हाथों में बेड़ियां और पांवों में जंजीर बांधकर अमेरिकी सैन्य विमान से अप्रवासी भारतीयों की वतन वापसी पर देश में गुस्से की लहर

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कल जब दिल्ली में विधानसभा के लिए मतदान चल रहा था, उसी दौरान दो घटनाएं भी साथ-साथ चल रही थीं। एक थी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में डुबकी लगाने का दृश्य, जिसे देश का गोदी मीडिया दिल्ली चुनाव के साथ बड़ी मुस्तैदी से कवर करने में लगा हुआ था। लेकिन दूसरी घटना थी अमेरिकी मिलिट्री मालवाहक प्लेन से 104 भारतीय नागरिकों की अमृतसर एअरपोर्ट पर घरवापसी, जिसका वीडियो बनाने पर कड़ी रोक लगी हुई थी।

इसमें से दो घटनाएं – दिल्ली विधानसभा चुनाव और अमेरिका में अवैध ढंग से प्रवेश करने वाले भारतीयों की घर वापसी निश्चित रूप से महत्वपूर्ण थीं, जबकि पीएम मोदी के गंगा नहान का महात्म्य सीधे-सीधे दिल्ली चुनाव को प्रभावित करने के उद्येश्य से किया गया था।

हालांकि इसके बारे में सबको पहले से पता था कि 5 फरवरी के दिन स्नान को इसी मकसद से तय किया गया था, लेकिन मौनी अमावस्या को हुई भगदड़ में 30 मरे या 54 या 100 अथवा यह संख्या हजार तक में है, के मद्देनजर मीडिया से जुड़े जानकारों का आकलन था कि पीएम मोदी 5 फरवरी के स्नान के इरादे को त्याग सकते हैं।

लेकिन चुनावों में जीत की भूख ही कुछ ऐसी है कि हमेशा लाइमलाइट में रहने की भूख के आगे महाकुंभ में हुए इस भीषण हादसे को दरकिनार करना जरुरी लगा। यहां तक कि मोदी जी के परम मित्र डोनाल्ड ट्रम्प के आदेश पर अमेरिका में रह रहे अवैध भारतीयों को भी उसी दिन हाथों में हथकड़ी और पांवों में जंजीरों से जकड़ अपराधियों के तौर पर लाया जा रहा था, भी मोदी जी के मंसूबों को डिगा न सका।

अब ऐसा भी नहीं है कि इस निर्णय को लेते समय इसके फलितार्थ के बारे में गहन विचार न किया गया हो। इसके लिए यह देखा जाता है कि किसी मुद्दे के सोशल मीडिया से राष्ट्रीय मुद्दा बनने के चांसेज कितने प्रतिशत हैं? दूसरा, यदि महाकुंभ और अवैध भारतीय प्रवासियों का मुद्दा गर्माता भी है तो बीजेपी की आईटी सेल और गोदी मीडिया उसकी हवा कितने समय में निकाल सकती है? यदि मामला रेंज के भीतर नजर आये तो ऐन 5 फरवरी के दिन, जब दिल्ली की जंग जीतनी हो तो मतदाताओं का ध्यान खींचने की कोशिश किस एंगल से सबसे अपेक्षित परिणाम दे सकती है, उसे हर हाल में किया जाना चाहिए।

अब हालात यह है कि महाकुंभ में मौनी अमावस्या के दिन मारे गये लोगों की संख्या, लापता लोगों की खोज-खबर और घटनास्थल पर लावारिस पड़े वाहनों को लेकर अभी भी विपक्ष के हाथ सिर्फ अटकलें ही हैं। लेकिन अमेरिका से अपमानित होकर अमृतसर के रास्ते ये अप्रवासी भारतीय अब गुजरात, हरियाणा, पंजाब सहित देश के विभिन्न हिस्सों में भेजे जा रहे हैं, जिसके दृश्य बड़ी तेजी से देश की संसद से लेकर सोशल मीडिया और तमाम समाचारपत्रों की सुर्खियां बनते जा रहे हैं।

इस मुद्दे पर सबसे पहले विरोध के सुर पंजाब से देखने को मिले। पंजाब में कांग्रेस विधायक और पूर्व हॉकी ओलंपियन परगट सिंह ने अमेरिकी सैन्य विमान को अमृतसर में लैंडिंग की अनुमति दिए जाने पर कड़ी आपत्ति दर्ज की। उनकी बात में दम भी है।

उनका साफ़ कहना है कि पिछले कई दशकों से पंजाब अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे की मांग करता आया है, लेकिन हमें 300-400 किमी की यात्रा कर देश से बाहर आने-जाने के लिए दिल्ली तक का सफर तय करना पड़ता है। लेकिन जब अवैध भारतीयों को देश में वापस भेजे जाने की बारी आई तो अमृतसर को चुना गया, आखिर क्यों? वे इसे पंजाब को बदनाम करने के मकसद से लिए गये फैसले के तौर पर देखते हैं।

उनकी यह बात वाजिब है, क्योंकि जिन 104 भारतीयों को अमेरिका द्वारा पहली खेप में देश से बाहर किया गया है, उसमें सबसे अधिक अवैध भारतीय तो बीजेपी शासित दो राज्यों गुजरात और हरियाणा के लोग हैं। गुजरात और हरियाणा के 33-33 जबकि पंजाब के 30 ही अवैध भारतीयों को वापस भेजा गया है। यदि अमेरिकी सैन्य विमान को दिल्ली, मुंबई या अहमदाबाद एअरपोर्ट पर लैंड करने की अनुमति दी जाती, तो मीडिया में सनसनी मचनी स्वभाविक थी, जिससे मोदी सरकार बचना चाहती थी।

इसलिए कल जब दिल्ली में वोटिंग हो रही थी, तब तक यह मुद्दा चर्चा का विषय नहीं बन पाया। इससे होने वाले नुकसान से दिल्ली की भाजपा बच गई। इसका क्रेडिट तो उसके नेतृत्व को दिया ही जाना चाहिए। लेकिन आज जब ईवीएम की पेटियां चुनाव आयोग की निगहबानी में हैं, और दिल्ली का भविष्य परसों 8 फरवरी को पता चलेगा, तो विपक्ष और देश दोनों प्रवासी भारतीयों के मुद्दे पर आंदोलित है।

अवैध अप्रवासियों की वतन वापसी कितनी कष्टदायक रही, अब इसके बारे में भी अखबार जानकारी देने लगे हैं। एक हिंदी दैनिक के अनुसार, एक अप्रवासी ने दावा किया कि अमेरिकी सैनिक विमान के भीतर उनके हाथों में हथकड़ी और पैरों में बेड़ियां डाली गई थीं।

गुरदासपुर जिले के हारडोरवाल गांव के रहने वाले जसपाल ने बताया है कि 24 जनवरी को जब वे अमेरिकी सीमा पार कर रहे थे, तभी अमेरिकी पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। ट्रेवल एजेंट ने उन्हें वैध वीजा के जरिये अमेरिका में प्रवेश कराने का वादा किया था, लेकिन उसने धोखा दिया। इस काम के लिए उन्होंने 30 लाख रुपये उधार लेकर एजेंट को दिए थे।

आइये अब गुजरात का हाल भी जान लेते हैं, जिसके सर्वाधिक 33 लोगों को डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार ने अपने देश से निकाल बाहर किया है। इन्हें आज सुबह अमृतसर से अहमदाबाद एअरपोर्ट लाया गया। बताया जा रहा है कि इनमें से अधिकांश प्रवासी उत्तर गुजरात के मेहसाणा और गांधीनगर जिले से हैं। सुबह से ही एअरपोर्ट में पुलिस बंदोबस्त लगाया गया था और विमान के रनवे पर लैंड करते ही सभी लोगों को पुलिस की गाड़ियों में बिठाकर उनके गंतव्य स्थलों के लिए रवाना कर दिया गया है।

गुजरात से आने वाली खबरों के मुताबिक, इन सभी लोगों के खिलाफ किसी प्रकार की क़ानूनी कार्रवाई नहीं की जायेगी, पर पता लगाया जायेगा कि ये लोग कैसे यहां से अमेरिका तक पहुंचे। गुजरात समाचार ने अपनी खबर के शीर्षक में लिखा है ‘डंकी रूट से दसियों लाख रूपये खर्च कर अमेरिका गये’ गुजराती प्रवासी लौटे, जबकि एजेंट्स अंडरग्राउंड हो चुके हैं।

गुजरात समाचार के मुताबिक, गुजरात से कुख्यात ‘डंकी रूट’ के माध्यम से अवैध तरीके से अमेरिका जाने का खर्च पिछले पांच वर्षों से 60 लाख रुपये पर टिका हुआ है। इतनी बड़ी रकम खर्च करने वाले इन निर्वासित किये जा चुके लोगों का सारा डेटा अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों ने भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को सौंप दिया है।

अखबार आगे कहता है कि भारत सरकार उनके खिलाफ़ सख्त कार्रवाई करेगी या नहीं, यह अभी स्पष्ट नहीं है। लेकिन यह एक सच्चाई है कि इनमें से ज़्यादातर लोगों ने बहुत भारी जोखिम उठाकर सीमा पार कर अमेरिका के भीतर प्रवेश पाने के लिए कर्ज लिया था।

अख़बार आगे लिखता है कि मेहसाणा जिले में खेरवा, जोरनांग और मेउ के गांवों को आम तौर पर ‘डॉलरिया विस्तार’ (डॉलर क्षेत्र) के तौर पर शोहरत मिली हुई है, क्योंकि इन गांवों के लोग बड़ी संख्या में अनेक वर्षों से विदेशों में बसे हुए हैं। अमेरिकी अधिकारियों द्वारा हाल ही में की गई कार्रवाई के बाद, अवैध अप्रवासियों के निर्वासन ने इस क्षेत्र को सुर्खियों में ला दिया है।

रिपोर्ट है कि न्यू जर्सी, न्यूयॉर्क, कैलिफोर्निया, टेक्सास और इलिनोइस से इन 104 अवैध भारतीय प्रवासियों को पकड़ा गया है। कडी-कलोल के कुछ गांव हर साल अपने परिवार के सदस्यों को अवैध रूप से अमेरिका भेजने के लिए जाने जाते हैं।

बता दें कि हाल के वर्षों में अवैध तरीकों से अमेरिका और कनाडा जाने वाले भारतीयों में सबसे अधिक गुजराती लोग हैं। एक दशक पहले तक पंजाब इस मामले में अव्वल था, लेकिन गुजरात के वाशिंदों को गुजरात मॉडल की हकीकत शायद शेष भारत से बेहतर पता थी।

गुजरात के बाद हरियाणा बड़ी तेजी से विदेशों में जाकर खुशहाल बनने के सपने बुन रहा है। ये दोनों राज्य कई मामलों में उत्तर भारत के लगभग सभी राज्यों से ज्यादा खुशहाल माने जाते हैं। ऐसा भी नहीं कि ये लोग बेहद गरीब पृष्ठभूमि से आते हैं। अमेरिका जाकर कुछ वर्षों में ही लाखों-लाख कमाने के चक्कर में इन सभी ने अपने खेत, मां या पत्नी के जेवर और मकान तक गिरवी रखे थे।

अवैध तरीकों से अमेरिका जाने वाले इन लोगों में एक बात कॉमन है, और वह यह है कि इनमें से अधिकांश लोग खाते-पीते घरों के थे, लेकिन इनके पास उनके मन-मुताबिक रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं हैं। अधिकांश ने अपने आसपास के लोगों को अमेरिका जाकर मोटा पैसा कमाने की बात सुनी हुई थी।

फिर पीएम नरेंद्र मोदी भी दुनिया में घूम-घूमकर प्रवासी भारतीयों के साथ मिलते रहे हैं, जिन्हें भारत का गोदी मीडिया ज़ूम कर प्रवासी भारतीयों की खुशहाली के बारे में बताता आ रहा है।

मोदी और ट्रम्प के रिश्ते को लेकर बीजेपी समर्थकों को पक्का भरोसा भी काफी हद तक गुजरात शासित राज्यों के युवाओं को अमेरिका में जाकर बसने के लिए प्रेरित करता रहा है। लेकिन ट्रम्प 2 के इस शासनकाल की शुरुआत में ही ऐसा कुछ हो जायेगा, उसकी शायद ही किसी भक्त ने कल्पना की होगी।

यहां पर यह भी बताना आवश्यक हो जाता है कि अमेरिका द्वारा अवैध भारतीय अप्रवासियों को अपने देश से निकाल बाहर करने की यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले 2018 से 2023 के बीच करीब 5,477 आप्रवासियों को भारत में वापस भेजा जा चुका था। अकेले 2020 में 2,300 लोगों को डिपोर्ट किया गया था, जो एक वर्ष में निर्वासित किये गये भारतीयों की सबसे बड़ी संख्या है।

लेकिन यह सारा काम गुपचुप तरीके से दोनों देशों के विदेश विभाग के द्वारा मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए संपन्न किया जाता था। यह पहली बार है जब 104 अप्रवासी भारतीयों को हथकड़ियों में बांधकर अमेरिकी सैनिक विमान C-17 ग्लोबमास्टर से पूरी दुनिया को बताकर लाया गया है।

मिलिट्री विमान से आप्रवासियों को उनके देश भेजने का खर्च फर्स्ट क्लास एयर फेयर से भी ज्यादा बताया जा रहा है, लेकिन यह सब इसलिए किया जा रहा है ताकि इन देशों को संदेश मिल जाए कि राष्ट्रपति ट्रम्प इन अप्रवासियों को अपराधी और अपने देश के लिए खतरा समझते हैं।

अभी तक ट्रम्प ने कोलंबिया, ग्वाटेमाला और मेक्सिको जैसे अपने पड़ोसी देशों के अप्रवासी नागरिकों को ही देश से निकाला था, जिसमें कोलंबिया एक ऐसा देश है, जिसने अमेरिकी मिलिट्री के विमान से वतन वापसी कर रहे अप्रवासी कोलंबियाई नागरिकों को लेने से साफ़ इंकार कर दिया था।

ट्रम्प की धमकी के बावजूद उसका साफ़ कहना था कि हमारे अप्रवासी नागरिक कोई अपराधी नहीं हैं, जिन्हें हाथ पांवों में जंजीर बांधकर उन्हें अपमानजनक तरीके से अमेरिकी सैन्य विमानों से देश वापस लाया जाये। कोलंबिया के राष्ट्रपति ने अपने सैनिक विमान को अमेरिका भेजकर पूरे सम्मान के साथ अपने नागरिकों की वतन वापसी को अंजाम दिया।

भारत में मौजूद अंधभक्तों को भी हैरत हो रही है कि जिस ट्रम्प के साथ मोदी जी के तू-तड़ाक वाले रिश्ते हैं, जिस ट्रम्प के लिए अमेरिका में ‘अबकी बार-ट्रम्प सरकार’ के नारे लगवाये गये और पिछले अमेरिकी चुनाव से ठीक पहले जब राष्ट्रपति ट्रम्प के खिलाफ महाभियोग का मामला चल रहा था, तब उनकी इमेज में सुधार की खातिर कोविड महामारी के बीच अहमदाबाद के वल्लभभाई पटेल (अब नरेंद्र मोदी स्टेडियम) स्टेडियम में लाखों भारतवासियों को जमा कराकर रिश्ता निभाया गया था।

आज वही ट्रम्प भारत जैसे दुनिया के सबसे बड़ी आबादी वाले देश और पीएम मोदी के शब्दों में मदर ऑफ़ डेमोक्रेसी के साथ इतना भद्दा व्यवहार कैसे कर सकता है? इस बार के अमेरिकी चुनावों के दौरान भी अमेरिका के बाद यदि किसी देश में ट्रम्प के समर्थन में पूजा-पाठ और हवन किया जा रहा था, तो उस देश का नाम भारत ही था।

देशवासियों को समझ नहीं आ रहा है कि अगले सप्ताह पीएम मोदी और डोनाल्ड ट्रम्प की व्हाइट हाउस में मुलाकात का एजेंडा क्या है। क्या किसी आगन्तुक का स्वागत कोई इस प्रकार से करता है? कथित तौर पर ICE द्वारा निर्वासन के लिए वर्तमान में निर्धारित 18,000 भारतीय नागरिकों की पहचान सत्यापित करने की कवायद चल रही है। इसलिए 104 लोग तो पहली खेप थी, अभी ऐसे अपमान बार-बार दोहराए जाने हैं।

क्या पीएम मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति से दो टूक शब्दों में कड़ा ऐतराज जतायेंगे? लेकिन इसके लिए अमेरिका जाने की जरूरत ही कहां है? कनाडा, मेक्सिको और अब चीन ने भी अमेरिका के आयात शुल्क में बढ़ोत्तरी के जवाब में अपने-अपने देशों में जवाबी कार्रवाई कर मुहंतोड़ जवाब देने की तैयारी की थी। इसे देखते हुए ट्रम्प ने कनाडा और मेक्सिको के खिलाफ 25% आयात शुल्क थोपने की कार्रवाई को एक महीने के लिए मुल्तवी कर दिया।

क़ायदे से भारतीय प्रधानमंत्री को सर्वप्रथम इस प्रकार से अप्रवासी भारतीयों को निर्वासित करने पर कोलंबिया के राष्ट्रपति की तरह कड़ा ऐतराज जताना चाहिए था। यदि ट्रम्प का यह जवाब होता कि उन्हें इसी का जनादेश मिला है तो भारत को भी अपने विमान भेजकर उन सभी अप्रवासी भारतीयों की सम्मानपूर्वक घर वापसी को सुनिश्चित करना चाहिए।

इसके साथ ही अमेरिका को कड़े शब्दों में स्पष्ट कर देना चाहिए कि उसके देशवासी अब उसे सस्ते में उपलब्ध नहीं होने वाले। आखिर यह कोई एक-दो हजार भारतीयों का मसला नहीं है, बल्कि तकरीबन 725,000 अप्रवासी भारतीय इस समय (प्यू रिसर्च के मुताबिक) अमेरिका में रह रहे हैं, जो मेक्सिको और अल साल्वाडोर के बाद अनिर्दिष्ट प्रवासियों का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत है।

ये वे लोग हैं, जो अमेरिकी कृषि, स्टार्टअप और पर्यटन उद्योग से जुड़े कारोबार में सस्ते श्रम के तौर पर इस्तेमाल में आते हैं। कल यदि सभी अवैध अप्रवासियों को अमेरिका अपने देश से निकाल बाहर करे तो अमेरिकी कृषि खतरे में आ जाने वाली है। इसके साथ ही अमेरिका में महंगाई के साथ-साथ मुनाफे में चलने वाले कई उद्योग घाटे की स्थिति में आ सकते हैं।

लेकिन देश की आन-बान और शान के लिए दृढ़ता से खड़े रहने के लिए मजबूत कलेजे की जरूरत पड़ती है, जो हमारे पूर्व के राजनेताओं में इसलिए हुआ करती थी, क्योंकि तब देश की विदेश नीति की दिशा राष्ट्रीय हितों के अनुरूप ढाली जाती थी।

मौजूदा दौर में कॉर्पोरेट और क्रोनी कैपिटल ही जब देश के आंख-कान बन चुके हों, तो भला कैसे पंत प्रधान इतना बड़ा फैसला ले सकते हैं? आम भारतीय को अब इस तथ्य को समझना ही होगा।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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