र में अपनी आखिरी ख्वाहिश के तौर पर मुबारक महल को संरक्षित करने की कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार से मांग की थी। तब सरकार ने इस दिशा में कदम उठाए थे लेकिन महल के बाहरी पुनर्निर्माण से संबंधित फाइलें सरकारों की अदला बदली में हास्य को हासिल होती रहीं।

बावजूद इसके कि सांसद रहते हुए मौजूदा मुख्यमंत्री भगवंत मान और कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार में मंत्री रहे नवजोत सिंह सिद्धू बेगम मुनव्वर उल निसा से मिलने मुबारक मंजिल गए थे और उसकी दुर्दशा देखी थी। अपने-अपने तौर पर दोनों ने मुबारक मंजिल को कायम रखने के वादे भी किए थे।

मुबारक मंजिल की मौजूदा दशा तो यही बताती है कि वे वादे फिलहाल तक तो वफा नहीं हुए। अब सर्वोच्च सिख संस्था आई है, आने वाले दिनों में क्या आलम रहेगा, फिलवक्त कहना मुश्किल है।

बेगम मुनव्वर उल निसा नवाब शेर मोहम्मद खान के वंशज मोहम्मद इफ्तिखार अली खान बहादुर की तीसरी बीवी हैं। पहली दो बेगमों बेगम जुबैदा और बेगम यूसुफ की मौत हो चुकी है। खुद नवाब मोहम्मद इफ्तिखार अली खान बहादुर की मृत्यु 20 नवंबर 1982 को हो गई थी। तीनों बेगमों से उन्हें कोई औलाद नहीं हुई। लिहाजा बेगम मुनव्वर भी बेऔलाद हैं और उनका वंश यहीं तक है।

जिस मुबारक मंजिल में बेगम रहती हैं वह अब सरकारी विरासत है और इसका वही हिस्सा सलामत है, जहां वह जिंदगी की आखिरी घड़ियां बिता रही हैं। मोहम्मद महमूद के मुताबिक बेगम को किसी से कोई शिकवा नहीं। पीढ़ी दर पीढ़ी संभाली हुई गुरु गोविंद सिंह जी की तलवार बेगम साहिबा के पास महफूज है और वह अक्सर कहती हैं कि फौतगी तक वह इसे इसी मानिंद महफूज रखेंगीं।

नवाब शेर मोहम्मद अली खान का अब तक चल रहा पूरा वंश गुरु गोविंद सिंह जी में अपार श्रद्धा रखता है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सचिव सिमरजीत सिंह कहते हैं कि बेगम मुनव्वर उल निसा का सम्मान करके एसजीपीसी खुद सम्मानित हुई है। मलेरकोटला और मुस्लिम जगत के लिए भी यह सम्मान की बात है।

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं)

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