मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह का इस्तीफा था पूर्व प्रायोजित, विरोध के लिए समर्थकों को बुलाया गया सीएम हाउस

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नई दिल्ली। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह का इस्तीफा पूर्व प्रायोजित और महज नाटक था। राहुल गांधी की यात्रा की खबर से ही उसकी पटकथा लिखी जा चुकी थी। और राज्य सरकार राहुल गांधी की यात्रा को रोकने की पूरी तैयारी कर ली थी। लेकिन राहुल गांधी के हौसले और मणिपुर की जनता के दबाव के कारण राज्य को झुकना पड़ा। अब जो सच्चाई सामने आ रही है कि उसके मुताबिक मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने इस्तीफे का स्वांग रचने के पहले अपने समर्थकों को यह संदेश दिया था कि वे सब भारी संख्या में मुख्यमंत्री आवास पहुंचकर इस्तीफा देने का विरोध करें। इंफाल में सीएम आवास के बाहर मुख्यमंत्री के समर्थकों की भीड़ करीब छह घंटे तक डटी रही।

मुख्यमंत्री आवास पर भारी भीड़ आने के बाद शुक्रवार दोपहर को मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने साफ मना कर दिया है कि “ऐसे में इस महत्वपूर्ण मोड़ वो इस्तीफा नहीं देंगे”। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह राज्य में चल रहे हिंसा को रोक भी नहीं पा रहे हैं और मुख्यमंत्री पद छोड़ना भी नहीं चाहते हैं।

भाजपा और मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के समर्थकों का कहना है कि वो इस्तीफा देने के लिए तैयार थे। लेकिन समर्थकों के विरोध के बाद, त्याग पत्र को फाड़ दिया गया जिससे समर्थकों को यह विश्वास हो जाए की वह मुख्यमंत्री बने रहेंगे। लेकिन मणिपुर के सूत्रों कि मानें तो मुख्यमंत्री द्वारा यह एक सोची-समझी साजिश थी, जिसके मोहरे उसके समर्थक बने।

कुछ सूत्रों का यह भी कहना है कि, इस ड्रामे की तैयारी गुरुवार की रात से ही शुरु हो गई थी। जब मैतेई समुदाय के महिलाओं के एक वर्ग ‘जिन्हें मीरा पैबिस (महिला मशाल वाहक) कहा जाता है’ के द्वारा मुख्यमंत्री को कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था। और इस विरोध का कारण उन मैतेई युवाओं की मृत्यु है जो मणिपुर हिंसा के शिकार हो गये।

इंफाल में एक स्रोत ने कहा कि, “इम्फाल में बीरेन सिंह का अच्छा-खासा समर्थन आधार है और उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए 2,500 से अधिक लोगों को एकजुट किया, समर्थक सीएम एन. बीरेन सिंह द्वारा रचित इस पूरे नाटक के नायक बन गये और उन्हें इस्तीफा देने से रोक लिया। इसकी स्क्रिप्ट पहले ही लिखी जा चुकी थी। क्योंकि बीरेन सिंह अपनी कुर्सी किसी भी सूरत में जाने नहीं देना चाहते। ऐसे में इस तरह के नाटक को रचना उनके लिए जरुरी हो गया था।”

दरअसल, मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने राज्यपाल अनुसुइया उइके के साथ एक बैठक निर्धारित किया, जिससे अटकलें तेज हो गयी की सिंह इस्तीफा देने वाले हैं। लेकिन इंफाल में गवर्नर हाउस के रास्ते में मैतेई समुदाय की महिलाओं और युवाओं के द्वारा की गई नाकेबंदी ने बीरेन सिंह को राज्यपाल से मिलने की अपनी योजना छोड़ने और मुख्यमंत्री आवास पर वापस लौटने के लिए मजबूर कर दिया।

जिसके बाद शाम करीब 4 बजे बीरेन सिंह ने ट्वीट किया कि, ‘इस महत्वपूर्ण मोड़ पर, मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैं मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दूंगा।’

मणिपुर भाजपा प्रवक्ता एलंगबाम जॉनसन ने बताया कि, “मुख्यमंत्री अपने इस्तीफे के साथ तैयार थे, लेकिन उनके समर्थकों (जिनमें ज्यादातर महिलाएं और युवा थे) ने राजभवन को जाने वाले सड़क को बंद कर दिया और ऐसे गंभीर समय में उनके इस्तीफे के खिलाफ नारे लगाने लगे। धरना देने वाले लोग पार्टी के भीतर और बाहर से थे, फिर मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्री धरना देने वालों से मिलने के लिए बंगले से बाहर आए।”

जॉनसन ने कहा कि “बीरेन सिंह ने अपने प्रति लोगों का समर्थन और भीड़ के विश्वास को देखकर, मुख्यमंत्री ने इस्तीफा देने का विचार भूला दिया। इसके बाद कैबिनेट मंत्री एल सुसींद्रो मैतेई ने सीएम का दो लाइन का इस्तीफा पत्र लिया और आश्वासन के तौर पर महिला समर्थकों के सामने उसे फाड़ दिया। कैबिनेट मंत्री के द्वारा इस्तीफा को फाड़ने के बाद, धरना दे रही भीड़ तितर-बितर हो गई।” हालांकि, सच्चाई यह है कि बीरेन सिंह ने राज्यपाल से दोपहर 1 बजे और 3 बजे का समय मांगा था।

आपको बता दें कि, मणिपुर 3 मई से ही जल रहा है, क्योंकि दो समुदायों के बीच हिंसा आज भी जारी है और वह दोनों- – मैतेई समुदाय और कुकी समुदाय (आदिवासी ईसाई) है, और अब तक दोनों समुदायों को मिलाकर कम से कम 133 लोग अपनी जान गवां चुके हैं, और विस्थापन की संख्या इससे कहीं ज्यादा है।

राज्य में खुद को बहुसंख्यक बताने वाले मैतेई लोगों की बढ़ती मौत की संख्या मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है, ऐसे समय में मैतेई समुदाय से आने वाले आठ भाजपा विधायकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन सौंपा है, जिसमें यह बताया गया है कि मुख्यमंत्री ने जनता का समर्थन खो दिया है।

इंफाल में स्थित एक अकादमिक ने कहा, “मीरा पैबिस के लोग नागरिक समाज के संरक्षक हैं और मैतेई लोगों की मौत पर यह वर्ग मुख्यमंत्री से गुस्सा है। उन्होंने “इस्तीफा नाटक” पर भी कहा कि मुख्यमंत्री को इसपर भी विचार करना चाहिए।”

शिक्षाविद् ने कहा कि मैतेई समुदाय के युवाओं की मौत पर मीरा पैबिस के एक वर्ग का विरोध ये बताने के लिए काफी है कि मैतेई युवाओं की मौत सांप्रदायिक कार्ड का उपयोग करके ध्रुवीकरण के नुकसान को स्पष्ट करता है।

अकादमिक ने बताया की, “भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने मैतेई युवाओं को एकजुट किया, और कुकी लोगों के खिलाफ अभियान चलाया। अब, इनमें से कुछ महिलाएं परेशान हैं कि इस राजनीतिक लड़ाई में लोग अपने बेटों और भाइयों को खो रहे हैं, जो की बहुत ही दुखदायक है और अब उन्हें इनकी मौत का जवाब चाहिए। अब मुख्यमंत्री के समक्ष कड़ी चुनौती है”। क्योंकि कल तक बीरेन सिंह के सामने चुनौती सिर्फ कुकी जनता ही थी, लेकिन अब वह खुद अपने लोगों के आंसू की वजह बन चुके हैं।

2017 से मणिपुर के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यरत बीरेन सिंह, उन्हें मैतेई उप-राष्ट्रवाद के चैंपियन के रूप में भी देखा जाता है, जिससे ये समझ पाना मुश्किल नहीं है कि क्यों ‘बीरेन सिंह को मैतेई-कुकी संघर्ष के पीछे प्रमुख कारणों में से एक माना जा रहा है’।

मणिपुर में अधिकारियों के एक वर्ग का मानना है कि बीरेन सिंह, जिन्होंने 25 जून को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी, उन पर हिंसा को समाप्त करने के लिए केंद्र की ओर से दबाव डाला गया था। शाह ने स्पष्ट रूप से बीरेन सिंह से कहा कि उन्हें घाटी में हिंसा का अंत सुनिश्चित करना होगा, जबकि वह आदिवासी बहुल पहाड़ियों में भी शांति सुनिश्चित करेंगे। मुख्यमंत्री शाह से ऐसा करने का वादा करने के बावजूद घाटी में स्थिति को नियंत्रण में लाने में विफल रहे हैं।

ऐसी पृष्ठभूमि में, कुछ उदारवादी मैतेई नेताओं के नाम अचानक से ऊपर आये हैं जिनकी संभावित उत्तराधिकारी के तौर पर इंफाल में भी चर्चा शुरू हो गई है। जैसे विदेश राज्य मंत्री राजकुमार रंजन सिंह, जो बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के आलोचक रहे हैं।

एक सूत्र ने कहा, “इस नाटक का मंचन करके मुख्यमंत्री ने केंद्रीय नेतृत्व को यह संदेश देने की भी कोशिश की है, उन्हें अभी भी लोगों का समर्थन प्राप्त है और वह अभी लोगों की पसंद बने हुए हैं।”

इम्फाल में एक सूत्र (जो शुक्रवार को मुख्यमंत्री के आवास के पास था), ने कहा कि सिंह के इस्तीफे का विरोध करने वाले लोग सुबह से ही तख्तियां लेकर इकट्ठे हुए थे। जब सूत्र ने उनसे पूछा “उन्हें कैसे पता चला कि मुख्यमंत्री इस्तीफा देने वाले थे?” का जवाब देते हुए प्रदर्शनकारियों ने बताया की देर रात तक ऑपरेशन के माध्यम से राजधानी के अलग-अलग शहर जैसे हेइंगन, वांगखेई, सिंगजामेई, काकवा और खुरई इलाकों से लोगों को संगठित किया गया था, जहां मुख्यमंत्री का काफी दबदबा है।

काली टी-शर्ट और पीठ पर लाल घोड़े अंकित किए हुए प्रदर्शनकारियों के बीच अरामबाई तेंगगोल (हथियारबंद मैतेई युवाओं), जिन्हें कुकी-प्रभुत्व वाले गांवों पर कई हमलों के पीछे की वजह माना जाता है। सीएम आवास पर उनकी उपस्थिति ने इम्फाल में कई सवाल खड़े कर दिए।

अर्धसैनिक बल के एक अधिकारी ने कहा “यह सच है कि पिछले कुछ दिनों में हिंसा के दौरान मैतेई युवाओं की भी जान गई है, लेकिन इस अरामबाई तेंगगोल समूह ने 3 मई को कुकी समुदाय पर पहला हमला किया था और उसके बाद से उनपर हमला जारी रखा था। यह समूह मुख्यमंत्री के आशीर्वाद से खड़ा हुआ है। समूह को राज्य के शस्त्रागारों से हथियार लूटने की अनुमति दी गई थी”।

अधिकारी ने बताया कि “मुख्यमंत्री के आवास के पास अरामबाई तेंगगोल समूह की मौजूदगी और उन्हें इस्तीफा देने से रोकने की उनकी कोशिशें” अपने आप में बहुत कुछ कहती हैं। उनके अनुसार, यूएपीए के प्रावधानों के तहत प्रतिबंधित केवाईकेएल, पीएलए और यूएनएलएफ जैसे मैतेई से जुड़े कुछ आतंकवादी संगठन अब अरामबाई तेंगगोल का समर्थन कर रहे हैं क्योंकि इसे सत्तारूढ़ दल का संरक्षण प्राप्त है।

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