नई दिल्ली। मोदी सरकार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े संगठन लंबे समय से छात्रों को गलत इतिहास पढ़ाने का आरोप लगाते रहे हैं। केंद्र में सरकार बनने के बाद, मोदी सरकार और संघ ने एक खास विचारधारा को ध्यान में रखते हुए स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में बड़े बदलाव किए हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और विश्वविद्यालयों में नियुक्त भाजपा समर्थक कुलपतियों के माध्यम से मोदी सरकार उच्च शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रम और अकादमिक चरित्र में लगातार परिवर्तन कर रही है। अब दिल्ली सरकार ने अपने स्कूलों में एक नया पाठ्यक्रम शुरू करने की घोषणा की है।
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने अपने बजट में कहा कि दिल्ली के स्कूलों में जल्द ही ‘राष्ट्रनीति’ नामक एक नया पाठ्यक्रम शुरू किया जाएगा। यह पाठ्यक्रम शासन, लोकतंत्र और नीति निर्माण का व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फरवरी 2024 में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान ‘राष्ट्रनीति’ शब्द का इस्तेमाल किया था। कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार की आलोचना करते हुए मोदी ने कहा था कि उनकी सरकार 2014 में अर्थव्यवस्था पर श्वेत पत्र ला सकती थी, लेकिन देश के आत्मविश्वास को ठेस न पहुंचे, इसलिए उन्होंने राजनीति के बजाय राष्ट्रनीति को चुना।
राष्ट्रनीति के अलावा, दिल्ली के स्कूलों में अब ‘साइंस ऑफ लिविंग’ भी शामिल होगा। इसमें किंडरगार्टन से कक्षा 10 तक के छात्रों को योग, माइंडफुलनेस और स्ट्रेचिंग व्यायाम सहित ध्यान के विभिन्न रूप सिखाए जाएंगे।
राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) के एक अधिकारी ने बताया कि पाठ्यक्रम में बुजुर्गों की देखभाल और स्वयं सहायता प्रथाओं को भी शामिल किया जाएगा। इसका उद्देश्य छात्रों को शिक्षा से परे जीवन कौशल से लैस करना है।
अधिकारी ने कहा कि शिक्षा विभाग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) पर केंद्रित पाठ्यक्रमों पर भी काम कर रहा है। उन्होंने बताया, “जैसे-जैसे तकनीक विकसित हो रही है, कौशल को उन्नत करने की जरूरत बढ़ गई है। इस मांग को पूरा करने के लिए हम नए पाठ्यक्रम और गतिविधियां तैयार कर रहे हैं, जो छात्रों को तकनीक आधारित दुनिया में आगे रखने में मदद करेंगे।”
दिल्ली की भाजपा सरकार ने भले ही मोदी की राष्ट्रनीति से प्रेरणा ली हो, लेकिन सत्तारूढ़ शासन के तहत देश की शिक्षा नीति में कई बदलाव हुए हैं। इससे पहले, 2014 में भाजपा शासित राज्यों गुजरात और मध्य प्रदेश ने मोदी की कहानी को पाठ्यक्रम में शामिल करने का फैसला किया था।
हाल के वर्षों में स्कूली पाठ्यपुस्तकों में संशोधन किए गए हैं। गुजरात दंगों और बाबरी मस्जिद विध्वंस जैसी वास्तविक घटनाओं के संदर्भों को या तो बदला गया या हटा दिया गया। ‘द हिंदू’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, जून 2024 में एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश प्रसाद सकलानी ने इन बदलावों का बचाव करते हुए कहा, “दंगों के बारे में पढ़ाने से हिंसक और उदास नागरिक पैदा हो सकते हैं।” उन्होंने जोर देकर कहा कि ये संशोधन वार्षिक प्रक्रिया का हिस्सा हैं और इन्हें सनसनीखेज नहीं बनाया जाना चाहिए।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, अप्रैल 2023 में कक्षा 12 की इतिहास की पाठ्यपुस्तक ‘थीम्स ऑफ इंडियन हिस्ट्री-पार्ट III’ में नाथूराम गोडसे और महात्मा गांधी की हत्या के संदर्भों को संपादित किया गया। इसके बाद सबसे विवादास्पद बदलाव तब हुआ, जब कक्षा 12 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक से 2002 के गुजरात दंगों के दो पूरे पृष्ठ हटा दिए गए। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कक्षा 7 की इतिहास की किताब ‘आवर पास्ट्स-II’ में अब हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब जैसे बादशाहों की उपलब्धियों का विवरण देने वाला दो पेज का चार्ट शामिल नहीं है। शिक्षा के भगवाकरण पर बहस पाठ्यपुस्तकों से आगे तक फैल गई है।
कर्नाटक में कक्षाओं में धार्मिक प्रतीकों पर प्रतिबंध, जिसे हिजाब प्रतिबंध के रूप में देखा गया, ने देश भर में विरोध प्रदर्शन को जन्म दिया। यह विवाद फरवरी 2022 में एक सरकारी आदेश से शुरू हुआ, जिसमें सरकारी स्कूलों को यूनिफॉर्म नीतियों को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया गया था। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ सहित कई रिपोर्टों में बताया गया कि हिजाब पहनने वाली मुस्लिम छात्राओं को कक्षाओं में जाने से रोका गया, जिसके कारण कई छात्राओं ने परीक्षा छोड़ दी या पढ़ाई पूरी तरह छोड़ दी।
मोदी सरकार के शिक्षा सुधार के प्रयासों को राजनीतिक विरोध का सामना करना पड़ा है। नई शिक्षा नीति से उत्पन्न भाषा विवाद इसका ताजा उदाहरण है।
(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं)
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