चंदौली। चंदौली जनपद में गंगा नदी के कटान से सैकड़ों गांवों की नींद कई दशकों से उड़ी हुई है। इन दिनों गंगा की वेगवती और उफनती धारा किसान, मजदूर और नागरिकों के जीवन को खतरे के भंवर में झोंक दिया है। सावन में हो रही रूक-रूक बारिश से लगातार गंगा के जलस्तर में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। ऐसा नहीं है कि गंगा नदी पहली बार जनपद के धानापुर, नियामताबाद और सकलडीहा विकासखंड के सैकड़ों गांवों को कटान की जद में लिया है।
यह मुसीबत तो दशकों से चली आ रही है। मालूम हो कि पहले कृषि योग्य जमीनों का कटाव हो रहा था, लेकिन अब सवाल नागरिकों के जीवन का है। सिर्फ धानापुर विकासखंड में कटान की वजह करीब 32 सौ बीघे का रकबा सिमटकर 800 बीघे का रह गया है। गंगा नदी की बाढ़ घर की देहरी तक आने की वजह से गुरैनी गांव के लोग रातों में जागकर पहरेदारी कर रहे हैं। ताकि किसी भी अप्रिय स्थिति से बचा जा सके।
बहरहाल, अब नई मुसीबत यह है कि उपजाऊ भूमि के काटने के बाद, गंगा नदी अब गरीब-भूमिहीन मजदूरों के आशियाने को भी निगलने को बेताब है। लोगों के घर से महज दो से तीन मीटर की दूरी पर कई किलोमीटर में बह रहे अथाह जलराशि से हजारों नागरिक दहशत में हैं, आखिर इस मुसीबत का करें तो क्या ? इससे पीछा छुड़ा के जाएं तो कहां जाएं ?
चंदौली-गाजीपुर जनपद सीमा के पास ही धानापुर विकासखंड में स्थित गुरैनी गांव में इन दिनों सैकड़ों नागरिक इस चिंता में डूबे हुए हैं कि अगली सुबह उनका आशियाना रहेगा या गंगा नदी अपनी धारा में बहा ले जाएगी। इस गांव की आबादी डेढ़ हजार से अधिक है। यहां दलित, आदिवासी (गोंड), मल्लाह, यादव, डोम, ब्राह्मण, मुस्लिम समेत कई अन्य दलित और पिछड़े वर्ग के नागरिक मूल निवासी हैं।
यह जानकारी स्थानीय सीताराम चौधरी देते हुए कई बार अपनी आंखें मलते हैं। वह “जनचौक” को बताते हैं कि, सरकारें आ रही हैं और जा रही हैं। प्रत्येक मानसून में हमलोगों का गांव नदी में बहता जा रहा है। अब हालत यह हो चुकी है कि राज्य राजमार्ग के पूरब में आधा सिवान (खेत) ही ख़त्म हो गया।
वो कहते हैं, कटान को रोकने के लिए जवानी के दिनों से प्रयास करते-करते अब अस्सी बरस का हो चुका हूं। अब भी कहीं सुनवाई नहीं है। जब बाढ़ आती है जिलाधिकारी, विधायक, पूर्व विधायक समेत कई अधिकारी आते हैं। जबानी सलाह और आश्वासन देकर फिर कभी नहीं दिखते हैं। हमारी समस्या जस की तस बनी हुई है।
पिछले साल की बाढ़ में जिलाधिकारी दौरे पर आये। जहां हमलोग रहते हैं। पास में ही गंगा की धारा बह रही थी। जमीन के नीचे कटान भी जारी था। वहां उनके लिए कुर्सी लगाई गई। डीएम साब दो मिनट भी नहीं बैठे होंगे कि उठकर चल दिए, और तीन-चार सौ मीटर दूर जाकर, गांव के सभी लोगों को बुलाकर सरकारी स्कूल में बाढ़ तक रहने के लिए कह गए।
उन्होंने यह भी कहा था कि सरकारी\बंजर जमीन का सर्वेक्षण कर भूमिहीन नागरिकों को स्थाई निवास के लिए आंवटित किया जाएगा। लेकिन आज तक साहब का वादा अधूरा है। गंगा के कछार पर लगभग 20-25 परिवारों का घर-मकान है। सभी कटान की चपेट है। पास का चकरोड कट चुका है। अब घरों की बारी है। अब जीते जी यह भी देखना पड़ेगा। जिस गृहस्थी को खून-पसीने से सींचकर आगे बढ़ाया था, वह अब जाएगा, तो शासन-प्रशासन के वादे पर सैकड़ों गरीबों का उम्मीद रखना भी बेईमानी हो जाएगी ना !
पिछले बरस तीन सौ एकड़ भूमि का कटाव
धानापुर और चहनियां विकासखंड क्षेत्रों के गंगा किनारे बसे पुरा गनेश, पुरा विजयी, चकरा, टांडाकला, सोनबरसा, सरौली, महमदपुर, तिरगांवा, हसनपुर, बड़गांवा, दीया, प्रसहटा, चोचकपुर सहित दर्जनों गावों की करीब तीन सौ एकड़ भूमि पिछले तीन वर्षों में गंगा कटान की भेंट चढ़ चुकी है। सरकार द्वारा इस पर रोक लगाने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। इससे किसानों में दहशत का माहौल व्याप्त है।
नदी अभी तक तो खेत, जमीन, चारागाह, सड़क, रास्ते, चकरोड और कछार ही नदी की धारा में जल समाधी ले रहे थे। लेकिन अब गंगा किनारे के कई गांवों में उपजाऊ भूमि के गंगा नदी द्वारा काट कर अपने साथ बहा ले जाने के बाद, पैंसठ वर्षीय सरोजा देवी अपने दरवाजे के सामने तख़्त (चौकी) पर बैठीं हैं।
उनकी पथराई आंखें उफनती गंगा नदी में बनते भंवर को अपलक निहारती हैं। इनसे निकलते डरावने आवाज को सुनकर उनका कलेजा सहमा जा रहा है। वह अपनी समस्या बता तो रही थीं, लेकिन उनकी बातों में निराशा और शिकायत का रोष बह रहा था।
“देखा लाल, गंगा नदी हमारे चौकी (तख़्त) के नीचे बह रही है। हमलोगन का घर-मकान पुआल और मिटटी क हअ। पानी अगर ऊपर चढ़ल तअ, एक झटके में सब तबाह कर देही। धन-दौलत के नाम पर एक कच्चा घर हमलोगन के पास हअ। दिन त कइसहूं बीत जाला, लेकिन रात बितावल पहाड़ हो गइल बा। घर के आस-पड़ोस में छोटे-छोटे बच्चे, लड़कियां, चारा और गाय-भैंस खूंटे से बांधल हउव सब।”
“रातभर जागके बितावे के पड़ेला कि कब गंगा माई की उफनती धारा में बहे न लगल जाव। रात में बारिश होए लगले तअ, करेजा धुक-धुक करे लगेला। लालवा, तोहके केतना बताई ? अउर का-का बताईं ?” ये बातें कहती हुई सरोजा देवी अपलक गंगा को देखने लगती हैं। सरोजा देवी के साथ गुरैनी के ही रामकृष्ण, सुग्घरी देवी, धर्मेंद्र, मुनिया देवी, बांसी, हीरा, शंकर, ढिल्लू, रघुवर, फेंकू, रामफल समेत अन्य कई मजदूर नागरिकों के गृहस्थी को गंगा कटान में जाने का संकट मंडरा रहा है।
योजना भी नहीं दिला सकी कटान से राहत
जिले में गंगा के तटवर्ती गावों में कटान की समस्या से निपटने के लिए दो साल पहले 15 करोड़ की कार्य योजना पर काम शुरू किया गया था। कुंडाखुर्द, गुरैनी और महुजी गांवों में टेक्सटाइल ट्यूब कटर और बोल्डर कटर लगाने का काम होना था। अफसरों की लापरवाही से कहीं काम अधूरा है, तो कहीं गुणवत्ता में कमी की शिकायत आ रही है।
तत्कालीन सांसद डॉ. महेंद्रनाथ पांडेय हालात का जायजा लेने मौके पर पहुंचे थे। इसके बाद 2022 में दो किलोमीटर तक 39 ट्यूब कटर लगाए गए, लेकिन अगले ही साल कुंडाखुर्द गांव की मलहिया बस्ती का मुख्य मार्ग कटान की भेंट चढ़ गया। ऐसे में 15 करोड़ की कार्ययोजना भी ग्रामीणों को कटान से राहत नहीं दिला सकी।
जनपद का गंगा कटान से प्रभावित इलाका
स्थानीय पत्रकार मुकेश कुमार “जनचौक” को बताते हैं कि, साल 1985 से गंगा कटान से जनपद के तीन विकासखंड मुसीबत में है। अब तक हिंगुतरगढ़ और बुद्धपुर गांव के ही किसानों की पचासों बीघे उपजाऊ भूमि गंगा के फेटे में चली गई है। और आगे भी अभी इतनी ही जमीनें कटान की जद में हैं, जो कभी भी गंगा की धारा में विलीन हो सकती है। अपनी कृषि योग्य जमीन गंगा के फेटे में जाने से कई किसानों की सदमें में मौत भी हो चुकी है।”
“गंगा की इस कटान से महुंजी, जिगना, बयानपुर, प्रहलादपुर, गुरैनी, कवलपुरा, सोनहुली, नगवां, मेढवा, अमादपुर, मश्रिपुरा, महमदपुर, नरौली, रायपुर, नौघरां, बुद्धपुर, हिंगुतरगढ़, प्रसहटा, रामपुरदीयां, सहेपुर आदि अन्य गांव के सैकड़ों किसान दशकों से प्रभावित है। समय रहते प्रशासन को भूमिहीन परिवार की सुध लेनी चाहिए। अन्यथा बेघर होने के बाद उनको पुन: इसी स्थिति में वापस लाने में काफी समय और संसाधन खर्च करने पड़ेंगे।”
जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा से रोष
धानापुर विकासखंड के बुद्धपुर गांव की वृद्ध हो चुकी सोनरा देवी, राम विलास, रघुनाथ, मन्नी, शंकरलाल, दरबारी सिंह, सीरी प्रधान और जगबहादुर, सहेपुर निवासी रमेश नारायण, भागीरथी देवी, रामपुर दीयां के शंकर यादव, गद्दोचक के संतोष यादव, हिंगुतर के जय प्रकाश, बुद्धपुर के श्री किशुन सिंह, नौघणा के संतन उपाध्याय, नरौली के सुमंत कुमार, मश्रिपुरा के पंकज, नगवां के राजेश सिंह, सोनहुली के रमेश यादव आदि अन्य किसानों का कहना है कि अभी तक गंगा कटान के चलते किसानों के खेत बर्बाद हो रहे थे। किंतु अब तो कई गांवों में घर भी निशाने पर आ गए हैं।
तटवर्ती इलाके के लोगों का कहना है कि जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के चलते अब तक कटान रोकने के लिए ठोस इंतजाम नहीं किए गए।
शासन स्तर पर जारी है कोशिश
उपजिलाधिकारी अनुपम मिश्र के अनुसार सिंचाई विभाग ने गंगा नदी के कटान प्रभावित गांवों का सर्वेक्षण कर रिपोर्ट तैयार की जा रही है। काम पूरा होने पर रिपोर्ट शासन को भेजी जा रही है। गंगा के कटान से भूमिहीन ज्यादा प्रभावित हैं। इसका अलग से सर्वेक्षण कर शासन को अवगत कराया जाएगा। इसके साथ ही उचित कार्ययोजना अमल में लाई जा सकेगी।
(चंदौली से पवन कुमार मौर्य की ग्राउंड रिपोर्ट।)