अभी तो मंजिल दूर है, दूर है तेरा गांव।
तंबू में तू बैठ कर, ले ले थोड़ी छांव।।
मगर उम्मीदों के तंबू भी ग़ायब हैं। नजर डालते हैं तंबुओं की व्यवस्था पर;
लोकतांत्रिक देशों में सरकारी या सामाजिक सिस्टम की पहुंच से...
जब तक एक भी प्रवासी कामगार सड़क पर थका हारा, भूखा प्यासा, घिसटता हुआ अपने गांव घर जाता हुआ दिख रहा है, तब तक इस गंभीर पलायन जन्य त्रासदी में उनके हर मुद्दे और समस्या को सोशल मीडिया पर...