नई दिल्ली। केंद्र सरकार का महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के प्रति क्या धारणा है इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस कथन से समझा जा सकता है जो उन्होंने 2017 में संसद में कहा था। उन्होंने सोनिया गांधी पर हमला करते हुए कहा था कि “मनरेगा कांग्रेस सरकार के विफलताओं का जीता जागता उदाहरण है। और हम इसे गाजे-बाजे के साथ जिंदा रखेंगे।” यानि पीएम मोदी ने कह दिया था कि वह मनरेगा को सिर्फ जिंदा रखेंगे। पिछले कई सालों से केंद्र सरकार लगातार मनरेगा का बजट कम कर रही है। जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों में काम का संकट पैदा हो गया है। सरकारी सूत्रों ने कहा कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने ग्रामीण नौकरी योजना मनरेगा के लिए मांगी गई अतिरिक्त धनराशि के आधे से थोड़ा अधिक आवंटित करने का फैसला किया है। केंद्र सरकार का यह रवैया तब है जब उच्च बेरोजगारी दर के कारण मनरेगा के तहत काम की मांग में वृद्धि देखा जा रहा है।
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 2023-24 के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) कार्यक्रम के लिए अतिरिक्त 50,000 करोड़ रुपये की मांग की थी क्योंकि केंद्रीय बजट में आवंटित सभी धनराशि का उपयोग किया जा चुका था।
वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि वित्त मंत्रालय केवल 28,000 करोड़ रुपये आवंटित करने पर सहमत हुआ। अतिरिक्त आवंटन के लिए अनुपूरक बजट के हिस्से के रूप में संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता होगी। वित्त मंत्रालय पहले ही संसद की मंजूरी के लिए लंबित 10,000 करोड़ रुपये जारी कर चुका है।
मुख्य रूप से मनरेगा पर शोध करने वाली निजी संस्था लिबटेक इंडिया के वरिष्ठ शोधकर्ता चक्रधर बुद्ध ने कहा कि योजना के तहत काम की मांग पिछले साल की तुलना में लगभग 9 प्रतिशत बढ़ी है। इस वर्ष 31 अक्टूबर को कार्यक्रम के तहत सृजित व्यक्ति दिवस 205.94 करोड़ था, जबकि पिछले वर्ष 31 अक्टूबर को यह 188.42 करोड़ था।
बुद्ध ने बताया कि “अगर सरकार ने अनुपूरक बजट में 28,000 करोड़ रुपये आवंटित करने का फैसला किया है, तो यह पूरी तरह अपर्याप्त है। पहले से ही 9,000 करोड़ रुपये से अधिक की देनदारी लंबित है।”
उन्होंने कहा कि “मुझे लगता है कि एक बार जब अगले दो या तीन महीनों में धन समाप्त हो जाएगा, तो राज्य सरकारें किसी भी नए काम की अनुमति देने की संभावना कम। यदि नए काम की अनुमति दी गई, तो श्रमिकों को समय पर भुगतान नहीं किया जाएगा।”
बुद्ध ने कहा कि सरकार द्वारा 2022-23 में 5 करोड़ से अधिक जॉब कार्ड हटाने, और आधार सक्षम भुगतान प्रणाली से एक ऑनलाइन उपस्थिति नियम को आगे बढ़ाने के बावजूद योजना के तहत काम की मांग बढ़ी है। जिसने कई भावी श्रमिकों को निराश किया है।
उन्होंने कहा कि “अगर सरकार ने जॉब कार्ड नहीं हटाया होता और प्रौद्योगिकी-संचालित उपायों को आगे नहीं बढ़ाया होता, तो मनरेगा नौकरियों की मांग और भी बढ़ जाती। इसलिए हम जो देखते हैं वह है कि ये ग्रामीण रोजगार योजना की उपेक्षा है।”
एक श्रम अर्थशास्त्री ने कहा कि सरकार के इसी तरह के कदम एक कारण है कि उच्च बेरोजगारी दर में वृद्धि है। एक निजी शोध समूह, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार, वित्तीय वर्ष की शुरुआत से बेरोजगारी दर लगभग 8 प्रतिशत थी और अक्टूबर में 10 प्रतिशत को पार कर चुकी है।
बुद्ध ने गणना की कि वर्तमान देनदारियों में कटौती के बाद उपलब्ध धनराशि 18,375 करोड़ रुपये होगी, जो केवल 57.3 करोड़ व्यक्ति कार्य दिवस उत्पन्न कर सकती है।
केंद्रीय बजट में इस योजना के तहत 60,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, और अतिरिक्त धनराशि केवल 28,000 करोड़ रुपये होने की संभावना है, बुद्ध ने कहा कि इस वर्ष धनराशि चार वर्षों में सबसे कम होगी। योजना के लिए कुल आवंटन 2022-23 में 89,400 करोड़ रुपये और 2021-22 में 98,000 करोड़ रुपये था, जबकि 2020-21 में व्यय 1.1 लाख करोड़ रुपये था।
ग्रामीण विकास मंत्रालय ने अनुमान लगाया था कि मजदूरी दर में लगभग पांच प्रतिशत की वृद्धि और काम की बढ़ती मांग के कारण योजना के तहत खर्च पिछले वर्ष की तुलना में अधिक होगा।
मनरेगा प्रत्येक ग्रामीण परिवार को प्रति वर्ष 100 दिनों तक का रोजगार प्रदान करता है और इसे कम कृषि अवधि के दौरान ग्रामीण भारत में आजीविका सहायता प्रणाली के रूप में देखा जाता है।
(जनचौक की रिपोर्ट)
Thanks sir
मनरेगा योजना में भ्रष्टाचार खुलकर होता है मेरे गांव में 14 किलोमीटर दूर का एक मुंशी लगभग 12–13 साल से है और मजदूरी के लिए भी इतनी दूर से मजदूर गांव में आते हैं गांव का आदमी मनरेगा में काम करना नहीं चाहता है, केवल तालाब दूसरे तीसरे वर्ष फॉर्मेलिटी पूरी होती है