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बिहार में एनडीए के घटक दलों के बीच सब कुछ ठीक नहीं


बिहार में भारतीय जनता पार्टी, जनता दल (यू) और उनकी सहयोगी अन्य छोटी पार्टियों के नेता भले ही एनडीए की एकजुटता और सभी 40 सीटें जीतने का दावा कर रहे हों, लेकिन हकीकत यह है कि इस बार एनडीए के घटक दलों में तालमेल नजर नहीं आ रहा है। खास कर भाजपा और जनता दल (यू) के नेताओं के बीचपरस्पर संदेह बना हुआ है, जिसकी वजह से न तो गठबंधन का चुनाव प्रचार संगठित रूप से हो रहा है और न ही जमीनी स्तर पर दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय बन पा रहा है। दोनों पार्टियों के नेता दबे स्वरों में एक दूसरे पर सहयोग न करने का आरोप भी लगा रहे हैं।

सूबे की चार लोकसभा सीटों पर पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदान हो गया है। इन चार में से तीन सीटों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा हुई है। वे पहले जमुई में प्रचार के लिए गए। फिर नवादा में चुनावी सभा की और तीसरे दौरे में गया गए। चौथी औरंगाबाद सीट पर वे प्रचार के लिए नहीं गए लेकिन वहां उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सभा हुई। चार में से दो सीटों, औरंगाबाद और नवादा में भाजपा के उम्मीदवार हैं, जबकि जमुई मे चिराग पासवान की पार्टी से उनके बहनोई अरुण भारती चुनाव लड़ रहे हैं और गया सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी अपनी पार्टी से खुद उम्मीदवार हैं। यानी प्रधानमंत्री मोदी की तीन में से दो सभाएं सहयोगी पार्टियों के उम्मीदवारों के लिए हुई थीं। गया में तो उन्होंने यहां तक कहा कि यहां मांझी नहीं, मोदी चुनाव लड़ रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी के पहले दो दौरों में जमुई और नवादा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी शामिल हुए। लेकिन मोदी जब तीसरे दौरे पर बिहार पहुंचे तो गया और पूर्णिया में नीतीश कुमार नदारद थे, जबकि पूर्णिया सीट पर उनकी पार्टी के सांसद संतोष कुशवाहा चुनाव लड़ रहे हैं। बताया जा रहा है कि नीतीश कुमार को जान-बूझकर प्रधानमंत्री की सभा से दूर रखा गया क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी उनके व्यवहार से असहज महसूस कर रहे थे और उनके व्यवहार व भाषण से निगेटिव खबरें ज्यादा बन रही थी। एक सभा मे नीतीश कुमार ने मंच पर हंसी-मजाक करते हुए मोदी के पैर पर हाथ रख दिया था। उसे लेकर खबरें बनी और यहां तक कहा गया कि नीतीश ने मोदी के पैर छुए। एक सभा में वे चार सौ सीट को बार-बार चार हजार सीट कह रहे थे। इसे लेकर भी मीडिया में खबरें बनीं और उनके इस व्यवहार को उनके मानसिक स्वास्थ्य से भी जोड़ा गया। इसलिए ऐसा लग रहा है कि अब कम ही चुनावी सभाओं में मोदी और नीतीश कुमार एक साथ होंगे। इस बीच यह खबर तेजी से फैली है कि भाजपा अपने कोर्ट की सभी 17 सीटों पर बहुत मजबूती से लड़ रही है और जीत जाएगी लेकिन जनता दल (यू) के उम्मीदवार मुश्किल में हैं।

पिछले दिनों आए एबीपी न्यूज के एक सर्वे भी बताया गया कि चिराग पासवान भी अपनी सभी पांच सीटें जीत रहे हैं। इसका मतलब है कि जो खतरा है वह जनता दल (यू) की सीटों पर है और इसके अलावा उपेंद्र कुशवाहा व जीतन राम मांझी की सीट पर है। इसका कारण यह माना जा रहा है कि जमीनी स्तर पर भाजपा और जनता दल (यू) के कार्यकर्ताओं के बीच पहले ही तरह मजबूत एकजुटता नहीं बन पाई है। पहले चरण के मतदान में एनडीए के घटक दलों का कोर वोट भी टूटने की खबर है। जमुई में चिराग पासवान के बहनोई अरुण भारती मुश्किल मुकाबले में फंसे नजर आए हैं, क्योंकि पासवान छोड़ कर रविदास और महादलित वोट का एक हिस्सा राष्ट्रीय जनता दल की उम्मीदवार अर्चना रविदास के साथ गया है।

इसके अलावा औरंगाबाद में भाजपा का राजपूत उम्मीदवार होने के बावजूद राजपूत मतदाताओं में अपेक्षित जोश नहीं दिखने की खबर है। औरंगाबाद के साथ ही नवादा में भी भाजपा का कोर वोट टूटने की खबर है। नवादा और औरंगाबाद में राजद ने कुशवाहा उम्मीदवार उतारे हैं और खबर है कि कुशवाहा वोटों का एक हिस्सा राजद के साथ गया है। गया में जीतन राम मांझी जरूर दलित वोट को अपने साथ एकजुट रखने में सफल रहे हैं। दरअसल पिछली बार जब से नीतीश कुमार भाजपा के साथ वापस लौटे हैं तब से लगातार उनके खिलाफ एक अभियान चल रहा है, जिसके पीछे भाजपा का ही इकोसिस्टम काम कर रहा है। उनको बदनाम करके उनकी छवि खराब करने का काम बहुत बारीकी से हुआ है।

पहले भी भाजपा का पूरा वोट जनता दल (यू) को ट्रांसफर नहीं होता था और इस बार भी भाजपा का वोट बहुत कम ही ट्रांसफर होता दिख रहा है। इसीलिए कहा जा रहा है कि जनता दल (यू) की ओर से भी भाजपा का खेल बिगाड़ने की कोशिश हो रही है। इसके अलावा नीतीश कुमार और चिराग पासवान के बीच विवाद और कड़वाहट का भी का सबको पता है। दोनों के समर्थक एक दूसरे से बदला निकालने की भावना से काम कर रहे हैं।

हकीकत यही है कि ऊपर-ऊपर नेताओं में जैसी एकजुटता दिख रही है, वैसी एकजुटता जमीनी स्तर पर नहीं है।

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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