बग़ैर सुरक्षा उपकरणों के सेनेटाइजेशन कर रहे दो मजदूर बुरी तरह झुलसे

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राँची। हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी पूरी टीम कोरोना महामारी से देशवासियों के बचाव को लेकर लगातार झूठे दावे व वादे कर रहे हैं। साथ ही केन्द्र सरकार के ही सुर में सुर मिलाते हुए राज्य सरकारें भी इन्हीं के नक्शे कदम पर चल रही है। इनके दावे व वादे के इतर जमीनी सच्चाई लगातार कोरोना से लड़ रहे डाॅक्टरों व पूरी मेडिकल टीम के साथ-साथ सफाइकर्मियों व सेनेटाइज कर रहे मजदूरों का जीवन असुरक्षित होता जा रहा है।

कोरोना वारियर्स के सम्मान में ताली, थाली, घंटी, शंख के साथ आतिशबाजी तो हुई ही, हमारे प्रधानमंत्री के हुक्म पर इनके सम्मान में दीये भी जलाये गये और मोदी के अंध समर्थकों ने तो पूरी दीवाली भी मनायी, लेकिन आज तक इन कोरोना वारियर्स को खुद के बचाव के लिए भी पर्याप्त सुरक्षा किट उपलब्ध नहीं कराया गया। 

14 अप्रैल को मोदी ने देश को संबोधित करते हुए भी सिर्फ व सिर्फ झूठ के साथ देशवासियों के घाव पर मरहम लगाने का भरसक प्रयास किया। आत्ममुग्धता से ओत-प्रोत प्रधानमंत्री के भाषण में कोरोना वारियर्स के लिए कहीं भी पर्याप्त मेडिकल सुरक्षा की बातें नहीं थीं। हमारे भाषणबाज प्रधानमंत्री यह कब समझेंगे कि सिर्फ़ सम्मान से ही कोरोना वारियर्स नहीं लड़ सकता है, बल्कि उसे कोरोना से खुद को बचाने के लिए पर्याप्त सुरक्षा इंतजामात भी चाहिए। सिर्फ कोरोना से ही नहीं बल्कि सेनेटाइज कर रहे मजदूरों को भी सेनेटाइज करते वक्त स्पेशल पोशाक चाहिए। सफाइकर्मियों को भी स्पेशल पोशाक चाहिए। 

कोरोना वारियर्स के प्रति सरकार की लापरवाही का ही नतीजा है कि 15 अप्रैल को झारखंड के हजारीबाग जिले के विष्णुगढ़ प्रखंड के चानो गांव में सेनेटाइज कर रहे दो मजदूरों क्रमशः नागेश्वर महतो और हीरामन महतो की पीठ बुरी तरह से केमिकल से झुलस गया। मालूम हो कि इसी विष्णुगढ़ प्रखंड में दो कोरोना के पाॅजिटिव मरीज पाये गये हैं, जिस कारण कई गांवों को सेनेटाइज पंचायत के मुखिया की देखरेख में कराया जा रहा है। जब चानो गांव में मुखिया ने इन दोनों को सेनेटाइज करने का काम सौंपा, तो इन्हें कोई विशेष पोशाक (सुरक्षा किट) नहीं दिया गया।

मजदूरों ने अपने पीठ पर ही सेनेटाइजर बाॅक्स को टांगकर काम करना शुरु कर दिया, जिस कारण सेनेटाइजर बाॅक्स से कैमिकल का रिसाव होने के कारण दोनों मजदूरों की पीठ बुरी तरह से झुलस गयी। बाद में आनन-फानन में इन्हें  विष्णुगढ़ सीएचसी ले जाया गया, जहाँ डाॅक्टरों ने इन दोनों का इलाज किया। इलाज करने वाले डाॅक्टर अरूण कुमार ने बताया कि बगैर स्पेशल पोशाक धारण किये हुए सेनेटाइज करना अनुचित था, चूंकि जहरीले पदार्थ का छिड़काव सेनेटाइज करने के लिए किया जाता है।

इससे पहले भी अंतिम मार्च में हजारीबाग नगर निगम के दो-तीन कर्मचारी सेनेटाइजेशन के दौरान झुलस गये थे, जिसके बाद नगर निगम के कर्मचारियों ने काफी हंगामा भी किया था। बाद में इन कर्मचारियों को उप मेयर ने रेनकोट दिया था।

इससे पहले झारखंड में कोरोना वारियर्स के प्रति सरकार की बड़ी लापरवाही 13 अप्रैल को भी सामने आयी थी, जब बोकारो जनरल अस्पताल की लगभग 300 नर्सों ने कार्य का बहिष्कार कर दिया था। (मालूम हो कि झारखंड में कोरोना से पहली मौत इसी अस्पताल में हुई थी) इन नर्सों का अस्पताल प्रबंधन पर आरोप था कि अस्पताल में कोरोना पाॅजिटिव व्यक्ति की मृत्यु के बाद भी अस्पताल प्रबंधन ने कोरोना से नर्सों के बचाव के लिए कोई सुरक्षा इंतजाम नहीं किये हैं। यहाँ तक कि सीसीयू को सेनेटाइज भी नहीं कराया गया है।

साथ ही कोविड-19 वार्ड में नर्सों से लगातार 8 घंटे ड्यूटी करायी जा रही है जबकि डब्ल्यूएचओ के गाइडलाइन के अनुसार 4 घंटे की ही शिफ्ट कोविड-19 वार्ड में होनी चाहिए। नर्सों ने यह भी आरोप लगाया था कि कोरोना से बचाव के लिए सुरक्षा किट मांगने या फिर अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही का विरोध करने पर रजिस्ट्रेशन रद्द करने व एफआईआर करने की धमकी दी जाती है। 

हमारी सरकारें कोरोना वारियर्स की सुरक्षा के लिए कितना चिंतित हैं, झारखंड की ये दो घटनाएं तो मात्र इसका एक उदाहरण हैं। केन्द्र की सरकार हो चाहे राज्य सरकार हो, किसी को भी कोरोना वारियर्स की सुरक्षा की चिंता नहीं है। ये सरकारें सिर्फ व सिर्फ अपनी पीठ खुद से ही थपथपाना चाहती हैं। चाहे मजदूरों की पीठ झुलस ही क्यों ना जाए, इन्हें सिर्फ अपनी पीठ थपथपानी है।

आज जब पूरा विश्व इस महामारी से भयाक्रांत है और सभी देशों की सरकारें अपने कोरोना वारियर्स को भरपूर सुरक्षा इंतजाम देने की कोशिश कर रही हैं। ऐसे हालात में हमारे देश की सरकारें सिर्फ व सिर्फ भाषण बाजी से काम चलाना चाहती हैं और उनके सिपहसालार कोरोना फैलाने की जिम्मेवारी एक विशेष समुदाय के मत्थे मढ़कर सरकार को जिम्मेदारी से मुक्त कर देना चाहते हैं।

(रूपेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं और आजकल राँची के रामगढ़ में रहते हैं।)

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