डूसू चुनाव: फीस वृद्धि और छात्राओं की सुरक्षा बना मुद्दा

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नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय में कोरोना महामारी के लगभग तीन साल बाद छात्रसंघ चुनाव होने जा रहा है। चुनाव 22 सितंबर को होंगे। यूनिवर्सिटी कैंपस में लगते नारे किसी को यह बताने के काफी हैं कि सभी छात्र संगठन अपने-अपने मुद्दों के साथ मैदान में उतर पड़े हैं। इसकी झलक विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन से बाहर निकलते ही दिखने लगती है। चारों तरफ लगे उम्मीदवारों के पोस्टर, रास्ते में पड़े पैम्फलेट और आपस में होती बातचीत यह बताने के लिए काफी है कि तीन साल बाद डूसू का चुनाव हो रहा है।

जैसे-जैसे मैं यूनिवर्सिटी की तरफ बढ़ रही थी। वैसे-वैसे चुनाव का विजुअल और साफ होता जा रहा था। सड़क पर बड़ी-बड़ी गाड़ियां और उनमें लगे बड़े-बड़े पोस्टर यह किसी भी तरह से छात्रसंघ के नहीं बल्कि यह विधानसभा और लोकसभा चुनावों का आभास दिला रहे थे। जहां धन और बल का भरपूर इस्तेमाल किया जाता है।

यूनिवर्सिटी के आर्ट्स फैकल्टी में कुछ स्टूडेंट्स अपने में मस्त थे। कुछ क्लास करने जा रहे थे और कुछ पूरी तरह से अपनी ताकत को लगाकर अपने कैंडिडेट के लिए नारा लगा रहे थे।

एनएसयूआई ने जारी किए दो घोषणापत्र

फिलहाल सभी छात्र संगठनों ने अपना-अपना मैनिफेस्टो जारी कर दिया है। जिसमें एनएसयूआई ने दो घोषणापत्र जारी किए हैं। जिसमें एक में सामान्य मुद्दे हैं और दूसरे में महिलाओं के मुद्दों को उठाया गया है।

एबीवीपी ने सामान्य मुद्दों के साथ इस बार छात्रों से ऑनलाइन सुझाव मांगे थे। वहीं दूसरी ओर AISA और SFI के प्रत्याशी भी चुनाव मैदान में हैं। जहां सामान्य चुनावी मुद्दों के साथ-साथ महिलाओं की सुरक्षा और फीस वृद्धि पर जोर दिया गया है।

इन घोषणापत्र के बारे में आम छात्र के क्या सोचते हैं यह जानने के लिए मैं दिल्ली विश्वविद्यालय के आर्ट्स फैकल्टी पहुंची। चारों तरफ खड़ी बड़ी-बड़ी गाड़ियां और पुलिस बैरिकेट्स यह बताने के लिए काफी थे कि यह कोई सामान्य चुनाव नहीं है। यहां धन का भरपूर इस्तेमाल हो रहा है।

यूनिवर्सिटी की एक साइड वाली सड़क को बैरिकेट्स से बंद कर दिया गया था। जहां से आम लोगों का आना जाना बंद था। मैं दूसरी तरफ से फैकल्टी में आई। इस बार महिलाओं की सुरक्षा को बड़ा मुद्दा बनाया गया है। इसलिए हमने इस बारे में छात्राओं से जानना चाहा कि वह क्या चाहती हैं इस चुनाव से।

यूनिवर्सिटी में होता है जातिगत भेदभाव

फिलहाल इस मामले में ज्यादातर लड़कियों ने बात करने से ही मना कर दिया। इसी बीच हमें संस्कृत में एमए कर रही मोहिनी गौतम मिली। जो अपने डिपार्टमेंट की तरफ जा रही थी। वह हमसे बात करने को तैयार हुईं। उसका मानना है कि यह चुनाव कम दिखावा ज्यादा है। जहां बड़ी-बड़ी गाड़ियां लाकर गरीब बच्चों को नीचा दिखाने की कोशिश है।

वह इस बात से नाराज हैं कि इस तरह के माहौल से पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है। मोहिनी कहती हैं कि हमें स्वच्छ भारत अभियान पढ़ाया जा रहा है। लेकिन यहां सबसे ज्यादा गंदगी पैम्फलेट की है। यही लोग पूरे कैंपस को गंदा कर रहे हैं।     

वह कहती हैं कि “यूनिवर्सिटी के बाहर डीयू के टीचर्स प्रोटेस्ट कर रहे हैं। सभी लोग जानते हैं कि यह प्रोटेस्ट जाति उत्पीड़न को लेकर हो रहा है। यह बात सच है कि यूनिवर्सिटी में जातिगत भेदभाव तो होता है। लेकिन दुख की बात है कि इस पर कोई बात नहीं करता है।”

बुर्के वाली लड़कियों को आतंकवादी की तरह देखते हैं

इसके बाद मुझे लगा कि देश में इस वक्त अल्पसंख्यकों को लेकर जैसा माहौल है और पिछले कुछ समय में हिजाब को लेकर जैसी बहस चल रही है। ऐसे में मुस्लिम छात्राओं से बात करने की जरूरत है। आखिर इस चुनाव में उनकी क्या मांग है।  

इसके लिए मैं उर्दू विभाग की तरफ गई। जहां कुछ लड़कियों ने बात करने से मना कर दिया। उनको लगता है कि अगर वह कुछ बोलेंगी तो उनके साथ कुछ भी हो सकता है। जिस तरह से देश में माहौल है चुप रहने में ही भलाई है। लेकिन आरिफा बात करने को तैयार हो गईं। वह कहती हैं कि कई जगहों में बुर्का पहनना मना हैं यहां तक कि डीयू में भी हिजाब की मनाही है। जबकि यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है। इसके लिए हमें नहीं रोकना चाहिए।

“यह एक ऐसा मुद्दा है। जिस पर चुनाव के दौरान चर्चा होनी चाहिए थी। लेकिन अफसोस इस पर कोई बात नहीं कर रहा। जबकि वोट डालने वालों में मुस्लिम स्टूडेंट्स की संख्या भी अच्छी खासी है। इसी यूनिवर्सिटी में बुर्के वाली लड़कियों को ऐसे देखा जाता है जैसे कि वह आतंकवादी हो।”

महिलाओं की सुरक्षा को लेकर वह बात करते हुए कहती हैं कि पिछले दिनों में कॉलेजेज में क्या हुआ यह सबने देखा है। यह बहुत बड़ा मुद्दा है। यूनिवर्सिटी में कोई भी अंदर आ जा रहा है। किसी के आई कार्ड की जांच नहीं होती। जबकि इस मुद्दे को तो प्रमुखता से उठाना चाहिए था।

सफाई पर नहीं होती कोई बात

लॉ की एक छात्र ने नाम न लिखने की शर्त पर हमसे बात करते हुए सफाई के मुद्दे को सबसे अहम मुद्दा बताया। उनका कहना था कि महिलाओं को सबसे ज्यादा इंफेक्शन टॉयलेट से ही होता है। लेकिन यूनिवर्सिटी में इस बात पर एकदम भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है। बाथरूम गंदे रहते हैं। उनसे बदबू आती रहती है। इससे लड़कियों के बीमार होने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। फिर भी कोई भी पार्टी इस मुद्दे पर बात नहीं कर रही है।

आपको बता दें कि इस बार चुनाव 22 सितंबर को होने वाले हैं। 14 सितंबर को सभी उम्मीदवारों ने अपना नामांकन भर दिया है। डूसू में सीधी टक्कर एबीवीपी और एनएसयूआई के बीच है। जिसमें यह ऐलान किया जा गया है कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भी यह चुनाव कई मायनों में खास है। इस बार कुल 97 उम्मीदवारों ने नामांकन भरा है।

(पूनम मसीह की रिपोर्ट।)

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