मालेगांव विस्फोट कांड के आरोपी कर्नल पुरोहित को बरी करने की कोशिशों का पीड़ितों के परिजनों ने पत्र लिखकर किया विरोध

नई दिल्ली। मालेगांव 2008 बम विस्फोट कांड के पीड़ितों ने लोकसभा की याचिका समिति को एक पत्र लिखा है, जो पूर्व मंजूरी प्राप्त किए बिना सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ आपराधिक मामले शुरू करने के संबंध में एक आवेदन पर अगले सप्ताह मामले में आरोपी लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित की सुनवाई करने वाली है। उन्होंने सुनवाई का विरोध करते हुए इसे टालने या वापस लेने की मांग की है और कहा है कि जब मामले की सुनवाई अदालत के समक्ष हो रही हो तो पैनल ऐसी याचिका पर विचार नहीं कर सकता।

कर्नल पुरोहित मालेगांव 2008 विस्फोट कांड के उन सात आरोपियों में से एक हैं, जो विशेष न्यायालय मुंबई में चल रहे मुकदमे का सामना कर रहे हैं। लोकसभा की यह समिति 25 अक्टूबर को कर्नल पुरोहित का पक्ष सुनने वाली है।

लोकसभा समिति आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) की धारा 197 के अनुसार अभियोजन के लिए पूर्व मंजूरी प्राप्त किए बिना सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ आपराधिक मामले शुरू करने के मुद्दे पर प्रतिनिधियों की सुनवाई कर रहा है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनके आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन करते समय किए गए किसी कार्य के लिए उन्हें लक्षित नहीं किया जाता है, एक सक्षम प्राधिकारी से लोक सेवकों पर मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी की आवश्यकता होती है।

दरअसल, सरकारी कर्मचारियों को कानून के तहत कुछ संरक्षण प्राप्त है। सेवा में रहने के दौरान उनके द्वारा किए गए अपराध पर संबंधित विभाग से मुकदमा चलाने के लिए अनुमति लेनी होती है। लेकिन लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित का मामला बिल्कुल अलग है। सरकारी सेवा में रहते हुए कोई जघन्य कृत्य करता है तो वह इस तरह के संरक्षण की उम्मीद नहीं कर सकता है।

पीड़ितों की ओर से वकील शाहिद नदीम द्वारा समिति के अध्यक्ष को एक पत्र भेजा गया था जिसमें कहा गया था कि पुरोहित की सुनवाई करने वाला पैनल अस्वीकार्य है क्योंकि मामले की सुनवाई चल रही है। “…आरोपी लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित के विचार को सुनना न्यायपालिका में हस्तक्षेप और भारतीय न्यायिक प्रणाली को कमजोर करने जैसा होगा। चूंकि मामला विचाराधीन है, इसलिए मेरा विनम्र अनुरोध है कि उनके विचार के संबंध में 25 अक्टूबर, 2023 की सुनवाई को स्थगित कर दिया जाए या वापस ले लिया जाए।”

पत्र में कहा गया है कि यदि पैनल किसी विचाराधीन मामले में विभिन्न अदालतों द्वारा आरोप पत्र, साक्ष्य और मामले में अन्य निर्णयों पर विचार किए बिना उनकी बात सुनता है और अपनी राय व्यक्त करता है, तो इससे मुकदमे में पूर्वाग्रह पैदा हो सकता है।

विशेष न्यायाधीश एके लाहोटी मुंबई में हुए विस्फोट मामले की रोजाना सुनवाई कर रहे हैं। मामला अंतिम निष्कर्ष के करीब है और अदालत वर्तमान में सीआरपीसी की धारा 313 के तहत आरोपियों के बयान दर्ज कर रही है।

पत्र में यह भी कहा गया है कि पुरोहित के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी के मुद्दे को बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस साल जनवरी में अपने आदेश में निपटाया था। अदालत ने पुरोहित की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने इस आधार पर मामले से बरी करने की मांग की थी कि उनके खिलाफ आरोपी के रूप में मुकदमा चलाने के लिए कोई वैध मंजूरी नहीं थी।

पत्र में उच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने कहा था कि “अभिनव भारत” नामक समूह की कथित बैठकों में भाग लेने के दौरान वह भारतीय सेना के एक अधिकारी के रूप में कर्तव्य का निर्वहन नहीं कर रहे थे, जहां विस्फोट की साजिश रची गई थी। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के रिपोर्ट के आधार पर अदालत ने कहा कि विस्फोट का कथित कृत्य, जिसमें मालेगांव में छह लोग मारे गए और 100 से अधिक घायल हो गए, उनके आधिकारिक कर्तव्य से पूरी तरह से असंबंधित है।

पत्र में कहा गया है कि पुरोहित को समिति के बुलावे से पीड़ितों के बीच यह धारणा बनी है कि उन्हें मामले में फंसाए जाने के दावों पर सुनवाई की जाएगी, जबकि उच्च न्यायालय ने उन्हें आरोपमुक्त करने से इनकार कर दिया है, और इसलिए सुनवाई को स्थगित या वापस लेने की मांग की गई है।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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