सोनम वांग्चुक आजकल यूपीए के दिनों को क्यों रह-रहकर कर रहे हैं याद?

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हिंदी सिनेमा के इतिहास में सर्वकालिक पसंदीदा फिल्मों में से एक ‘3 इडियट्स’ के मुख्य किरदार फुंसुक वांगडू को भला कौन भुला सकता है? एक ऐसा अनोखा व्यक्तित्व जिसने कभी भी रट्टू तोता बनने के बजाय हमेशा दिमाग की बत्ती को कैसे तेज बनाया जाये पर अपने जीवन में जोर दिया हो, को असल में इन्हीं सोनम वांग्चुक के जीवन पर आधारित किया गया था। 

लेह-लद्दाख-कारगिल क्षेत्र के सबसे सम्मानित शख्सियत के तौर पर देश से अधिक दुनिया में मशहूर सोनम वांग्चुक एक बार फिर से आमरण अनशन के लिए मजबूर हैं। आज उनके अनशन का 16वां दिन है। उनकी ओर से 21 दिनों के घोषित आमरण अनशन को देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सबसे लंबे समय तक चले अनशन (21 दिन) को ध्यान में रखकर किया गया है। 

पिछले वर्ष 21 जनवरी, 2023 को भी सोनम वांग्चुक ने 18000 फीट की ऊंचाई पर स्थित खर्दुन्गला दर्रे पर जाकर अगले 5 दिनों तक अनशन की घोषणा की थी। सालभर कम से कम जीरो डिग्री तापमान और जनवरी के महीने में -40 डिग्री तापमान में अनशन उनकी जान ले सकता था, जो 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के मौके पर पूरी दुनियाभर की बदनामी मोदी सरकार के माथे पर थोप देता, जिसके मद्देनजर उन्हें उनके आवास पर ही नजरबंद कर दिया गया था। 

लद्दाख के लोग हजारों की संख्या में पिछले 16 दिनों से आंदोलनरत हैं। ‘लद्दाख को छठी अनुसूची देना होगा, हम अपना हक मांगते, नहीं किसी से भीख मांगते और लद्दाख में जम्हूरियत बहाल करो’ की मांग पर बुलंदी के साथ नारे लगाती लद्दाखी अवाम को आज इस बात का गहराई से अहसास हो रहा है कि कहीं न कहीं धारा 370 को निरस्त किये जाते समय उनसे बहुत बड़ी भूल हो गई।

वे भाजपा के राष्ट्रवादी झांसे में आकर मानकर चल रहे थे कि केंद्र शासित राज्य का दर्जा पाने पर केंद्र की सरकार उनके सवालों पर सीधा हस्तक्षेप करेगी, जो श्रीनगर की राज्य सरकार के अधीन अनसुनी रह जा रही थी। उन्हें नहीं पता था कि उनके पास स्थानीय परिषद के माध्यम से मिले अधिकार भी छिन जायेंगे और पूरे क्षेत्र पर किसी ऐसे व्यक्ति को शासन करने का अधिकार मिल जाने वाला है, जो स्थानीय लोगों के बजाय दिल्ली के निर्देशों को लागू करेगा।

आज उन्हें इस बात का भय खाए जा रहा है कि उनके पहाड़ों को कॉर्पोरेट के हाथों कौड़ियों के भाव बेच दिया जायेगा। खनन से इस हिमालयी क्षेत्र की पारस्थितिकी पर पड़ने वाले प्रभाव की कल्पना से भी लेह-लद्दाख के लोग भयातुर हैं। उत्तरी लद्दाख में पहले ही चीन की सेना बड़े भू-भाग को अपने कब्जे में कर चुकी है, जिस पर पीएम मोदी की टिप्पणी ‘न कोई घुसा था, न कोई घुसा हुआ है’, ने जैसे अपनी मुहर ही लगा दी है। 

लगातार 16 दिनों से जारी अनशन पर सोनम वांग्चुक के साथ दसियों हजार लद्दाखी क्रमिक अनशन जारी रखे हुए हैं। सेना के एक पूर्व सूबेदार भी सोनम वांग्चुक के साथ पहले दिन से अनशन को जारी रखे हुए हैं। वादाखिलाफी से बेहद खफा लद्दाख के निवासियों के द्वारा प्रत्येक दिन दसियों हजार की संख्या में अनशन स्थल पर दिन भर जमा होने के बावजूद केंद्र सरकार और राष्ट्रीय मीडिया के द्वारा अनदेखी इस सीमाई क्षेत्र के लोगों को बुरी तरह से कचोट रही है।  

लद्दाख क्षेत्र की जनता सड़कों पर क्यों है?

कुछ दिन पूर्व करीब 30,000 लोग लद्दाख में प्रदर्शन करते हुए देखे गये थे। इतनी बड़ी संख्या में क्षेत्र के लोगों का सड़कों पर प्रदर्शन तो इस लोकसभा क्षेत्र में किसी भी उम्मीदवार के लिए जीत का आंकड़ा बन जाता है। 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा के ठुप्सन चेवांग ये इस सीट पर 31,111 वोट हासिल कर सांसद बनने का गौरव हासिल किया था। हालाँकि 2019 में भाजपा ने लद्दाख संसदीय सीट पर 42,914 वोट पाकर जीत दर्ज की थी। यह बताता है कि 2024 चुनाव में भाजपा के लिए यह सीट नामुमकिन बन चुकी है, और उसे एक बार फिर से 2009 वाले 2% वोट आधार पर सिमटने का वक्त आ चुका है।    

जहां तक लद्दाख क्षेत्र के लोगों की मांगों का प्रश्न है, पूरे विश्व की तरह यहां भी जलवायु परिवर्तन एक अहम मुद्दा बना हुआ है, क्योंकि हिमालय और तिब्बती क्षेत्रों के लिए तो यह आज पूरी तरह से जीवन-मरण का प्रश्न बन चुका है। ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं, जिसका सीधा असर क्षेत्र की वनस्पति, पारिस्थितिकी तंत्र और नदी-नालों पर पड़ने की वजह से लोगों की आजीविका और मवेशियों के जीवन पर पड़ रहा है। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर से धारा 370 के खात्मे के बाद राज्य को भंग कर 3 केंद्र शासित राज्य बना दिए गये थे। तब लेह-लद्दाख के लोगों को लगा था कि जल्द ही उन्हें स्वतंत्र राज्य घोषित कर केंद्र की मोदी सरकार उपकृत करेगी, लेकिन आज वे खुद को पूरी तरह से छला हुआ महसूस कर रहे हैं। 

वर्तमान भाजपा सांसद का लोकसभा में दिए गये भाषण की एक बानगी 

6 अगस्त 2019 को संसद में लद्दाख से भाजपा के युवा सांसद ने पहली बार अपने प्रसिद्ध भाषण में जो तस्वीर पेश की थी, उसने धारा 370 को जम्मू-कश्मीर से निरस्त करने में बेहद अहम भूमिका निभाई थी। इस भाषण को पीएम नरेंद्र मोदी ने विशेष उल्लेख करते हुए X पर जारी किया था, जिसे हिंदुत्ववादी शक्तियों ने जमकर वायरल किया था।

अपने भाषण में सांसद जम्यांग त्सेरिंग नामग्याल ने कहा था, “लद्दाख के दुर्गम क्षेत्र को आप जानते हैं, या खाली किताब पढ़कर बोलते हैं? लद्दाख 71 वर्षों से केंद्र शासित राज्य बनने के लिए संघर्ष कर रहा है। हमने 1952 में ही कहा था कि हमें किसी भी कीमत पर कश्मीर के साथ मत रखिये। 370 और कांग्रेस के कारण हमारा विकास, राजनीतिक आकांक्षा, भाषा का विकास नहीं हो पाया। इस बिल के चलते सिर्फ दो परिवार ही अपना रोजी-रोटी खोएंगे, लेकिन कश्मीर का भविष्य उज्ज्वल होने वाला है। भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में 2014 और फिर 2019 में यूटी की मांग को शामिल करने का काम किया। हमारी पार्टी ने घर-घर जाकर यूटी की महत्ता को समझाया।”

इसके साथ ही अपने 20 मिनट के भाषण में उन्होंने कहा था कि आज लेह-लद्दाख और कारगिल के कोने-कोने से हर नागरिक धारा 370 के खात्मे और केंद्र शासित क्षेत्र घोषित किये जाने पर बेहद खुश है। ये दो परिवार कश्मीर को अपने बाप की जागीर समझते हैं। जबकि ये सच नहीं है, क्योंकि पहली बार लद्दाख के लोग खुद को सीधे भारत के संपर्क में पा रहे हैं। 

लेकिन क्या वास्तव में लेह लद्दाख क्षेत्र जिसमें कारगिल भी आता है, के लोगों ने जैसा सोचा था, वह उन्हें मिला? यहां की भौगोलिक स्थिति कश्मीर और जम्मू से काफी भिन्न है। यहां बड़ी संख्या में बौद्ध और मुस्लिम आबादी रहती है, और 5 साल बाद 95% अनुसूचित जनजाति वाले इस क्षेत्र को अहसास हो रहा है कि संविधान की छठी अनुसूची में डाले जाने की उनकी मांग, जिसे भाजपा ने 2019 के अपने चुनावी अभियान में प्रमुख मांग के तौर पर पेश किया था, उसे लागू करने से उलट बड़े कॉर्पोरेट के हाथ बेचने के लिए तैयारी कर रही है। 

पिछले 16 दिनों से सोनम वांग्चुक लगातार अपने स्वास्थ्य और मौसम के बारे में अपडेट दे रहे हैं। 2020 में चीनी सेना के द्वारा लद्दाख के बड़े भू-भाग पर कब्जा कर लेने के बाद यहां के स्थानीय लोगों की आजीविका पर गहरा दुष्प्रभाव पड़ा है, जिसकी केंद्र सरकार की ओर से लगातार अनदेखी की जा रही है। कुछ माह पहले ही चीनी सैनिकों और स्थानीय चरवाहों के बीच के झगड़े का वीडियो इन्स्टाग्राम पर जारी होने के बाद आम लोगों ने देखा कि किस प्रकार लद्दाख के स्थानीय लोग चीनी सैनिकों से भिड़ रहे हैं। लेकिन हमारे जवान इस वीडियो में नजर नहीं आये। 

सोनम वांग्चुक शायद अब तक जान चुके हैं कि केंद्र की मोदी सरकार के लिए लद्दाख के लोगों की जायज मांगों को मानने की जरूरत नहीं है। देश का मीडिया ऐसे किसी भी आंदोलन की तस्वीर को साझा कर सरकार की छवि और अपनी कमाई को जोखिम में नहीं डाल सकता। इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपने अनशन के 21 दिन पूरे होने के अवसर पर 27 मार्च के दिन 10,000 लद्दाखी लोगों के साथ भारत-चीन के बॉर्डर तक मार्च का आह्वान दिया है। इस दिन को यादगार बनाने के लिए वे देश ही नहीं दुनियाभर के लोगों को आकृष्ट कर रहे हैं।

उन्हें पता है कि जैसे ही लद्दाख से दसियों हजार की संख्या में लोग चीन के बॉर्डर की ओर कूच करेंगे, सारी दुनिया का ध्यान 2024 चुनाव की बजाय भारत-चीन सीमा विवाद और लद्दाख पर आ जायेगा। इस एक कदम से पीएम मोदी की भारत में उनके समर्थकों के बीच अब तक बनी छवि पर क्तिना बड़ा बट्टा लगने वाला है, इसको लेकर पीएमओ गहन मंत्रणा अवश्य कर रहा होगा। 

सोनम अपने वक्तव्यों में साफ़-साफ़ बता रहे हैं कि पिछले कुछ वर्षों से करीब 4050 वर्ग किमी की भूमि चीन के कब्जे में जा चुकी है, और हमारे चरवाहों के लिए अपने पशुओं के लिए चारागाह नहीं बचे हैं। विश्व-विख्यात पश्मीना ऊन के लिए मशहूर कश्मीर को चीन के कब्जे वाले क्षेत्र में भेड़ चराकर ही लद्दाख के अनुसूचित जनजाति के लोग आजतक उत्पादित करते थे।

लद्दाख के पहाड़ों पर कॉर्पोरेट को खनन का पट्टा दिए जाने की तैयारी हो रही है। इसके अलावा 13 गीगावाट के सोलर प्लांट के लिए करीब 1.50 लाख वर्ग मीटर भूमि भी अनुसूचित जनजाति के हाथों से निकलने वाली है। उनकी मांग में कारगिल और लेह कि दो अलग-अलग लोकसभा सीट की मांग भी शामिल है। उनका साफ़ मानना है कि केंद्र शासित क्षेत्र बनने से कोई फायदा नहीं हुआ है, उल्टा एक बाहरी व्यक्ति के पास सारे अधिकार आ गये हैं, जिसकी जवाबदेही अब स्थानीय जनता और स्वायत्त परिषद के लिए नहीं है। 

लद्दाख के लोग मानते हैं कि छठी अनुसूची के माध्यम से उन्हें भी पूर्वोत्तर के कई राज्यों की तरह स्वायत्त परिषद के निर्माण अर्थात स्व-शासन का अधिकार मिल सकता है। आज केंद्र शासित क्षेत्र बनाकर उल्टा उनकी आवाज को और अधिक कुचला जा रहा है। सोनम वांग्चुक के शब्दों में “भारत मोदी जी के हिसाब से मदर ऑफ़ डेमोक्रेसी है, लेकिन लद्दाख के लिए तो यह स्टेप-मदर (सौतेली) ऑफ़ डेमोक्रेसी साबित हो रही है।”  

धारा 370 हटने के बाद केंद्र शासित क्षेत्र घोषित होने के बाद से इस क्षेत्र के लोग महसूस कर रहे हैं कि न सिर्फ उन्हें उनके मूल अधिकारों से वंचित कर दिया गया है, बल्कि जम्मू-कश्मीर को विभक्त कर जो अधिकार और सुविधायें उन्हें 2019 तक मिल रही थीं, उनसे भी उन्हें आज वंचित कर दिया गया है। अंधाधुंध खनन, अनियंत्रित पर्यटन और कार्बन उत्सर्जन यहाँ की नाजुक पारिस्थितिकी को एक ऐसे मुकाम पर पहुंचा रही है, जो बड़ी तेजी से ग्लेशियर के पिघलने, ग्लोबल वार्मिंग को तेजी से बढ़ाने और भारत सहित चीन के लगभग 200 करोड़ आबादी को भविष्य में प्रभावित करने में प्रमुख रूप से जिम्मेदार होने जा रही है। 

असल में कश्मीर, लद्दाख और जम्मू भले ही भौगोलिक, भाषाई और जातीय रूप से भिन्न हों, लेकिन ये आपस में आजीविका और व्यापार के लिए पूरी तरह से निर्भर हैं। यदि कश्मीर क्षेत्र को लद्दाख से ऊन चाहिए तो कारगिल और लद्दाख को कश्मीर से आवश्यक सब्जी और सूखे मेवे चाहिए, जम्मू का सारा कारोबार ही कश्मीर घाटी पर निर्भर है। यदि कश्मीर घाटी न हो तो जम्मू के बाजार की देश में कोई पूछ नहीं होगी। उसी तरह शेष भारत से कश्मीर को जोड़ने वाला लिंक जम्मू है, जो कश्मीर की जरूरतों को पूरा करने का एक प्रमुख माध्यम है। 

पिछले दो दिनों से सोनम वांग्चुक के स्वास्थ्य में अचानक से तेजी से गिरावट देखने को मिल रही है। पिछले 16 दिनों से वे सिर्फ पानी और साल्ट्स के सहारे -20 डिग्री तापमान में खुले आसमान के नीचे अपना अनशन जारी रखे हुए हैं। वे आजकल यूपीए के दिनों को अक्सर याद करते हुए 2011 के अन्ना आंदोलन को याद कर लेते हैं, जब विरोध की आवाज को देश की संसद, केंद्र सरकार और देश का मीडिया गंभीरता से सुनता था। यहां पीएम मोदी या गृहमंत्री अमित शाह की बात ही क्या करें, लद्दाख के स्थानीय भाजपा सांसद तक का कोई अता-पता नहीं है। शायद उन्हें भी अहसास है कि जिस अच्छे दिन की आस को दिखाते हुए उन्होंने देश की संसद में पहली बार अपना ऐतिहासिक भाषण दिया था, असल में वे भी छले गये या उनका झूठ उन्हें लद्दाख की आम अवाम से आंखें मिलाने की हिम्मत नहीं प्रदान कर पा रहा।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं।) 

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सलीम मलिक
सलीम मलिक
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1 month ago

गडरिए से नाराज भेड़े जब इंसाफ के लिए कसाई की शरण में चली जाएं तो यही होता है।