कांग्रेस से जुड़े सभी राजघरानों के लोग अवसरवादी रहे

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भारतीय राजनीति में दलबदल वैसे तो बहुत सामान्य परिघटना बन गई है लेकिन दलबदल करने वालों की अगर अलग-अलग श्रेणियां बनाएं तो एक बड़ी दिलचस्प तस्वीर बनती है। जैसे जितने भी बड़े नेताओं के बेटे-बेटियां या अन्य रिश्तेदार हैं, वे ज्यादा समय तक सत्ता के बगैर नहीं रह सकते। इसीलिए वे जल्दी-जल्दी पाला पाला बदलते है और सत्तारूढ़ दल के साथ जाते हैं।

ठीक ऐसी ही कहानी पूर्व राजाओं या राजघरानों से जुड़े नेताओं की है। वे भी ज्यादा समय तक सत्ता से दूर नहीं रह सकते। चाहे कांग्रेस ने उन्हें कितना भी कुछ दिया हो, लेकिन अब अगर वह नहीं दे रही है या देने की स्थिति में नहीं तो वे पाला बदलने में जरा भी देर नहीं कर रहे हैं। इस सिलसिले में सबसे ताजा किस्सा पटियाला राजघराने का है। इस परिवार की पूर्व महारानी परनीत कौर अभी तक कांग्रेस की सांसद थीं और तीन साल पहले तक उनके पति कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री थे। लेकिन मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के कुछ ही दिनों बाद कैप्टन ने कांग्रेस छोड कर नई पार्टी बना ली और कुछ ही दिनों बाद उस पार्टी का भाजपा में विलय कर दिया। अब परनीत कौर भी भाजपा में चली गई हैं।

उधर हिमाचल प्रदेश में भी एक राज परिवार को कांग्रेस ने जीवन भर सत्ता में रखा। जब तक वीरभद्र सिंह जीवित रहे और राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी तब तक उन्हें मुख्यमंत्री बना कर रखा गया। जब-जब राज्य में सरकार नहीं रही लेकिन केंद्र में कांग्रेस की सरकार रही तो वे केंद्र में मंत्री बनते रहे। लेकिन डेढ़ साल पहले कांग्रेस को हिमाचल प्रदेश में सरकार बनाने का मौका मिला तो उसने दूसरे नेता को मौका दिया, जो कि वीरभद्र सिंह के परिवार को रास नहीं आया। हालांकि उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष और बेटा विक्रमादित्य सिंह राज्य सरकार में मंत्री है लेकिन पिछले दिनों दोनों ने मिल कर सरकार गिराने का प्रयास किया था।

कांग्रेस प्रतिभा सिंह को प्रदेश की मंडी सीट से लोकसभा चुनाव लड़ाना चाहती है लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया है। उनका कहना है कि कांग्रेस के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के राज में कोई काम ही नहीं हुआ है तो वे किस नाम पर लोगों के बीच वोट मांगने जाएं। हैरानी की बात है कि सुक्खू को मुख्यमंत्री बने डेढ़ साल भी पूरा नहीं हुआ है लेकिन उनके काम के बहाने प्रतिभा सिंह को चुनाव नहीं लड़ना है। दरअसल उनके इस विरोध का मकसद अपने बेटे को मुख्यमंत्री बनवाना है। अगर कांग्रेस ने नहीं बनाया तो उन्हें भाजपा के साथ जाने में भी दिक्कत नहीं है।

मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया तो यह काम बहुत पहले कर चुके हैं और राजस्थान में पूर्व सांसद मानवेंद्र सिंह के बारे में चर्चा है कि वे कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में जाने के लिए भाजपा नेतृत्व के संपर्क में हैं। आरपीएन सिंह के पुरखों की भी उत्तर प्रदेश में छोटी मोटी रियासत थी। उन्हें भी कांग्रेस ने केंद्र में मंत्री और फिर पार्टी का महासचिव बनाया था लेकिन कांग्रेस कमजोर हुई तो वे भाजपा में चले गए। उनसे काफी पहले अमेठी की छोटी सी रियासत के राजा रहे संजय सिंह भी भाजपा में चले गए थे। कांग्रेस ने उन्हें असम से राज्यसभा में भेजा था। लेकिन राज्यसभा का अपना कार्यकाल समाप्त होते ही वे पाला बदल कर भाजपा में चले गए। इस सिलसिले में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जरूर अभी तक अपवाद बने हुए हैं।

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं और दिल्ली में रहते हैं।)

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