ब्रिटिश हुकूमत का भी सूरज डूबा, अब इनकी बारी-सर्व सेवा संघ वाराणसी के प्रतिरोध सभा में डॉ सुनीलम

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वाराणसी। गुजरात नरसंहार, साम्प्रदायिकता भड़काने, तानाशाही, हिंसक घटनाएं, हिंसा, झूठ-फरेब पर राजनीति करने वाले सत्ता में बने हुए हैं, जो किसी की भी नहीं सुन रहे हैं। हम लोग और देश भर में काफी प्रयास हो रहे हैं। आप लोग नतीजे देखते जा रहे हैं। अब बदलाव का वक्त आ चुका है। चूंकि, बनारस के लोगों ने मोदी को चुना है, तो उन्हें ही इनकी विदाई भी करनी पड़ेगी। कृषि बिल और किसानों की समस्याओं को लेकर हम देश भर के करोड़ों किसानों, मजदूरों, नौजवानों, बहनें, छात्र-छात्राएं और सुधीजनों ने 380 दिनों का आंदोलन चलाया। नतीजा देश ने देखा। केंद्र सरकार ने कृषि बिल को न सिर्फ वापस लिया, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी तपस्या में कमी भी दिख गई। लोकतंत्र में जनता के पास सभी ताकतें हैं। आजाद ख्याल और बेबाक बनारस को संवैधानिक तरीके से इनको जवाब देना चाहिए।

देश में गांधी मॉडल चलेगा। 13 एकड़ भूमि मुद्दा नहीं है। मुद्दा है गांधी, जेपी और विनोबा भावे के विचारों को कुचला जाना। इतना ही नहीं पूर्व राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद, पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, जय प्रकाश नारायण, डॉ राममनोहर लोहिया और जगजीवन राम पर फर्जी तरीके से जमीन हड़पने का अशोभनीय आरोप लगा रहे हैं। देश में गांधीवादी संस्थाओं और उनकी अमूल्य धरोहर को बारी-बारी से निशाना बनाकर नेस्तनाबूत किया जा रहा है। इसीलिए जनता को गांधी मॉडल, विरासत, इंडिया और राजघाट के सर्व सेवा संघ (एसएसएस) बचाने के लिए खड़ा होना पड़ेगा। सर्व सेवा संघ को बचने के लिए अनिश्चितकालीन आंदोलन आप लोग चलाइये। सरकार के खिलाफ लोगों में आक्रोश है। आज के दिन (अगस्त क्रांति) ब्रिटिश हुकूमत को भी उल्टे पांव लौटना पड़ा था और उनका भी सूरज डूबा। उक्त बातें पूर्व विधायक और किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष डॉ सुनीलम ने वाराणसी में कही। शहर के मैदागिन-बुलानाला रोड के ठीक पचास कदम पर नेहरू मार्केट में स्थित है पराड़कर स्मृति भवन।

डॉ सुनीलम, पूर्व विधायक

कुमार प्रशांत ने कहा कि देश में दो तरह की धाराएं हैं। एक गांधीजी का हिन्द स्वराज्य है तो वहीं राष्ट्रीय स्वयं संघ यानी आरएसएस जो मनुवाद का विष लेकर चलता है। बनारस में आस्था के केंद्रों को ध्वस्त कर दिया गया। इसे कॉर्पोरेट के हवाले किया जा रहा है। ये कभी देश में हासिये पर थे। जब सत्ता में आये तो मनमाना तरीके से कुछ मुट्ठी भर लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए जनमत का गला घोंट रहे हैं। अब और नहीं। इन्हें सरकार से बेदखल करने और इनको सही जगह पहुंचाने के लिए सभी को साथ आना पड़ेगा। सच, संख्या नहीं संकल्पों से लड़ता है और जीतता भी है। सर्व सेवा संघ की जंग निश्चित है। मनुवादी अपने अंजाम को तैयार रहे।

खुदाई खिदमतगार नई दिल्ली के फैजल खान ने समाज के सामूहिक जिम्मेदारी और ईमानदारी की बात की। उन्होंने कहा कि ऐसे माहौल में कोई मसीहा नहीं आएगा, लोगों को मसीहा का इंतजार भी नहीं करना चाहिए। सभी की इतनी तो समझ है कि, उनके साथ क्या अच्छा और उनकी आने वाली पीढ़ी के लिए क्या गलत किया जा रहा। ट्रेन में हत्या, मेवात, गुड़गांव और मणिपुर का खूनी खेल अब बंद होना चाहिए। हमेशा हमेशा के लिए। देश में भाईचारे, सौहार्द, विकास और खुशहाली के लिए सभी लोगों को अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाने का प्रयास करना चाहिए। जिस मेवात को गांधी जी ने बसाया था, उसे आरएसएस-बीजीपी सरकार जलाने के लिए यूं ही छोड़ दे रही है। यह शर्मनाक है। पूर्वांचल के केंद्र बनारस में सर्व सेवा संघ के कार्यालय पर कब्ज़ा और गांधीवादी साहित्य को बूटों तले रौंदना। सभी लोग देख रहे हैं। लोग इसका जवाब भी देंगे, गांधीवादी तरीके से।

उत्तर प्रदेश सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष रामधीरज

भारत छोड़ो आंदोलन दिवस के अवसर पर सर्व सेवा संघ परिसर राजघाट के संयोजक राम धीरज ने कहा कि “विनोबा भावे की प्रेरणा से स्थापित साधना केंद्र राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ परिसर को साजिशपूर्वक कब्ज़ा करने की घटना का यह सम्मेलन पुरजोर शब्दों में भर्त्सना करता है। यह घटना इस बात का प्रतीक है कि भाजपा-आरएसएस और वाराणसी प्रशासन कानून के राज के सिद्धांत की खुलेआम धज्जियां उड़ा रहा है। राजघाट परिसर पर कब्जा एक गंभीर संकट का सन्देश है। आने वाले दिनों में गांधीवादी एंव अन्य प्रगतिशील लोकतान्त्रिक संस्थाओं तथा अन्य संगठनों के लिए और चुनौतीपूर्ण होगा। बिना किसी अदालती आदेश के एसडीएसम, सदर, वाराणसी जयदेव सीएस एवं रेल अधिकारी आकाशदीप सिंह के नेतृत्व में 22 जुलाई को 2023 को लगभग एक हजार पुलिसकर्मी अपनी बूटों से सर्व सेवा संघ के परिसर को रौंद दिया। गांधी साहित्य को खुले आसमान के नीचे फेंक दिया और सर्व सेवा प्रकाशन कार्यालय को भी जबरिया बंद कर दिया। आज देशभर के कोने-कोने से सैकड़ों गांधीवादी और संविधानप्रेमी यहां आये हैं। हम लोग आरपार की लड़ाई लड़ेंगे। इस प्रतिरोध सभा में कई प्रस्ताव भी पारित हुए।

गांधी के पोस्टर लगाते लोग

लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण अभियान के प्रोफ़ेसर आनंद कुमार ने इस प्रतिरोध सभा को इतिहासिक करार देते हुए उन्होंने जेपी की मशहूर लाइन दुहराई ‘सच कहना अगर बगावत है तो हम बागी हैं.’ सेवाग्राम, त्रिवेंद्रम, कोलकाता, ओडिशा, महाराष्ट्र, तमिलनाडू, उत्तराखंड, बिहार, दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों से लोग आये हैं। बीजपी-आरएसएस देश के गांधीवादी और संवैधानिक ढांचे पर कई तरह हमला कर रही है। अच्छे दिन के नाम पर कॉर्पोरेट्स को मुनाफा और करोड़ों भारतवासियों को ठगा जा रहा है। सर्व सेवा संघ को बुलडोज कर परिसर की जमीन पर भी होटल्स, मॉल्स और विलासिता की चीजें करने-करवाने के लिए षडयंत्र रचा गया है। जिसे बनारस बखूबी समझ रहा है। बनारस के कलेक्टर और कमिश्नर संविधान की कसम खाकर पार्टी कार्यकर्ता की तरह काम कर रहे हैं। उन्हें ऐसा ही करना है तो वे पार्टी कार्यकर्ता बन जाए। पैरवी मैं बीजीपी के लोगों से कर दूंगा। गांधी या गांधी के विचारों से जो टकराता है, वे कौड़ी के तीन हो गए, अब इनकी बारी है।

सभागार में उपस्थित मणिमाला

इनके अलावा सामाजिक कार्यकर्ता मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित संदीप पांडेय ने कहा कि सीएए बिल के दौरान सिर्फ यूपी में विरोध-प्रदर्शन करने वाले 22 मुस्लिमों को मारा गया। आरएसएस देश को हिन्दू-मुस्लिम संप्रदाय में बांटकर, इनके बीच में झगड़े-फसाद करा कर सत्ता की मलाई खाने के साथ मनुवादी एजेंडा खुलेआम चलाती है। महिलाओं की बराबरी, उनके अधिकार और हिन्दू-मुस्लिम एकता की बातें उसको नागवार गुजरती है। वे नहीं चाहते कि समाज-देश में गांधीवादी लोग, साहित्य, विचारधारा व अलग-अलग महजबों के बीच प्यार और भाईचारा हो। इन संविधान को न मानाने वाले लोगों को सबसे अधिक डर गांधीजी और डॉ अम्बेडकर से लगता है। इसीलिए सर्व सेवा संघ को निशाने पर लिया गया है। चाहे जैसे भी हम सभी को गांधी, जेपी और विनोबा की विरासत को सहेजना व बचाना होगा। सांप्रदायिक आंच भड़काने वाले लोगों को बाहर का रास्ता दिखाना होगा।

इन वक्ताओं के अलावा रणसिंह परमार, लाल बहादुर राय, मणिमाला, पंकज, अफलातून, सिरोज मिट्टी बोरवाला, योगेश समदर्शी, डॉ शशि शेखर, रमेश दाने, इस्लाम हुसैन, शैख़ हुसैन, मंथन, जाग्रति राही, अरविंद अंजुम, डॉ सन्त प्रकाश और संजीव सिंह समेत कई वक्ताओं ने अपनी बात रखी। इस दौरान पराड़कर भवन का हॉल सैकड़ों नागरिकों से खचाखच भरा हुआ रहा।

(वाराणसी से पवन कुमार मौर्य की रिपोर्ट।)

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