नई दिल्ली/ पटना। लोकसभा चुनाव को देखते हुए राजनीतिक दलों में अपनी गोटियां बैठानी शुरू कर दी है। बिहार में एनडीए के घटक दल आरएलएसपी और जदयू में आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो चुका है। सम्मानजनक सीटें न मिलती देख आरएलएसपी मुखिया ने डीएनए को चुनावी मुद्दा बना दिया है। कभी एक साथ राजनीति करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर उन्होंने डीएनए को लेकर निशाना साधा है। कुशवाहा ने नीतीश कुमार से पूछा-
‘आपको भले ही जरूरत हो या नहीं लेकिन प्रदेश की जनता आप से यह जानना चाहती है कि आपके ‘डीएनए’ की रिपोर्ट क्या है और वह आई या नहीं आई। आई तो क्या है ?
‘दरअसल 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव के प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जीतन राम मांझी का उल्लेख करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधा था। उनका कहना था कि जब जीतन राम मांझी के साथ बुरा हुआ था, तो मैं बेचैन हो गया। पीएम ने कहा कि नीतीश कुमार ने जब एक महादलित के बेटे से सब कुछ छीन लिया तब मुझे लगा कि शायद उनके डीएनए में ही गड़बड़ है। उस समय मोदी के सामने उनके तीन विरोधी थे। नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद और कांग्रेस। इस दौरान नेताओं ने एक दूसरे पर जमकर आरोप-प्रत्यारोप लगाए। उसी क्रम में डीएनए वाला बयान भी आया था।
एनडीए में जदयू के शामिल होने के बाद उपेंद्र कुशवाहा और नीतीश कुमार का विवाद अब सड़कों पर आ गया है। जदयू ने उपेंद्र कुशवाहा को मर्यादा में रहकर बोलने की नसीहत दी है।
जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह का कहना है- ‘कुशवाहा ने अप्रासंगिक बयान दिया है। यह मर्यादाहीन और अनावश्यक है। उत्तेजक बयान देने की उनकी आदत बन चुकी है।’
ज्ञात हो कि कुशवाहा ने मुजफ्फरपुर में एक कायक्रम में कहा था कि-
‘बड़े भाई नीतीश कुमार, जब एक ही परिवार से आप और हम हैं तो कुशवाहा नीच कैसे हो गया ? मैं जानना चाहता हूं।’
उन्होंने आगे कहा कि पीएम मोदी ने तो उस वक्त किसी और संदर्भ में ही डीएनए की बात कही थी पर नीतीश कुमार ने तो अपनी पार्टी के लोगों से कहा कि बाल और नाखून काटकर दिल्ली भेजो, हमें डीएनए की रिपोर्ट जाननी है। उस समय नितीश कुमार ने डीएनए वाले बयान पर मोदी पर जमकर निशाना साधा था।
दरअसल उपेंद्र कुशवाहा तब से और आक्रामक हो गए हैं जब से भाजपा और जदयू ने आपस में 50-50 फीसद सीटें बांट ली है और उनकी पार्टी को एक सीट के रूप में झुनझुना थमा दे रहे हैं। कुशवाहा के ने गत बुधवार को पटना के रवींद्र भवन में सरदार पटेल की जयंती के अवसर पर आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए नीतीश कुमार को ‘बड़ा भाई’ बताते हुए दावा किया था कि एनडीए में आने के बाद उनसे एक बार हुई व्यक्तिगत मुलाकात के दौरान उन्होंने कहा था कि 15 साल मुख्यमंत्री रहना बहुत होता है, अब मन संतृप्त हो चुका है। उन्होंने कहा, ‘उपेंद्र कुशवाहा सम्मान के लिए राजनीति करता है। उपेंद्र कुशवाहा जनता के लिए राजनीति करता है।’ गौरतलब है कि शनिवार को यहां एक कार्यक्रम के दौरान नीतीश से कुशवाहा द्वारा उनके बारे में दिए गए वक्तव्य पर प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने (नीतीश) कहा था कि कहां सवाल जवाब का स्तर इतना नीचे ले जा रहे हैं।
दरअसल, उपेंद्र कुशवाहा के इस बयान पर गौर किया जाए और नीतीश कुमार के जिस बयान को लेकर वह निशाना साध रहे हैं, उससे यह स्पष्ट होता है कि बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार ने बीजेपी को टारगेट करने के लिए जो रास्ता अपनाया था, अब वही रास्ता उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कुमार पर दबाव बनाने के लिए अपना रहे हैं।
पीएम के डीएनए वाले बयान को नीतीश कुमार ने बड़ी चालाकी से बिहार और समूचे बिहारियों से के सम्मान से जोड़ दिया था। मतलब साफ है कि अब नीतीश जिस रास्ते चले थे, अब उन्हीं को टारगेट करने के लिए कुशवाहा भी उसी रास्ते पर चल निकले हैं। नीतीश कुमार ने डीएनए की बात को बिहार के स्वाभिमान से जोड़ दिया था। जहां-जहां वह जाते थे, पीएम मोदी के डीएनए वाले बयान का जिक्र जरूर करते थे और एक समय ऐसा भी आया कि समूचे बिहारियों में वह यह संदेश देने में कामयाब हो गए थे कि सच में पीएम मोदी ने बिहारियों की डीएनए की बात की है। यही वजह है कि मौजूदा वक्त में उपेंद्र कुशवाहा भी नीतीश कुमार को उसी तीर से उन्हें मात देने की रणनीति बना रहे हैं।
यही वजह है कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सीटों के बंटवारे में अपना वर्चस्व कायम रखने की उम्मीद से कुशवाहा नीतीश कुमार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। अगर सीटों की सौदेबाजी सही नहीं होती है या फिर एनडीए में समीकरण सही नहीं होते हैं तो ऐसा लग रहा है कि नीतीश के नीच वाले बयान को उपेंद्र कुशवाहा आम जन तक ले जा सकते हैं और नीतीश कुमार को टारगेट करने के लिए इसका इस्तेमाल करेंगे, जैसा कभी नीतीश ने पीएम मोदी के खिलाफ किया था। उपेंद्र कुशवाहा ऐसा इसलिए भी कर रहे हैं क्योंकि उनके लिए कई विकल्प खुले हैं। अगर एनडीए में मनमुताबिक उन्हें सीटें नहीं मिलती हैं तो राजद महागठबंधन का दरवाजा भी उनके लिए खुला है।
सूत्रों की मानें तो, फिलहाल अमित शाह और नीतीश कुमार के बीच जो सहमति हुई है उसके अनुसार जदयू और भाजपा 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी, वहीं रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा को 5 सीटें दी जा रही हैं। उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी को एक सीट दिए जाने की बात है। गौर करने वाली बात है कि पिछले लोकसभा चुनाव में लोजपा को 7 सीटें मिलीं थी। उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को 3 सीटें मिली थी जो तीनों वह जीत गई थी।
देखने की बात यह भी है कि उपेंद्र कुशवाहा को राजद नेता तेजस्वी यादव भी खुले तौर पर आमंत्रित कर चुके हैं। यही वजह है कि कुशवाहा खुलकर बैटिंग कर रहे हैं। उपेंद्र कुशवाहा के इस तेवर के पीछे एक और वजह यह भी बताई जा रही है कि कुशवाहा की पार्टी का जनाधार 2014 लोकसभा चुनाव से पहले कम था। मगर इन चार-पांच सालों में रालोसपा ने अपने आपको काफी मजबूत किया है। इसी वजह से कुशवाहा अपने को नीतीश कुमार से कहीं कम नहीं आंक रहे हैं।