‘उत्तराखंड की त्रासदी’ से मालामाल होती सरकार, शराब से मिला ढाई हजार करोड़ का राजस्व

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देहरादून। उत्तराखंड राज्य में शराब जैसी त्रासदी से जहां हजारों परिवार बर्बादी की कगार पर पहुंच चुके हैं तो यह कारोबार सरकार के लिए कामधेनु बना हुआ है। राज्य की स्थापना से गुजरे बाइस सालों में सरकार शराब के वैध कारोबार से 2648.1 करोड़ रुपए का रेवेन्यू कमा चुकी है। शराब से राज्य सरकार की कमाई इतनी तेजी से बढ़ रही है कि 22 सालों में यह 22 गुने से भी अधिक हो गई है।

सूचना का अधिकार कानून के हवाले से मिली इस जानकारी तक पहुंचने से पहले बता दे कि राज्य में शराबबंदी आंदोलन की एक शानदार परंपरा रही है। ब्रिटिश काल से पूर्व तत्कालीन उत्तराखंड में शराब का प्रचलन न के बराबर था। अंग्रेजी शासन में भी पहाड़ के कस्बे ही शराब की चपेट में आए थे। गांव अभी भी इस बीमारी से दूर थे। आजादी के बाद देश के अन्य भागों की तरह यहां पर भी शराब के खिलाफ आंदोलन चले।

1965-67 में सर्वोदय कार्यकर्ताओं के टिहरी, पौड़ी, अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ तक चले शराब के विरोध में आंदोलन के कारण यहां शराब की भट्टियां बंद हुई तो इसके बाद 1969 में सरकार ने सीमान्त जनपद उत्तरकाशी, चमोली, पिथौरागढ़ में तथा 1970 में टिहरी और पौड़ी गढ़वाल में शराबबंदी कर दी। जिसे एक साल बाद ही साल 1971 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अवैध घोषित कर दिया था।

शराब के नये लाइसेंस जारी करने पर सरला बहन जैसे लोगों ने विरोध किया। प्रदर्शन गिरफ्तारियों के बाद 1972 से पहाड के पांच जिलों में फिर से शराबबंदी हुई। 1978 में जनता पार्टी सरकार ने उ.प्र. के आठों पर्वतीय जनपदों (वर्तमान उत्तराखंड) में पूर्ण मद्यनिषेध लागू कर दिया था। लेकिन गांवों में सुरा, लिक्विड आदि मादक पेयों की तस्करी के कारण पहाड़ की बर्बादी का एक नया व्यापार शुरु होते देख 1980 में कांग्रेस सरकार द्वारा नैनीताल, अल्मोड़ा, देहरादून में पूरी तरह और टिहरी, पिथौरागढ़ और पौड़ी में परमिट के आधार पर अंग्रेजी शराब उपलब्ध करानी शुरू कर दी।

पिछली सदी का नवां दशक शुरु होने तक हालात बहुत खराब हो चुके थे। सुरा के चलते सैकड़ों परिवार तबाह हो गये। परिवारों की आमदनी का बड़ा हिस्सा इन नशों के लिये खर्च होने लगा। पेंशन, मनीआर्डर, सरकारी अनुदान, यहां तक कि औरतों के गहने-जेवर, व घर के भांडे-बर्तन बेचकर भी सुरा-शराब पीने की घटनायें सामने आने लगीं।

शादी-विवाह, अन्य पर्व-त्योहारों में शराब पीकर धुत्त होना, एक सामान्य सी घटना बन गई। मारपीट और औरतों के साथ बदतमीजी भी शुरु हो चली तो पहाड़ की सामाजिक जिंदगी से औरतों का आतंकित होकर कटना शुरु हो गया। इन स्थितियों में शराब का छिटपुट विरोध शुरू हुआ। उत्तरकाशी की महिलाओं ने इसके खिलाफ याचिका दायर की तो कौसानी में छात्रों ने जीप से शराब पकड़ी। उफरैंखाल में युवकों ने कच्ची शराब के अड्डे नष्ट किये। इसी तरह अन्य छोटी घटनायें भी शुरू हुई लेकिन सुरा-शराब को मुद्दा बनाकर कोई राजनैतिक दल आंदोलन शुरु नहीं हो सका। अन्ततः 23-24 अप्रैल को अल्मोड़ा में आयोजित चन्द्र सिंह गढ़वाली स्मृति समारोह में उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी ने जंगलों और खनन के साथ सुरा-शराब की समस्याओं का सवाल उठाने का भी फैसला किया।

1983 में अल्मोड़ा की शराब लाबी द्वारा एक युवक की हत्या किये जाने से कस्बाई लोगों में हलचल पैदा हुई तो 1984 में “जागर” की सांस्कृतिक टोली ने भवाली से लेकर श्रीनगर तक पदयात्रा कर लोगों को सुरा-शराब का षडयंत्र समझाया। 1 फरवरी, 1984 को जब चौखुटिया में लोगों ने आबकारी निरीक्षक को ही अपनी जीप में शराब ढोते पकड़ा तो लोगों का सुरा-शराब के खिलाफ गुस्सा फूट पड़ा। एक आंदोलन की शुरुआत हुई। 2 फरवरी, 84 को ग्राम सभा बसभीड़ा में उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी ने एक जनसभा में इस आंदोलन की प्रत्यक्ष घोषणा कर दी। जो आज भी “नशा नहीं रोजगार दो” आंदोलन के नाम से जाना जाता है।

अब जबकि “नशा नहीं रोजगार दो” आंदोलन के चार दशक पूरे हो रहे हैं तो शराब ने उत्तराखंड के न केवल चप्पे-चप्पे पर अपनी जगह बना ली है बल्कि सरकार की ओर से इसे प्रोत्साहित भी किया जा रहा है। राजस्व के लालच में पहाड़ की इस त्रासदी से सरकारें जितना राजस्व वसूल रहीं हैं, उसके आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि राज्य में शराब की खपत साल दर साल किस तरह बढ़ रही है।

उत्तराखंड के राज्य कर विभाग सेल्स टैक्स/वैट से वित्तीय वर्ष 2001-02 से 2022-23 (जनवरी 23 तक) 2648.1 करोड़ रु. का टैक्स राजस्व शराब की बिक्री पर वसूल चुकी है। यह आंकड़े काशीपुर के सूचना का अधिकार कार्यकर्ता एडवोकेट नदीमउद्दीन द्वारा सूचना अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी से सामने आए हैं। जो बताते हैं कि साल 2022-23 का शराब से कुल टैक्स राजस्व 361.05 करोड़ रुपए साल 2001-02 के 15.90 करोड़ रुपए की तुलना में 22 गुणा से अधिक पहुंच गया है।

उत्तराखंड में पिछले 22 वर्षों में शराब से राजस्व

सूचना अधिकार कार्यकर्ता नदीमउद्दीन एडवोकेट ने आयुक्त कर कार्यालय से प्रदेश भर में शराब पर वसूले गये टैक्स राजस्व की धनराशियों की सूचना मांगी तो इसके जवाब में राज्य कर मुख्यालय देहरादून के लोक सूचना अधिकारी/उपायुक्त दीपक बृजवाल ने 2020-21 से 20022-23 (जनवरी 2023 तक) के शराब से प्राप्त कर राजस्व की यह जानकारी दी है। जिसके अनुसार उत्तराखंड गठन के बाद वर्ष 2001-02 से 2022-23 (जनवरी 2023 तक) शराब पर विभाग ने 2648.1 करोड़ टैक्स वसूला है। चौंकाने वाली बात यह है कि वर्ष 2020-21 में कोरोना काल में 2019-20 की तुलना में 39 करोड़ रुपये अधिक टैक्स वसूला गया है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2021-22 में 334.43 करोड़ रुपये टैक्स वसूला है तथा 2022-23 के जनवरी 2023 तक 10 माह में पिछले वर्ष 2021-22 में 12 महीने में वसूले टैक्स की अपेक्षा 15 करोड़ अधिक टैक्स वसूला गया है।

उपलब्ध कराए गए इन आंकड़ों से स्पष्ट है प्रदेश में शराब पर वसूले टैक्स में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। जहां 2001-02 में केवल 15.9 करोड़ टैक्स वसूला गया था जो 2006-07 में बढ़कर दुगने से अधिक 31.79 करोड़ रुपये हो गया तथा 2008-09 में तिगुने से अधिक 50.58 करोड़ तथा 2010-11 में पांच गुने से अधिक 83.98 करोड़ तथा 2014-15 में छः गुने से अधिक 100.55 करोड़ हो गया। वर्ष 2015-16 में यह 2001-02 की तुलना में 9 गुने से अधिक 2017-18 में 11 गुने से अधिक 185.72 करोड़, 2018-19 में 13 गुने से अधिक 219.76 करोड तथा 2020-21 में 16 गुने से अधिक 268.43 करोड तथा 2021-22 में 21 गुने से अधिक 345.43 करोड तथा 2022-23 में जनवरी 23 तक ही 22.7 गुणा होकर 361.05 करोड़ रुपये हो गया।

आरटीआई से मिली जानकारी

नदीम को उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार शराब के टैक्स राजस्व 268.43 करोड़ रुपये हो गया है। 2001-02 में शराब से टैक्स कमाई 15.90 करोड़, 2002-03 में 18.01 करोड, 2003-04 में 21.08 करोड़, 2004-05 में 21.57 करोड़, 2005-06 में 28.49 करोड़, 2006-07 में 31.79 करोड़, 2007-08 में 37.62 करोड़, 2008-09 में 50.58 करोड़, 2009-10 में 56.82 करोड़, 2010-11 में 83.98 करोड़, 2011-12 में 92.12 करोड़, 2012-13 में 108.09 करोड़, 2013-14 में 89.77 करोड़, 2014-15 में 100.55 करोड़, 2015-16 में 145.17 करोड़, 2016-17 में 146.76 करोड़, 2017-18 में 185.72 करोड़, 2018-19 में 219.76 करोड़, 2019-20 में 219.50 करोड़ तथा 2020-21 में 268.43 करोड़, 2021-22 में 345.43 करोड़ तथा 2022-23 में जनवरी 2023 तक 361.05 करोड़ हो गयी। इन आंकड़ों की सच्चाई से समझा जा सकता है कि किस तरह पहाड़ को खोखला कर शराब सरकार के खजाने को भरने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है?

(उत्तराखंड के रामनगर से सलीम मलिक की रिपोर्ट)

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