हसदेव बचाओ आंदोलन को कुचलने की कोशिश, बैठक स्थल आग के हवाले

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सरगुजा। जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए लंबे समय से छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग में चल रहे आंदोलन को खत्म करने के लिए धरना स्थल को आग के हवाले कर दिया गया। धरना स्थल पर बने झोपड़ीनुमा टेंट को जला दिया है।

750 दिनों से चल रहा था आंदोलन

सरगुजा संभाग के उदयपुर ब्लॉक के हरिहरपुर गांव में 750 दिनों से आंदोलन चल रहा था। “हसदेव बचाओ समिति” के बैनर तले छत्तीसगढ़ का फेफड़ा कहे जाने वाले हसदेव अरण्य को बचाने के लिए आंदोलन चल रहा है। जिसमें स्थानीय आदिवासी लोगों के अलावा पर्यावरण से जुड़े लोग भी शामिल थे। समिति का कहना है कि रविवार को जब लोग सो रहे थे तो आधी रात को हरिहरपुर के धरना स्थल पर आग लगा दी गई। जिसके कारण बांस से बने टेंट का अधिकांश हिस्सा जल गया है। समिति द्वारा यह आरोप लगाया गया है कि यह आग कंपनी के लोगों द्वारा लगाई गई है।

आपको बता दें कि जहां यह आग लगी है इसके पास ही दिसंबर के महीने में बड़ी संख्या में पेड़ काटे गए थे। साथ ही धरना स्थल से महज एक किलोमीटर की दूरी पर परसा ईस्ट केता बासेन खुली खदान परियोजना का मेन गेट और उसके आगे से कोयला खदान की शुरुआत होती है और लोग इन्हीं पेड़ों की कटाई के विरोध में धरना दे रहे हैं।

जनचौक की टीम ने समिति के लोगों से संपर्क करने की कोशिश की । रामलाल कोरियाम ने हमसे बात करते हुए बताया कि “हमारे विपक्षी लोग चाहते हैं कि जंगल को काटकर इस जगह को खाली कर दिया जाए, उन्हीं लोगों ने ऐसा काम किया है। कंपनी के लोग हमारे पीछे पड़े हुए हैं”।

उन्होंने बताया कि धरना स्थल पर 37 गांवों से लोग आकर बैठते थे। जिसे कंपनी द्वारा षड्यंत्र करके जला दिया गया है। हमलोग मर जाएंगे लेकिन हसदेव को बचाने की लड़ाई को नहीं छोड़ेंगे।

देश में चुनावी माहौल पर बात करने पर रामलाल ने बताया कि पहले यहां बड़ी संख्या में लोग बैठते थे। लेकिन चुनाव की तारीखों के ऐलान होने के बाद से ही धऱना स्थल पर आचार संहिता का पूरा ध्यान रखा जा रहा है। इसके बाद भी हमारे धरना स्थल को खत्म किया जा रहा है।

इस घटना के बाद आंदोलन में सक्रिय लोगों ने अपनी बात को सोशल मीडिया के द्वारा लोगों को पहुंचाने की कोशिश की।

एक युवक ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट किया। जिसमें वह बता रहे हैं अडानी की कंपनी के लोगों ने रात को करीब दो बजे धरना स्थल को आग के हवाले कर दिया गया।

वह कहते हैं कि “यह सिर्फ आंदोलन नहीं है बल्कि यह एक विचार है। जिसे खत्म नहीं किया जा सकता है। हम अपने संवैधानिक अधिकार के तहत पिछले 10 साल से धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। इतने सालों से हमलोग शांतिपूर्वक आंदोलन कर रहे हैं, कभी भी उग्र नहीं हुए। इसके बाद भी कंपनी द्वारा हमारे धरना स्थल को जला दिया गया। खासकर बैठने वाली जगह को तो पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया गया है”।

इस घटना के बाद रामलाल कोरियाम और उनके कुछ साथियों ने उदयपुर पुलिस थाने में एक शिकायत दी है। फिलहाल इस मामले में कोई भी एफआईआर नहीं हुई है।

इस मामले में सरगुजा के एसपी ने विजय अग्रवाल ने मीडिया को बताया है कि “इस मामले में शिकायत मिली है। सरगुजा पुलिस की तरफ से जांच कराई जा रही है। इस मामले में फॉरेसिंक एक्सपर्ट से भी जांच कराई जाएगी।

इस घटना के बाद वरिष्ठ पत्रकार आलोक पुतुल ने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा है “छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में अडानी के एमडीओ वाले कोयला खदानों के खिलाफ पिछले 750 दिनों से आदिवासी जहां धरना दे रहे थे। देर रात उस धरना स्थल को जला दिया गया”।

आदिवासियों ने कहा कि इस संवैधानिक लड़ाई को इस तरह की हिंसक कार्रवाई से नहीं कुचला जा सकता। आदिवासी आज नया निर्माण करेंगे।

हसदेव अरण्य के जंगल को बचाने के लिए लंबे समय से लोग प्रयासरत हैं। जिसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। जो जंगल के काटे जाने का विरोध कर रहे हैं।

लंबे समय से इस आंदोलन से जुड़े सामजिक कार्यकर्ता आलोक शुक्ला का कहना है कि “लगभग 750 दिनों से शांतिपूर्वक चल रहे आंदोलन को कुचलने के कोशिश की गई है। किसने इसे जलाया है, इसकी फिलहाल जानकारी नहीं है। लेकिन समिति के सदस्यों ने थाने में शिकायत दी है।

वहीं स्थानीय लोगों का कहना है जिस तरह से लोगों पर फर्जी मामले दर्ज करके आंदोलन के कुचलने की पूरी कोशिश की जा रही है। इससे यह प्रतीत होता है कि यह षड्यंत्र भी अडानी की कंपनी द्वारा किया गया है।

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन इस घटना की निंदा करता है और शासन से गुजारिश करता है कि इसकी अच्छे से जांच हो।

आपको बता दें हसदेव अरण्य को उजाड़ने का सिलसिला साल 2010 के बाद से ही शुरू हो गया था। उस वक्त यूपीए की सरकार थी। साल 2010 में केंद्र सरकार ने राजस्थान सरकार को बिजली आपूर्ति के लिए हसदेव में तीन खदानों का आवंटन दिया था। लेकिन वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने हसदेव को खदान प्रतिबंधित रखते हुए इसे नो-गो जोन घोषित कर दिया। इसके साथ ही यह क्षेत्र पांचवी अनुसूची में आता है।

लेकिन नियमों को तक पर रखकर वन मंत्रालय के वन सलाहकार समिति ने परसा ईस्ट और केते बासेन कोयले खदान की अनुमति दे दी। जिसका नतीजा यह हुआ कि केते गांव को खाली कराकर वहां पेड़ों को कटाई कर वहां से खुली खदान के द्वारा कोयला निकाला गया। मौजूदा दौर में यह परसा ईस्ट एंड केते बासेन खुली खदान परियोजना के नाम से चल रही है।

यूपीए सरकार के दौर में साल 2012 में पहली बार कोयले की खुदाई की मंजूरी दी गई। पहले फेज में 726 हेक्टेयर में फैले 137 मिलियन टन कोयले की खुदाई की मंजूरी दी गई। जिस वक्त हसदेव में पहले चरण की खुदाई की अनुमति दी गई केंद्र में कांग्रेस की और राज्य में भाजपा की सरकार थी। केंद्र से अनुमित मिलने के बाद राज्य की भाजपा सरकार ने इसे पास कर दिया।

इस मंजूरी के बाद एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने नो-गो जोन को देखते हुए खनन पर रोक लगा दी। लेकिन काम साल 2015 में शुरु हो गया। पहले चरण का खनन लगभग पूरा हो गया। जिसमें केते गांव के लोगों को विस्थापित किया था।

(पूनम मसीह की रिपोर्ट)

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