झारखंड। गढ़वा में स्थित सरुअत पाट पहाड़ी प्राकृतिक सुंदरता के साथ ही कम तापमान होने के कारण देश भर में प्रसिद्ध है। यहां की आबोहवा पर्यटकों को खूब आकर्षित करती है। तन की गर्मी को ठंडक दिलाने के लिए सैलानियों की आमद यहां होती रहती है। लेकिन यहां रहने वाले इन आठ टोलों में आदिम जन-जाति कोरवा और नगेसिया समुदाय की हालत बहुत खराब है।
गढ़वा जिले का बड़गड़ प्रखंड अंतर्गत सरुअत पाट पहाड़ी की चोटी समुद्रतल से 3819 फीट की ऊंचाई पर है जो छत्तीसगढ़ की सीमा से सटा हुआ है। वहीं आदिवासियों की आस्था का केंद्र मरांङ बुरू और जैन धर्मावलम्बियों का चर्चित पारसनाथ पहाड़ी की चोटी समुद्रतल से लगभग 4,000 फीट की ऊंचाई पर है। जबकि झारखंड की तीसरी ऊंची चोटी नेतरहाट 3,213 फीट की ऊंचाई पर है।
सरुअत पाट पहाड़ी पर घने जंगल एवं झरनों का आनंद सालों भर मिलता है। सबसे बड़ी बात यह है कि यहां मई-जून के महीने में भी अधिकतम तापमान 34 डिग्री से ऊपर नहीं जाता है, बल्कि अक्सर 30 से 32 डिग्री के बीच ही रहता है, वहीं रात में न्यूनतम तापमान गर्मी में भी करीब 18 डिग्री तक आ जाता है। इसके कारण रात में यहां गर्मी के मौसम में भी चादर की जरूरत पड़ जाती है। यदि सरुअत पहाड़ी पर रहने के दौरान बारिश का मौसम बन जाए, तो आपको बादल को करीब से देखने का अवसर मिल जायेगा, जिसका आनंद ही कुछ और है। ऐसा महसूस होगा कि बादल आपको छूते हुये गुजर रहे हैं।
बरगढ़ प्रखण्ड से 50 किमी की दूरी पर स्थित है सरूअत पाट गांव टेहरी पंचायत में आता है। लगभग 65 परिवारों वाला राजस्व गांव सरूअत में आठ टोले हैं। तिलैयाटांड, कूपाटोली, राजखेता, जोड़ीसरना, केराटोली, बुर्जूपानी, हर्राटोला और सेरेंगडांड।
इन आठ टोलों में आदिम जन-जाति कोरवा और नगेसिया समुदाय के लोग प्रमुख रूप से निवास करते हैं। इसमें मात्र दो परिवार ओबीसी समाज के यादव लोगों का है जो आर्थिक व समाजिक रूप से काफी सम्पन्न हैं।
यहां सरकारी सुविधाओं और विकास की बात करें तो यहां एक आंगनबाड़ी केंद्र तो है, लेकिन यहां कोई उप स्वास्थ्य केंद्र, कोई प्रज्ञा केंद्र या डाक घर की सुविधा नहीं है। यहां बिजली की सुविधा भी नदारद है। अलबत्ता बिजली के खंभे और तार यहां अपनी उपस्थिति जरूर बनाए हुए हैं।
कृषि की बात करें तो यहां के आदिम जन-जाति समुदाय के लोग कृषि के लिए पूरी तरह मानसून पर निर्भर हैं। वे धान, मकई, टमाटर, आलू, गोंदली वगैरह की खेती करते हैं। इससे उनका चार महीने का भोजन उपलब्ध हो पाता है। शेष आठ महीने वे सरकारी राशन का चावल और जंगल पर निर्भर रहते हैं।
आदिम जन-जाति के लोग करम, सरहूल, सोहराई, फगुआ जैसे पर्व त्योहार मनाते हैं, उनका पूरा जीवन मदईत सिस्टम (आपसी तालमेल यानी नि:शुल्क श्रम) यानी आदिवासियत पर आधारित है।
वैसे तो यह पठारी इलाका नक्सल से प्रभावित इलाका नहीं है। लेकिन पिछले कई दशकों से कुछ मौकापरस्त और दबंग लोग खुद को नक्सलियों से संबंध बताकर ठेका पट्टा करते रहे हैं और क्षेत्र के विकास को भी बाधित किया हुआ है।
यहां मिट्टी, मोरम की सड़क मनरेगा योजना के तहत जैसे-तैसे बनवाया गया है, जो बरसाती पानी में बहकर अपना अस्तित्व खो चुकी है। सरुअत पहाड़ी पर किसी वाहन से नहीं जाया जा सकता है। लेकिन छतीसगढ़ सीमा के चांदो से होकर बंदरचुआं के पास से चार पहिया वाहन और दुपहिया वाहन से आसानी से जाया जा सकता है। इसके लिये बड़गढ़ के पास से चांदो और बंदरचुआं तक जाना होगा। फिर वहां से सीधे सरुअत पहाड़ी के ऊपर तक बिना किसी रूकावट के जा सकते हैं, लेकिन यदि आप पैदल चलने में सक्षम हैं तथा जंगल को और करीब से देखना चाहते हैं, तो टेहरी पंचायत के हेसातू गांव के पास सरुअत पर पैदल चढ़कर जा सकते हैं। इसके लिये कोई पगडंडी भी नहीं बनी हुई है।
सरुअत पहाड़ी की इस खूबसूरत चोटी पर सरकारी अथवा गैर सरकारी स्तर से रुकने की कोई व्यवस्था नहीं है। इसके लिये योजना अभी प्रस्तावित है, लेकिन पहाड़ी की चोटी पर एक अच्छी खासी आबादी रहती है। आठ टोलों वाला सरुअत की चोटी पर करीब 400 लोग रहते हैं। जहां आप उन लोगों से बात करके उनकी झोपड़ियों में अथवा बाहर मैदानी हिस्सों में स्वयं की व्यवस्था कर रात अथवा कुछ दिन बिता सकते हैं। इसके लिये वहां आपको कोई रोक-टोक नहीं करेगा।
सरुअत के सेरेंगटांड़ निवासी विक्रम यादव ने बताया कि यहां अक्सर लोग घूमने आते हैं, लेकिन अधिकांश लोग रात होने से पूर्व ही यहां से निकल जाते हैं।
यह क्षेत्र एक बेहतर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो सकता है। बशर्ते झारखंड सरकार इस ओर ध्यान दे। खासकर गर्मी से राहत पाने और गर्मी के दिनों में घूमने के लिए यह राज्य का मुख्य केंद्र बन सकता है। वहीं पर्यटन स्थल बनने से राजस्व में इजाफा होने की पूरी संभावना है।
(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट।)