गोरखपुर लोकसभा सीट कई मामलों में महत्वपूर्ण है। यह भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की सीटों में से एक है। यहीं से उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पांच बार सांसद रहे। योगी आदित्यनाथ ने पहली बार 1998 में यहां से जीत दर्ज़ की। दिलचस्प बात यह है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद का शपथ लेने के बाद योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा की यह सीट छोड़ दी थी, लेकिन इसके बाद उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रवीण निषाद ने जीत हासिल करके सभी को चौंका दिया था, हालांकि बाद में 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां से भाजपा के उम्मीदवार भोजपुरी गायक रविकिशन शुक्ला उर्फ़ निरहुआ ने यह सीट जीत ली। इस सीट पर निषाद, यादव और दलित वोटर्स की बहुलता है, इसके बावज़ूद यहां पर योगी आदित्यनाथ के हिन्दुत्व की राजनीति परवान चढ़ती रही।
योगी आदित्यनाथ के प्रसंशक उन्हें देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखते हैं, हालांकि वे और भाजपा को लगातार इसका खंडन करते रहे हैं, यद्यपि भारतीय राजनीति में कुछ भी हो सकता है। जब भाजपा के कद्दावर नेता मनोज सिन्हा की जगह योगी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए, तो सभी चौंक गए। यही कारण है कि वाराणसी की तरह उत्तर प्रदेश में यह भी हाईप्रोफाइल सीट है। भाजपा ने इस बार अपने निवर्तमान सांसद रविकिशन शुक्ला को एक बार पुनः टिकट दे दिया है।
इण्डिया गठबंधन की ओर से सपा की काजल निषाद उम्मीदवार घोषित की गई हैं। काजल निषाद भी भोजपुरी फिल्मों में काम कर चुकी हैं। इस सीट पर दो भोजपुरी स्टार के बीच मुकाबला देखने को मिल सकता है। इस सीट से बसपा ने प्रिंटिंग प्रेस व्यवसाय से जुड़े जावेद सिमनानी को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। सिमनानी छात्र जीवन से ही बसपा से जुड़े हुए हैं। क्या इस बार गोरखपुर लोकसभा चुनाव चौंकाने वाले हो सकते हैं?
इस सीट का अगर जातीय समीकरण देखें,तो यहां पर पिछड़े और दलित मतदाताओं की संख्या सबसे ज़्यादा है। एक अनुमान के मुताबिक़ यहां पर क़रीब 4 लाख निषाद जाति के वोटर्स हैं, यह आबादी पिपराइच और गोरखपुर ग्रामीण क्षेत्रों में ज़्यादा है। यहां पर क़रीब 2 लाख यादव और दो लाख दलित वोटर्स हैं। यहां पर मुस्लिम, ब्राह्मण और क्षत्रिय समेत अन्य जातियों के मतदाता भी काफ़ी संख्या में हैं, लेकिन दलित, पिछड़े और मुस्लिम वोटर मिलकर यहां का चुनावी गणित बदल सकते हैं।
भाजपा के लोग विकास के नाम पर वोट मांग रहे हैं। यह सही है कि योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने पर गोरखपुर के शहरी इलाक़ों में कुछ विकास हुआ ,लेकिन अन्य इलाक़े तो इससे बिलकुल अछूते ही हैं। यहां पर भाजपा के जीत का आधार हमेशा हिन्दुत्व की राजनीति रही है, परन्तु ये समीकरण इस बार उलट भी सकतें हैं।
बसपा के प्रत्याशी जावेद सिमनानी ने बातचीत में बताया कि “वे गोरखपुर के बेटे हैं,इस चुनाव में वे पूरे दमखम के साथ लड़ेंगे और जीत हासिल करेंगे। जनता बाहर के प्रत्याशियों को इस बार नहीं जिताने वाली है। भाजपा प्रत्याशी रविकिशन शुक्ला और सपा प्रत्याशी काजल निषाद दोनों बाहर के हैं गोरखपुर की जनता यह अच्छी तरह से जानती है और यही वजह है कि जनता उन्हें पूरी तरह से इस चुनाव में नकार देगी।”
राजेश कुमार मल्ल गोरखपुर विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग में प्रोफेसर हैं तथा वामपंथी राजनीति से भी जुड़े रहे हैं, वे इस सम्बन्ध में बताते हैं कि “गोरखपुर सहित पूरा पूर्वांचल का इलाक़ा समूचे देश या कहें दुनिया के सबसे पिछड़े इलाक़ों में से एक है, यहां के मज़दूर देश भर में मज़दूरी करने के लिए जाते हैं। बाढ़ की विभीषिका तथा इन्सेफेलाइटिस जैसी महामारियों ने इस इलाक़े को तबाह और बर्बाद कर दिया है,परन्तु यह सब कभी चुनाव का मुद्दा नहीं बनता। भाजपा या योगी आदित्यनाथ की हिन्दुत्व की राजनीति ने यहां की राजनीति में जबर्दस्त ध्रुवीकरण किया है, यही कारण है कि चुनाव में विकास की राजनीति पर हिन्दुत्व की राजनीति हावी हो जाती है। अयोध्या से नज़दीक होने के कारण यहाँ पर अयोध्या की घटनाओं का प्रभाव ज़रूर पड़ता है, लेकिन इस बार इस का कोई ख़ास प्रभाव चुनाव पर नहीं दिखाई दे रहा है, इसलिए नतीज़े चौंकाने वाले भी हो सकते हैं।”
अध्यापक और पसमांदा मुस्लिम समाज से जुड़े आज़म अनवर लम्बे समय से गोरखपुर की सामाजिक राजनीतिक गतिविधियों से जुड़े हैं, वे कहते हैं कि “बसपा उम्मीदवार जावेद सिमनानी का पसमांदा मुस्लिम समाज में कोई ख़ास असर नहीं है,जिसका इस इलाक़े में बहुमत है। भाजपा को आशा है कि वे मुस्लिमों का वोट काटकर इण्डिया गठबंधन का गणित गड़बड़ा देंगे, लेकिन ऐसा नहीं है। मुस्लिम उसी को वोट देंगे, जो भाजपा को हरा सके। वैसे भी योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में गोरखपुर का जो विकास हुआ है, उससे पुराने गोरखपुर के मुस्लिम बहुल इलाक़े बिलकुल वंचित हैं।”
संघ से जुड़े अजय खरे कहते हैं,“इस बार भी जनता भाजपा को मौका देगी। योगी जी वीर बहादुर सिंह के बाद गोरखपुर में एक विकास पुरुष के रूप में उभरे हैं, इसलिए भाजपा को सभी जातियों और धर्मों का समर्थन मिल रहा है। सभी दलित-पिछड़े तथा मुस्लिम समाज का एक वर्ग भी उनके साथ है। वे इस बात का खण्डन करते हैं कि गोरखपुर में भाजपा धार्मिक ध्रुवीकरण कर रही है।
परिणाम जो भी हो,लेकिन भाजपा के लिए गोरखपुर की प्रतिष्ठित सीट पर एक बार पुनः जीतना पिछले चुनाव की तरह बहुत आसान नहीं रह गया है,ये चीज़ें चुनाव परिणाम आने स्पष्ट हो जाएंगी।
(स्वदेश कुमार सिन्हा स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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