जिसके खिलाफ मोर्चा खोला उसी की गोद में जा बैठे नीतीश!

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हालांकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरफ से अभी तक कोई ऐलान नहीं हुआ है कि वे महागठबंधन से निकल रहे हैं। जदयू ने भी ऐसा कुछ नहीं कहा है और न ही महागठबंधन से जुड़े दलों ने ही अभी तक कोई आधिकारिक बयान दिया है जिससे यह माना जाए कि नीतीश कुमार बिहार के महागठबंधन से बाहर हो रहे हैं और इंडिया गठबंधन को भी बाय-बाय कर रहे हैं। लेकिन पिछले सप्ताह भर से बिहार से दिल्ली तक जो कुछ भी हो रहा है जिस-जिस तरह के नैरेटिव गढ़े गए हैं उससे साफ़ है कि बिहार की नीतीश सरकार की सेहत ठीक नहीं है। 

पिछले तीन दिनों की कहानी को दर्ज करें तो साफ़ है कि नीतीश कुमार बहुत कम बोल रहे हैं और उनकी बात जिनसे हो रही है उनमें बीजेपी के नेता ज्यादा हैं। इसके साथ ही सरकार में और भी कई पार्टियां शामिल है लेकिन किसी से किसी की बात नहीं हो रही है। उधर लालू यादव लगातार नीतीश कुमार से बात करने की कोशिश कल करते रहे लेकिन उनके फ़ोन को नहीं उठाया गया। गुरुवार की रात में नीतीश के बारे में जब पटना की मीडिया में काफी बातें आने लगीं थी तब लालू यादव ने उन्हें फोन लगाया था। नीतीश ने फ़ोन उठाया भी और कहा ”भाई साहब अभी देर रात हो रही है। सब ठीक है आप दवा खाकर सो जाइये।” इसके बाद  लालू और नीतीश के बीच में कोई संवाद नहीं हो सका। 

उधर आज दो-तीन घटनायें और घटीं। जदयू नेता और नीतीश कुमार के खास केसी त्यागी का एक बयान सामने आया। उन्होंने पत्रकारों से भी बात की और कहा कि कांग्रेस की वजह से इंडिया गठबंधन लगातार रसातल में जा रहा है। अपना प्रभाव खोते जा रहा है। केसी त्यागी ने संवाददाताओं से कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कड़ी मेहनत के बाद विपक्षी गठबंधन इंडिया की नींव रखी है। उन्होंने कहा कि कुमार के प्रयासों से ही इंडिया गठबंधन की शुरुआत हुई लेकिन गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में कांग्रेस अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल रही।

त्यागी ने कहा, “कांग्रेस के असंवेदनशील और गैर-जिम्मेदार रवैये के कारण इंडिया गठबंधन पतन की ओर बढ़ रहा है।” उन्होंने कहा कि कांग्रेस पश्चिम बंगाल में निर्वाचित सरकार के स्थान पर राष्ट्रपति शासन लगाने की कोशिश कर रही है। इस तरह के रवैये से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी क्रोधित हो गईं और उन्होंने राज्य में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ को प्रवेश की अनुमति देने से इनकार कर दिया, जिससे गठबंधन में मामले और बिगड़ गए।

जदयू नेता ने यह भी कहा, “पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी  के बीच आमना-सामना हो गया है और उनके रिश्ते इतने तनावपूर्ण होते जा रहे हैं कि सुधार से परे जा सकते हैं।” उन्होंने कहा कि भाजपा और शिरोमणि अकाली दल के हाथ मिलाने की संभावना प्रबल हो गई है। उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस ने नीतीश कुमार के मजबूत विपक्षी गठबंधन इंडिया के सपने को चकनाचूर कर दिया है।

अब त्यागी के इस बयान का अर्थ निकाला जाए तो यही लगता है कि नीतीश कुमार की पूरी नाराजगी कांग्रेस से है। त्यागी की जो अंतिम लाइन है -”कांग्रेस ने  नीतीश कुमार के मजबूत विपक्षी गठबंधन इंडिया के सपने को चकनाचूर कर दिया है।” इसी से साफ़ हो जाता है कि जदयू अपना कुछ अलग फैसला कर चुकी है। संभव है कि बीजेपी के साथ फिर से जा सकती है और फिर से बीजेपी के साथ मिलकर इंडिया गठबंधन के खिलाफ खड़ी हो सकती है। सूत्रों से यह भी जानकारी मिल रही है कि नीतीश और बीजेपी मिलकर एनडीए में शामिल उन सभी दलों को एक बार फिर से साथ लाने की कोशिश कर सकते हैं। अकाली से लेकर शिवसेना तक को फिर से बीजेपी के साथ जोड़ने की बात भी की जा रही है। 

लेकिन ये सब तो बात भर है। कहानी तो यह है कि नीतीश आखिर इंडिया  गठबंधन और बिहार के महागठबंधन से निकलने की कोशिश क्यों कर रहे हैं। ऐसी कौन सी बात सामने आ गई है जो नीतीश कुमार को परेशान किये हुए है और जिसके खिलाफ मोर्चा खोलकर वे सबको एक साथ खड़े किये थे आज फिर उसी बीजेपी के साथ खड़े होने को बाध्य हैं। कोई बात तो होगी। केवल मामला यही नहीं है कि कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने के दौरान नीतीश कुमार ने परिवारवादी पार्टी पर हमला किया था।

यह सब कोई जानता है कि कर्पूरी ठाकुर कांग्रेस की राजनीति के खिलाफ थे और परिवारवाद के खिलाफ तो थे ही। लेकिन नीतीश कुमार ने परिवारवाद की राजनीति पर चोट करने में जो तत्परता दिखाई वह भी समझ से परे की बात है। उनसे पूछा जा सकता है कि बीजेपी की तरह ही अचानक उन्हें परिवारवादी पार्टी की याद कैसे हो गई? लगता है यह सब जान बूझ कर किया गया था ताकि मामले को तूल दिया जा सके। उधर लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने जो कुछ भी ट्वीट किया वह सब कहने की बात है। मूल कहानी तो यह है कि नीतीश को जो दरार पैदा करना था, उन्होंने किया। 

लेकिन बड़ा सवाल तो यह है कि आखिर बीजेपी को अचानक नीतीश की जरूरत क्यों आ गई? पूरा देश जनता है कि नीतीश पर बीजेपी और उसकी सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर सकती। नीतीश का दमन लगभग साफ़ है। लेकिन बीते नवंबर महीने के बाद जब संघ और बीजेपी ने अपनी रिपोर्ट तैयार करवाया तो पता चला कि बिहार में इंडिया गठबंधन के सामने उसका सूपड़ा साफ़ हो सकता है। रिपोर्ट में जो बातें आयी हैं उसके मुताबिक बीजेपी को बिहार में सात से आठ सीटें मिलती दिख रही हैं जबकि चिराग की पार्टी समेत तमाम एनडीए के दलों को कोई सीट मिलती नहीं दिख रही है। उसी समय से यह खेल किया जाने लगा कि अगर संभव हो तो नीतीश को फिर से पाले में ले आया जा सकता है। 

पिछले दो महीने तक नीतीश लोगों के जरिये बीजेपी के नेताओं से बात करते रहे। इसके बाद तय हो गया था कि 22 जनवरी के बाद बिहार में खेला किया जा सकता है। इस बात की जानकारी सबको थी। यह बात भी लोग जानते थे कि नीतीश कोई बड़ा धमाका कर सकते हैं। बिहार के पत्रकार यह भी मानते थे कि राम मंदिर के उद्घाटन के साथ ही बिहार में नीतीश कुमार विधान सभा भंग कर चुनाव में जाने का ऐलान कर सकते हैं। आज भी इस बात की चर्चा हो रही है कि नीतीश कुमार विधानसभा भंग कर लोकसभा के साथ ही विधान सभा चुनाव भी कराना चाहते हैं। अब इस बात को लेकर बीजेपी और राजद के बीच क्या बात हुई है इसकी जानकारी नहीं है। 

एक दूसरी खबर यह भी है कि अब जब नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ जाने क मन बन ही लिया है तो उन राज नेताओं की कहानी भी सामने लाने की जरूरत है जो जदयू के विधायक हैं और बीजेपी के ख़ास भी हैं। ये नेता हैं नीतीश कुमार के ख़ास संजय झा, अशोक चौधरी, विजय चौधरी और दिल्ली में बैठे एक पत्रकार जो अभी एक संवैधानिक पद पर बैठे हुए हैं। कहा जा रहा है कि ये सभी नेता भले ही नीतीश के साथ खड़े हैं लेकिन इनकी राजनीति बीजेपी के साथ ही सुखद रही ही। ये सभी नेता महागठबंधन से ज्यादा बीजेपी के साथ सहज राजनीति करते रहे हैं। खबर ये भी है कि इनमें से तीन नेताओं की जहां से राजनीति होती है वहां बीजेपी का सहयोग काफी जरूरी है। और ऐसे में ये तीनों नेता बीजेपी के साथ जाने के लिए नीतीश कुमार को हमेशा उकसाते रहे हैं। 

अब आगे नीतीश कुमार क्या कुछ करेंगे इसका इंतजार बीजेपी को भी है और राजद को भी। इंडिया गठबंधन को भी नीतीश के फैसले का इंतजार है। नीतीश कुमार अपना रुख स्पष्ट कर देते हैं तो राजद अध्यक्ष लालू यादव भी अपना पत्ता खोल देंगे। फिर बीजेपी का खेल भी सामने आएगा। उधर कांग्रेस के विधायक कितने टूटते हैं और कितने बचते हैं यह भी देखने की बात होगी। बिहार में क्या होगा यह कोई नहीं जानता लेकिन एक बात सब जानते हैं कि अगर राजनीति यही है तो ऐसी राजनीति से तौबा करने की जरूरत है। क्योंकि इस राजनीति में केवल नीतीश का चेहरा ही नहीं विकृत होता दिखता है बीजेपी की राजनीति भी नंगी होती दिख रही है।

(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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