चुनाव वाले पांचों राज्यों की विधान सभाएं साल में महज 30 दिन या उससे भी कम बैठीं: सर्वे रिपोर्ट

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नई दिल्ली। लोकतंत्र का देश में किस तरह से क्षरण हो रहा है और वह धीरे-धीरे जमीन से उठता हुआ कैसे आसमानी होता जा रहा है। इसका सबसे ताजा उदाहरण सोमवार को घोषित हुए पांच राज्यों के चुनावों वाली विधान सभाएं हैं। एक थिंक टैंक ने इनका सर्वे किया है और जो नतीजे सामने आएं हैं वो बेहद चौंकाने वाले हैं। थिंक टैंक पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम की विधान सभाएं साल में 30 दिनों से भी कम समय के लिए बैठी हैं। और समय के साथ इन बैठकों की संख्या लगातार कम होती गयी है।

रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान विधानसभा की साल में औसतन 29 दिन और तेलंगाना विधानसभा की 15 दिन बैठक हुई है।

2019 से 2023 के बीच, छत्तीसगढ़ में विधानसभा की औसत बैठकें साल में 23 दिन हुईं हैं, जिसमें बैठक का औसत समय पांच घंटे रहा है।

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि मध्य प्रदेश विधानसभा की बैठक साल में महज 16 दिन हुई और उसमें भी उनकी बैठक का समय प्रतिदिन केवल चार घंटे रहा। जबकि मिजोरम विधानसभा की बैठक साल में 18 दिन हुई, जिसमें प्रत्येक बैठक की अवधि लगभग पांच घंटे रही।

पीआरएस विधायी अनुसंधान रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान विधानसभा बैठकों के मामले में अव्वल रही। लेकिन उसमें भी औसत महज 29 दिन रहा। यहां प्रत्येक बैठक लगभग सात घंटे तक चली। जिन पांच राज्यों के लिए दीर्घकालिक डेटा उपलब्ध है उनमें से चार में बताए गए समय के साथ बैठकें कम होती गई हैं।

अपने पहले 10 वर्षों में, राजस्थान विधानसभा की बैठक साल में औसतन 59 दिन होती थी, जबकि एमपी विधानसभा की बैठक साल में 48 दिन होती थी। पिछले 10 वर्षों में, औसत वार्षिक बैठक के दिन राजस्थान में घटकर 29 और मध्य प्रदेश में 21 दिन हो गए हैं।

2017 में तेलंगाना में सबसे अधिक बैठकें हुईं वह संख्या है 37 दिन। लेकिन उसके बाद से हर साल बैठकें 20 दिनों से कम समय के लिए होने लगीं।

इन राज्यों के विधानसभाओं में लगभग 48 प्रतिशत विधेयकों पर पेश होने के दिन या उसके अगले दिन विचार किया गया और फिर पारित कर दिया गया। मिजोरम की विधानसभा ने अपने मौजूदा कार्यकाल के दौरान 57 विधेयक पारित किए, सभी बिल पेश होने के दिन या पेश होने के अगले दिन पारित कर दिए गए।

उदाहरण देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 में, छत्तीसगढ़ विधानसभा ने छह घंटे की एक बैठक में 14 विधेयक पारित किए। मध्य प्रदेश में, 2022 में दो दिनों में 13 विधेयक पेश और पारित किए गए, और दोनों बैठकें एक साथ पांच घंटे तक चलीं।

इन राज्यों द्वारा बड़ी संख्या में अध्यादेश भी जारी किये गये। 2019 से लेकर 2023 के बीच, मध्य प्रदेश ने 39 अध्यादेश जारी किए, उसके बाद तेलंगाना 14 और राजस्थान में 13 अध्यादेश जारी किया गया।

मध्यप्रदेश राज्य में 2020 में 11 अध्यादेश जारी किए गए, जब विधानसभा की बैठक केवल छह दिन चली। इनमें से छह बिल समय पर पास न किए जाने के चलते समाप्त हो गए। 2021 में जारी किए गए अध्यादेशों की संख्या बढ़कर 14 हो गई। जबकि विधानसभा की बैठक 20 दिनों तक चली।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि राजस्थान विधानसभा ने अपने कार्यकाल के दौरान एक उपाध्यक्ष का चुनाव नहीं किया। जबकि मार्च 2020 में सरकार बदलने के बाद से मध्य प्रदेश में कोई डिप्टी स्पीकर नहीं है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा में 17 प्रतिशत सदस्य महिलाएं हैं। राजस्थान में यह अनुपात 13 फीसदी और मध्य प्रदेश में 10 फीसदी से भी कम है।

छत्तीसगढ़ में, महिला विधायकों की उपस्थिति 93 प्रतिशत थी, पुरुषों की लगभग 88 प्रतिशत। मध्य प्रदेश में महिला विधायकों की उपस्थिति औसतन 79 प्रतिशत और पुरुषों की 81 प्रतिशत थी, जबकि राजस्थान में महिला विधायकों की औसतन उपस्थिति 77 प्रतिशत और पुरुषों की 82 प्रतिशत थी।

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