पारा पहुंचा 43 पार तो पेड़ बचाने उमड़ा देहरादून

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विकास के नाम पर देहरादून सहित पूरे उत्तराखंड में हाल के वर्षों में जंगलों का जितना विनाश हुआ, उतना संभवतः पहले कभी नहीं हुआ था। राज्य की अस्थाई राजधानी देहरादून, जो कुछ साल पहले पेड़ों से आच्छादित थी, अब पूरी तरह सपाट हो चुकी है। मुख्य शहर के चारों तरफ और शहर की सड़कों के किनारे जो पेड़ बच गये हैं, सरकार किसी न किसी योजना के नाम पर उनका भी सफाया करने में जुटी हुई है।

जब भी राज्य सरकार कोई ऐसी योजना बनाती है, जिसके लिए पेड़ काटे जाते हों, उनका लोग विरोध करते रहे हैं। आशारोड़ी में दिल्ली एक्सप्रेस-वे के लिए हजारों पेड़ काटने का मामला हो या फिर सहस्रधारा रोड चौड़ी करने के लिए सैकड़ों पेड़ काटने का मामला। या खलंगा के जंगल को काटने का, देहरादून के लोग विरोध में सड़कों पर उतरते रहे हैं। लेकिन इन विरोध प्रदर्शनों में आमतौर के गिने-चुने लोग ही नजर आते थे। सरकार भी इस तरह के विरोध को नजरअंदाज कर देती है और मौका मिलते ही पेड़ों पर आरियां चला दी जाती है।

इस बार मामला पूरी तरह बदल गया। देहरादून में इस बार लोगों को अप्रत्याशित रूप से गर्मी का सामना करना पड़ा। मई और जून के महीनों में पारा एक भी दिन 37 डिग्री से नीचे नहीं उतरा और करीब 25 दिन 40 डिग्री से ज्यादा रहा। मई के महीने में देहरादून में अब तक का सबसे ज्यादा अधिकतम तापमान दर्ज किया गया। इस भीषण गर्मी के बीच जब राज्य सरकार ने शहर की एक और सड़क चौड़ी करने के नाम ढाई सौ से ज्यादा पेड़ों को काटने की योजना बनाई तो देहरादून के लोग चौकन्ने हो गये। संभवतः लोगों की समझ में आ चुका है कि इस तरह की गर्मी से न तो कूलर उन्हें बचा पाएंगे और न एयर कंडीशनर। सिर्फ पेड़ ही गर्मी से बचा पाएंगे। ऐसे में ढाई सौ पेड़ों को बचाने के लिए देहरादून की सड़कों पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। 23 जून को देहरादून में पहली बार पर्यावरण के मुद्दे पर हजारों लोग सड़कों पर उतर आये।

दरअसल देहरादून की एक सड़क है, न्यू कैंट रोड। शहर से राजभवन और मुख्यमंत्री निवास की ओर जाने वाली यह सड़क देहरादून की सबसे ठंडी और खूबसूरत सड़कों में गिनी जाती है। और इस खूबसूरती की वजह है, सड़क के दोनों तरफ के हरे-भरे पेड़। इसी न्यू कैंट रोड पर कुछ महीने पहले एक मॉल बना। इसके बाद सड़क पर वाहनों की आवाजाही बढ़ी तो सरकार ने दिलाराम बाजार से मॉल तक सड़क चौड़ी करने की योजना बना दी। इसके लिए सड़क के दोनों ओर खड़े 244 पेड़ों पर आरी चलाने की योजना थी। इन पेड़ों को चिन्हित करके निशान भी लगा दिये गये।

43 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान से जूझते देहरादून के लोगों को जब सरकार की इस योजना का पता चला तो सोशल मीडिया पर विरोध का दौर शुरू हो गया। लोग आरोप लगाने लगे कि मॉल के मालिक को फायदा पहुंचाने के लिए पेड़ काटे जा रहे हैं। सोशल मीडिया पर इसी विरोध के बीच सिटीजन फॉर ग्रीन दून ने 23 जून को दिलाराम चौक से सेंट्रियो मॉल तक मार्च करने की कॉल दे दी। सिटीजन फॉर ग्रीन दून पेड़ बचाने के लिए पहले भी इस तरह की कॉल देता रहा है। आशारोड़ी के जंगल हों या थानों के, सहस्रधारा रोड के पेड़ हों या खलंगा के, इन्हें बचाने के लिए जो प्रदर्शन देहरादून में किये गये वे इसी संस्था की अपील पर किये गये थे। इन प्रदर्शनों में आमतौर में कभी कुछ दर्जन तो कभी सौ-पचास लोग ही पहुंचते थे।

इस बार ऐसा नहीं हुआ। विरोध मार्च की इस अपील को कई अन्य संस्थाओं और नागरिक संगठनों ने भी अपने समर्थन के साथ आगे बढ़ा दिया। नतीजा यह हुआ कि 23 जून की सुबह दिलाराम चौक पर हजारों लोग जमा हो गये। लगभग दो हजार लोगों को इस भीड़ ने दिलाराम चौक से सेंट्रियो मॉल तक मार्च किया और सभा की। हालांकि देहरादून में समय-समय पर धरने प्रदर्शन आयोजित होते हैं और कई प्रदर्शनों में भारी भीड़ भी जमा होती है, लेकिन पेड़ बचाने के मुद्दे पर देहरादून के इतिहास में यह पहला मौका था, जब इतनी बड़ी संख्या में लोग जमा हुए। यह भीड़ तब जुटी जबकि सरकार की ओर से इसे असफल करने का भरपूर प्रयास किया गया था।

सोशल मीडिया पर जब इस मार्च की अपील तेजी से तैरने लगी तो सरकार के कान खड़े हो गये। आनन-फानन में मुख्यमंत्री की ओर से न्यू कैंट रोड पर एक भी पेड़ न काटने का बयान जारी कर दिया गया। लेकिन, ज्यादातर लोगों ने इस बयान पर विश्वास नहीं किया। लोगों का कहना था कि उत्तराखंड सरकार और मुख्यमंत्री इस तरह के बयान देते रहते हैं, लेकिन अपनी बात पर कायम नहीं रहते। भ्रम पैदा करने के लिए न्यू कैंट रोड और आसपास की सड़कों पर छुटभैये बीजेपी नेताओं के नाम पर बड़े-बड़े होर्डिंग्स भी लगाये गये, जिनमें पेड़ काटने का फरमान वापस लेने के लिए मुख्यमंत्री का आभार जताया गया था। लेकिन लोगों पर इन होर्डिंग्स का भी कोई खास असर नहीं पड़ा और हजारों लोग मार्च में शामिल होने पहुंच गये।

पेड़ काटने के खिलाफ आयोजित इस मार्च में हर वर्ग के लोग शामिल थे। छोटे बच्चे भी शामिल हुए, युवा भी, महिलाएं भी और बुजुर्ग भी। छात्र भी इस मार्च में शामिल हुए तो व्यापारी और नौकरी पेशा लोग भी। राज्य सरकार में उच्च पदों में आसीन रह चुके पूर्व ब्यूरोक्रेट्स ने भी मार्च में हिस्सा लिया। मुख्य रूप से जिन संगठनों ने हिस्सेदारी की उनमें सिटीजन फॉर ग्रीन दून, दून सिटीजन फोरम, धाद, मैड, एसएफआई, उत्तराखंड महिला मंच, उत्तराखंड इंसानियत मंच, संयुक्त नागरिक संगठन आदि शामिल थे। इस दौरान जमकर नारेबाजी हुई, जनगीत गाये गये और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते नुक्कड़ नाटकों की प्रस्तुतियां भी हुई।

सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद् डॉ. रवि चोपड़ा ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि उत्तराखंड सरकार लगातार विकास के नाम पर जंगलों को काट रही है। यह कारगुजारी आने वाले दिनों में राज्य के सामने बड़ा संकट खड़ा कर सकती है। उन्होंने कहा कि लड़ाई अभी लंबी है और इस लड़ाई को जीतने के लिए हर नागरिक को आगे आना होना। यदि ऐसा नहीं किया गया तो आने वाला दौर मुश्किल दौर होगा। पेड़ न काटे जाने संबंधी मुख्यमंत्री की घोषणा को उन्होंने छलावा बताया और कहा कि सरकारें पहले भी लोगों को इस तरह से छलती रही हैं। इसलिए इस तरह के छलावे में नहीं आना है।

पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली देहरादून स्थित संस्था एसडीसी फाउंडेशन के अनूप नौटियाल ने पेड़ बचाने के लिए इतनी बड़ी संख्या में लोगों के एकत्रित होने को अच्छा संकेत बताया। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड सरकार रिकॉर्ड की दीवानी है। कभी चारधाम में भीड़ जुटाने के नाम पर तो कभी किसी अन्य बात पर सरकार रिकॉर्ड बनाने की बात करती है, लेकिन आज देहरादून के लोगों ने रिकॉर्डबाज सरकार को रिकॉर्ड बनाकर ही जवाब दे दिया है। उन्होंने कहा कि यह अभियान लगातार जारी रखना होगा। हम एकजुट होकर की सरकार के विनाशकारी कदमों को रोक सकते हैं और सरकार को सतत विकास की दिशा में आगे बढ़ने के लिए विवश कर सकते हैं।

उल्लेखनीय है कि इससे पहले देहरादून में दिल्ली एक्सप्रेस-वे के नाम पर आशारोड और मोहंड में साल के हजारों पेड़ काटे जा चुके हैं। सहस्रधारा रोड चौड़ी करने के नाम पर भी हजारों पेड़ काटे गये। विरोध होने पर कहा गया कि इन पेड़ों को उखाड़कर दूसरी जगहों पर लगाया जाएगा। कुछ पेड़ों को ट्रांसप्लांट करने का ड्रामा भी किया गया, लेकिन इनमें से एक भी पेड़ ट्रांसप्लांट नहीं हो पाया। सहस्रधारा रोड के आसपास कई जगहों पर अब भी इन हरे-भरे पेड़ों को ठूंठ खड़े हैं। राज्य सरकार ने हाल ही में देहरादून से लगते खलंगा में भी दो हजार से ज्यादा पेड़ों को वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के लिए काटने का प्रयास किया। लगातार विरोध के बाद फिलहाल इन पेड़ों पर आरी नहीं चलाई गई है, हालांकि उत्तराखंड जल संस्थान ने साफ शब्दों में कह दिया है कि सौंग नदी पेयजल परियोजना का वाटर ट्रीटमेंट लगाने के लिए खलंगा से बेहतर कोई जगह नहीं हैं। यानी कि खलंगा के जंगलों पर खतरा अब भी बरकरार है और न्यू कैंट रोड के पेड़ों पर भी।

(देहरादून से त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट)

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