(दिल्ली के शाहीन बाग में दो महीने से भी अधिक वक्त से सीएए को वापस लेने की मांग पर जो धरना चल रहा है, उसकी असल जान यहां बैठी बुजुर्ग दादियां हैं। सुप्रीम कोर्ट की ओर से पिछले दिनों शाहीन बाग का रास्ता खुलवाने की कवायद शुरू हुई तो पता चला कि रास्ता तो यूपी की योगी सरकार और दिल्ली की अमित शाह पुलिस ने कुछ जगहों से साजिशन बंद कर रखा था ताकि लोगों को बेवजह परेशानी हो और समाज में फूट पड़े। बातचीत के इसी दौर में राइजिंग राहुल ने शाहीन बाग की दादियों – आसमां बेगम और सरवरी से बात की। प्रस्तुत है प्रमुख अंश : संपादक)
आप लोग अपने बारे में बताइए। पहले बड़ी दादी अपने बारे में बताएंगी, उसके बाद छोटी दादी अपने बारे में बताएं।
आसमां खातून : मेरी उम्र नब्बे में चार साल की कमी है। मूलरूप से मैं सीतापुर, बिहार की रहने वाली हूं। जब देश को आजादी मिली, तब मैं पंद्रह साल की थी। हम बापू के जुग-जमाने के हैं।
सरवरी : और मेरी उम्र है 75 साल। मैं यहीं देवबंद की रहने वाली हूं, जहां दारुल उलूम है। दिल्ली में रहते हमें 25 साल हो गया। इन 25 सालों में से पिछले दो महीने से अधिक वक्त यहीं इसी रोड पर कटा है।
आप लोगों की मांगें क्या-क्या हैं?
आसमां खातून : बस एक ही मांग है हमारी, कोई दो मांग नहीं है। दो महीने आठ दिन हो गया। हमारी मांग यही है कि ये जो काला कानून सीएए लाए हैं उसे वापस ले लें। जिस एनआरसी की बात कर रहे हैं, उसके लिए लिखकर दे दें कि एनआरसी नहीं होगी, हम लोग रोड पर से उठ जाएंगे।
सरवरी : सीएए, एनआरसी और एनपीआर अपना वापस लो काला कानून। हम इसीलिए यहां बैठे हैं और इसकी वापसी के बगैर हम यहां से नहीं उठने वाले।
और अगर आप लोगों की मांग पूरी न हुई तो?
आसमां खातून : अगर वापस नहीं लेते तो इसी जगह पर रहेंगे। मर जाएंगे, यहीं पर इसी धरती में समा जाएंगे, मगर छोड़ेंगे नहीं। यह मांग पूरी न हुई तो हम यहां से हरगिज नहीं हटने वाले।
सरवरी : जब तक हमारी नागरिकता पूरी तरह से सुरक्षित नहीं होती है, हम यहां से नहीं हटेंगे।
और आप लोगों को सरकार ने जबरदस्ती हटा ही दिया तो? तब क्या करेंगी? तब क्या होगा?

सरवरी : हम नहीं उठेंगे। हम गोली खाने को बैठे हैं। हम सिर फुड़वाने को बैठे हैं। जब काला कानून हटाएंगे, तभी हम उठेंगे। मार-पीटकर या जबरदस्ती उठाना चाहते हैं तो ये तो उनके अख्तियार में है ही।
अभी तक आप लोगों से बात करने कोई आया?
सरवरी: सुप्रीम कोर्ट की ओर से यही दो लोग दो दिन से आ रहे हैं और ये भी सड़क की ही बात कर रहे हैं, सीएए या एनआरसी हटाने की तो बात कर ही नहीं रहे हैं। सरकार की ओर से तो अभी तक कोई बात करने नहीं आया।
इतनी उम्र हो गई आप लोगों की, जिस तरह से अभी आप लोग घर से बाहर निकलकर सड़क पर बैठी हैं, जीवन में ऐसा कभी पहले भी हुआ है?
आसमां खातून : कभी नहीं। हम सबने बाहर की दुनिया को अभी तक नहीं देखा। चार आने का बिस्कुट भी हम नहीं चीन्हे हुए हैं ड्योढ़ी-दुकान से। घर में एकदम दिन-रात बंद रहते हैं। बाहर हम लोग कभी नहीं निकले। यह पहली बार है।
सरवरी : मैं आज तक किसी भी मुद्दे को लेकर घर से बाहर नहीं निकली, यह पहली बार है कि जब हम इस तरह से घर से बाहर निकलकर सड़क पर बैठे हैं।
सीएए को लेकर आपके मन में क्या क्या चिंताएं हैं?
आसमां खातून : सबको कहते हैं कि बाहर के आदमी को बुलाएंगे, बाहर के आदमी को घर में लाएंगे। उनको बुलाकर यहां घर दिलाएंगे। बाहर के आदमी को घर में लाएंगे तो आगे आने वाली नस्ल को तो तकलीफ होगी। हमारी नस्लें कहेंगी कि हमारा बाप-दादा कैसा था कि तब कुछ नहीं बोला। तो आज नहीं बोलेंगे, आज नहीं बैठेंगे तो हमारी आने वाली नस्ल को तकलीफ होगी, वो हमको बोलेंगे।
सरवरी : जब हमें नागरिकता नहीं देंगे, फिर हमारा क्या उठेगा यहां से? हमें तो ये एकदम बीच में लाकर घेर रहे हैं। जो असम का हाल कर रहे हैं, वही हमारा हाल होगा। हमें नागरिक नहीं बना रहे हैं और बाहर वालों को नागरिक बना रहे हैं। बाहर वालों को बुला-बुलाकर नागरिकता दी जा रही है और अपने सड़क पर हैं।
सीएए का कानून आप लोगों को पता है?
आसमां खातून : जो जानते हैं, वो सानते हैं। जो नहीं जानते हैं, वह नहीं सानते हैं। लेकिन हम कहते हैं कि यह सारे संविधान का नुकसान है। यही बात बोलते बोलते मुंह दुख गया है हमारा। इतनी उम्र हो गई है, संविधान का नुकसान हो रहा है, यह बात बोलते-बोलते गला सूखने लगता है। मगर हमारी कोई सुनता ही नहीं।
सरवरी : हमारे संविधान में ऐसा नहीं है। ये हमारा देश है। हम सब हिंदुस्तानी हैं।
अगर आपको सीधे सरकार से कुछ कहना हो तो क्या कहेंगी?
सरवरी : जब हमने वोट दिए थे, जब हम चुनाव में मतदान करने गए थे, तब हमारी नागरिकता पूछते कि तुम भारत के नागरिक हो कि नहीं हो। तब कहते कि अगर तुम नागरिक हो, तभी मैं तुम्हारा वोट लूंगा। मगर तब तो किसी ने कुछ पूछा नहीं, चुपचाप हमारे वोट पर वोट लेते गए। और जब वोट ले लिए, जब सरकार बन गई, तब हमारी नागरिकता पूछी जा रही है कि अब बताओ, कहां के रहने वाले हो? यहीं के हो या कहीं बाहर से आए? ऐसा प्रधानमंत्री मैंने कभी नहीं देखा, जैसा ये प्रधानमंत्री अभी है।