सीएए-एनआरसी विरोधः हिंसा कराने वाले यह चेहरे कौन हैं!

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दिन के 1:12 मिनट पर अचानक मऊ रिजेक्ट सीएए नाम के व्हाट्सएप ग्रुप से एक मैसेज आता है, “आज 2:00 बजे सदर चौक पर इकट्ठा हो रहे हैं। जो होगा देखा जाएगा। सब को एकजुट करें।” यह फॉरवर्डेड मैसेज बसंत कुमार को मिलता है। बसंत मऊ शहर के निवासी हैं और भाकपा माले के जिला सचिव हैं।

बसंत कुमार, प्रसिद्ध लेखक-संपादक जय प्रकाश धूमकेतु और सीपीएम के पूर्व जिला सचिव वीरेंद्र कुमार अपने कुछ अन्य साथी मित्रों के साथ वहां पहुंचते हैं। सभी आश्चर्य में हैं कि कौन लोग हैं, कौन समूह है, उत्सुकता उन्हें वहां ले जाती है। चौक में 20-30 नौजवान इकट्ठा हैं। 15 से 20 साल के। वे नारे लगा रहे हैं। पुलिस और प्रशासन है। जो लोग इकट्ठा हैं, उन्हें कोई शहरी पहचान नहीं पाता कि यह लोग कौन हैं।

धीरे-धीरे यह संख्या 60-70 के आसपास पहुंचती है, लेकिन किसी को यह शहरी नहीं पहचान पाते। जबकि बसंत मऊ में पैदा हुए पले-बढ़े। डॉ. जयप्रकाश धूमकेतु को मऊ में रहते 50 बरस बीत गए वहां शहर के डिग्री कॉलेज से अब रिटायर अध्यापक तो हैं ही। रंगकर्मी, सामाजिक राजनीतिक कार्यकरता भी हैं। वीरेंद्र भी सक्रिय सामाजिक-राजनीतिक जीवन में लंबे अरसे से हैं। मऊ कोई बड़ा शहर भी नहीं है और इन जैसे लोगों की जान पहचान का दायरा भी काफी बड़ा है।

बगैर किसी संगठन, बगैर उनका कोई लीडर, यह लोग सदर चौक को घेरे रहे। यह जत्था घंटों बाद सदर चौक से पूरब कोतवाली गया। वहां बैठ नारेबाजी की और फिर लौटकर सदर चौक आ गया। यह सब होते-होते शाम के 5:00 बज गए थे। पुलिस के अधिकारी बात करने आए। तब भी कोई उनसे बात करने आगे नहीं आया और जब शाम ढल गई तो यह जत्था चौक से पश्चिम मिर्जा हादीपुरा चौक की तरफ नारे लगाता हुआ बढ़ा। यह पूरा इलाका मुस्लिम बहुल घनी आबादी का इलाका है।

नागरिकता कानून को लेकर लोगों में गुस्सा तो था ही, भीतर-भीतर विरोध पल रहा था। देश के विभिन्न हिस्सों में छात्र-छात्राओं नागरिकों पर बर्बर पुलिसिया दमन को लेकर भयानक आक्रोश भी था। सो जैसे ही इन इलाकों में यह जत्था पहुंचा लोग बड़ी संख्या में निकलकर शामिल हो गए। देखते-देखते यह संख्या हजार के करीब पहुंच गई। तब पुलिस ने बैरिकेडिंग कर जुलूस को आगे बढ़ने से रोका। इसके बाद वहां जिलाधिकारी पहुंचे।

उन्होंने शहर के नगर चेयरमैन तैयब पालकी साहब को बातचीत के लिए बुलवाया। तय्यब पालकी का घर हादीपुरा चौक के पूरब है। वह आए और लोगों को समझाया-बुझाया और शांत भी किया, लेकिन एक हिस्सा चौक के पश्चिमी हिस्से की तरफ था, जिधर दक्षिण टोला थाना है। लोगों की संख्या वहां बनी रही। पालकी साहब के समझाने-बुझाने के बाद लोग थोड़ा हटे भी, लेकिन दूसरी ओर से आए नौजवानों ने फिर ललकारा और लोगों को जमे रहने को कहा।

पालकी साहब वापस लौट गए। तब तक अंधेरा घना हो गया था। इसके बाद पुलिस भी पूरे अमले के साथ भीड़ को वहीं छोड़कर करीब एक किलोमीटर दूर चली गई। उसके बाद जुलूस में शामिल शरारती तत्वों ने दक्षिण टोला थाने की दीवार गिरा दी और बाहर खड़ी 10-12 मोटरसाइकिलों में आग लगा दी। यह सब होने के बाद पुलिस का जत्था भारी फोर्स के साथ फिर वापस लौटा और प्रदर्शनकारियों को वापस लौटने की चेतावनी दी। इसी बीच किसी ने पुलिस के ऊपर पत्थर चलाए। पथराव होते ही पुलिस ने मोर्चा संभाल लिया। लाठीचार्ज आंसू गैस के गोले हवाई फायरिंग यानी कि वह सब जो होना था हुआ।

भीड़ तितर-बितर हो गई। सड़क खाली हो गई। मऊ में हिंसक वारदात हो चुकी थी। इस पूरे घटनाक्रम को ध्यान से देखने की कोशिश की जाए तो पांच मुख्य बातें सामने आती हैं…

 1. शहर के व्यस्ततम सदर चौक पर जमा कुछ लोगों के जत्थे को दोपहर 2:00 बजे से शाम 6:00-6:30 बजे तक कोतवाली तक जमे रहने दिया गया, जबकि उसके भीतर कोई नेतृत्व नहीं था। मऊ शहर के 30 साल से लेकर 70 साल तक के सक्रिय सामाजिक, राजनीतिक शहरी नागरिक इनमें से किसी को पहचान नहीं रहे थे, जबकि एलआईयू वाले भी इन लोगों से उनके बारे में पूछ रहे थे। खुद पालकी साहब ने भी नौजवानों के उस जत्थे को बाहरी बताया।

2. हाल के वर्षों में किसी भी संगठन के शांतिपूर्ण प्रदर्शन तक के लिए लिखित परमिशन होने पर भी रोक देने वाले पुलिस-प्रशासन ने रात होने तक इंतजार किया और फिर इस जत्थे को घनी मुस्लिम वाली आबादी के इलाके की ओर मार्च करने दिया। जबकि सभी को पता था कि इस समय हालात कितने संवेदनशील हैं।

3. फिर अचानक उन्हें मिर्जा हादीपुरा चौक के पास छोड़कर पूरी पुलिस फोर्स और प्रशासन गायब हो जाता है, उपद्रवी थाने में तोड़फोड़ और वाहनों को जलाते हैं। अंधेरे का फायदा उठाते हुए, जिससे उन्हें लोग पहचान न सकें। वह यह सब करते हैं और फिर भीड़ में शामिल हो जाते हैं। इसके बाद पुलिस फोर्स वापस आती है पथराव होता है और पुलिस  प्रशासन को दमन को जायज ठहराने का मौका मिलता है।

4. इसके बाद मऊ में हुई इस हिंसा का हवाला देकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पूरे उत्तर प्रदेश में धारा 144 लगाने का आदेश देते हैं और किसी प्रकार के प्रदर्शन पर रोक लगा दी जाती है।

यदि लोगों की स्मृति में हो तो गुजरात 2002 के बाद सबसे भीषण सांप्रदायिक हिंसा 2005 में मऊ में हुई थी। जब मोहर्रम के जुलूस पर इन्हीं योगी जी की हिंदू युवा वाहिनी के नेता ने सीधे गोली चलाई थी और मुस्लिम नौजवानों की मौत के बाद हिंसा भड़क उठी थी। मऊ का पूरा बुनाई का कारोबार ध्वस्त कर दिया गया था, जो अधिकतर मुस्लिम समुदाय के पास था। वह मामला भी पूरी तरह सुनियोजित था। हिंसा भड़कने के दो दिन बाद तक पूरे मऊ को गुजरात की तर्ज पर लूटा गया था और सीडी के जरिए घरों दुकानों को जलाने का गुजरात वाला तरीका अख्तियार किया गया था।

इस बार का भी पूरा घटनाक्रम ऐसी ही सुनियोजित घटना की ओर इशारा करता है। लोगों के दुख और गुस्से को हिंसा करवा कर सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश के साथ-साथ पूरे प्रदेश में नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ बढ़ रहे लोकतांत्रिक विरोध को दबाने के लिए मऊ में उपद्रवियों और पुलिस प्रशासन के बीच कोईराला सांठगांठ तो नहीं? शहर के लोगों के अंदर यह सवाल भी उठ रहा है। वरना ऐसा क्या था जिसे आसानी से रोका नहीं जा सकता था।

20-30 लोगों को व्यस्ततम सदर चौक पर चार घंटे से ज्यादा क्यों रुकने दिया गया और रात होने पर उन्हें मुस्लिम आबादी की ओर क्यों बढ़ने दिया गया। उपद्रव हुआ, थाने की दीवार गिरी और रात में ही बनकर रंग-रोगन भी हो गया। सवाल तो उठेगा! लोग तो पूछेंगे!
सच क्या है महराज जी!

केके पांडेय

(लेखक जनमत के संपादक और संस्कृतकर्मी हैं।)

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