विज्ञान सत्य है, जो धर्म और ईश्वर से मुक्त है!

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सत्य ही विज्ञान है, सत्य एक निरंतर खोज है ठीक वैसे ही विज्ञान एक निरंतर शोध है। मनुष्य वो है जिसकी ज़िंदगी का ध्येय नव सृजन हो, सत्य को साधने का संकल्प हो। सत्य को आत्मसात करने का समर्पण हो, जिसमें यह गुण नहीं हैं वो मनुष्य का शरीर लिए प्राणी मात्र हैं। वो या तो किसी के शिकार होते हैं या किसी का शिकार करते हैं। 

अक्सर यह धर्म, जाति और सत्ता के हाथों में खेलते हैं और जब सत्ता इनसे खेलती है तब वह गौरवान्वित होते हैं, अपने मज़हब, अपनी कौम, जाति पर फूले नहीं समाते हैं। किसी लोकतंत्र के वासी है तो “संख्या बल के आधार पर अहंकारी, धर्मांध और नस्ल भेदी” सत्ता का सिरमौर होता है।

तब सत्ता इनका बारी-बारी से शिकार करती है, सत्ता इनको पहले धर्म में बांटती है। जब एक धर्म के लोगों को सत्ता मार रही होती है तब दूसरे धर्म के लोग खुश होते हैं और धोखे में रहते हैं कि हमारे धर्म के लोग सुरक्षित हैं।

जिस धर्म के लोग अपने आप को महफूज समझते हैं उस धर्म में पसरी अलग-अलग जाति-नस्ल के लोगों को जब सत्ता मारती है तब जिस जाति पर हमला नहीं हो रहा होता उस जाति वाले खुश होते हैं अरे हम सुरक्षित हैं।

पर सत्ता इनको बारी-बारी अपना शिकार बनाती है क्योंकि इस प्रकार के लोग और इस प्रकार की सत्ता आत्महीनता से जनित होती है। झूठ, षड्यंत्र और पाखंडों पर चलती है, सत्य से कोसों दूर। हिंसाग्रस्त यह कौम अपना विनाश करने के साथ देश और दुनिया का विध्वंस करती है। 

विज्ञान निरन्तर शोध है यानी धारणाओं का शुद्धिकरण, प्रकृति विज्ञान है। मनुष्य ने प्रकृति की चंद प्रक्रियाओं के सूत्र खोज लिए हैं। सूत्र खोजने का मतलब है प्रकृति किस पद्धति से उन प्रक्रियाओं को संचालित करती है या फिर संचालित होती है। जैसे पृथ्वी पर सेब नीचे क्यों गिरता है, हवा की रफ़्तार, ध्वनि वेग आदि।

मनुष्य प्रकृति से भयाक्रांत है। जो समूह भयाक्रांत है वो ईश्वर की शरण में और उसकी गर्दन धर्म के हाथ में होती है। पर एक छोटा सा तबका प्रकृति के आचरण पर अभिभूत है। जो दिन रात इसके रहस्यों को जानने के लिए शोधरत है, ऐसे ही चंद शोधरत व्यक्तियों ने चंद प्रकृति के सूत्र को मनुष्य के साथ साझा किया। उन सूत्रों को समाज आज विज्ञान कहता है।

उन सूत्रों के सहारे मनुष्य ने उड़ान भरी, मशीनों का निर्माण किया। चांद और ग्रहों के क्रियाकलाप को जानने की शुरुआत की और निरन्तर शोध जारी है।

विज्ञान तत्व है। विज्ञान के तत्वों से तकनीक ईजाद हुई। तकनीक से उपभोग की सामग्री बनी जैसे टीवी, कार, सेटलाईट, चंद्रयान आदि। अब जो वैज्ञानिक हैं उन्होंने धर्म का, ईश्वर का, सत्ता का, जात-पात का, नस्लभेद का विरोध किया कई सूली चढ़ गए और कईयों को देश निकाला मिला।

क्योंकि तत्व एक निरंतर चिन्तन है जबकि तकनीक एक प्रोडक्ट बनाने का निश्चित क्रियाकलाप है। जैसे कोई कार मैकेनिक, पंखा ठीक करने वाला और जैसे कार चलाने वाले। मजे की बात है जिनके शोध पर यह मशीन बनी वो ईश्वर को नहीं मानते थे पर कार, बस, ट्रेन चलाने वाले उसको चलाने से पहले भगवान की पूजा करते है।

विज्ञान सत्य है और तकनीक निर्मित पदार्थ भोग। तत्व को साधना कठिन और निरंतर चैतन्यशील अवस्था में रहना उससे भी कठिन। इसलिए शिक्षा के नाम पर सत्ता ने भोक्मपट्टी वाले पाठयक्रम बनाए, उसे पढ़ाने वाले कर्मचारी तैयार किये।

दुनिया पढ़ गई, पढ़े लिखे लोगों ने तकनीक से निर्मित पदार्थो का भोग लगाया। उसे विकास समझा, और पाखंड को निरंतर बढ़ावा दिया। हास्यास्पद है ना कि विज्ञान पढ़ाने वाले जनेऊधारी या चर्च के नियमित भक्त हो। 

उसी प्रकार चंद्रयान एक मशीन है, उसे छोड़ने से पहले किसी भगवान विशेष के दर्शन करना। उसके चांद पर उतरने के लिए पूजा या नमाज अदा करना। उस मशीन को बनाने या उस प्रकिया को समझने वाले स्त्री–पुरुष वैज्ञानिक हों यह एक सवाल है? पर प्रवीन टेक्नोक्रैट हैं यह निश्चित है! जो दुनिया को भ्रमित करते हैं क्योंकि टेक्नोक्रैट तकनीक जानते हैं विज्ञान को नहीं।  

आज जिसे हम पढ़ा लिखा तबका कहते हैं वो धर्मांध और ईश्वर में लिप्त है, जबकि विज्ञान धर्म और ईश्वर मुक्त है ! 

आज त्रासदी यह है की टेक्नोक्रैट वैज्ञानिक होने का पाखंड कर रहे हैं, और सत्ता की गोद में बैठकर नित्य नए हथियार बनाकर दुनिया के बच्चों की शिक्षा, घर, भोजन और जीने का अधिकार छीन रहे हैं। अमेरिका की आर्थिक ताकत हथियारों की विक्री है। दुनिया में युद्ध का शतरंज खेल रही महाशक्ति हथियारों की अंधी दौड़ में है जिसे हवा दे रहे हैं टेक्नोक्रैट ! 

हथियार आज तक दुनिया में कहीं शांति नहीं ला पाया। किसी देश की सेना कहीं शांति स्थापित नहीं कर पाई। अगर शांति स्थापित कर पाती तो दुनिया से फ़ौज समाप्त हो जाती। दरअसल मनुष्य मूलत: हिंसक है, वो सत्य से मुक्त नहीं आतंकित होता है।

सत्य को सूली चढ़ाता आया है। सत्य और अहिंसा पर चलने वालों की हत्या करता आया है। जबकि सत्य, अहिंसा और विज्ञान इंसानियत है और इंसान के जीवन का सूत्र। पर अफ़सोस मनुष्य इंसान नहीं हो पाता बस मनुष्य का शरीर लिए एक प्राणी भर रहता है!

(मंजुल भारद्वाज रंगकर्मी हैं और इंदौर में रहते हैं।)

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