Saturday, April 27, 2024

आखिर सिख क्यों ‘समान नागरिक संहिता’ के खिलाफ हैं?

देश-विदेश में चौतरफा चर्चा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘समान नागरिक संहिता’ (यूसीसी) का दांव 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर खेला है। नरेंद्र मोदी सरकार की चुनावी झोली में यह मुद्दा अरसे से बंद था और अचानक खुल गया। देश के कतिपय वर्ग यूसीसी के सख्त खिलाफ हैं। सबसे आगे हैं सिख। जिनकी नाराजगी की खबर को मुख्यधारा का मीडिया हाशिए पर भी जगह नहीं दे रहा। जबकि सिखों की सिरमौर धार्मिक तथा राजनीतिक संस्थाएं इसका पुरजोर विरोध कर रही हैं।

सिखों का ‘आनंद मैरिज एक्ट’ अभी लंबित है और कुछ वक्त बाद उसे बकायदा लागू होना था लेकिन अगर ‘समान नागरिक संहिता’ वजूद में आ जाती है तो सिख ‘आनंद मैरिज एक्ट’ की भ्रूण हत्या हो जाएगी। उत्तराधिकार संबंधी अध्यादेश भी लंबित है। वह भी सिरे से खारिज हो जाएगा। सिख विद्वानों का मानना है कि यूसीसी में न तो तलाक और न बे-औलादों द्वारा बच्चा गोद लेने की बाबत कोई स्पष्ट धारा है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी सिखों की सिरमौर धार्मिक संस्था है। इसे अलग से कुछ अधिकार हासिल हैं जो ‘समान नागरिक संहिता’ के लागू होते ही खुद-ब-खुद खत्म हो जाएंगे।

दूसरे शब्दों में कहें तो एसजीपीसी के अधिकार सीमित हो जाएंगे। इस लिहाज से भी यूसीसी आम सिखों के लिए एक बहुत बड़ा संवेदनशील मसला है और इसीलिए सिख ‘समान नागरिक संहिता’ का विरोध कर रहे हैं। सिख चिंतक जसपाल सिंह का मानना है कि यूसीसी अनेक सिख विशेषाधिकारों को सिरे से ही खत्म कर देगा। कुछ विद्वान और चिंतक तो यह तक मानते हैं कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की पहचान भी ‘समान नागरिक संहिता’ लागू होने के बाद बेहद धूमिल हो जाएगी। बहुत सारी चीजें जो एसजीपीसी को संविधान प्रदत हैं, मिट जाएंगीं।

पंजाब के वरिष्ठ पत्रकार और चिंतक डॉ हरजिंदर सिंह लाल कहते हैं, “भाजपा यूनिफॉर्म सिविल कोड देश में लागू करें या नहीं, लेकिन बड़े पैमाने पर हो रहा इसका प्रचार देश की राजनीति पर गहरा असर डालेगा और बहुसंख्यकों का ध्रुवीकरण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। सिख खुद को अलग कौम मानते हैं और हैं भी। सिखों के तकरीबन 90 फ़ीसदी मामले हिंदू एक्ट के जरिए निपटाए जाते हैं। जबकि 1947 के बाद से ही संघर्ष चल रहा है कि तमाम मामलों के लिए अलहदा सिख एक्ट वजूद में आए।”

उन्होंने कहा कि “अगर आज हम यूसीसी को स्वीकृति दे देते हैं तो यह हमारी धार्मिक विभिन्नता का खून निकालने की वजह बन सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि अगर यह लागू हो जाता है तो देश के बहु-धर्मी, बहु-जातीय और एकता में अनेकता के ताने-बाने को तहस-नहस करेगा। यह हिंदू राष्ट्र की तरफ एक कदम नहीं बल्कि उसकी नींव बनेगा। सिख समुदाय शेष अल्पसंख्यकों के साथ है। यूसीसी से कबीलों की संस्कृति भी खत्म हो जाएगी। आशंका है कि कहीं इस आलम में वे हिंसक विरोध का रास्ता न अख्तियार कर लें।”

हरजिंदर सिंह लाल लगभग चालीस साल से पंजाबी के सबसे बड़े अखबार ‘अजीत’ का सर्वाधिक बहुचर्चित अथवा बहुपठित स्तंभ लिख रहे हैं और सूबे के रेशे-रेशे से बखूबी वाकिफ हैं। 

विभिन्न किसान संगठन और खेत मजदूर संगठन भी समान नागरिक संहिता के तीखे विरोध में हैं। पंजाब लोक मोर्चा के अध्यक्ष और विश्वविख्यात देश भगत यादगार हॉल के ट्रस्टी अमोलक सिंह का कहना है कि, “मोदी सरकार 2024 तक हर फिरकापरस्त और समाज को बांटने वाला हथकंडा इस्तेमाल करेगी। यूसीसी का इतना व्यापक प्रचार इसी का एक हिस्सा है। पंजाब इसे किसी भी सूरत में कुबूल नहीं करेगा।”

उन्होंने कहा कि “इसके खिलाफ हम जगप्रसिद्ध ‘किसान मोर्चे’ जैसा मोर्चा दिल्ली में लगाएंगे और सरकार को झुकने पर मजबूर कर देंगे। यूसीसी पर किसी भी गैरभाजपाई की राय नहीं ली गई और अब तानाशाही की भाषा में बताया जा रहा है कि इस देश में दो कानून नहीं चलेंगे। क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह स्पष्ट करेंगे कि उनका इशारा किन विशेष दो कानूनों की ओर है।” 

स्वतंत्रता सेनानी और जवाहरलाल नेहरू के करीब रहे बुजुर्ग सेवा सिंह पूछते हैं कि, “आखिर ऐसी कौन सी इमरजेंसी आ गई कि सरकार को यूसीसी लागू करना पड़ रहा है। धारा 370 तोड़कर कश्मीर को ऐसे ही बर्बाद किया गया था। ‘समान नागरिक संहिता’ से किसे फायदा होगा? भाजपा सांप्रदायिक दल है और सिर्फ हिंदुओं के ध्रुवीकरण के लिए इतना घातक कदम उठाने की कवायद कर रही है; जिसका नकारात्मक खामियाजा हमारी आने वाली पीढ़ियां भुगतेगीं। सरकार को हालात के मद्देनजर इस ओर से कदम पीछे हटा लेने चाहिए। इसी में सबकी भलाई है।”

राज्य के प्रसिद्ध वामपंथी नेता मंगतराम पासला के मुताबिक “केंद्र सरकार ने विपक्ष को विश्वास में लिए बगैर जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 अचानक रद्द कर दिया। हासिल क्या हुआ? उसी तरह की ज़िद यूसीसी की बाबत दिखाई जा रही है। बहस होनी चाहिए कि ‘समान नागरिक संहिता’ से देश का क्या फायदा होगा? सरकार अच्छे तरीके से जानती है कि फायदा नहीं नुकसान होगा। फायदा उसके हिंदुत्व के एजेंडे को हो सकता है। ज्यादातर हिंदू ही इसके खिलाफ हैं।”

पालसा ने कहा कि “हिंदुओं में कई ऐसे वर्ग आते हैं जो निहायत धर्मनिरपेक्ष हैं और सांप्रदायिक एवं समाज को बांटने वाली राजनीति अथवा रणनीति से नफरत करते हैं। उन्हें पहले लगता था कि नरेंद्र मोदी सिर्फ विकास पर अपना फोकस रखेंगे लेकिन उनकी धारणा गलत साबित हुई। इसका जवाब 2024 में नरेंद्र मोदी और भाजपा तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को मिल जाएगा।” 

महिला किसान यूनियन की अध्यक्ष राजविंदर कौर राजू कहती हैं, “भारतीय जनता पार्टी का लक्ष्य सभी समुदायों और धर्मों के विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने सहित व्यक्तिगत कानूनों और मामलों को नियंत्रित करने के लिए ‘समान नागरिक संहिता’ लागू करनी है। भाजपा अगला लोकसभा चुनाव जीतने की कोशिश के चलते ऐसे संवेदनशील मुद्दों का सहारा ले रही है। यह एक तरह से आग से खेलना है। यूसीसी लागू हुआ तो देश का बुरी तरह से ध्रुवीकरण होगा और नतीजे बेहद नागवार निकलेंगे।”

राजविंदर कौर राजू आगे कहती हैं, “आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने ‘समान नागरिक संहिता’ के लिए भाजपा को समर्थन दिया है- यह बेहद शर्मनाक है। केजरीवाल और मान ने भाजपाई एजेंडे का सारथी बनकर उन वर्गों को धोखा दिया है जिनका वे प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं। ‘आप’ का भाजपा को समर्थन अल्पसंख्यक समुदायों की चिंताओं और आकांक्षाओं की घोर उपेक्षा है और यह उनकी भारत की विविध सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत के प्रति समाज और सहानुभूति की कमी को दर्शाता है। कम से कम पंजाब की जनता तो आम आदमी पार्टी को इस धोखे के लिए कभी माफ नहीं करेगी।” 

उधर, सर्वोच्च सिख धार्मिक संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी के अनुसार, “समान नागरिक संहिता का मसौदा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण वाला है। सिखों को यह किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं। इससे तो अल्पसंख्यकों की पहचान ही मिट जाएगी। उनके बेशुमार एजेंडे रौंद दिए जाएंगे। यूसीसी की बाबत सिखों से मशवरा तक न करना सरकार की बेईमानी दर्शाता है। सरकार अगर इसे लागू करती है तो पंजाब इसका जबरदस्त बहिष्कार करेगा। यूसीसी ध्रुवीकरण करने और अल्पसंख्यकों को चिढ़ाने के लिए बनाया गया है। हमारी निगाह में यह काला कानून है।” 

सुखबीर बादल की अगुवाई वाले शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस ने भी यूसीसी का कड़ा विरोध करते हुए कहा है कि “बेशक राज्य में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी ने इसके लिए अपना समर्थन दे दिया हो लेकिन पंजाब में इसे लागू नहीं होने दिया जाएगा।” राज्य कांग्रेस का कहना है कि “यह जनविरोधी और भाजपा का सांप्रदायिक पैंतरा है।” नेता प्रतिपक्ष कांग्रेस विधायक प्रताप सिंह बाजवा ने कहा कि “जल्द शीशे की तरह साफ हो जाएगा कि आम आदमी पार्टी भाजपा की बी टीम है।”                  

शिरोमणि अकाली दल ने भी यूसीसी का कड़ा विरोध करते हुए इसके समर्थन में आई आम आदमी पार्टी की जमकर आलोचना की है और कहा है कि “आप ने यूसीसी जैसे संवेदनशील मुद्दे पर पंजाबियों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है।” दल के मुख्य प्रवक्ता और पूर्व मंत्री डॉ. दलजीत सिंह चीमा ने कहा कि “नरेंद्र मोदी सरकार समान नागरिक संहिता को पूरे देश में लागू करने जा रही है। आप सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मोदी को यूसीसी पर समर्थन देते वक्त पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान से पूछा तक नहीं। आम पंजाबियों की राय तो क्या लेनी थी। यह भगवंत मान का ही नहीं बेशुमार पंजाबियों का भी अपमान है।” 

बहरहाल, साफ संकेत है कि यूसीसी लागू होता है तो पंजाब में इसका तीखा विरोध होगा। नकोदर के किसान महेंद्र सिंह का कहना है कि “यह सोचने वाली बात है कि कुछ साल पहले 21वें कानून कमीशन ने गहन विमर्श के बाद इसे गैर-जरूरी और गैर-व्यवहारिक घोषित किया था। इतनी जल्दी यह व्यवहारिक कैसे हो गया? जालंधर के एडवोकेट भूपेंद्र सिंह कालड़ा कहते हैं कि बेशक संविधान की धारा 44 में इसे लागू करने की बात कही गई है लेकिन यह मौलिक अधिकार नहीं है। यह संविधान की धारा 20-B और 29(1) खिलाफ जाता है।

(पंजाब से वरिष्ठ पत्रकार अमरीक की रिपोर्ट।)   

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