सुदूर गांवों में भी तैयार हो रहे ‘बाल वैज्ञानिक’

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नर्मदापुरम। शिक्षा की वैयक्तिक विकास और सामाजिक बदलाव में अहम भूमिका है। 21वीं सदी में जिंदगी के हर क्षेत्र में विज्ञान की दखल बढ़ी है। बुनियादी वैज्ञानिक साक्षरता और वैज्ञानिक मानसिकता सभी बच्चों के लिए ज़रूरी है चाहे वे आगे जाकर विज्ञान की पढ़ाई करना चाहें या किसी वजह से दसवीं के बाद विज्ञान की पढ़ाई जारी ना रख पाएं। नई शिक्षा नीति में भी विज्ञान शिक्षा को काफी महत्व दिया गया है। जहां शहरों में STEM शिक्षा ने ज़ोर पकड़ा है और बच्चों को नए-नए अवसर देने के प्रयास हो रहे हैं, ग्रामीण अंचल में, विशेषकर आदिवासी गांवों में, विज्ञान शिक्षा की हालत काफी दयनीय है।

एकलव्य फाउंडेशन और मध्य प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद की संयुक्त पहल के चलते पिछले तीन साल से मध्यप्रदेश के नर्मदापुरम जिले के केसला विकासखंड में विज्ञान शिक्षा की स्थिति को मज़बूत करने का काम शुरू हुआ है। इस काम में जिला प्रशासन का भी पूरा सहयोग मिला हुआ है। पहले स्कूल के समय के बाहर बच्चों के साथ जो सीखने-सिखाने का काम होता था, वह इस अकादमिक सत्र में प्रशासन की मदद से स्कूल के समय में ही हो पा रहा है।

केसला के 12 गांवों में सप्ताह के तीन दिन कक्षा 6 से 8 के बच्चे एकलव्य टीम के सदस्यों की मदद से विज्ञान के प्रयोग करते हैं, विज्ञान के तरीकों से सवालों की जांच-पड़ताल करते हैं और विज्ञान के मज़ेदार मॉडल और खिलौने बनाते हैं। विज्ञान के शिक्षक भी इस काम में यथासंभव जुड़ रहे हैं जिनके लिए समय-समय पर एकलव्य टीम प्रशिक्षण भी आयोजित करती है।

विज्ञान सीखने-सिखाने का यह अनुभव बोर्ड पर प्रश्नोत्तर लिख कर विषय की पढ़ाई करने से कहीं अलग है। इसे बच्चे भी स्वीकारते हैं और शिक्षक भी, जिनका मनोबल भी इस पहल के चलते बढ़ा है। एकलव्य संस्था ने इन गांवों की माध्यमिक शालाओं में पर्याप्त संख्या में विज्ञान किट उपलब्ध कराई है ताकि सभी बच्चे प्रयोग करके विज्ञान सीख सकें। विज्ञान से जुड़ी करीब 100 किताबें भी स्कूलों में दी गई हैं ताकि बच्चों में विज्ञान के प्रति रूझान बने।

इसी पहल के तहत पिछले कुछ महीनों से स्कूल परिसर में विज्ञान मेलों का भी आयोजन किया जा रहा है। बच्चे जो प्रयोग कर चुके होते हैं, उसी समझ को उन्हें विज्ञान मेले में बाकी लोगों के सामने रखना होता है। इससे उनका आत्मविश्वास तो बढ़ता ही है, स्कूल और समुदाय के बीच की कड़ी भी मजबूत होती है। विज्ञान मेलों में पालकों को विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता है कि वे स्कूल आकर अपने बच्चों के काम को देखें, सराहें और समुदाय में भी विज्ञान को लेकर जागरूकता बढ़े।

14 सितंबर को केसला विकासखंड के डांडी‌वाड़ा गांव में ऐसे ही एक विज्ञान मेले का आयोजन किया गया, जिसमें बच्चों ने विज्ञान की कुछ जटिल अवधारणाओं को बेहद सरल प्रयोगों के ज़रिए लोगों को समझाया। चाहे वह भोजन के पाचन से जुड़े सवाल हों या विद्युत प्रवाह के, या फिर पानी के पृष्ठ तनाव और ससंजन और आसंजन बल से जुड़े कुछ मज़ेदार प्रयोग-जो लोग भी मेले में शामिल हुए, उन्होंने विज्ञान का एक अनुभव लिया और बच्चों का उत्साहवर्धन भी किया।

इस कार्यक्रम में विशेष अतिथि के तौर पर मध्य प्रदेश विज्ञान एवं तकनीकी परिषद के प्रतिनिधि के तौर पर विकास शेंडे और डॉ सुनील गर्ग, तथा एकलव्य फाउंडेशन के वरिष्ठ साथी मनोज निगम शामिल हुए। कार्यक्रम के आयोजन में शाला प्रभारी गीता बारसे का काफी सहयोग रहा।

कार्यक्रम के अंत में सभी अतिथियों ने बच्चों को एकलव्य की बाल विज्ञान पत्रिका ‘चकमक’ और कहानियों की एक छोटी पुस्तिका उपहार में दी और उनको आगे भी विज्ञान की पढ़ाई करने के लिए प्रोत्साहित किया। कार्यक्रम में एकलव्य की स्थानीय विज्ञान टीम के सभी साथी भी उपस्थित रहे। इसके पहले केसला के मांदीखोह, चाटुआ, कोटमीमाल, भड़गदा, रैसलपाठा गांव में भी विज्ञान मेलों का आयोजन हुआ है।

(मनोज निगम स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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