Saturday, April 27, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: दंतेवाड़ा के तुमरीगुंडा बालक आश्रम में शौचालय नहीं, छात्र शौच के लिए जंगल जाने को मजबूर

दंतेवाड़ा। घने जंगलों और पहाड़ियों के बीच घिरा है छत्तीसगढ़ का दंतेवाड़ा जिला। आयरन की खदानें और ऐतिहासिक नगरी होने के साथ-साथ इसका नाम अक्सर नक्सली गतिविधियों के लिए सुर्खियों में आता रहता है।

फिलहाल पिछले कुछ महीनों से दंतेवाड़ा के नए कलेक्टर और बस्तर के पहले आईएएस विनीत नंदनवार की खूब चर्चा हो रही है। उनके द्वारा किए जा रहे काम और उनके संघर्ष की कहानी को खबरों की दुनिया में खूब जगह मिल रही है। बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए वह शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं।

लेकिन दंतेवाड़ा का आदिवासी इलाका आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। यहां आज भी शिक्षा का अभाव है। आदिवासी बच्चों की शिक्षा के लिए आश्रम भी बनाए गए हैं लेकिन वहां छात्रों के लिए मूलभूत सुविधाओं का अभाव है।

पांच साल बाद भी नहीं मिला शौचालय

दंतेवाड़ा जिले के गीदम ब्लॉक के तुमरीगुंडा गांव में आदिवासी बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए बने बालक आश्रम में शौचालय नहीं है। जबकि आश्रम का निर्माण पांच साल पहले 2017 में हुआ था। शौचालय के न होने के कारण छात्रों को शौच के लिए जंगल और नाले का सहारा लेना पड़ रहा है।

बारिश के मौसम में सांप और बिच्छू के काटने का भी डर रहता है। स्थिति यह है कि भारी बारिश में कई बार बच्चे बाहर जा भी नहीं पाते हैं। आलम यह है कि दस्त लग जाने की स्थिति में बच्चों के सामने कोई विकल्प नहीं है। बारिश के दिनों में रात में स्थिति और भी भयावह हो जाती है। बच्चों को गीली मिट्टी और सांप-बिच्छू के डर के साए में शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है।

ऐसा हाल सिर्फ एक बालक आश्रम का नहीं है। बल्कि प्रदेश में कई ऐसे आश्रम हैं जहां गरीब आदिवासी बच्चे आते तो पढ़ने के लिए हैं लेकिन वो मूलभूत सुविधाओं से वंचित हो जाते हैं।

तुमरीगुंडा बालक आश्रम।

आश्रम में रहते हैं 50 आदिवासी बच्चे

तुमरागुंडा गांव के बालक आश्रम में लगभग 50 बच्चे हैं। यहां पांचवीं तक पढ़ाई होती है। बच्चों को पढ़ाने के लिए चार अतिथि शिक्षक और चार प्रधानाध्यापक हैं। सभी 50 बच्चे दंतेवाड़ा के दूर दराज के गांवों के हैं।

आश्रम के आसपास चारों तरफ खेत और जंगल हैं। बारिश के मौसम में यहां खेतों में धान की रोपाई हुई है। बच्चे बारिश के दिनों में इसी पगडंडी से होकर जंगल की तरफ जाते हैं। बारिश के दिनों में बच्चों को ज्यादा दिक्कत होती है क्योंकि इस मौसम में धान की रोपाई होती है और खेतों में जगह नहीं होती।

बच्चों ने हमें वह रास्ता दिखाया, जहां वह रोज जाते हैं। आश्रम में रहने वाले ज्यादातर बच्चे गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं। पांचवी तक क्लास होने के कारण यहां छोटे बच्चों की संख्या ज्यादा है।

कोई हमारी नहीं सुनता

बालक आश्रम में रहने वाले मंगलू ने हमें बताया कि वह पिछले कुछ समय से आश्रम में रह रहा है। उसके आसपास और बच्चे खड़े थे। जो उसकी हां में हां मिला रहे थे। मंगलू का कहना था कि ‘आश्रम को बने हुए पांच साल हो गए हैं। लेकिन आज भी शौचालय नहीं है। कोई इस बात पर ध्यान नहीं देता है। हमें शौचालय के लिए हर सुबह जंगल का रुख करना पड़ता है’।

मंगलू बताता है कि ‘सबसे ज्यादा परेशान तब होती है जब किसी को दस्त लग जाती है। आश्रम में ज्यादातर छोटे बच्चे हैं वो रात में अकेले जा भी नहीं सकते हैं। बारिश के दिनों में तो सबसे ज्यादा परेशानी होती है’।

आश्रम में एक छोटे से बच्चे ने नाम न बताते हुए बड़ी ही सहमी आवाज में कहा कि ‘आश्रम के बच्चे इस वक्त जंगल की तरफ से आ रहे हैं। हमारे लिए शौचालय नहीं है। इसलिए बाहर ही जाना पड़ता है। वह बहुत ही धीमी आवाज में कहता है कि रात में जंगल जाने से डर लगता है’।

आश्रम में आदिवासी बच्चे।

‘जनचौक’ की टीम के पहुंचने के बाद हरकत में आए आश्रम के अधीक्षक

‘जनचौक’ की टीम जब इस आश्रम में शौचालय की समस्या पर ग्रांउड रिपोर्ट करने पहुंची तो आश्रम के अधीक्षक हरकत में आए और शौचालय बनाने का काम शुरू करने की बात कही। आश्रम के अधीक्षक मेगनाथ पुजारी ने ‘जनचौक’ से बात करते हुए कहा कि दंतेवाड़ा जिले में चेरपाल आश्रम को साल 2017 में दो भागों में बांट दिया गया। दोनों में ही 50-50 छात्र हैं। चेरपाल आश्रम का निर्माण 1991 में हुआ था। वहां शौचालय की सुविधा है।

मेगनाथ पुजारी कहते हैं कि ‘बच्चों की शिकायत को देखते हुए बाथरूम का काम शुरू कर दिया गया है। जल्द ही काम पूरा कर दिया जाएगा’।

देश के एक चौथाई स्कूलों में शौचालय की सुविधा नहीं

एन्युअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2022 के अनुसार देश में आज भी एक चौथाई स्कूल यानि 23.6 फीसद छात्र शौचालय का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। जबकि 2.9 फीसद स्कूलों में शौचालय की सुविधा ही नहीं है।

यह आलम तब है जब केंद्र सरकार स्वच्छ भारत अभियान के तहत हर घर शौचालय की योजना चला रही है। इसके बाद भी न तो घरों में पूरे शौचालय बन पाए, न स्कूलों में शौचालय की व्यवस्था हो पाई।

(दंतेवाड़ा से पूनम मसीह की ग्राउंड रिपोर्ट)

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