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इंदिरा गांधी नहीं गायत्री देवी से प्रेरित होकर मैंने लिखी थी ‘आंधी’: कमलेश्वर
बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी कमलेश्वर की 27 जनवरी को यानी बीते कल 14वीं पुण्यतिथि थी। 6 जनवरी, 1932 को उत्तरप्रदेश के मैनपुरी में जन्मे कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना उर्फ कमलेश्वर की आला तालीम इलाहाबाद में हुई।शिक्षा पूरी करने के बाद आजीविका के लिए उन्होंने कुछ ऐसे कार्य किए, जो उनके पाठकों को बेहद अविश्वसनीय लग सकते…
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ढांचे के तौर पर प्रणब कांग्रेसी थे! दिल संघ के लिए धड़कता था और सांस अंबानियों के लिए चलती थी
जानबूझकर ऐतिहासिक तथ्यों और स्मृतियों का लोप करने वाले और फायदे-नुकसान के लिहाज से इन या उन नेताओं व कारोबारियों पर दर्प और महानता का तिलक लगाने वाले मीडिया घरानों के लिए दिवंगत प्रणब मुखर्जी भले ही अमरत्व को प्राप्त कर गए हों, मगर वे इतने भी पाक-साफ नहीं थे। हां, इतना सच है कि…
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प्रशांत भूषण एक निडर व्यक्ति हैं: राजमोहन गांधी
प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना का मामला, अब केवल अवमानना का ही मामला नही रह गया है। सच कहें तो इस अवमानना के मामले में अदालत अपनी सुनवाई पूरी कर चुकी है और अब वह सज़ा के ऊपर विचार कर रही है। एक मुकदमे के रूप में इस मामले में बस सज़ा की घोषणा होनी…
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पांचवीं और आखिरी किश्त: हरिवंश बन गए हैं मोदी के चारण-भाट
दो दिनों तक कोरी बकवास करने के बाद हरिवंश अंततः खुल कर नरेंद्र मोदी की तारीफ करने लगे और उस समूह में बेशर्मी से शामिल हो गए जिन्होंने गांधी वध किया। दरअसल हरिवंश, सुधीर चौधरी, अर्णब गोस्वामी, अमिश देवगन, रजत शर्मा, रुबिका लियाकत और अंजना ओम कश्यप जैसे गोदी मीडिया वाली श्रृंखला के ही पत्रकार…
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जनता की जेब पर डाके का खुला ऐलान है बैंकों और बीमा कंपनियों का निजीकरण
19 जुलाई 1969 को बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था और उसके ठीक पचास साल बाद आज 21 जुलाई 2020 को यह खबर आयी कि सरकार छः पब्लिक सेक्टर बैंकों को पुनः निजी क्षेत्रों में सौंपने जा रही है। सरकार और बैंकिंग सूत्रों ने बताया कि बड़े सुधार के तहत पीएसयू बैंकों की संख्या आधी…
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इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया और मोदी ने फिर उन्हें कॉरपोरेट को सौंप दिया
19 जुलाई के दिन को भारतीय बैंकिंग के इतिहास में एक सुनहरा दिन के तौर पर याद किया जाता है। 51 वर्ष पहले इसी दिन देश के 14 प्राइवेट बैंकों का इंदिरा गाँधी सरकार के शासन में राष्ट्रीयकरण किये जाने की घोषणा की गई थी। इसी को ध्यान में रखते हुए आज के दिन ही…
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विशेष आलेख: प्रचंड बहुमत से उभरती निरंकुशता और जनतंत्र का जमीनी सच
25 जून, 1975 को संविधान का सहारा लेकर इस देश के संवैधानिक लोकतंत्र और अवाम के साथ जो किया गया, क्या इन बीते 45 सालों में हमारे समाज और हमारी सियासत ने कोई सबक लिया? क्या आपातकाल यानी इमरजेंसी के उस खतरनाक अनुभव से गुजरने के बावजूद इस देश ने अपने समाज और लोकतंत्र को…
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जेपी ने इधर ‘सिंहासन खाली करो’ का नारा दिया उधर आपातकाल लगा
दिल्ली के रामलीला मैदान में 25 जून की शाम को रैली में जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने प्रख्यात कवि रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता का अंश ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ को अपना नारा बनाया। रैली का आयोजन इलाहाबाद हाईकोर्ट और उच्चतम न्यायालय के फैसलों के बाद किया गया था। जेपी ने कहा…
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आपातकाल को भी मात देती मोदी सरकार की तानाशाही
वेब अखबार जनचौक में छपी एक खबर के अनुसार, 2 दिन पहले आधी रात को वाराणसी में सीपीआई एमएल (लिबरेशन) के दफ्तर में बिना सर्च वारंट के छापा मारा गया। अर्बन नक्सल के नाम पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की धर-पकड़ दो साल से जारी है। महामारी के संकट काल का फायदा उठाकर सांप्रदायिक नागरिकता (संशोधन) कानून…