उत्तराखंड : नैनीताल रेप कांड में मुख्य गवाह अपने बयान से पलटी, उधर हरिद्वार भाजपा नेत्री के कारनामों से प्रदेश सकते की स्थिति में 

इन दोनों घटनाओं की चर्चा पूरे देश में हुई, विशेषकर पहली घटना पर क्योंकि इसमें आरोपी एक मुसलमान था। मई माह से नैनीताल में टूरिस्ट की आमद बढ़ने लगती है, और इस वर्ष उसकी शुरुआत ही इस जघन्य कांड से उपजी हिंसा, मॉल रोड की दुकानों में तोड़फोड़ से हुई, जिसका नुकसान शहर को अभी तक चुकता करना पड़ रहा है। 

दूसरी घटना में चूंकि भाजपा से जुड़ी एक चर्चित महिला नेत्री के अपनी ही अवयस्क बेटी को अपने पुरुष मित्रों के साथ जबरन रेप के लिए विवश करने से जुड़ा था, इसलिए इस मुद्दे पर सोशल मीडिया में शोर-शराबे के अलावा कुछ खास देखने को नहीं मिला।

लेकिन अब नैनीताल रेप कांड को लेकर कुछ ऐसे खुलासे हो रहे हैं, जिसे देख यदि कोई भी संजीदा इंसान पिछली घटनाओं के साथ कड़ी जोड़कर देखे, तो उसे सहसा यकीन नहीं होगा कि हमने कैसा देश बना डाला है।

चलिए सीधे मुद्दे पर आते हैं। 6 जून नवभारत टाइम्स में पत्रकार राहुल पाराशर की खबर पर गौर करें। खबर का शीर्षक है, “नैनीताल रेप केस में अहम मोड़…पीड़िता की पड़ोसी ने बदला बयान..वहीं विक्टिम के वकील का आरोप है कि उस्मान ने बनाया दबाव।”

अख़बार आगे कहता है, पीड़िता की पड़ोसी और मुख्य गवाह अपने बयान से मुकर गई है। उसका दावा है कि उससे झूठा बयान दिलवाया गया। वहीं, पीड़िता पक्ष की वकील का इस बारे में कहना है कि आरोपी उस्मान काफी रसूख वाला है। उसने अपनी पहुंच का इस्तेमाल कर केस को कमजोर करने की साजिश रची है। लेकिन आरोपी का वकील आरोप को गलत बताते हैं। उनके मुताबिक मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई और हिंसा भड़काई गई। 

यह मामला कुछ इस प्रकार से शुरू हुआ था। 30 अप्रैल की रात 8 बजे पीड़िता की मां अपनी 12 साल की बच्ची के साथ रिपोर्ट लिखाने मल्लीताल थाना पहुंची थी। उसका आरोप था कि शहर में पीडब्ल्यूडी ठेकेदार उस्मान ने उसकी बच्ची के साथ रेप किया है। ठेकेदार उस्मान की उम्र अख़बार में 73 वर्ष तो कई अन्य अख़बारों और सोशल मीडिया में 65 से लेकर 72 वर्ष बताई जा चुकी है। 

थाने में एफ़आईआर के तत्काल बाद ही आरोपी उस्मान की गिरफ्तारी भी हो जाती है। लेकिन इसी बीच एक हिंदू बच्ची के साथ मुस्लिम द्वारा रेप की खबर नैनीताल की गली-कूचों तक फ़ैल जाती है। कुछ ही देर में थाने के बाहर लोगों की भीड़ जुट जाती है, जो नारेबाजी करने और आरोपी को उनके हवाले करने की मांग करने लगती है।

जाहिर है, पुलिस की गिरफ्त से आरोपी को कैसे गुस्साई भीड़ को सौंपा जा सकता है। लिहाजा, गुस्साई भीड़ बड़ा बाज़ार में पथराव शुरू कर देती है। सबसे पहले सोशल मीडिया पर वायरल हिंसा और तोड़फोड़ की वारदात मॉल रोड के एक मशहूर रेस्तरां के सामने होती है, जिसका नाम यदि गलत नहीं तो दिल्ली दरबार है। जाहिर है, भीड़ को हिंसा के लिए उकसाने वालों का निहित स्वार्थ भी इसमें शामिल रहा होगा। 

इस हिंसा की कुछ वीडियो दो-तीन दिन बाद देखने को मिली, जिसमें देखा जा सकता है कि कुछ लोग थाने के भीतर घुसकर एक पुलिस अधिकारी पर हमला कर रहे हैं, जबकि दूसरे पुलिसकर्मी बीचबचाव कर रहे थे। इस घटना के बारे में जब मैंने नैनीताल और आसपास के लोगों से जानना चाहा तो पता चला कि आरोपी उस्मान को भीड़ के हवाले किये जाने की मांग को ठुकराने और लाठीचार्ज से आहत भीड़ को लगता था कि उक्त मुस्लिम पुलिस अधिकारी के चलते ही उनकी स्कीम विफल हो गई थी।

4 मई की एबीपी न्यूज़ की खबर भी इस तथ्य की पुष्टि करती है। 3 मई 2025 को मल्लीताल थाने के भीतर प्रदर्शनकारियों ने हंगामा किया और एक पुलिस अधिकारी, सब इंस्पेक्टर मोहम्मद आसिफ खान पर हमला करने की कोशिश की। वायरल वीडियो के अनुसार, भीड़ ने उनकी वर्दी का कॉलर पकड़कर खींचा, धक्का-मुक्की की, और धार्मिक आधार पर निशाना बनाया। एक व्यक्ति, जो खुद को अधिवक्ता बता रहा था, ने भी उत्तेजना फैलाने की कोशिश की। अन्य पुलिसकर्मियों ने स्थिति को नियंत्रित कर आसिफ को सुरक्षित निकाला।

6 जून की दैनिक भाष्कर की रिपोर्ट भी इस खबर की पुष्टि करती है। उसके वीडियो कैप्सूल में सब-इंस्पेक्टर, मोहम्मद आरिफ़ खान पर थाने के भीतर हमले और कालर पकड़ने की करतूतों को देखा जा सकता है। लेकिन इन उपद्रवियों के खिलाफ अभी तक नैनीताल पुलिस कोई कार्रवाई किसके दबाव के चलते नहीं कर पाई, इसका कोई सुराग नहीं है।

दैनिक भाष्कर के मुताबिक, नैनीताल रेप कांड में मुख्य गवाह, जो पीड़िता की पड़ोसी थी, ने दावा किया है कि उसे जबरदस्ती गवाह बनाया गया और झूठा बयान देने के लिए दबाव डाला गया। उसका कहना है कि उसने आरोपी मोहम्मद उस्मान को कोई गलत कार्य करते नहीं देखा, और बिना उसकी सहमति के उसे पुलिस और कोर्ट के चक्कर में फंसाया गया।

उसने यह भी कहा है कि पुलिस स्टेशन में किसी ने उसका नाम लेकर कहा था कि उसने पीड़िता को खराब हालत में देखा, जबकि उसने ऐसा कोई दावा नहीं किया था। दूसरी ओर, पीड़िता की वकील का कहना है कि उस्मान रसूखदार व्यक्ति है और उसने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर गवाहों पर दबाव डाला, जिसके कारण कोई भी गवाही देने को तैयार नहीं है।

इन हिंदुत्ववादी समूहों की ताव तब कुछ ऐसी थी कि एक भद्र हिंदू महिला तक उनके विष-वमन का शिकार हो गई। नैनीताल रेप कांड के बाद हुए नैनीताल बंद का विरोध करने वाली हिंदू महिला शैला नेगी के खिलाफ हिंदुत्ववादी संगठनों ने आरोप लगाया था कि वह मुस्लिम समुदाय का पक्ष ले रही है और हिंदू भावनाओं के खिलाफ काम कर रही हैं। कुछ संगठनों और व्यक्तियों ने उन पर “हिंदू विरोधी” होने तक का इल्ज़ाम लगाया था। सोशल मीडिया पर वायरल पोस्ट्स में उनके खिलाफ कई आपत्तिजनक टिप्पणियां की गईं, और कुछ लोगों ने उन्हें जान से मारने तक की धमकियां दी थी, जिसमें उनकी निजी ज़िंदगी और चरित्र पर हमले शामिल थे।

हद तो तब हो गई जब हिंदुत्व के कथित ठेकदारों ने नैनीताल उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों तक को अपने निशाने पर ले लिया, जब अदालत ने नगरपालिका के नोटिस के तहत आरोपी उस्मान के मकान को बुलडोज किये जाने पर रोक लगा दी थी। राईट विंग से जुड़े लोगों ने सोशल मीडिया पोस्ट्स और स्थानीय चर्चाओं में ये आरोप लगाने शुरू कर दिए थे कि उत्तराखंड हाई कोर्ट के न्यायाधीशों ने उस्मान का पक्ष इसलिए लिया क्योंकि उसने उनके घर की मरम्मत का काम किया था। 

जबकि नैनीताल हाई कोर्ट ने उस्मान के मकान पर बुलडोजर कार्रवाई को इसलिए रोका, क्योंकि नगर पालिका ने सुप्रीम कोर्ट के 15 दिन के नोटिस नियम का पालन नहीं किया था और मात्र 3 दिन का समय दिया था, जबकि उस्मान उस समय कारवास में था। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि प्रशासन उस्मान और उसके परिवार से माफी मांगे।

तब अख़बारों और सोशल मीडिया में इस स्थगन आदेश को कुछ इस प्रकार से पेश किया गया था, गोया कोर्ट ने एक हिंदू बच्ची का बलात्कार करने वाले आरोपी के मकान को बचाकर बहुत बड़ा पाप कर दिया है। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ टिप्पणियों की कुछ बानगी पेश है:

खुद को गर्वीली सनातनी ठाकुर बताती इस फेक लेकिन दसियों हजार फालोवर्स वाले सोशल मीडिया हैंडल की टिप्पणी में इस खबर पर टिप्पणी थी: “उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय को जमींदोज कर दो, हमें उनकी जरूरत नहीं है। हमने इस सरकार को वोट दिया है और हम उन लोगों द्वारा दिए गए दल्ला फैसलों को स्वीकार नहीं करेंगे जो हमारे द्वारा चुने गए नेताओं द्वारा नहीं चुने गए हैं।

यही नहीं, खुद को लेफ्टिनेंट जनरल ए.के. चौधरी (सेवानिवृत्त) के तौर पर सोशल मीडिया में पेश करने वाले साहब कहते हैं, “ऐसे निर्देश जारी करके हमारी अदालतें अब तक सहिष्णु बहुसंख्यक समुदाय को कानून अपने हाथ में लेने के लिए उकसा रही हैं। वे भारत के कानून का पालन करने वाले समुदाय के धैर्य की परीक्षा क्यों ले रहे हैं?”

एक 72 वर्षीय व्यक्ति के रेपिस्ट होने को लेकर संदेह तो पहले दिन से होना चाहिए था, लेकिन अब जबकि मुख्य गवाह ही साफ़ इंकार कर रही है तो ऐसे में यह भी जानना जरुरी हो जाता है कि उक्त बच्ची की देखभाल और वित्तीय मदद के लिए इन हिंदुत्ववादी संगठनों ने क्या मदद की? 

नभाटा की खबर के मुताबिक, उक्त पीड़िता बच्ची और उसकी बहन पिछले दो साल से अपनी बुआ के साथ रह रही हैं। पीड़िता 12 वर्ष की है, और कूड़ा बीनने का काम करती थी। पड़ोसी के मुताबिक, बच्चियों की मां अपने दूसरे पति के साथ मुरादाबाद में रहती है। बच्चियों की नानी उन्हें अपने साथ नैनीताल ले आई। इस स्टोरी से पता चलता है कि मां का दूसरे पति के साथ रहने के चलते बच्चियों को बुजुर्ग नानी के सहारे रहना पड़ रहा था। रोजी-रोटी के लिए बच्ची कूड़ा बीनती थी। 

देश में बढ़ती मुस्लिम आबादी को नंबर वन दुश्मन बताने से कभी न थकने वाले ये कथित हिंदू संगठन ऐसी करोड़ों हिंदू बच्चियों की आर्थिक सुरक्षा के लिए आगे क्यों नहीं आते? 

वहीं दूसरी ओर, उत्तराखंड में ही हरिद्वार की हालिया खबर को बीजेपी और संघ रफादफा करने में लगी है, क्योंकि इसमें आरोपी मां का संबन्ध उनकी स्वंय की पार्टी से है। बता दें कि उत्तराखंड भाजपा महिला मोर्चा की पूर्व अध्यक्ष पर आरोप है कि उसने अपनी स्वंय की नाबालिग बेटी का अपने पुरुष मित्रों से जबरन बलात्कार करवाया है। उक्त 13 वर्षीय बच्ची ने खुद रानीपुर पुलिस में जाकर आरोप लगाया है कि उसकी मां के सामने उसका 8 बार बलात्कार किया गया है।

लेकिन चूंकि यह मामला एक बीजेपी से जुड़ी महिला का है, और अतीत में उसके साथ प्रदेश और देश के कई बड़े बीजेपी नेताओं ने तस्वीरें खिंचवाई हैं। बहुत संभव हो कि वह स्वंय ऐसे ही धंधे से जुड़ी हो, ऐसे में उसके खिलाफ मोर्चा खोलना कहीं से हिंदुत्ववादी विचारधारा के हित में नहीं होगा। फिर सबसे बड़ी बात, बलात्कारी मुसलमान भी तो नहीं है।

लेकिन ये आरोप पुख्ता हैं, और किसी शक-शुबहा की गुंजाइश नहीं बची, इसलिए हरिद्वार की खबर का धीमी मौत मरना तय है। लेकिन नैनीताल में जो हुआ, और अब जो सच्चाई सामने आ रही है, उसके 4-5 दिन बीत जाने के बाद भी एक-आध सोशल मीडिया टिप्पणी के अलावा नैनीताल के प्रबुद्ध नागरिकों ने अपनी जुबान क्यों सिल रखी है?

क्या वे यह चाहते हैं कि अगली बार फिर किसी ऐसी ही घटना पर किसी दूसरे उस्मान, अब्दुल को बलि का बकरा बनाकर पूरे उत्तराखंड को सांप्रदायिकता के जहर में डूबने छोड़ दिया जाये? याद रखना होगा, प्रयोग विफल हुआ है, प्रयास जारी रहने वाले हैं, क्योंकि व्यवस्था के पास 90% आबादी के लिए कोई विकल्प नहीं बचा।

आज नैनीताल प्रयोगशाला नहीं चली, लेकिन अगली कोशिश कामयाब रही या वास्तव में किसी अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति ने ऐसी हरकत कर दी, जिससे कोई इंकार नहीं कर सकता, तो क्या उसके नाम पर समूचे समुदाय के खिलाफ अभियान छेड़ने की इजाजत आप देंगे, और हिंदू बेटी के साथ हिंदू मां के द्वारा बलात्कार की इजाजत पर ख़ामोशी की चादर तान सो जायेंगे?

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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