मेवात हिंसा: सीएम मनोहर लाल किस ‘षड्यंत्र’ की बात कर रहे हैं!

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आरएसएस-भाजपा और नरेंद्र मोदी की राजनीति और रणनीति को करीब से जानने-समझने वाले असहमत लोग बखूबी जानते हैं कि नूंह, गुरुग्राम और दक्षिण हरियाणा की दंगाई हिंसक घटनाओं के मायने क्या हैं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने जिस ‘षड्यंत्र’ की बात की है, वह दरअसल क्या है।

मेवात दरअसल शुरू से ही अमन और सद्भाव वाला इलाका रहा है। यह मुस्लिम बाहुल्य इलाका है और 1947 के भारत-पकिस्तान विभाजन के वक्त भी यहां वैसे फसाद नहीं हुए थे। मेवात के लोगों ने सर छोटू राम के किसान आंदोलन के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम में भी पूरी भागीदारी की थी। भाजपा सरकार आने से पहले वे खुद को पूरी तरह महफूज मानते थे लेकिन मनोहर लाल खट्टर की अगुवाई में हरियाणा में और नरेंद्र मोदी की अगुवाई में केंद्र में भाजपा की सरकार बनी, खामोश तूफान का सिलसिला शुरू हो गया जो रफ्ता-रफ्ता मुखर होता गया और आखिरकार उग्र! गोरक्षा के नाम पर पहले-पहल धमकाया जाने लगा, पलायन के लिए कवायद शुरू की गई और फिर बेगुनाह पशु व्यापारियों को हिंसक निशाना बनाया गया।

हिंसा पहली बार मेवात की फिजाओं में इस मानिंद फैली और फैलती गई। प्रगतिशील और भाजपा विरोधी विचारधारा के लोगों ने कई बार खुलकर कहा कि मेवात बड़ी हिंसा के मुहाने पर बैठा है या बिठा दिया गया है। वही हुआ। भड़काऊ नारों वाला बेकाबू भीड़ का जुलूस और फिर हिंसा की शुरुआत। नूंह देखते-देखते बेतहाशा सुलग उठा और आग कई व्यक्तियों और बेशुमार घरों को तबाह कर गई। यकीनन दंगाई आग का कोई मजहब नहीं होता। वर्ग जरूर बन जाते हैं जो राह में आए किसी भी बेगुनाह व्यक्ति की मौत का सबब बनते हैं। हत्यारे हाथों के पीछे उजले कपड़ों वाले होते हैं। यह किससे छिपा है? दक्षिण हरियाणा में यही हुआ है।

दिल्ली की सिख विरोधी हिंसा और गुजरात दंगों को याद कीजिए। पुलिस तंत्र गैर-मौजूदगी के साथ मौजूद था। ताकि आयोगों और अदालतों को दिखाया-बताया जा सके कि दंगा रोकने की पूरी कोशिश की गई लेकिन फिर भी इतना खून बह गया। मनोहर लाल खट्टर कहते हैं कि जुलूस के साथ हथियारबंद पुलिस थी लेकिन आखिरकार ‘बेबस’ साबित हुई।

सर्वविदित है कि मेवात वस्तुतः मुस्लिम बाहुल्य इलाका है और हर दसवां घर मुसलमान मजहब से ताल्लुक रखता है। कस्बों, शहरों और गांवों में मुसलमान ज्यादा हैं तो मस्जिदों की तादाद भी कम नहीं है। मस्जिद, मंदिर, गुरुद्वारा और चर्च की श्रेणी में आते हैं। यानी पूरी तरह से धार्मिक स्थल। पुलिस तंत्र यह भी नहीं भांप पाया कि मस्जिदें दंगाइयों का निशाना हो सकती हैं। उनकी हिफाजत का कोई बंदोबस्त नहीं किया गया बल्कि कहा जाना चाहिए कि सोचा तक नहीं गया। वरना नूंह में मस्जिदों को तहस-नहस नहीं किया जाता और गुरुग्राम की एक मस्जिद में तोड़फोड़ और आगजनी करके वहां इमाम को बेहद बेरहमी के साथ पीट-पीटकर कत्ल न कर दिया जाता।

दक्षिण हरियाणा में इंटरनेट बंद हैं और पूरी जानकारी सामने नहीं आ रही। जो आ रही है वह ज्यादातर पक्षपाती मीडिया दे रहा है, जो साफ तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के साथ खड़ा है। वहां से इस सच की उम्मीद की जा सकती है?

हरियाणा का कोई शहर ऐसा नहीं जहां थोड़ी या ज्यादा मुस्लिम आबादी न हो। बुधवार की शाम इस जानकारी ने चौंकाया कि दक्षिण हरियाणा के अलावा अन्य इलाकों के मुसलमान भी बेतहाशा खौफजदा हैं। सरकार, पुलिस-प्रशासन पर से उनका विश्वास उठ गया है। भय का यह संचार दूर तक फैल रहा है। छोटे पैमाने का ध्रुवीकरण, बड़े पैमाने के ध्रुवीकरण को सशक्त करता है। हरियाणा में यही हो रहा है। और यह होना भी था। गुरुग्राम में बड़ी संख्या में देशभर से आए मुसलमान बहुराष्ट्रीय कंपनियों तक में बड़े ओहदों पर हैं। अच्छी सोसाइटियों में रहते हैं। वहां भी खौफ का वृतांत अपनी जगह बना चुका है। निश्चित तौर पर इसके नतीजे बेहद नागवार होंगे और नागवारी का यह संक्रमण देश के दूरदराज के हिस्सों तक जाएगा।

गुरुग्राम की मस्जिद में पीट-पटकर एक इमाम को मार देने की घटना महज वहीं तक महदूद नहीं है। उत्तर प्रदेश से लेकर अन्य कई इलाकों तक इस मोब लिंचिंग के संदेश को उन लोगों द्वारा भेजा गया है, जिनका हाथ हत्यारों के सिर पर है। ज्यादातर हिंदी अखबारों के पन्ने देखिए और टीवी चैनल, हरियाणा हिंसा के जरिए जो संदेश जिन्हें देना था, उन्हें दे दिया गया है और दिया भी जा रहा है। कर्फ्यू खुलेगा और सरकारी तौर पर हालात सामान्य होने की घोषणा होगी-तब पता चलेगा कि असली परिदृश्य क्या है। इतना तो तय हो ही गया है कि हिंसा की जड़ें कई वर्षों से वही जा रही थीं। समझने वाले समझ रहे थे और अंजाम देने वाले अपनी तैयारियों में लगे थे।

मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर कहते हैं कि नूंह एक बड़ा षड्यंत्र है। सवाल है कि पुलिस का खुफिया विभाग सीधा उन्हें रिपोर्ट करता है। इस बाबत निष्क्रिय क्यों था? वाया पुलिस खुफिया विभाग खट्टर को भनक थी तो जुलूस निकलने ही क्यों दिया गया। सरकार के पास क्या इतना भी कानूनी अधिकार नहीं है कि वह किसी भी जुलूस को रोक सके?

विपक्ष जब रोष-प्रदर्शन करता है तो धारा 144 लगा दी जाती है या नेताओं को उनके ही घरों में बंदी बना दिया जाता है। मामला जब संगीन हो तो क्या पहले से ऐसे कदम इसलिए नहीं उठाने चाहिएं कि जुलूस निकालने वाले पार्टी-परिवार के सदस्य हैं? इसका जवाब शासन चलाने वालों को देना ही होगा। छह महीने तक खुफिया रिपोर्टस राज्य के गृहमंत्री अनिल विज को जाती थीं। आकस्मिक फैसला लिया गया कि पुलिस का खुफिया विभाग गृहमंत्री की बजाए सीधे मुख्यमंत्री को दैनिक रिपोर्ट देगा।

गृहमंत्री को फाइलें तक नहीं देखने दी जातीं थीं। यह महज महीने भर पहले की सरगोशियां हैं। क्या किसी ‘गुप्त अभियान’ के तहत यह किया जा रहा था कि राज्य के मुख्यमंत्री पर गृहमंत्री से ज्यादा भरोसा किया जाए? मनोहर लाल खट्टर, अनिल विज से कहीं ज्यादा कट्टर और संघ के विश्वासपात्र हैं। भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भी। फिर उन्हें प्रदेश भाजपा में कहीं न कहीं अपेक्षाकृत ‘उदार’ माना जाता है।

इस सब का अर्थ बेहद गहरा है और मुख्यमंत्री की टिप्पणी की पुष्टि करता है कि नूंह घटनाक्रम किसी बड़े ‘षड्यंत्र’ का हिस्सा है। इस षड्यंत्र का ‘नकली पर्दाफाश’ भी हो सकता है। यथाशीघ्र कुछ अल्पसंख्यकों की गिरफ्तारी होगी और दूसरे समुदाय से भी एकाध कोई पकड़ा जाएगा। रासुका लगेगा और सरकार तथा पुलिस अपनी कहानी बताएगी। वृतांत का यह अध्याय तैयार किया जा रहा है। यही होगा और यही होता आया है। 2013 के बाद मुल्क के अलग-अलग हिस्सों में। ध्रुवीकरण की प्रयोगशालाएं कई प्रदेशों में इसी तरह खुली है और 2024 से पहले कई और जगह खुलेंगी।

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं।)

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