राजस्थान में बागी बिगाड़ सकते हैं भाजपा का खेल, वसुंधरा की उपेक्षा भी पड़ सकती भाजपा पर भारी

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नई दिल्ली। राजस्थान विधानसभा का चुनाव 25 नवंबर को होगा। राज्य में मुख्य रूप से कांग्रेस और भाजपा में ही लड़ाई है। कांग्रेस सत्ता में है तो भाजपा विपक्ष में है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सत्ता में रहते हुए आम जनता के लिए कई ऐसी योजनाओं को शुरुआत की है, जो दूसरे राज्यों के लिए भी मिसाल है। मसलन, गहलोत सरकार की ‘चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना’ को पूरे देश में प्रशंसा मिली थी। कांग्रेस ने अपनी चुनावी घोषणाओं में महिला, युवा, बेरोजगार, मजदूर और किसानों के लिए अलग-अलग घोषणाएं कर रही है। जनहित की योजनाओं के बल पर कांग्रेस एक बार फिर से सत्ता पाने की आशा कर रही है। पार्टी राज्य में नेतृत्व संकट को हल करने का दावा कर रही है।

दूसरी तरफ राज्य के सियासी मैदान में भाजपा है। जहां नेतृत्व को लेकर भारी गुटबाजी है। और राज्य भाजपा अपने शीर्ष नेतृत्व के सहारे चुनावी मैदान में है। भाजपा को अपने नेतृत्व से ज्यादा इस बात पर भरोसा है कि राज्य की जनता प्रत्येक पांच साल पर सत्ता बदल देती है। इस तरह से वह बिना कुछ किए सत्ता परिवर्तन की हकदार है। भाजपा पांच राज्यों के चुनाव में अपनी सबसे मजबूत स्थिति राजस्थान में मान रही है। लेकिन धरातल पर इसके संकेत कम मिल रहे हैं।

राजस्थान में क्या है वसुंधरा फैक्टर

पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे राजस्थान भाजपा का प्रमुख चेहरा हैं। लेकिन शीर्ष नेतृत्व लगातार उनकी उपेक्षा कर रहा है। पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं घोषित किया। दरअसल, मोदी के सत्ता में आने के बाद से ही वसुंधरा का केंद्रीय नेतृत्व से संबंध बिगड़ गए।

केंद्रीय नेतृत्व उन्हे डराना और झुकाना चाहता है, लेकिन वह शीर्ष नेतृत्व से सामने झुकने की बजाए उसे ही डरा रखा है। केंद्रीय नेतृत्व के इस डर के पीछे वसुंधरा का जनाधार है। वसुंधरा राजे दो बार मुख्यमंत्री बनीं। एक बार 2003 में उनके नेतृत्व में 120 सीटें आईं तो 2013 में उन्होंने 163 सीटों के साथ सियासी सुनामी ला दी थी। जबकि भैरों सिंह शेखावत तीन बार सीएम बने। एक बार जनता पार्टी के समय जब 152 सीटें आईं। इसके बाद भाजपा के नेता के तौर पर वे दो बार सीएम बने, जिनमें एक बार 1993 में भाजपा महज 95 सीटें ला पाई और 1990 में भाजपा को 85 सीटें मिली थी। जबकि बहुमत के लिए 101 सीटों की जरूरत थी।

इस तरह शेखावत भी गठबंधन और तोड़-फोड़ की राजनीति कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आशीन होते रहे। इस तरह वसुंधरा ने अपने राज्य में सबसे अधिक जनाधार वाला नेता साबित कर चुकी हैं। लेकिन शीर्ष नेतृत्व उन पर विश्वास करना नहीं चाहता।

राजस्थान में भाजपा ने लगाया कई चेहरों पर दांव

भाजपा में अंदरूनी सत्ता संघर्ष चरम पर है। 25 नवंबर के विधानसभा चुनावों के लिए मैदान में उतारे गए उम्मीदवारों की सूची में इसकी झलक मिलती है। भले ही भाजपा यह कबूल करने से कतराएं लेकिन विवाद साफ दिखाई दे रहा है कि भाजपा संगठन में पीढ़ीगत बदलाव लाने के नाम पर वसुंधरा के पर कतरने की तैयारी में है। वसुंधरा को भी इसकी खबर है और वह अपनी तरफ से पार्टी का यह दांव सफल न होने देने के लिए कमर कस कर मैदान में हैं।

भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व यानि पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह वसुंधरा राजे को पसंद नहीं करते। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्ढा की कोई बिसात ही नहीं है, वह मोदी-शाह के इशारे पर ही कोई फैसला लेते है। मोदी-शाह की जोड़ी राजस्थान में वसुंधरा के स्थान पर किसी दूसरे व्यक्ति को पार्टी की कमान सौंपना चाहते हैं। इस समय मोदी-शाह के इशारे पर करीब आधा दर्जन लोग अपने को मुख्यमंत्री का चेहरा मान रहे हैं। ये सारे चेहरे वसुंधरा के विरोधी है। पार्टी राजसमंद से सांसद दीया कुमारी को विधानसभा चुनाव लड़ा रही है। दीया कुमारी जयपुर राजघराने से हैं। उनके साथ युवाओं की भीड़ भी चल रही है। लेकिन अभी वसुंधरा की बराबरी करना उनके बूते की बात नहीं है।

इसी तरह भाजपा सात सांसदों को विधानसभा का टिकट दिया है। जिसमें-दीया कुमारी, किरोड़ी लाल मीणा,  राज्यवर्धन राठौड़, बाबा बालकनाथ, देवजी पटेल, भागीरथ चौधरी और नरेंद्र कुमार हैं। वसुंधरा के अलावा दीया कुमारी, गजेंद्र सिंह शेखावत, राज्यवर्धन राठौड़ और किरोड़ी लाल मीणा के नाम पर भ्रम फैलाया जा रहा है कि चुनाव जीतने पर ये मुख्यमंत्री बन सकते हैं।     

नेतृत्व मामले में भाजपा का उहापोह

वसुंधरा राजे राजस्थान की प्रभावी नेता हैं। दरअसल, कर्नाटक में भाजपा की हार में एक बड़ी वजह बी. एस. येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाना भी रहा था, क्योंकि पार्टी में उनके कद और प्रभाव वाला दूसरा नेता नहीं था। लगभग यही स्थिति राजस्थान में वसुंधरा राजे को लेकर मानी जा रही है कि वह पार्टी के भीतर व बाहर सबसे प्रभावी नेता हैं। ऐसे में उनकी नाराजगी पार्टी के समीकरण बिगाड़ सकती है। वैसे भी वसुंधरा खेमा उनको मुख्यमंत्री का चेहरा न बनाने पर अपनी नाराजगी जाहिर करता रहा था। चूंकि पार्टी ने किसी को भी भावी मुख्यमंत्री का चेहरा तय नहीं किया है, इसलिए वसुंधरा समर्थक अभी शांत हैं। 

लेकिन शीर्ष नेतृत्व मुख्यमंत्री पद की सशक्त दावेदार वसुंधरा राजे और उनके वफादारों को साफ संदेश दिया है कि राजे को अब पार्टी की रणनीति के हिसाब से चलना होगा और वे अपनी योजनाओं के मुताबिक नहीं चल सकती हैं।    

12 सीटों पर बगावत की स्थिति

सांसदों को विधानसभा का टिकट देने और कुछ नेताओं के टिकट कटने से पार्टी में बगावत की स्थिति है। करीब एक दर्जन सीटों पर गलत टिकट देने का आरोप लगाते हुए धरना-प्रदर्शन भी हुआ। टिकट कटने से नाराज विधायक व नेताओं ने जिन सीटों से निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की है उसमें- उदयपुर, बूंदी, सांगानेर, जैतारण, चाकसू, तिजारा, अलवर और थानागाजी है जहां खुलकर विरोध सामने आ रहा है।

झोटवाड़ा सीट से राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को टिकट मिलने के बाद पार्टी में उनका विरोध शुरू हो गया है। इसी तरह राज्यसभा सांसद डॉ. किरोडीलाल मीणा को सवाई माधोपुर विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया, तो दूसरी ओर भाजपा प्रदेश कार्य समिति की सदस्य रहीं आशा मीणा का टिकट काट दिया। टिकट कटने के बाद बीजेपी नेता आशा मीणा ने सवाई माधोपुर विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. बीजेपी नेता आशा मीणा ने बगावती रुख अपनाते हुए विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है।  

प्रदीप सिंह https://www.janchowk.com

दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

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