पहलवानों के मामले में पीएम मोदी को गवाह के रूप में दिल्ली पुलिस को बुलाना चाहिए

Estimated read time 1 min read

यौन उत्पीड़न के मामले में वह व्यक्ति भी गवाह माना जाता है, जिस पीड़िता ने आपबीती सुनाई हो। पुलिस और न्यायालय ऐसे व्यक्ति को गवाह के रूप में बुला सकते हैं। ऐसे गवाह की बात को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाता है। महिला पहलवान विनेश फोगाट ने अपने एफआईआर में इसका उल्लेख किया है कि उन्होंने आरोपी ( सिंह) के यौन उत्पीड़न के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को व्यक्तिगत तौर पर बताया था।

अपनी प्राथमिकी में विनेश ने स्पष्ट रूप से बताया है कि “उसने उनके और अन्य महिला खिलाड़ियों के उपर हो रहे यौन दुर्व्यवहार की बात आदरणीय पीएम मोदी जी को बताई थी। उन्होंने आश्वस्त करते हुए कहा था कि वे इस मामले को देखेंगे और खेल मंत्रालय की ओर से उन्हें जल्द ही बुलावा आएगा।” इस रूप में प्रधानमंत्री इस मामले में महत्वपूर्ण गवाह हैं। उन्हें आगे बढ़कर साक्ष्य के रूप में खुद को पुलिस के सामने प्रस्तुत होना चाहिए। दिल्ली पुलिस को भी प्रधानमंत्री से बतौर गवाह पूछताछ करना चाहिए, लेकिन दिल्ली पुलिस एफआईआर में प्रधानमंत्री को बताए जाने का तथ्य दर्ज होने के बावजूद भी उनसे गवाह के रूप में पूछताछ करने की कोई कोशिश नहीं कर रही है। न प्रधानमंत्री आगे बढ़कर खुद को गवाह के तौर पर प्रस्तुत कर रहे हैं।

17 अगस्त 2021 वह दिन था जब पूर्व ओलिंपिक खिलाड़ियों को प्रधानमंत्री के साथ मुलाक़ात करनी थी। विनेश फोगाट ने अपनी लिखित एफआईआर में पुलिस को बताया है कि किस प्रकार बार-बार आरोपी (सिंह) और सह-आरोपियों द्वारा उन्हें आरोपी (सिंह) से मुलाक़ात करने के लिए दबाव बनाया जा रहा था। लेकिन वे इसके लिए कत्तई तैयार नहीं थीं। जिसके बाद उनका नाम मुलाक़ात करने वाले ओलिंपिक खिलाड़ियों की सूची से हटवा दिया गया था। लेकिन इसके बाद पीएमओ से फोन आया कि आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने आग्रह किया है, तो विनेश फोगाट ने इस बैठक में हिस्सा लिया। 

इसके साथ ही सवाल यह उठता है कि प्रधानमंत्री मोदी जब महिला खिलाड़ियों की आपबीती के बारे में व्यक्तिगत तौर पर परिचित थे, तो उन्होंने भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ मामले की जांच के निर्देश खेल मंत्रालय क्यों नहीं दिए? यदि दिए थे तो अगस्त 2021 के बाद इस पर क्या कार्रवाई हुई? यदि कुछ होता तो वह देश को भी दिखता। लेकिन इन महिला खिलाड़ियों को तो 15 महीने बाद जनवरी 2023 में अपनी मांगों के लिए जंतर-मंतर पर धरना देना पड़ा, जिसके बाद जाकर सरकार ने ओवरसाईट कमेटी का गठन किया था।

इससे भी महत्वपूर्ण प्रश्न आज यह उठता है कि क्या दिल्ली पुलिस अपनी ही एफआईआर के मुताबिक पीएम मोदी से इस बात की पूछताछ करेगी कि एथलीट विनेश फोगाट ने अपनी शिकायत में पीएम से अपनी आपबीती बयां की है, वह सही है या नहीं? क्योंकि दिल्ली पुलिस के अनुसार वह मुस्तैदी से अपने काम में जुटी है और इस सिलसिले में वह तमाम लोगों से पूछताछ कर ही आगे कदम बढ़ा रही है। हालांकि अभी तक उसने बृजभूषण शरण सिंह को पूछताछ के लिए नहीं बुलाया है। 

आमतौर पर जिस पर भी आरोप लगता है, सबसे पहले पुलिस उसे ही पूछताछ के लिए बुलाती है, या उसके पास जाती है। यहां पर तो एक नाबालिग लड़की के साथ यौन दुर्व्यवहार का मामला था। इसमें पहले गिरफ्तारी और फिर पूछताछ की जाती है। शिकायतकर्ता के बजाय आरोपी को साबित करना होता है कि वह दोषी नहीं है। ऐसे में यदि विनेश फोगाट का बयान सही है तो यह एक बहुत बड़ा आरोप अप्रत्यक्ष रूप से प्रधानमंत्री पद पर लग जाता है कि उन्होंने सबकुछ जानते हुए भी इस मामले में कोई एक्शन नहीं लिया। यह सिर्फ पीएम मोदी की ही प्रतिष्ठा धुल-धूसरित नहीं करता बल्कि समूचे भारतीय राजनीतिक तंत्र को दागदार करने वाला है। इस बारे में जल्द से जल्द स्थिति स्पष्ट किये जाने की जरूरत है। 

दिल्ली पुलिस के अनुसार इस मामले की जांच के लिए एस एसआईटी टीम का गठन किया गया है, जिसमें महिला कर्मियों को भी शामिल किया गया है। इनके द्वारा विभिन्न टूर्नामेंट में मौजूद लोगों से बयान दर्ज किये जाने हैं। इसके लिए 158 लोगों की सूची तैयार की गई है, जिनसे हरियाणा, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड और कर्नाटक जाकर बयान लिए जाने हैं और तथ्य जुटाने हैं। इनमें से अभी तक 125 लोगों के बयान दर्ज किये जा चुके हैं, और 4 लोगों ने अपने बयानों में तीन महिला पहलवान खिलाड़ियों के आरोपों की पुष्टि भी कर दी है। 

सवाल ये उठ रहा है कि क्या इन 158 लोगों में प्रधानमंत्री का नाम भी शामिल है या नहीं? यदि नहीं तो किस आधार पर, जब अपनी प्राथमिकी में विनेश फोगाट ने स्पष्ट रूप से लिखा है कि इस बारे में उसकी बात पीएम मोदी से हुई थी। यही सवाल न्यायपालिका के संदर्भ में भी उठता है, जिसमें अदालती कार्यवाही के दौरान सभी गवाहों से उनके बयान लिए जाते हैं। न्याय का तकाजा तो यही कहता है, क्योंकि सच को सबसे ऊपर रखना ही लोकतंत्र की बुनियादी निशानी है।

( रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author