कलकत्ता हाई कोर्ट: भरी अदालत में दो जजों ने लगाए एक दूसरे पर गंभीर आरोप

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कोलकाता। जब कोई जज मसीहा बन जाता है, यानी उसकी लोकप्रियता चरम पर पहुंच जाती है, तो कुछ ऐसा ही होता है जैसा इन दिनों कलकत्ता हाई कोर्ट में हुआ है। यह जज हैं जस्टिस अभिजीत गांगुली। यह भी सच है कि जब कोई बहुत लोकप्रिय हो जाता है तब वह सत्तारूढ दल की आंखों में शूल की तरह चुभने लगता है।

पिछले सप्ताह कलकत्ता हाई कोर्ट में एक अभूतपूर्व घटना घटी है। ऐसा पहली बार हुआ है जब एक जज ने दूसरे जज के खिलाफ बेहद गंभीर आरोप लगाए और वह भी भरी अदालत में। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट के पास विचाराधीन है। कानून के जानकार इस मामले में कानून की बारीकियों पर बहस करेंगे और सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा। अब सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला सुनाएगा यह तो नहीं मालूम पर जनता ने तो अपना फैसला काफी पहले ही सुना दिया है।

कलकता हाई कोर्ट के इतिहास में जस्टिस अभिजीत गांगुली अकेले जज है जिनका लोग दर्शन करने आते हैं। उनका मामला चाहे जिस किसी कोर्ट में क्यों न चल रहा हो वे 17 नंबर कोर्ट में जस्टिस गांगुली का दर्शन करने जरूर आते हैं। इतना ही नहीं उनके कोर्ट में कैसे कई ऐसे लोग भी आते हैं जिनकी गुजारिश होती है कि उनके मामलों की सुनवाई वही करें।

आज से दो साल पहले जस्टिस गांगुली भी हाईकोर्ट के कई दर्जन जजों में एक हुआ करते थे। पर आज की तारीख में अभिजीत गांगुली राज्य के हर व्यक्ति की जुबान पर है। देश में बहुत सारे हाई कोर्ट है और बहुत सारे जज भी है पर किसी भी जज को यह लोकप्रियता नसीब नहीं है। करीब दो साल पहले उनके कोर्ट में यह आरोप लगाते हुए मामला दायर किया गया कि स्कूलों में अध्यापकों और ग्रुप सी एंड डी के कर्मचारियों की नियुक्ति के मामले में भारी घोटाला हुआ है।

मामले की सुनवाई के दौरान एक शाम पूरा राज्य हैरान रह गया जब उन्होंने तत्कालीन शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी को शाम 5:30 बजे के अंदर सीबीआई मुख्यालय पहुंचकर पूछताछ का सामना करने का आदेश दिया। इसके बाद तो गिरफ्तारियां का सिलसिला शुरू हो गया। आज की तारीख में पार्थ चटर्जी सहित कई मंत्री, विधायक, शिक्षा विभाग के पूर्व अफसर और तृणमूल कांग्रेस के नेता जेल में है। इसका नतीजा यह हुआ कि अभिजीत गांगुली का नाम घर-घर का नाम बन गया।

आम लोगों ने उन्हें मसीहा मान लिया, युवाओं ने उन्हें रॉबिन हुड का दर्जा दे दिया। पर इसके साथ ही जस्टिस गांगुली तृणमूल कांग्रेस की सरकार की आंखों का कांटा भी बन गए।

पर उनके सीने में एक आग सी जल रही थी। कोर्ट के अपने दस्तूर है, मसलन सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ डिवीजन बेंच में अपील कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं। राज्य सरकार उनके हर आदेश के मामले यही करती रही। कभी उन पर स्टे लग जाता था तो कभी आंशिक संशोधन हो जाता था। इससे उनकी त्वरित न्याय दिलाने की कोशिश को झटका लगता रहा। पर पिछले सप्ताह उनके सीने में जल रही आग का लावा फूट पड़ा।

इस बार एक नया घोटाला सामने आया था। सरकारी मेडिकल कॉलेजों में फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर कुछ लोगों ने दाखिला लिया है। राज्य सरकार की रिपोर्ट में भी माना गया है कि इस तरह की 51 मामलों में से 16 प्रमाण पत्र फर्जी पाए गए हैं। जस्टिस गांगुली ने मामले की सुनवाई के बाद सीबीआई को एफआईआर दर्ज करने और जांच करने का आदेश दे दिया।

राज्य सरकार भागती हुई जस्टिस सौमेन सेन के डिवीजन बेंच में चली गई। जस्टिस सेन ने मौखिक रूप से स्टे लगाने का आदेश दे दिया। इसके बाद ही जस्टिस गांगुली भड़क उठे और भरी अदालत में जस्टिस सेन के खिलाफ कई गंभीर आरोप लगाए। यहां तक कहा कि जस्टिस सेन एक राजनीतिक दल के हित में काम कर रहे हैं। राज्य सरकार के एडवोकेट जनरल ने जस्टिस गांगुली पर आरोप लगाया कि वे लोकसभा चुनाव में भाजपा का टिकट लेने का प्रयास कर रहे हैं।

कलकत्ता हाई कोर्ट के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने पांच जजों के बेंच का गठन करके पूरे मामले को अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सारे आदेश पर स्टे लगा दिया है। अब सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला लेगा यह नहीं मालूम पर जनता की निगाहों में तो जस्टिस गांगुली मसीहा बन ही गए हैं।

(कोलकाता से जेके सिंह की रिपोर्ट।)

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