राज्य सरकारों के कोर्ट जाने के बाद ही राज्यपाल विधेयकों पर कार्रवाई क्यों करते हैं? इसे रोकना होगा: सुप्रीम कोर्ट

Estimated read time 1 min read

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस तथ्य पर नाराजगी व्यक्त की कि राज्य सरकारें विधायिका द्वारा पारित विधेयकों पर राज्यपालों से निर्णय लेने के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर हैं। कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा कि राज्य सरकार के कोर्ट जाने के बाद ही राज्यपालों द्वारा विधेयकों पर कार्रवाई करने की प्रवृत्ति बंद होनी चाहिए। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि राज्यपालों को इस तथ्य से अनजान नहीं रहना चाहिए कि वे निर्वाचित प्राधिकारी नहीं हैं।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने सात विधेयकों पर राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित की निष्क्रियता से व्यथित पंजाब राज्य द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए ये मौखिक टिप्पणी की। सुनवाई के दौरान, भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को सूचित किया कि राज्यपाल ने विधेयकों पर ‘उचित निर्णय’ लिया है और शुक्रवार तक विवरण देने का वादा किया है।

इस पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि पार्टी को सुप्रीम कोर्ट क्यों आना पड़ता है? राज्यपाल तभी कार्रवाई करते हैं जब मामले सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचते हैं। इसे रोकना होगा। आप सुप्रीम कोर्ट आते हैं तब राज्यपाल कार्रवाई करना शुरू करते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। ऐसी ही स्थिति तेलंगाना राज्य में भी हुई, जहां सरकार द्वारा रिट याचिका दायर करने के बाद ही राज्यपाल ने लंबित विधेयकों पर कार्रवाई की। चीफ जस्टिस ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्यपालों को इस तथ्य से अनजान नहीं रहना चाहिए कि वे निर्वाचित प्राधिकारी नहीं हैं।

पीठ के सामने सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा कि राज्यपाल के पास बिल को सुरक्षित रखने का अधिकार है। इस पर पंजाब सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्‍ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल पूरी विधानसभा से पारित सात विधेयकों को रोके हुए हैं। वहीं, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ये दो राज्य हैं, जहां जब कि किसी को एब्यूज करना हो, तो सदन का सत्र बुला लिया जाता है। ऐसा संवैधानिक इतिहास में कभी नहीं हुआ है।

तुषार मेहता ने कहा कि राज्यपाल बिल का अध्ययन करके बिल पास कर रहे हैं। हम सारा ब्‍यौरा सुप्रीम कोर्ट के सामने रखेंगे। इस पर अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि सात बिल पास हुए। राज्यपाल कुछ कर नहीं रहे। स्पीकर ने विधानसभा को फिर से बुलाया है। राज्यपाल बाध्य हैं- वह या तो विधेयक वापस कर सकते हैं, लेकिन वह यह कहते हुए हस्ताक्षर नहीं कर रहे हैं कि सत्र खत्म होने पर आप दोबारा बैठक नहीं कर सकते। चीफ जस्टिस ने कहा कई राज्यों में इसी तरह की स्थिति देखने को मिल रही है।

पंजाब राज्य की ओर से वरिष्ठ वकील डॉ.अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि राजकोषीय प्रबंधन, जीएसटी में संशोधन, गुरुद्वारा प्रबंधन आदि से संबंधित महत्वपूर्ण विधेयक जुलाई में राज्यपाल के विचार के लिए भेजे गए थे और विधेयकों पर निष्क्रियता से शासन व्यवस्था पर असर पड़ा है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल ने अनियमितताओं का हवाला देते हुए विधेयकों पर विचार टाल दिया।

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने सदन बुलाने के तरीके की भी आलोचना की और बताया कि सदन को मार्च में अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया था लेकिन जून में फिर से बुलाया गया। मार्च में विधानसभा बुलाई गई थी, अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी गई। स्पीकर ने जून में विधानसभा की बैठक दोबारा बुलाई। क्या यह वास्तव में संविधान के तहत है? आपको 6 महीने में एक सत्र आयोजित करना होगा ना।

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि इस तरह की प्रथा संवैधानिक योजना के खिलाफ है, क्योंकि एक बार स्थगित होने के बाद सदन को इस तरह से दोबारा नहीं बुलाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सदन को फिर से बुलाया गया है ताकि सदस्य एक साथ मिल सकें और लोगों के साथ दुर्व्यवहार कर सकें और विशेषाधिकार का दावा कर सकें।

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सरकार और राज्यपाल दोनों को थोड़ी “आत्मा की खोज” करनी होगी। हम सबसे पुराने लोकतंत्र हैं और इन मुद्दों को सीएम और राज्यपाल के बीच सुलझाया जाना चाहिए।

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने केरल राज्य द्वारा राज्यपाल के खिलाफ दायर एक ऐसी ही याचिका का उल्लेख किया। वेणुगोपाल ने पीठ से अनुरोध करते हुए कहा, “राज्यपाल उन विधेयकों पर कार्रवाई नहीं करते हैं जो लोगों के कल्याण के लिए पारित किए गए हैं। राज्य द्वारा याचिका दायर करने के बारे में रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद, वह कहते हैं कि वह इसे अदालत में देखेंगे। केरल की याचिका शुक्रवार को पोस्ट करें।

पीठ ने केरल और तमिलनाडु द्वारा दायर याचिकाओं को पंजाब की याचिका के साथ शुक्रवार को पोस्ट करने पर सहमति व्यक्त की। पंजाब के मामले के संबंध में, सॉलिसिटर जनरल ने स्थिति के बारे में अद्यतन स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने पर सहमति व्यक्त की। पंजाब के महाधिवक्ता ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल ने अब लंबित सात विधेयकों में से दो लंबित विधेयकों को मंजूरी दे दी है।

पंजाब के राज्यपाल ने पंजाब राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2023; पंजाब माल और सेवा कर (संशोधन) विधेयक, 2023 और भारतीय स्टाम्प (पंजाब संशोधन) विधेयक, 2023 पर अपनी सहमति देने से परहेज किया था। 20-21 अक्टूबर को सत्र के दौरान विधानसभा में चर्चा के लिए बिल रखे गए थे। राज्यपाल ने व्यक्त किया था कि बजट सत्र के विस्तार के रूप में प्रस्तुत 20-21 अक्टूबर का सत्र “अवैध होने के लिए बाध्य” था। नतीजतन, पंजाब सरकार ने 20 अक्टूबर को दो दिवसीय सत्र छोटा कर दिया।

इनके अलावा, चार और विधेयक, अर्थात् सिख गुरुद्वारा (संशोधन) विधेयक, 2023; पंजाब विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक, 2023; पंजाब पुलिस (संशोधन) विधेयक, 2023; और पंजाब संबद्ध कॉलेज (सेवा सुरक्षा) ) संशोधन विधेयक, 2023; राज्यपाल की मंजूरी के लिए लंबित हैं। ये बिल पंजाब विधानसभा में 19-20 जून को आयोजित सत्र के दौरान पारित किए गए थे, जिन्हें राज्यपाल ने “पूरी तरह से अवैध” करार दिया था।

एक नवंबर को, पुरोहित ने पंजाब माल और सेवा कर (संशोधन) विधेयक, 2023 और भारतीय स्टांप (पंजाब संशोधन) विधेयक, 2023 को अपनी सहमति दी। हालांकि, 19 अक्टूबर को मुख्यमंत्री को लिखे एक पत्र में, राज्यपाल ने तीन धन विधेयकों का समर्थन करने से इनकार कर दिया। धन विधेयक को विधानसभा में पेश करने के लिए राज्यपाल की मंजूरी आवश्यक है।

पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के दायर याचिका में विधानसभा से पारित विधेयकों को मंजूरी के लिए राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित को निर्देश देने का अनुरोध किया है। याचिका में कहा गया है कि इस तरह की असांविधानिक निष्क्रियता से पूरा प्रशासन ठप पड़ गया है। सरकार ने दलील दी कि राज्यपाल अनिश्चितकाल के लिए विधानसभा से पारित विधेयकों को रोक नहीं सकते हैं। याचिका में पंजाब के राज्यपाल के प्रधान सचिव को पहले प्रतिवादी के रूप में रखा गया है।

याचिका में कहा गया है कि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, सरकार द्वारा दी गई सहायता और सलाह के अनुसार राज्यपाल को विधानसभा को बुलाना पड़ता है। पंजाब सरकार के कैबिनेट ने प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल से विधानसभा का बजट सत्र तीन मार्च से बुलाने की अनुमति मांगी थी। हालांकि, राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने इस बजट सत्र को बुलाने से इनकार कर दिया था। साथ ही एक पत्र लिखकर कहा कि मुख्यमंत्री सीएम के ट्वीट और बयान काफी अपमानजनक और असंवैधानिक थे। इन ट्वीट पर कानूनी सलाह ले रहे हैं। इसके बाद बजट सत्र को बुलाने पर विचार करेंगे।

गौरतलब है कि 13 फरवरी को राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर, सिंगापुर में ट्रेनिंग के लिए भेजे गए प्रिंसिपलों की चयन प्रक्रिया व खर्च समेत चार अन्य मुद्दों पर जानकारी तलब की थी। इसके जवाब में मुख्यमंत्री ने 13 फरवरी को ही ट्वीट कर राज्यपाल की नियुक्ति पर सवाल उठाने के साथ-साथ साफ कर दिया कि राज्यपाल द्वारा उठाए सभी मामले राज्य का विषय हैं।

मुख्यमंत्री ने लिखा था कि उनकी सरकार 3 करोड़ पंजाबियों के प्रति जवाबदेह है न कि केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किसी राज्यपाल के प्रति। इसके बाद से मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच उक्त पूरे मामले ने विवाद का रूप ले लिया है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

You May Also Like

More From Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments