भारतीय सेना की वर्दी, केवल कपड़े नहीं होती- वह एक प्रतीक है: निष्ठा, बलिदान और मातृभूमि के प्रति अदम्य प्रेम…
सरहद की माटी में दफ़्न वो सवाल जो अब उभरने लगे हैं
हिंदुस्तान एक पुर-सुकून मुल्क है-मगर ख़ामोश नहीं। इसकी रगों में ठहराव है, मगर बेहोशी नहीं। इसकी सरज़मीं पर अमन की…
जंग जश्न नहीं, जनाब- टीआरपी के बाजार में बिकता हुआ मातम है!
जंग कोई तमाशा नहीं होती, जिसे एंकरों की जुबान से शाम के शो की तरह पेश किया जाए। ये कोई…
हिफ़ाज़त का रंग न मज़हब देखता है, न जात – ऑपरेशन सिंदूर की गवाही
कुछ लम्हे अल्फ़ाज़ नहीं मांगते, वो ख़ुद तहरीर बन जाते हैं। ऑपरेशन सिंदूर भी ऐसा ही एक लम्हा था- जब…
सरहदें चुप हैं, मगर मोहब्बत पुकार रही है।
जब सुबहें मातम में लिपटी हों और शामें ख़ून की आहट लिए लौटें, जब फ़िज़ाओं में शहनाइयां नहीं, सायरनों की…
जाति की दीवारें गिराने के लिए पहले उन्हें गिनना ज़रूरी है- आंकड़ों में दबी आज़ादी की दस्तक
अगर किसी मुल्क की रूह पर सबसे गहरा ज़ख्म है, तो वो है- इंसानों की जबरन बनाई गई हैसियतें। वो…
जातीय जनगणना: लोकतंत्र के आईने में बराबरी की मुकम्मल तस्वीर की तलाश
यह वक़्त इतिहास के उस मोड़ पर खड़ा है जहां आंकड़े सिर्फ़ संख्या नहीं, सदियों से दबे हुए दर्द की…
वफ़ादारी की अदालत में मज़हब का कटघरा
हर बार जब सरहद पार से कोई ख़बर आती है, इस मुल्क़ का मुसलमान सांस थाम लेता है। दिल की…
जब ज़मीर घायल हो और ख़बरें ख़ामोश- पहलगाम की पुकार और पर्दानशीं हक़ीक़त
“ज़ख़्म अगर शहर की दीवारों से रिसने लगें, तो समझ लीजिए कोई ख़ामोशी क़त्ल कर दी गई है।” भारत की…
जहां मोहब्बत के फूलों को नफ़रत की गोलियों से रौंदा गया- पहलगाम की रूह रोती रही
बर्फ़ से ढकी वादियां, झीलों की तह में छुपे नर्म जज़्बात, और हवा में घुली सुकून की सरगोशियां- कश्मीर की…