(यह पत्र छत्तीसगढ़ की आदिवासी नेता सोनी सोरी ने देश की आम जनता के नाम लिखा है। बस्तर में नक्सलियों के खात्मे के नाम पर जारी सरकार और पुलिस प्रशासन का अभियान आम आदिवासियों के खात्मे का अभियान बन गया है। बड़े स्तर पर निर्दोष आदिवासी इसके शिकार बन रहे हैं। भारत जब 6-7 मई को पाकिस्तान पर हमला बोल रहा था ठीक उसी समय केंद्र सरकार के सुरक्षा बल के जवान बस्तर के आदिवासियों को भी अपने निशाने पर लिए हुए थे। एनकाउंटर के नाम पर हुए इस मुठभेड़ में कई निर्दोष आदिवासी बेमौत मारे गए। सोनी सोरी ने जब घटनास्थल का दौरा किया तो उन्हें बिल्कुल अलग ही कहानी पता चली। उन्होंने जो चीजें देखीं और समझीं उसके आधार पर एक पत्र देश की आम जनता के नाम जारी किया है। पेश है पूरा पत्र-संपादक)
बस्तर संभाग के सर्व आदिवासी समाज व भारत देश के नागरिक गण को,
सेवा जोहार,
अत्यंत दुख के साथ लिख रही हूँ।
हमारा बस्तर पूंजीपतियों के लालच को पूरा करने के लिए विनाशकारी युद्ध भूमि बन चुका है। ये हम सबको पता है।
बस्तर की लड़ाई के दौरान कुछ वर्ष पहले पुलिस विभाग के एक उच्च अधिकारी ने मुझसे कहा था कि आदिवासियों का कभी कोई अस्तित्व ना था ना कभी रहेगा। ना कोई औकात, ना कोई जीवन ना कोई पहचान। आदिवासियों को कीड़े मकोड़ों की तरह कुचलना है, मारना है। यही सत्य है। इस सच को अपने दिमाग अपनी सोच में अच्छी तरह डाल लो यही तुम्हारी औकात है।
हाल ही में जब मुझे ये जानकारी मिली कि कर्रेगुट्टा जंगल में पहाड़ों से नक्सली के नाम से भारी संख्या में आदिवासियों को मार कर लाये हैं। उनके परिवार वाले बहुत परेशान हैं। भूखे प्यासे रहकर लाशों को ले जाने के लिए लड़ रहे हैं लेकिन पुलिस-प्रशासन लाश नहीं दे रहा है।
उस स्थिति में दिनांक 12-5-2025 को मैं जिला बीजापुर अस्पताल में पहुंच गई। कई गांव के आदिवासी लोग अस्पताल से बीजापुर थाना और थाने से अस्पताल चक्कर काट रहे थे। इसी बीच मैं गांव के लोगों से मिली और जानकारी इकट्ठा करने लगी कि वास्तव में कर्रेगुटटा पहाड़ में क्या हुआ था? पुलिस-प्रशासन और सरकार जो बोल रही है क्या वो सच है ? आप सभी लोग बताओ। तब हम लोग मदद कर पायेंगे। कई गांवों के ग्रामीण महिला, पुरुष और बच्चे आये हुए थे। परिवार के सदस्यों और ग्रामीणों ने बताया। दीदी मुठभेड़ की बात हम भी सुन रहे हैं। लेकिन ऐसी कोई मुठभेड़ नहीं हुई है।
ये सब फर्जी है। बल्कि सीआरपीएफ की कोबरा, डीआरजी, और तेलंगाना के ग्रे-हाउंड के बीच क्रॉस फायरिंग हुई है। ये फोर्स एक-दूसरे पर गलतफहमी में गोली चलाये हैं। जिसमें तीन पुलिस जवान भी मारे गये हैं। और कई जवान घायल हुए हैं। नक्सलियों की लगाई हुई आईईडी या गोला बारूद से नहीं आपसी फायरिंग से घायल हुए हैं। ये घटना दिनांक 7-5-2025 को सुबह लगभग 7-8 बजे हुई है ၊
हम तो लाश लेने आये हैं। ये लाशें उसी दिन उसी तारीख की लाशें हैं। पुलिस वाले घेर कर मारे हैं। जिनमें नाबालिग भी हैं ၊ निर्दोष आदिवासी भी हैं। महिला पुरुष कुछ निहत्थे किसान संघम सदस्य हैं ၊ कोई नक्सली लीडर नहीं है। 6-7 तारीख को कोई मुठभेड़ नहीं हुई है। मैंने वहां गांवों से आये हुए ग्रामीणों से पूछा आप लोगों को कैसे पता कि यह घटना 7-5-2025 की है। मारे गए लोगों के परिवारों के सदस्यों और ग्रामीणों ने बताया कि हमारे गांव के कुछ लोग डीआरजी में हैं। हमें डीआरजी वाले फोन करके बताये कि अपने परिवार के लोगों की लाश लेने आओ, उन्हें मार दिये हैं।
8 तारीख को हम लाश लेने आये थे ၊ 9 तारीख रात तक हम रुके रहे कि लाशों को लेकर जायेंगे। पुलिस-प्रशासन ने हमारे परिवार के सदस्यों की लाशें हमें नहीं दी ၊ दो दिन भूखे प्यासे रहकर हम लाश मांगते रहे। भूख प्यास और गर्मी से हम सब की हालत बहुत ज्यादा खराब होने लगी तो हम 10 तारीख को वापस अपने गांव पहुंच गए….तारीख को रूक कर आज 12-5-2025 को फिर लाश लेने आये हैं। आज भी देंगे या नहीं पता नहीं ၊ मैंने कहा आज हर हाल में लाशों को लेकर जाओगे। आज हम सब आप लोगों के साथ हैं। परिवार वाले बहुत ही परेशान हो रहे थे। समय बीतता जा रहा था शवों को देने में पुलिस प्रशासन बहुत ही आनाकानी कर रहा था। आखिर शवों को देने में इतना नाटक क्यों? हम सबको कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
हम सब लोग शवों को लेने आगे बढ़ते चले गये। तब पुलिस प्रशासन मजबूर होकर शवों को देने लगा। जब मैं शवों की ओर बढ़ी तो देखा कि लाशों पर हज़ारों की संख्या में कीड़े चल रहे थे। हर एक लाश पर कीड़े थे। हर आदिवासी का मृत शरीर कीड़ों से ढका हुआ था। कीड़े मृत शरीर को पूरी तरह से घेर कर खा रहे थे। उस अधिकारी की बातें सच साबित होते नजर आ रही थी। सवाल ये नहीं होना चाहिए कि मर गया व्यक्ति कौन था वह नक्सली था या निर्दोष आदिवासी?
जो मारे गए वह सब इंसान थे और वे सब बस्तर के आदिवासी थे? आदिवासियों के मृत शरीर को कीड़ों के हवाले कर दिया जाता है। ताकि परिवार लाशों को पहचान ना सके၊ पुलिस प्रशासन और सरकार को इस बार फर्जी मुठभेड़ की झूठ की नींव तैयार करने में 6 दिन लग गये ၊
अगर एक आदिवासी मां के दो बेटे हैं तो उनमें से एक आदिवासी को सरकार अपनी तरफ से सिपाही बनाकर बंदूक पकड़ा देती है၊
दूसरा आदिवासी भाई अपनी जमीन की रक्षा करता है ၊ अगर सरकार की तरफ से लड़ने वाला आदिवासी मारा जाता है तो उसे तिरंगे झंडे में लपेटकर अंतिम संस्कार किया जाता है। और अपनी जमीन बचाने के लिए जो आदिवासी मारा जाता है उसकी लाश को कीड़ों की चादर से ढक दिया जाता है၊