मणिपुर: कुकी संगठन केआईएम ने की अलग राज्य की मांग, कहा- मैतेई के साथ नहीं रह सकते!

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गुवाहाटी। मणिपुर की कुकी जनजातियों के शीर्ष संगठन कुकी इनपी मणिपुर (केआईएम) ने स्पष्ट रूप से कहा है कि एक अलग प्रशासन की उसकी मांग का मतलब भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत एक नया राज्य है। केआईएम महासचिव खैखोहाउह गंगटे ने 13 जुलाई को जारी एक मीडिया बयान में कहा कि अलग राज्य की मांग का निर्णय 12 जुलाई को लिया गया।

गंगटे ने कहा कि “12 जुलाई को केआईएम की महत्वपूर्ण कैबिनेट बैठक और उसमें लिए गए कार्यकारी निर्णय के बाद, कुकी इनपी मणिपुर ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत अलग राज्य के रूप में अलग प्रशासन की अपनी मांग स्पष्ट रूप से कही है”।

अनुच्छेद 3 के तहत, संसद किसी राज्य से क्षेत्र को अलग करके या दो या दो से अधिक राज्यों या राज्यों के हिस्सों को एकजुट करके या किसी राज्य के किसी हिस्से को किसी क्षेत्र से एकजुट करके एक नया राज्य बना सकती है।

मीडिया बयान में गंगटे ने कहा कि इस मांग के पीछे का तर्क, अन्य बातों के अलावा इम्फाल घाटी के सभी कुकियों की उनकी कॉलोनियों/बस्तियों और चर्चों को जलाने के बाद उनको सुरक्षित करना है।

हालांकि 3 मई को मैतेई और कुकी समुदायों के बीच झड़प होने के बाद से कुकी संगठन अलग प्रशासन की अपनी मांग पर अड़े हुए हैं, लेकिन अब तक किसी ने भी यह निर्दिष्ट नहीं किया है कि अस्थिर राज्य में स्थायी शांति के लिए एक नया राज्य ही समाधान है।

केआईएम के सूचना और प्रचार सचिव जांगहोलुन हाओकिप ने बताया कि “कुकी इनपी मणिपुर ऐसा करने वाला पहला संगठन है। अन्य कुकी संगठनों ने अभी तक ऐसा नहीं किया है। हमने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में एक राज्य के कारणों/तर्कों का उल्लेख किया है।“

मैतेई संगठनों ने किसी भी प्रकार के अलग प्रशासन या राज्य की क्षेत्रीय अखंडता के साथ छेड़छाड़ का पुरजोर विरोध किया है।

कुकी लोगों ने कहा है कि वे अब इम्फाल घाटी में मैतेई लोगों के साथ नहीं रह सकते हैं, जबकि उन्होंने मौजूदा अशांति के लिए मुख्यमंत्री और भाजपा नेता एन बीरेन सिंह के नेतृत्व वाले राज्य प्रशासन को दोषी ठहराया है, जिसमें अब तक कम से कम 150 लोगों की जान जा चुकी है और 60,000 लोग विस्थापित हो चुके हैं।

कुकी, चिन, ज़ोमी और मिज़ो जैसी जनजातियों को ज़ो जनजाति या ज़ो लोग भी कहा जाता है क्योंकि वे समान वंश, संस्कृति और इतिहास साझा करते हैं।

केआईएम के महासचिव गांगटे ने कहा कि “संस्थागत हिंसा” का पैमाना और तीव्रता विनाशकारी अनुपात तक पहुंच गई है, जिसमें यहां तक कि हमारे निर्वाचित प्रतिनिधियों को भी नहीं बख्शा जाता है, नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों (केंद्रीय और राज्य सेवाओं) की तो बात ही छोड़ दें, यह दर्शाता है कि कुकी और मैतेई के बीच बढ़ते मतभेद अब भी सुलझने लायक नहीं हैं।”

केआईएम ने संरक्षित वन और आरक्षित वन से संबंधित कुछ सरकारी आदेशों पर भी चर्चा की, जिन्हें “हमारी भूमि-हमारे पूर्वजों के निवास पर जबरन थोपा गया है”।

गंगटे ने कहा, “यह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि हम राज्य की राजधानी (इम्फाल) में नहीं रह सकते और न ही बस सकते हैं। एक व्यक्ति के रूप में प्रत्येक कुकी का अस्तित्व ही खतरे में है।”

बहुसंख्यक मैतेई, ज्यादातर हिंदू, छह घाटी जिलों में रहते हैं जबकि कुकी और नगा जनजातियां, ज्यादातर ईसाई, 10 पहाड़ी जिलों में रहते हैं।

गंगटे ने कहा कि “वास्तव में, जनसांख्यिकीय/भौगोलिक अलगाव अब प्रभाव में आ गया है। इसलिए, क्षेत्र में स्थायी शांति के लिए भारतीय संविधान की धारा 3 के तहत एक नए राज्य के निर्माण के रूप में अलग प्रशासन में तेजी लाना केंद्र सरकार के लिए उचित निर्णय होगा।“

गंगटे ने कहा कि जब तक अलग राज्य के रूप में हमारी राजनीतिक मांग पूरी नहीं हो जाती तब तक कुकी अपने अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए संघर्ष करते रहेंगे।

इससे पहले मई 2023 में हिंसा शुरू होने के बाद मणिपुर के पहाड़ी जिलों के कम से कम 10 विधायकों, जिनमें सत्तारूढ़ भाजपा के विधायक भी शामिल हैं, ने एक अलग प्रशासन की मांग की थी। एक प्रेस बयान में 10 विधायकों ने कहा था कि मणिपुर सरकार ने चिन, कुकी, मिज़ो, ज़ोमी पहाड़ी जनजातियों के खिलाफ बहुसंख्यक मैतेई समुदाय द्वारा निरंतर हिंसा का मौन समर्थन किया, जिसने पहले ही मणिपुर को विभाजित कर दिया है। 

यह कहते हुए कि बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के बीच रहना “हमारे लोगों के लिए मौत के समान है”, विधायकों ने कहा, “हमारे लोग अब मणिपुर के अधीन नहीं रह सकते क्योंकि हमारे जनजातीय समुदाय के खिलाफ नफरत इतनी ऊंचाई पर पहुंच गई है कि विधायक, मंत्री, पादरी, पुलिस, नागरिक, अधिकारियों, आम लोगों, महिलाओं और यहां तक कि बच्चों को भी नहीं बख्शा गया, पूजा स्थलों, घरों और संपत्तियों को नष्ट किया गया।

बयान में कहा गया है “चूंकि मणिपुर राज्य हमारी रक्षा करने में बुरी तरह विफल रहा है, हम भारत संघ से भारत के संविधान के तहत एक अलग प्रशासन की मांग करते हैं और मणिपुर राज्य के साथ पड़ोसियों के रूप में शांति से रहना चाहते हैं।”

गौरतलब है कि कुकी समुदायों के साथ-साथ नगा जनजातियां भी मेतेई लोगों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग का विरोध कर रही हैं। 

इस बीच कांग्रेस ने आरोप लगाया कि मणिपुर में बजरंग दल की तर्ज पर बना संगठन अरामबाई तेंगगोल चर्चों में आगजनी और पुलिस शिविरों से हथियार लूटने के पीछे ज़िम्मेदार है।

राज्य सरकार के अधिकारियों के अनुसार 3 मई को हिंसा भड़कने पर विभिन्न पुलिस शिविरों और बटालियन मुख्यालयों से 1,000 से अधिक हथियार लूट लिए गए थे।

कांग्रेस पार्टी के मणिपुर प्रभारी भक्त चरण दास ने बताया कि अरामबाई तेंगगोल और मैतेई लीपुन जैसे संगठनों, जिन्हें मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह का आशीर्वाद प्राप्त था, ने भी चर्चों को नष्ट कर दिया।

हिंसा के बाद राज्य का दौरा करने वाले दास ने कहा कि “वे काले कपड़े पहनकर और हथियार लहराते हुए राज्य में घूमते रहे। राज्य भर में कम से कम 200 चर्च नष्ट कर दिए गए, जिनमें मैतेई समुदाय के 18 चर्च और दो नगा चर्च शामिल हैं। हमने सुना है कि कई हथियार सरेंडर कर दिए गए हैं लेकिन क्या पुलिस उनके खिलाफ हथियार लूटने का मामला दर्ज करेगी?”

अरामबाई तेंगगोल, जिसका नाम मणिपुरी राजाओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले हथियार के नाम पर रखा गया है, और मैतेई लीपुन लगभग दो-तीन वर्षों से राज्य में सक्रिय हैं, लेकिन कई निवासियों के अनुसार, पिछले एक साल में उन्होंने मैतेई समुदाय के बीच लोकप्रियता हासिल की है। 

अरामबाई तेंगगोल और मैतेई लीपुन दोनों ने सार्वजनिक रूप से यह रुख अपनाया है कि मैतेई लोगों को ईसाई धर्म में धर्म परिवर्तन के खतरे का सामना करना पड़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप वे मैतेई की संस्कृति को बहाल करने के लिए काम करने का दावा करते हैं।

(दिनकर कुमार द सेंटिनेल के पूर्व संपादक हैं। और आजकल गुवाहाटी में रहते हैं।)

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