राजनीति का क-ख जानने वालों को भी यह अब स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के अंदर चुनाव समीक्षा नहीं, तीखा सत्ता संघर्ष चल रहा है जो दिल्ली की शह पर जोर पकड़ता जा रहा है। अभी चुनाव समीक्षा की जो बैठक हुई उसमे योगी के खिलाफ एक गोलबंदी देखी जा सकती है। योगी ने अति आत्मविश्वास और वोटों की शिफ्टिंग को हार का कारण बताया। जाहिर है उनका निशाना एक तो 400 पार का नारा देने वाले मोदी-शाह पर केंद्रित था। दूसरे मौर्य जैसे पिछड़े नेताओं पर जिनके समुदाय के वोटों की शिफ्टिंग हुई है।
उधर उप-मुख्यमंत्री केशव मौर्य ने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा को मुद्दा बनाते हुए योगी को घेरा और तालियां बटोरीं। उन्होंने कहा की संगठन सरकार से बड़ा है और हमेशा बड़ा रहेगा। उन्होंने कहा की चाहे मंत्री हों या विधायक सांसद हों सबको कार्यकर्ताओं का सम्मान करना होगा। उधर दूसरे पिछड़े नेता संजय निषाद ने जिनके सुपुत्र भी चुनाव हार गए गरीबों के खिलाफ योगी के बुलडोजर राज को घेरा। निषाद ने कहा गरीबों पर बुलडोजर चला कर हम उन्हें उजाड़ेंगे तो वे भी हमें उजाड़ देंगे।
उधर एक अन्य सहयोगी दल की नेता केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल पहले से योगी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। उनका कहना है कि सरकारी भर्ती में आरक्षित सीटें भी अंततः सामान्य वर्ग के पास पहुंच जाती हैं। ओम प्रकाश राजभर ने पिछले दिनों यह स्वीकार किया कि जातियों के नेता अब अपनी जाति का वोट नहीं दिलवा पा रहे। उन्होंने भी योगी पर हमला बोलते हुए कहा कि प्रशासन का रुख ठीक नहीं रहा। राजभर जिनके पुत्र भी चुनावी अखाड़े में खेत रहे, क्या कहना चाहते हैं उसे कोई राजनीति का अनाड़ी भी समझ सकता है।
केशव मौर्य ने योगी पर सीधा हमला बोलते हुए कार्यकर्ताओं से तार जोड़ा, “आप का दर्द मेरा भी दर्द है। मेरा घर आपके लिए हमेशा खुला है।” यह स्पष्ट है कि किस दर्द की बात केशव मौर्य कर रहे हैं। वह दर्द यही है की योगी उनकी सुन नहीं रहे हैं और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर रहे हैं। इसमें आप योगी के खिलाफ बगावत की खुली आहट सुन सकते हैं जिसके लिए वे कार्यकर्ताओं की आड़ ले रहे हैं और उनकी मदद से तथा दिल्ली के समर्थन से वे अपने और केंद्रीय नेतृत्व के मिशन को अंजाम तक पहुंचाना चाहते हैं और योगी को रिप्लेस कर स्वयं सर्वेसर्वा बनना चाहते हैं।
दरअसल यह साफ है कि हार के ये जो सारे कारण गिनाए जा रहे हैं वे गुटीय लड़ाई में एक दूसरे को ठिकाने लगाने के लिए हैं, इनमें से कोई हार का असल कारण है ही नहीं। पराजय के मूल कारणों की तो चर्चा ही नहीं हो रही है, न उन्हें स्वीकार करने का साहस भाजपा में है।
अगर मौर्य यह कहना चाहते हैं की भाजपा की हार कोई नेता बनाम कार्यकर्ता की लड़ाई की वजह से हुई है तो यह सच नहीं है। यह सच है कि संघ – बीजेपी जैसी पार्टी में नेतृत्व की अघोषित तानाशाही होती ही है, वहां कोई कार्यकर्ताओं का लोकतंत्र नहीं होता। मोदी और योगी युग में यह सब चरम पर है। लेकिन मौर्य का इशारा जिस दर्द की ओर है वह शायद लोकतंत्र की चिंता नहीं मलाई न मिल पाने का दर्द है। शायद यह शिकायत भी पूरी तरह सच नहीं है। क्योंकि भाजपा राज में अभूतपूर्व पैमाने पर पार्टी ने धन संसाधन उगाही की है और उसका हिस्सा विभिन्न माध्यमों से नेताओं कार्यकर्ताओं सबके उपभोग में आया है, यह अलग बात है कि यूपी में वह लोगों की उम्मीद से कम मिला हो।
संभव है कि योगी के सत्ता अपने हाथ में संकेंद्रित रखने के कारण मौर्य व अन्य नेता जैसे स्वच्छंद सत्ता का उपभोग उपयोग चाहते रहे हों वह इच्छा पूरी न हो पाना असंतोष का कारण हो। गुटीय लड़ाई का उत्कर्ष यह है कि पार्टी के ही विधायक दावा कर रहे हैं कि भ्रष्टाचार चरम पर है और अब प्रदेश में भाजपा की सरकार नहीं बनेगी।
यह साफ है कि यह पूरा सत्ता संघर्ष शीर्ष नेतृत्व के इशारे पर प्रदेश के नेता संचालित कर रहे हैं। इसका दोहरा उद्देश्य लगता है। एक तो आगे प्रतिद्वंद्वी बन सकने वाले योगी को निपटाना है। दूसरे संभवतः मोदी शाह को लग रहा है कि विपक्ष का मुकाबला कर पाने के लिए योगी को हटाना जरूरी हो गया है, उनकी जगह प्रमुख तौर पर पिछड़ा दलित नेतृत्व ले आना होगा।
पासी समाज को पहचान की राजनीति के आधार पर फिर जीतने की कोशिश हो रही है। अयोध्या में अवधेश प्रसाद जो दलित पासी समुदाय से आते हैं की जीत और पूरे अवध में बड़े पैमाने पर पासियों की शिफ्टिंग के बाद फिर उन्हें अपने पाले में ले आने के लिए लखनऊ बसाने वाले लाखन पासी और राजा बिजली पासी के शरणागत होने की तैयारी है।
दरअसल यह पूरे चुनाव परिणाम की बिलकुल गलत समझ है। भाजपा इसलिए नहीं हारी है कि उसने सोशल इंजीनियरिंग में कोई कमी की। आखिर ये सारे पिछड़े नेता और स्वयं मोदी जी, जो अपने को पिछड़ा बताते रहते हैं, तो पूरी ताकत से चुनाव में लगे ही थे।
भाजपा की पराजय किसी संगठन बनाम सरकार के द्वंद्व के कारण भी नहीं हुई है। मौर्य यह कहना चाहते हैं कि संगठन की उपेक्षा के कारण हार हुई है।सच्चाई यह है कि जनता ने बिलकुल अलग कारणों से भाजपा को हराया है। उसने सरकार और संगठन दोनों के धतकर्मों के कारण उन्हें हराया है। योगी के इस तर्क में भी कोई दम नहीं है कि अति आत्मविश्वास के कारण पराजय हुई है। यह सच नहीं है। सच्चाई तो नेतृत्व को अच्छी तरह पता थी ही। उसने केवल मनोवैज्ञानिक युद्ध के लिए 400 पार का नारा दिया था। वोटों की शिफ्टिंग हुई यह कहकर दरअसल योगी, मौर्य और बैकवर्ड लॉबी को घेर रहे हैं की उनका वोट शिफ्ट कर गया, वे पार्टी को वोट नहीं दिलवा पाए, लेकिन मौर्य से ज्यादा गैर यादव पिछड़े या गैर जाटव दलित मोदी और योगी ब्रांड के प्रभाव के कारण पहले भाजपा से जुड़े थे। पिछड़ों दलितों की जो भी भाजपा की ओर पिछले 10साल में शिफ्टिंग हुई थी, वह ब्रांड मोदी – योगी के कारण थी, साथ ही अखिलेश यादव और मायावती जी से नाराजगी के कारण थी, किसी केशव मौर्य और स्वतंत्रदेव सिंह, कौशल किशोर के कारण नहीं थी।
ठीक इसी तरह निषाद का अब बुलडोजर की बात करना परले दर्जे का पाखंड है। जब मुसलमानों और गरीबों पर बुलडोजर चल रहा था, तब ये नेता मलाई काटने में मशगूल थे। बेशक उससे नाराज गरीबों ने भाजपा के खिलाफ मतदान किया है, पर केवल यही कारण नहीं था, मूल कारण तो कदापि नहीं था। अनुप्रिया आज चाहे जितना आंसू बहा लें, लेकिन जब आरक्षण में घोटाला हो रहा था, तब उन लोगों के बोल नहीं फूटे, वे न सिर्फ चुपचाप तमाशा देखते रहे, बल्कि अपने निजी और संकीर्ण दलगत हितों को साधने में लगे रहे।
सच्चाई यह है कि यूपी में भाजपा की हार उसकी सर्वांगीण पराजय है। यह हार ब्रांड मोदी-योगी और संघ-भाजपा के हिंदुत्व की पराजय है। यह डबल इंजन सरकार की पराजय है। यह रोजगार, महंगाई, आरक्षण, संवैधानिक अधिकारों जैसे जीवन के ज्वलंत सवालों पर मोदी-योगी दोनों सरकारों की सम्पूर्ण विफलता से पैदा हुई हार है। गुटीय द्वंद्व के टोटकों और पिटी सोशल इंजीनियरिंग के सहारे अब वह इससे उबर नहीं पाएगी।
अलबत्ता, प्रदेश के शासन प्रशासन को पंगु बना देने वाले राजनीतिक संकट का एक सुखद परिणाम यह हुआ है कि योगी सरकार को राजधानी लखनऊ में गरीबों को उजाड़ने की कार्रवाई से जनांदोलन के दबाव में पीछे हटना पड़ा है। आने वाले दिनों में ऐसे ही आंदोलन की ताकतें और विपक्ष जनमुद्दों पर आगे बढ़ता जाय तो संघ-भाजपा का शिराजा बिखरता जाएगा।
(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं)
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