प्लास्टिक मुक्त समाज को गढ़ने की लड़ाई

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मनोज कुयटे और कोमल कुयटे महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के संग्रामपुर तालुका के रहने वाले है, मनोज ने टाटा सामाजिक संस्थान, मुम्बई से Water Policy and Management में एमए किया है- जबकि कोमल ने DMLT किया है। एक वर्ष पूर्व दोनों का विवाह हुआ, मनोज और कोमल इस मायने में आदर्शवादी है कि शादी में ना बहुत खर्च किया और मनोज ने तो दहेज भी नहीं लिया, कोमल के मां-पिता ने तीन लाख मनोज को दिया था, जैसे कि अन्य दो बेटियों को दिया, परन्तु मनोज ने वह रुपया तीन दिन बाद लौटा दिया और कहा कि “एक रुपया भी नहीं चाहिये” और बल्कि बारातियों के आने- जाने का बस भाड़ा भी अपनी बचत से कोमल के पिताजी को दे दिया।

ये दोनों बहुत व्यवहारिक और पर्यावरण प्रेमी है, ना बाहर का कुछ खाते है, ना पीते है- मसलन कचोरी, समोसा या कोई कोल्डड्रिंक यहां तक कि पानी भी कभी खरीदकर नही पीते, हमेशा अपने पास स्टील की बोतल रखते हैं, जब जरूरत होती है तो किसी भी घर, सार्वजनिक नल या हैण्डपम्प से पी लेते हैं, पर प्लास्टिक की बोतल का पानी नहीं पीते।

प्लास्टिक मुक्त समाज का सपना देखते हुए इन्होंने घर पर ही अलग-अलग आकार की कपड़े की थैलियां सीलकर रखी है, जब भी कहीं जाते हैं तो उनके झोले में ये थैलियां साथ होती है, यहां तक कि किराने वाले से भी कागज में सामान लेते है या अपनी थैलियां आगे कर देते है- दाल, चावल या मसालों के लिये ना कोई पैक मसाला, ना टीन पैक्ड सामान। कोमल कहती हैं कि “किराने की दुकान वालों को हमसे बहुत दिक्कत होती है क्योंकि हमें सामान देने में उसे समय भी लगता है और उसे पुड़िया बांधना भी नहीं आता, अक्सर हम दोनों को देखकर मना कर देते है कि हम कोई सामान नहीं देंगे और हमें कई जगह भटकने के बाद सामान मिलता है।”

मनोज कहते हैं कि “मैं खुद दुकान में घुसकर सामान तौलता हूं और कागज की पुड़िया बांधकर अपना सामान रखता हूं, यह इसलिये कि आजकल हर जगह पैक सामान होने से दुकानदार ग्राहक को पैक पकड़ाकर मुक्त हो जाता है।”

दोनों चिंता जताते हुए कहते हैं कि “एक हजार लोगों को समझाओ-तब एकाध कोई कपड़े की थैली रखना शुरू करता है-पर यह भी लगातार नही होता, आज जब जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं तो प्लास्टिक का इस्तेमाल कितना घातक है यह समझने और समझाने की जरूरत है क्या, और रिसाइक्लिंग आदि सिर्फ़ भ्रम है, इस प्लास्टिक रूपी दानव को नष्ट करना असंभव है।”

मनोज अमरावती जिले के आदिवासी बहुल ब्लॉक धारणी में काम कर रहे हैं-टिकाऊ विकास को लेकर और कोमल देश के प्रसिद्ध डॉक्टर अभय सातव के अस्पताल में पैथालॉजी लैब में टेक्नीशियन है। यह अस्पताल नवाचार और मेलघाट में कुपोषण आदि पर आदिवासियों के बीच लोकप्रिय है और पूर्णतः निशुल्क अस्पताल है।

“जीवन मुश्किल है ऐसे सिद्धांतों के साथ, पर हम लगे है कि दस लोग भी बदलें तो सब कुछ बदलेगा, क्या आप, हम, सब तैयार है इस लड़ाई में” – मनोज जब पूछते है तो जवाब नहीं है मेरे पास।

सादा और सरल जीवन मुश्किल है, पर अभी 30 अप्रैल को इनकी शादी की पहली सालगिरह थी तो सब मित्रों और दफ्तर के संगी – साथियों ने पार्टी की मांग की, मनोज और कोमल ने मना कर दिया कि “हम किसी आडंबर में नहीं पड़ते, ना कहीं जाते हैं और ना आते हैं”, पर हां अपनी पत्नी कोमल के लिये एक बड़ा तरबूज ले आये जिस पर लिखा “Happy Anniversary” इस तरह दोनों ने एक दूसरे के साथ दिन बिताया।

कोरकू समुदाय के बीच अलख जगाते ये दोनों युवा साथी निश्चल, सहज और सहयोगी है, आप एक बार मिलेंगे तो इनसे दोस्ती हो जायेगी और इनके काम से प्यार हो जायेगा, किसी भी मुसीबतजदा के लिये इनके द्वार सदा खुले हैं, इन दोनों के लिये खूब प्यार और शुभेच्छाएं।

तो इतना लंबा पढ़ने के बाद क्या आप प्लास्टिक मुक्त समाज को गढ़ने की लड़ाई में शामिल हैं, यदि हां तो स्वागत और शुभेच्छाएं, वरना आपने नाहक ही पांच मिनिट बर्बाद कर दिए जीवन के।

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