यूपी में रामभक्ति फेल तो शुरू हुआ शिवभक्ति पर खेल, बनारस में छुआछूत बढ़ाने वाले फरमान से बढ़ी मुसलमानों की चिंता !

Estimated read time 2 min read

बनारस। लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद बीजेपी ने एक बार फिर अपना सांप्रदायिक चेहरा उघाड़ दिया है। रामभक्ति बेअसर हुई तो शिवभक्ति का खेल शुरू कर दिया। योगी सरकार ने बनारस में भी छुआछूत बढ़ाने वाला फरमान जारी किया है, जिसके चलते विश्वनाथ धाम के आसपास मुस्लिम समुदाय के दुकानदार परेशान हैं। बनारस कमिश्नरेट पुलिस ने दुकानदारों का सर्वे करने के बाद उन्हें हिदायत दी है कि वो नेमप्लेट पर अपना असली नाम और पहचान अंकित करें। पुलिस ने ऐसे 40 दुकानदारों को नोटिस जारी किया है। ये वो दुकानदार हैं जो पूजा सामग्री और फूल-माला बेचते हैं। इस बीच हिंदूवादी एक संगठन ने कहा है कि विश्वनाथ मंदिर के आसपास की दुकानदार अपने प्रतिष्ठानों में भगवा झंडा लगाएं और अपना व कर्मचारियों का आधार कार्ड भी रखें।

कांवड़ मार्ग की तरह बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास के इलाके में दुकानदारों को बोर्ड पर अपना असली नाम और पहचान लिखने के निर्देश दिए गए हैं। इस क्षेत्र में करीब 450 दुकानें हैं, जिनमें पांच फीसदी मुसलमानों की हैं। बनारस के बांसफाटक की फूल मंडी भी विश्वनाथ मंदिर गेट के सामने हैं, जहां कई मुस्लिम परिवार फूल-माला की बिक्री करते हैं। 19 जुलाई 2024 को कमिश्नरेट पुलिस ने दुकानदारों को कड़ी हिदायत देते हुए उन्हें अपने नाम की पट्टिका लगाने का निर्देश दिया। पुलिस ने दुकानदारों के सत्यापन का काम तेज कर दिया है। चौक थाना पुलिस ने 40 ऐसे दुकानदारों को नोटिस जारी किया है जिनके मालिक बदले हुए मिले। इनमें कुछ ऐसे भी मिले जो गैर-मजहब के लोग थे और देवी-देवताओं के नाम लिखकर व्यवसाय करते मिले। ऐसे सभी दुकानदारों को अपना नाम लिखने के लिए चौबीस घंटे की चेतावनी जारी की है।

बनारस कमिश्नरेट पुलिस ने पिछले शनिवार को दुकानदारों से नेमप्लेट पर अपने नाम के अलावा बेची जाने वाली वस्तु का नाम के अलावा कर्मचारियों का विस्तृत विवरण पहचान के साथ अंकित करने का अल्टीमेटम दिया है। साथ ही यह भी कहा कि हलाल सर्टिफिकेशन वाले प्रोडक्ट बेचने वालों पर कार्रवाई होगी। पुलिस प्रशासन के नए फरमान से दुकानदारों में हड़कंप मचा है। विपक्ष इसे हिटलरशाही बता रहा है और नाजी जर्मनी से इसकी तुलना कर रहा है। दूसरी ओर, यूपी के सीएम योगी ने साफ कर दिया है कि वो विपक्ष के दबाव में झुकने वाले नहीं है। बनारस में शिवभक्तों की आस्था और शुचिता को बरकरार रखने के लिए ऐसा निर्देश जारी किया गया है।

सरकार ने कांवड़ियों को खुश करने और खुद को उनके पक्ष में दिखाने की होड़ में बनारस में जगह-जगह बड़े पैमाने पर होर्डिंग लगाना शुरू कर दिया है। इस होर्डिंग में मोदी और योगी के चेहरे के साथ-साथ भगवान शिव की आस्था का केंद्र काशी विश्वनाथ मंदिर का चित्र भी लगाया है। और प्रशासन पूरे बनारस में इसे लगाने में मनोयोग से जुटा हुआ है।

पूरे बनारस में प्रशासन द्वारा इस तरह के पोस्टर लगाए जा रहे हैं


सरकार और प्रशासन के नए फरमान के बाद बनारस में हिंदूवादी संगठन और धर्मभीरू लोग काफी सक्रिय हो गए हैं। राष्ट्रीय हिंदू दल के पदाधिकारियों ने 19 जुलाई 2024 को योगी सरकार के हुक्म के समर्थन में एक आभार यात्रा निकाली और कहा, ”हिंदू समाज अब नाम, तिलक, कलावा के छलावे में नहीं आएगा। अब असली पहचान दिखानी होगी।– यात्रा में शामिल युवकों ने गोदौलिया से चौक तक सड़क के किनारे फल-फूल, माला, पूजा सामग्री के अलावा ठेला, पटरी वालों को नाम पट्टिका के अलावा आधार कार्ड रखने की सलाह दी। साथ ही सवाल किया कि किसी को पहचान छिपाकर कारोबार करने की जरूरत क्यों हैं? ”

मुसलमानों में आक्रोश व गुस्सा

बनारस की सरकार के नए फरमान को लेकर मुस्लिम समुदाय में अंदरखाने बेहद आक्रोश और गुस्सा है। ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव मोहम्मद यासीन नाराजगी भरे लहजे में कहते हैं, ”विश्वनाथ धाम के आसपास के दुकानों का सर्वे मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार का दूसरा चरण है। यह बहिष्कार योगी सरकार द्वारा प्रायोजित है। कुछ महीने पहले ही बेनियाबाग में मीट की दुकानें बंद कराई गई थीं, जबकि समूचे बनारस के किसी होटल में मांसाहारी व्यंजन परोसने पर कोई रोक नहीं है। मंदिर के आसपास के होटलों में भी मांसाहार परोसने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। हमें लगता है कि भविष्य में लोगों को अपनी जाति और बिरादरी का ब्योरा भी अपने प्रतिष्ठान के सामने लिखना होगा। जिस तरह से जर्मनी में नाजियों को अपना ब्योरा लिखना पड़ता था, उसी तरह बनारस में भी नाजीवाद शुरू किया गया है।”

यासीन यह भी कहते हैं, ”विश्वनाथ मंदिर के आसपास सिर्फ पांच फीसदी दुकानें मुसलमानों की हैं। ज्यादातर दुकानें बीबी रजिया मस्जिद परिसर में हैं। मुस्लिम कारोबारियों को सड़क पर लाने के लिए सरकार ने घुघरानी गली और दालमंडी को चौड़ा करने की कार्ययोजना बनाई है। इसी तरह विश्वेश्वरगंज अनाज मंडी को भी उजाड़ऩे की तैयारी है। इसके नेपथ्य में जाएंगे तो पाएंगे की इस रोक-टोक का मकसद विशुद्ध रूप से राजनीतिक है। यह एक तरह का पोलिटिकल स्टंट है और कुछ नहीं।”
बनारस में 01 मार्च 2024, जुमे के दिन पुलिस फोर्स के साथ नगर निगम के अफसरों ने विश्वनाथ मंदिर के दो किमी के दायरे में मीट-मछली की बिक्री रुकवा दी थी। रेड मीट के अलावा मुर्गा बेचने वाली 26 दुकानों को बंद करवाकर उनमें ताला जड़ दिया गया है। मीट की दुकानों की बंदी के बाबत नगर निगम प्रशासन ने एक नोटिस चस्पा करा दिया है। बगैर किसी नाम, पद और दस्तखत वाले नोटिस में लिखा है, ”ये दुकानें अवैध हैं।”

काशी विश्वनाथ मंदिर के पास घुघरानी गली, दालमंडी, हड़हासराय, शेख सलीम फाटक, बेनियाबाग, सराय गोवर्धन और नई सड़क मुस्लिम बहुल इलाके हैं। इन इलाकों में मांस की दुकानें हैं और मछलियां भी बिकती हैं। इस इलाके के तमाम होटलों में सदियों से मांसाहारी व्यंजन परोसे जाते रहे हैं। 08 जनवरी 2024 को बनारस में नगर निगम की बैठक में पार्षद इंद्रेश कुमार सिंह ने नगर निगम अधिनियम-1959 की धारा 91(2) के तहत विश्वनाथ विश्वनाथ धाम के आस-पास मांस-मंदिरा की दुकानें प्रतिबंधित करने का प्रस्ताव रखा था। इस बैठक में धाम के दो किलोमीटर के क्षेत्र में मांस की दुकानों को  प्रतिबंधित करने की मंजूरी दी गई थी। इसी कड़ी में कार्रवाई करते हुए नगर निगम के प्रवर्तन दल ने बेनियाबाग और नई सड़क इलाके में बकरे की 19, मुर्गे की तीन और बड़े जानवरों की चार दुकानें बंद करा दी। दुकानदारों का कहना है कि लंबे समय से वो मांस की दुकान लगा रहे थे। मानक अनुरूप पर्दा लगाकर मांस बेचते थे। ऐसे में दुकानों का बंद कराना अनुचित है। दुकानदारों का कहना था कि जिनके पास लाइसेंस हैं उन्हें बंद कराने का कोई मतलब नहीं। बेहतर होता कि दूसरे महानगरों की तरह बनारस में भी सरकार मीट की बिक्री एक जगह से कराए।

ये है वोटबैंक का खेल

बनारस के जाने-माने व्यापारी नेता बदरुद्दीन अहमद कहते हैं, ” दुकानदारों का सर्वे और मीट की दुकानों के खिलाफ एक्शन जनता का ध्यान भटकाने के लिए है। यह आस्था का नहीं, वोटबैंक का खेल है। एक खास तबके को खुश करने का खेल है। मीट की बिक्री के धंधे से जुड़े लोग समाज में सबसे निचले आर्थिक पायदान पर हैं। वे इन्हीं चीजों की बिक्री से अपना लालन पोषण करते थे। विश्वनाथ मंदिर के आसपास कुछ छोटे कारोबारी हैं। सरकार ने इनका जीवन नर्क बनाने की ठान ली है। “बदरुद्दीन यह भी कहते हैं, ”केंद्र सरकार के 2014 के सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम बेसलाइन सर्वे के मुताबिक बनारस शाकाहारी बहुसंख्यक शहर नहीं है। एक सर्वे में पाया गया है कि राज्य की 30 से 40 फीसदी आबादी मांस खाती है। पूर्वांचल के दूसरे शहरों की तुलना में यहां ज्यादा मांसाहारी लोग रहते हैं।

नगर निगम की यह कार्रवाई आजीविका के उस अधिकार पर प्रतिबंध लगती है जो संविधान के अनुच्छेद 21 में वर्णित है। भारत में हर किसी को अपनी पसंद का खाना खाने की छूट है। अगर लोग किसी वेंडर से मीट खरीद रहे हैं तो उन्हें हटाना सही नहीं है। कानून में भी ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। जो भी चीज प्रतिबंधित नहीं है, वेंडर उसे बेचने के लिए स्वतंत्र हैं। दुकानों पर नेम प्लेट की अनिवार्यता भी अनुचित और गैर-कानूनी है।”

मेडिकल स्टोर पर बिकता है फूल-माला

बनारस दुनिया का ऐसा शहर है जो 1800 ईसा पूर्व बसा था। यह दुनिया के सबसे पुराने जीवित शहरों में से एक है। साथ ही ये शहर विश्व के अनुमानित 1.2 अरब हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र शहरों में से एक है। मंदिर के बजते घंटों के बीच यहां हर रोज़ हज़ारों लोग पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं। हरिश्चंद्र और मणिकर्णिका घाटों पर चौबीसों घंटे चिताएं जलती रहती हैं। मान्यता है कि यहां जिन लोगों का अंतिम संस्कार होता है, उनके कानों में भगवान शिव खुद फुसफुसाते हैं, जिससे उन्हें तत्काल मोक्ष मिलता है। बनारस के लगभग हर हिंदू घर में शिव को समर्पित एक वेदी है।

वरिष्ठ पत्रकार राजीव मौर्य कहते हैं, ”इतिहास बताता है कि प्राचीन भारत से लेकर सिंधु घाटी सभ्यता तक में गोमांस और जंगली सूअर का व्यापक रूप से सेवन किया जाता था। 1500 और 500 ईसा पूर्व के बीच वैदिक युग में पशु और गाय की बलि आम थी। मांस देवताओं को चढ़ाया जाता था और फिर दावतों में खाया जाता था। इसलिए, यह मुस्लिम राजा या हमलावर सेनाएं नहीं थीं जो भारत में मांस-भक्षण लेकर आईं, जैसा कि दक्षिणपंथी अक्सर सुझाव देते हैं। शोध से पता चलता है कि दक्षिणी भारत में ब्राह्मण कम से कम 16वीं शताब्दी तक मांस खाते थे। ब्राह्मण समुदाय के कई लोग आज भी मांस खाते हैं।

”बनारस के तमाम बंगाली ब्राह्मण घरों में कई तरह की ताज़ी मछलियां खाई जाती हैं। पिछले साल भारतीय फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म स्विगी पर सबसे ज्यादा ऑर्डर किया जाने वाला व्यंजन चिकन बिरयानी था। भारतीयों ने हर सेकंड दो प्लेट का ऑर्डर दिया। भारत की शाकाहारी परंपराओं का जश्न मनाया जाना चाहिए, लेकिन खाने-पीने पर किसी तरह पाबंदी थोपी नहीं जानी चाहिए। तमाम देसी-विदेशी कंपनियां खुलेआम ऑनलाइन पके और कच्चे मीट का कारोबार कर रही हैं। सवाल यह उठता है कि मोटा मुनाफा कूटने वाली इन कंपनियों पर रोक कौन लगाएगा?”

‘तनाव पैदा कर रही सरकार’

बनारस में पहले सोमवार को भारी जनसमूह उमड़ता है। बड़ी तादाद में शिवभक्त यहां आते हैं और बाबा विश्वनाथ के मंदिर में जलाभिषेक करते हैं। पहला सोमवार 22 जुलाई को है। काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के चेयरमैन प्रो.नागेंद्र पांडेय के मुताबिक, इस साल एक करोड़ से ज्यादा कांवड़िये और लाखों शिवभक्त सावन में बाबा का जलाभिषेक करेंगे। एक तरफ सावन की तैयारियां जोरों पर हैं तो दूसरी ओर विश्वनाथ मंदिर के आसपास दुकानों का नए सिरे से सर्वे और पहचान अंकित करने वाली नाम पट्टिका लगाने के बनारस की सरकार के नए फरमान के खिलाफ विपक्ष हमलावर की भूमिका में है।

वाराणसी महानगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राघवेंद्र चौबे ने इस मुद्दे पर कड़ी प्रतिक्रिया करते हुए कहा है, ”यूपी में सरकार लगातार सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश कर रही है। योगी आदित्यनाथ को विकास से कोई सरोकार नहीं है। इसीलिए वो ऊल-जलूल निर्णय ले रहे हैं और उसे बलपूर्वक लागू भी करा रहे हैं। इसके चलते भाईचारा टूट रहा है और सांप्रदायिक तनाव बढ़ रहा है। यूपी में बीजेपी की करारी हार से वो बौखला गए हैं। जल्दी ही यहां विधानसभा की दस सीटों पर उप-चुनाव होने वाले हैं। जनता इन्हें सबक सिखाने के मूड में है। साल 2027 के विधानसभा चुनाव में सांप्रदायिकता का खेल खेलने वालों का यूपी से पूरी तरह सफाया हो जाएगा।”

आगे आए योगी के मंत्री

विश्वनाथ धाम के आसपास नेम प्लेट लगाने के फरमान पर योगी सरकार के मंत्री रवींद्र जायसवाल ने कहा है कि, ”पुलिस विभाग दुकानदारों की पहचान के लिए सख्ती बरत रहा है। मैं विपक्ष के नेताओं से कहना चाहता हूं कि इसमें गलत क्या है? हिंदू समुदाय के लोग चाहते हैं कि वो अपनी धार्मिक आस्था के मुताबिक माला-प्रसाद खरीदें। सोशल मीडिया पर अक्सर यह दिख जाता है कि एक वर्ग विशेष के लोग मांस खा रहे हैं और शाकाहारी खाने का सामान भी बेच रहे हैं। ऐसे में कुछ लोगों की आस्था पर चोट तो पहुंचेगी ही। ऐसे में यह हर किसी को जानने का हक है कि वो किस दुकान से क्या खरीद रहे हैं?  आखिर इसमें गलत क्या है? ”

शादी के कार्ड बेचने की ये थी मशहूर दुकान

बनारस के वरिष्ठ पत्रकार रहे अतीक अंसारी कहते हैं, ”यह नीति नहीं नीयत का सवाल है। वो एक बार में ही यह साफ कर दें कि बनारस में मुसलमानों को रहना है कि नहीं रहना है? अगर रहने की इजाजत है तो हमारी सीमाएं क्या हैं? क्या तरीका होना चाहिए? अगर परहेज करना है, तो कौन करा पाएगा? बनारस में कई मंत्रियों के होटल हैं, जो पवित्र मंदिरों के समीप हैं। क्या उन होटलों में मांसाहार नहीं परोसा जाता? मुसलमानों को पहचान बताने का दबाव इसलिए बनाया जा रहा है ताकि उन पर आर्थिक प्रतिबंध लगाया जा सके। यह बनारस की सरकार का कुत्सित और असफल प्रयास है।”

”बनारस के ज्यादातर मुसलमान आर्टीजन क्लास वाले हैं जो हिंदुओं के साथ मिलकर कारोबार करते हैं। हमें याद है कि कुछ दशक पहले तमाम हिंदू महाजन बनारस के चौक में मुसलमानों को बुलाकर रोजा-अफ्तार कराते थे और बाद में नमाज भी पढ़वाते थे। उनके अंदर बरकत की भावना थी। देश उस समय भी चल रहा था और आज से बेहतर चल रहा था। उस समय पाकिस्तान और बंगलादेश को हमने सबक सिखा दिया था। तब भारत आज की तरह बुरी हालत में नहीं था। आज कौन सी कयामत आ गई कि आपको ये मूर्खतापूर्ण निर्णय लेने पड़ रहे हैं। बनारस में होली और ईद तो आज भी दोनों समुदाय मिलकर मनाते हैं। आखिर दिलों को कैसे बांट पाओगे?”

अतीक यह भी कहते हैं, ”बीजेपी का रामभक्ति का मुद्दा चुक गया तो शिवभक्ति के नाम पर खेल शुरू कर दिया। बीजेपी का ये एजेंडा चलने वाला नहीं है। वो कामयाब नहीं हो पाएंगे। हालिया चुनाव में इसकी बानगी वो अयोध्या में देख चुके हैं। अयोध्या जैसे धार्मिक नगरी में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा। बनारस में भी नरेंद्र मोदी नैतिक रूप से चुनाव हार चुके हैं। उनकी तपस्या काम नहीं आई थी, क्योंकि तपस्या भले के लिए काम आती है।”

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author