नागरिकता संशोधन कानून की आग में झुलस रहा है पंजाब का व्यापार-ढांचा

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नागरिकता संशोधन कानून की आग में देश का बड़ा हिस्सा सुलग रहा है। उसकी आँच पंजाब के उद्योगपतियों के व्यापार-धंधे को भी बेतहाशा चौपट कर रही है। केंद्र सरकार की मनमर्जी से लागू हुईं कई नीतियों, संशोधनों और नए कानूनों ने आर्थिक मोर्चे पर सबसे ज्यादा कमर पंजाब के उद्योग-जगत की तोड़ी है। ताजा हालात ने पंजाब के देश भर में फैले उद्योग-धंधों को सिरे से तबाह कर दिया है। व्यापारियों को आमतौर पर भाजपा समर्थक माना जाता है लेकिन आज वे इस पार्टी को और केंद्र सरकार को जी भर कर कोस रहे हैं। बेशक इनमें से कई मुखर नहीं हैं लेकिन भीतर ही भीतर केंद्र की नीतियों और हालिया फैसलों का विरोध कर रहे हैं।     

देश के मैनचेस्टर और राज्य की औद्योगिक राजधानी के रूप में जाने जाते लुधियाना के कारोबारी हलकों में व्याप्त सन्नाटा बहुत कुछ कहता है। जिन राज्यों में नागरिकता संशोधन विधेयक का पुरजोर उग्र विरोध हो रहा है, दरअसल उन्हीं राज्यों के सड़क और रेल मार्ग लुधियाना के उद्योगों के लिए एक तरह से ‘कॉरीडोर’ का काम करते हैं। उन राज्यों में तो माल की सप्लाई और कारोबार एकदम बंद है ही, भूटान, नेपाल और बांग्लादेश आदि की सप्लाई भी पूरी तरह ठप्प हो गई है। नतीजतन कारोबारियों की आर्थिक रीढ़ तो टूटी ही है, उनसे जुड़े हजारों कामगारों को भी फौरी बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है। लुधियाना सरीखे हालात अमृतसर के भी हैं। केंद्र की मनमर्जी और जिद सबको बरबाद कर रही है।                          

गौरतलब है कि पंजाब से असम, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल के रास्ते भूटान तथा अन्य नजदीकी देशों को सड़क और रेल मार्ग के जरिए हौजरी, कपड़ा, साइकिल तथा साइकिल पार्ट्स, मशीनरी टूल्स, नटबोल्ट, खराद, सिलाई मशीनें व सिलाई मशीनों के कलपुर्जे तथा विभिन्न अन्य किस्म के उत्पाद भेजे जाते हैं। नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में जारी आक्रामक आंदोलन का सबसे ज्यादा असर इनमें से कुछ राज्यों में हो रहा है। अब इन राज्यों के मार्ग से माल नहीं जा रहा और पहले से बुक ऑर्डर भी कैंसिल हो रहे हैं। लुधियाना और अमृतसर के व्यापारी इसकी बाकायदा पुष्टि करते हैं।                                         

लुधियाना के बड़े कारोबारी और सीसू के प्रधान उपकार सिंह आहूजा कहते हैं, “जिन राज्यों में नागरिक का संशोधन कानून का हिंसक विरोध हो रहा है वहां स्थिति एकदम आसामान्य है। इन राज्यों तथा यहां से होकर दूसरे छोटे पड़ोसी देशों में हमारा माल जाता रहा है। लेकिन अब लगभग एक पखवाड़े से सब कुछ बंद है। न माल जा पा रहा है और न पेमेंट मिल रही है। पहले से बुक माल का उत्पादन रोक दिया गया है क्योंकि कोई नहीं जानता स्थिति कब सुधरेगी। हमारे साथ-साथ औद्योगिक संस्थानों में काम करने वाले मजदूर और कर्मचारी भी मुश्किलों में हैं। व्यापारियों और उद्योगपतियों को खरबों रुपए का जो घाटा केंद्र सरकार की ऐसी विधियों के चलते हो रहा है उसकी पूर्ति कौन करेगा?”

अमृतसर के कपड़ा व्यापारी नंदलाल शर्मा भी ऐसा ही कुछ कहते और पूछते हैं! अमृतसर से कपड़ा, बड़ियां, आचार, मुरब्बे, पापड़ और मसाले भी दूसरे राज्यों तथा नेपाल, भूटान और बांग्लादेश जाते हैं। इन वस्तुओं के बड़े करियाना व्यापारी पवित्र सिंह मोंगा के मुताबिक सब जगह की सप्लाई फिलहाल रुकी हुई है और हमने नया माल बनाना बंद कर दिया है। कारीगरों और ढुलाई का काम करने वाले श्रमिकों को उजरत नहीं मिल रही। ज्यादातर ऐसे हैं जो दिहाड़ीदार के तौर पर काम करते हैं लेकिन अब बेकार हैं। एक मजदूर रोशन लाल ने बताया कि उसके घर की रोटी चलनी मुश्किल हो रही है। जून 84 में अमृतसर के व्यापारिक जगत में ऐसे हालात दरपेश हुए थे जब मजदूरों को रोटी के लाले पड़ गए थे और अब वैसा ही सब कुछ है।                  

लुधियाना की सिलाई मशीन डेवलपमेंट क्लब के प्रधान जगबीर सिंह सोखी कहते हैं, “नागरिकता संशोधन विधेयक के बाद जिन राज्यों में तनाव है वहां न तो हम जा पा रहे हैं और न हमारा माल। हजारों उद्योगपतियों के करोड़ों रुपए फंस गए हैं। इस सेक्टर में बहुत सारे फैक्ट्री मालिक बैंक से कर्ज लेकर माल तैयार करते हैं और उगराई से बैंक ऋण की किश्तें अदा करते हैं। साल का अंत हो रहा है और बैंक किश्तों के लिए दबाव पर दबाव बना रहे हैं। समझ नहीं आ रहा कि बैंक के कर्ज की किश्त कैसे चुकाएं। नया माल जा नहीं रहा और पुराने माल की रकम की वापसी नहीं हो रही। इंटरनेट सेवाएं बंद होने से ट्रांजेक्शन भी रुक गई है।” लुधियाना और अमृतसर में हर तीसरा कारोबारी यही कहता मिलता है।                                              

पहले नोटबंदी, जीएसटी तथा फिर जम्मू-कश्मीर में धारा 370 के निरस्त होने के बाद बंद हुए व्यापार और अब नागरिकता संशोधन विधेयक ने उद्योगपतियों-व्यापारियों को बेजार कर दिया है। यूसीपीएम के चेयरमैन डीएस चावला कहते हैं कि इन दिनों जो नुकसान लुधियाना की इंडस्ट्री का हो रहा है, उसकी भरपाई में बहुत समय लगेगा। फोपासिया के अध्यक्ष बदिश जिंदल के अनुसार केंद्र की नीतियां और नए-नए कानून आर्थिक रुप से हमें खोखला कर रहे हैं। हमारे साथ लाखों लोगों की रोजी-रोटी जुड़ी हुई है।

जिक्र खास है कि लुधियाना और अमृतसर के बहुत सारे व्यापारी उन राज्यों में फंसे हुए हैं जहां गड़बड़ है। वहां ये व्यापार के सिलसिले में गए थे कि हालात बिगड़ गए और वापसी मुश्किल हो गई। लुधियाना के उद्योग-धंधों का तो मंदा हाल है ही, अमृतसर के 80 हजार से ज्यादा परिवार और व्यापारी भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापार बंद होने के चलते तगड़ी आर्थिक दिक्कतों के हवाले हैं। 17 फरवरी के बाद अटारी आईसीसी के जरिए होने वाले कपड़े, सीमेंट, मसालों और मेवों का व्यापारिक आदान-प्रदान समूचे तौर पर बंद है। सिर्फ आईसीपी पर ही 3300 कुली, 2000 सहायक, 550 क्लियरिंग एजेंट और 6 हजार से ज्यादा ट्रांसपोर्टर काम करते थे।

उनका धंधा अब छूट गया है। बदहाली का अंदाजा लगाया जा सकता है। किश्तें न जमा करवाने पर बैंक और फाइनेंशर सैकड़ों तक उठा ले गए या उनके मालिकों ने खुद सुपुर्द कर दिए। सांसद गुरजीत सिंह औजला के मुताबिक वह भारत-पाक ट्रेड ठप्प होने से बद से बदतर हुए हालात के मद्देनजर बाद केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी से कई बार मिले लेकिन सब कुछ जस का तस है। अटारी ट्रक एसोसिएशन के प्रधान सुबेग सिंह के मुताबिक ज्यादातर ड्राइवरों और क्लीनरों ने बेरोजगारी के आलम में रिक्शा चलाना शुरु कर दिया है। इस इलाके में बने ढाबों में भी अब सन्नाटा पसरा हुआ है। जहां दिन रात-खाना चलता था वहां कोई चाए पीने भी नहीं आता।            

नागरिकता संशोधन विधेयक की आग ने लुधियाना के ट्रांसपोर्ट धंधे को भी एकबारगी बर्बाद कर दिया है। ट्रांसपोर्टर देवेंद्र पाल सिंह बब्बू कहते हैं, “लुधियाना से 20, 000 से ज्यादा ट्रक रोज माल लेकर असम, उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, पश्चिमी बंगाल और तेलंगाना जाते थे लेकिन अब उनके पहिए रुक गए हैं। दिल्ली तक भी नहीं जा पा रहे। कोई नहीं जानता हालात कब नॉर्मल होंगे।”

(अमरीक सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल जालंधर में रहते हैं।)

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