आखिर भाजपा को ‘घर-घर सिंदूर अभियान’ को फेक खबर बताने को क्यों होना पड़ा मजबूर ?

भाजपा के आईटी सेल के इंचार्ज, अमित मालवीय ने कल X पर दैनिक भाष्कर की खबर को साझा करते हुए इसे झूठी खबर करार देते देश को सूचना दी कि भाजपा का देश में घर-घर सिंदूर बांटने का कोई कार्यक्रम नहीं है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री, ममता बनर्जी के पीएम मोदी के विरुद्ध दिए गये बेहद कड़े बयान के पीछे भी अमित मालवीय ने इस खबर को जिम्मेदार ठहराया है। हालांकि, यहां पर ममता बनर्जी की नाराजगी पीएम मोदी के बंगाल में ऑपरेशन सिंदूर की सफलता का बखान करने के बजाय पश्चिम बंगाल में आगामी विधानसभा चुनाव के लिहाज से टीएमसी की नकारात्मक छवि पेश किये जाने की वजह से उपजी थी।

अमित मालवीय के इस बयान के बाद से ही आईटी सेल और भाजपा समर्थकों ने ‘घर-घर सिंदूर अभियान’ को फेक न्यूज़ बताना शुरू कर दिया है, और अभिसार शर्मा या अजित अंजुम के यूट्यूब वीडियोज को टैग कर उल्टा उन्हें फेक न्यूज़ फैलाने का आरोप लगाना शुरू कर दिया है। 

यह अलग बात है कि पिछले कई दिनों से देश में सोशल मीडिया और समाचारपत्रों से यह माहौल बनने लगा था कि बीजेपी ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को एक बड़ी उपलब्धि बताने तक ही सीमित नहीं रखने जा रही, खासकर बिहार में इसको लेकर अच्छी-खासी चर्चा चल निकली थी। लेकिन हिंदू महिलाओं के लिए सिंदूर के क्या मायने होते हैं और एक डिब्बी सिंदूर घर-घर बांटने का हिंदू समाज में क्या असर पड़ेगा, इसकी भनक लगते ही भाजपा ने अपने इस मास्टरस्ट्रोक को वापस ही नहीं ले लिया, बल्कि फेक बताना शुरू कर दिया है।

आइये एक-एक कर समझते हैं कि कैसे यह सूचना सटीक थी, लेकिन हवा का रुख भांपकर भाजपा ने इससे अब पल्ला झाड़ लिया है:

दैनिक भाष्कर ने अपनी खबर में भाजपा के घर-घर सिंदूर अभियान के ब्लूप्रिंट के बारे में विस्तार से बताया है कि कैसे भाजपा के सांसद 9 जून से प्रतिदिन 15-20 किमी, जबकि मंत्री सप्ताह में दो दिन 20-25 किमी पैदल चलकर घर-घर महिलाओं को उपहार स्वरुप सिंदूर प्रदान करेंगे। 

9 जून की तारीख भी महत्वपूर्ण है। चूंकि यह खबर ‘दैनिक भाष्कर” ने सूत्रों के अनुसार नहीं, बल्कि अपने संवावदाता के नाम से छापी है, जिन्होंने बीजेपी के एक बड़े नेता के हवाले से सारी डिटेल्स दी है, इसलिए भी भाजपा के इस अभियान को लेकर कोई संदेह नहीं रह जाता। भाष्कर ने खबर के शीर्षक में ही लिखा है, ‘मोदी 3.0 की वर्षगांठ; घर-घर सिंदूर पहुंचाएगी भाजपा, 9 जून से शुरुआत।’ 

यानि 9 जून को नरेंद्र मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल की वर्षगांठ के साथ इस अभियान की शुरुआत करनी थी, और हर सांसद, मंत्री और पार्टी पदाधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई थी कि एक महीने तक इस अभियान को जन-जन तक पहुंचाना है।

प्रधानमंत्री स्वंय इन दिनों ऑपरेशन सिंदूर में सेना के पराक्रम के बारे में राष्ट्रीय मीडिया से जो चूक रह गई, उसे पूरा करने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेते हुए पंजाब, राजस्थान, गुजरात, पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश में रैलियां और रोड शो कर चुके हैं। आज मध्य प्रदेश में यह आयोजन चल रहा है, जिसके लिए पहले से खबर थी कि बीजेपी ने 15,000 महिला स्वंय सेविकाओं का चयन किया है, जो सिंदूरी साड़ी में नरेंद्र मोदी की रैली में हिस्सा लेंगी। आज की रैली में सिंदूरी साड़ी में महिलाओं की उपस्थिति भी नजर आई, जिसका अर्थ है कि भाजपा के इवेंट मैनेजमेंट में कोई कमी नहीं है।

अब जब नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय स्तर पर अपने भाषणों में पाकिस्तान की छाती पर भीषण प्रहार के नैरेटिव का आधार बना देंगे तो जमीन पर इसे घर-घर तक पहुंचाकर भाजपा न सिर्फ अपने समर्थकों के बीच आई निराशा, पीओके पर कब्जे के बजाय 4 दिन के भीतर अचानक से सीजफायर की घोषणा और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 9वीं बार इसका क्रेडिट लेने के बयानों से ध्यान हटाने में सक्षम हो सकेगी। इसका लाभ चुनावी राज्यों में वोट की शक्ल में जबकि बाकी राज्यों में आधार को स्थिर और मजबूत बनाने के काम आना था। 

पीएम मोदी तो अपना काम बदस्तूर जारी रखे हुए हैं, जिसे अनुकूल माहौल बनाना कहा जा सकता है। लेकिन इसके साथ ही पूरी भाजपा की मशीनरी को 9 जून से जिस मेगा अभियान में लगाकर गली-गली, पंचायत तक जन-जन तक के दिमाग में घुसाना था, और विशेष रूप से आधी आबादी को टारगेट करना था, उसमें सबसे बड़ी डेंट तो महिलाओं की ओर से ही मिल चुकी है।

वास्तव में देखें तो पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में भारतीय सेना के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ अभियान के नाम को लेकर ही शुरू से परस्पर-विरोधी मत बनने लगे थे। आतंकियों ने धर्म पूछकर पहलगाम में जनसंहार किया, लेकिन आतंकी ठिकानों पर भारत के ऑपरेशन का नाम सिंदूर रखने का क्या मकसद था? क्या आतंकी को उसी की भाषा में कोई लोकतांत्रिक-धर्मनिरपेक्ष राज्य को देना चाहिए? 

दूसरा प्रश्न, जिन 26 पर्यटकों की जानें गईं, उनकी विवाहिताओं की मांग उजड़ गई, जो कभी भी भरी नहीं जा सकती। उनके लिए सिंदूर हमेशा-हमेशा के लिए त्याज्य हो चुका है, यानि सिंदूर नाम से अभियान का कोई मतलब नहीं बनता। कई हलकों में पिछले दिनों यह चर्चा थी कि इस ऑपरेशन का नाम पीएम मोदी ने ही सुझाया था। क्या इतनी संवेदनशीलता की अपेक्षा प्रधानमंत्री से नहीं की जानी चाहिए थी? 

खैर, विपक्ष ने इसे मुद्दा नहीं बनाया, बल्कि सबने सरकार के साथ अपनी एकजुटता जाहिर की। बीजेपी को लगा कि पूरा देश उसके हर फैसले पर नतमस्तक है, और गोदी मीडिया ने भी आगे बढ़-चढ़कर कराची, इस्लामाबाद और यहां तक कि रावलपिंडी तक भारतीय सेना के कब्जे में दिखा दिया, जिसे भाजपा समर्थकों ने ऐतिहासिक समझ लिया। लेकिन अचानक से सीजफायर की घोषणा और ट्रंप के दावे के साथ-साथ वैश्विक सूचनातंत्र में भारतीय सैन्य विमानों के मार गिराए जाने की सूचना ने मिलकर पूरे नैरेटिव को ही ध्वस्त कर दिया।

जो विपक्ष अभी तक सरकार के पीछे हाथ बांधे खड़ा था, उसने एक के बाद एक चुभते सवालों की बारिश कर दी, और भारत की संप्रभुता और सीजफायर के फैसले से लेकर भारतीय विमानों के नुकसान के आंकड़े मांगने शुरू कर दिए। इसका एक ही जवाब था, वह था पीएम मोदी के नेतृत्व में पूरे देश में घूम-घूम बॉलीवुड अंदाज में डायलाग बोलकर रैली में भीड़ के ‘मोदी-मोदी’ की चीत्कार को टीवी के माध्यम से सुनाकर देश को संतुष्ट कर देने का। इस लॉन्चिंग पैड का इस्तेमाल कर 9 जून से पूरे देश में भाजपा के नेताओं को ऐसा समां बांधना था कि देश 1971 की जंग में पाकिस्तान को दो टुकड़े करने की ऐतिहासिक घटना को भी तुच्छ समझने लगे।

यह सब संभव हो सकता था, क्योंकि यदि आपके पास पैसा है, ताकत है, मीडिया है, आईटी सेल है तो असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। लेकिन ‘घर-घर सिंदूर’ की रणनीति के मामले में जो भारी चूक हो गई, उसने अभी से इस अभियान की आधी हवा निकाल दी है, और आधी विपक्ष शासित राज्यों में पीएम मोदी के आक्रामक तेवर के जवाब में हमलावर होने को मजबूर विपक्षी मुख्यमंत्री निकाल सकते हैं।

इसका उदाहरण कल पश्चिम बंगाल में तब देखने को मिला जब पीएम मोदी ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता के बारे में बोलते-बोलते अचानक से अपने भाषण की दिशा को पश्चिम बंगाल में हिंदुओं के खिलाफ हो रहे कथित अत्याचार की घटनाओं की ओर मोड़ दिया। बंगाल सरकार की निर्ममता पर जोर दिया, यानि दीदी ओ दीदी की जगह अब निर्मम को निर्ममता पर जोर देकर पूरा किया जा सकता है।

ममता बनर्जी जिन्होंने अभी तक अपने कार्यकाल में केंद्र के खिलाफ शायद ही कभी मोर्चा खोला हो, चुनावी बेला में भला कैसे कम खूंखार बनी रह सकती थीं। उन्होंने भी अपने जवाब में अपनी हदें तोड़ दीं और कह दिया कि मोदी जी ऑपरेशन सिंदूर नहीं ऑपरेशन बंगाल चला रहे हैं। ममता बनर्जी ने तो यहां तक कहा , “याद रखें हर महिला का अपना आत्मसम्मान होता है। वे अपने पति से ही सिंदूर ग्रहण करती हैं। मोदी जी इस प्रकार की बातें कर रहे हैं। आप हर महिला के पति नहीं हैं…क्यों नहीं आप पहले अपनी पत्नी को सिंदूर देते हैं?”

हालांकि इसके तत्काल बाद ममता बनर्जी को अहसास हुआ कि उन्होंने राजनीतिक मर्यादा की हदें पार कर दी हैं, इसलिए उन्होंने अगले वाक्य में जोड़ा, “मैं अपने कहे के लिए क्षमा चाहती हूं। मुझे इस सबमें नहीं जाना चाहिए था। लेकिन अब आप हमें ये सब कहने के लिए मजबूर कर रहे हैं।” ये बयान कथित गोदी मीडिया में देखने को नहीं मिलेंगे, लेकिन बंगाली समाचारपत्रों में मिल जायेंगे। सबसे आश्चर्यजनक तो यह है कि पाक यूट्यूबर ममता बनर्जी के इस बयान को अपने यहां चलाकर खूब चटखारे ले रहे हैं। 

मूल प्रश्न फिर वहीं पर आकर खड़ा हो जाता है कि क्या पहलगाम की आतंकी घटना का बदला ले लिया गया है? आतंकी पहलगाम जैसे पर्यटक स्थल तक कैसे पहुंच गये? इस भारी चूक की जिम्मेदारी किसके कंधों पर सरकार ने डाली? वे आतंकी आज भी कहां गायब हैं? एक समस्या का सीधा हल खोजने के बजाय नैरेटिव बनाने के चक्कर में आज दुनिया पाकिस्तान को भारत के समकक्ष देख रही है, यह भारत की जीत है या रणनीतिक चूक? पाकिस्तान को चीन से हथियार और आर्थिक मदद, रूस से स्टील मिल पुननिर्माण का करार और ट्रंप के परिवार से बिटकॉइन के जरिये दोस्ती का मौका जबकि दुनिया में मोदी और भारतीय पासपोर्ट का सिक्का चलने का जो शिराजा बिखरा है, उनके तिनके बटोरने के लिए क्या पीएम नरेंद्र मोदी को अगले तीन कार्यकाल देने होंगे देश को?

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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