मुंबई। दिनांक 31 मई को विरूंगला केन्द्र, मीरा रोड, मुंबई में प्रसिद्ध लेखक सलाम बिन रज़्जाक़ की याद में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। 7 मई को सलाम बिन रज़्जाक़ का 83 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उनकी स्मृति सभा का आयोजन ‘जनवादी लेखक संघ’ और स्वर संगम फाउंडेशन ने मिलकर किया।
सर्वप्रथम लेखकों और कवियों ने दो मिनट मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। कार्यक्रम के प्रारंभ में मुख़्तार खान ने वकार कादरी द्वारा लिखित एक परिचयात्मक लेख पढ़ा। सलाम बिन रज़्जाक़ ने हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में कहानियां लिखीं। उनकी कहानियां पिछ्ले चार दशकों से देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगातर प्रकाशित होती रहीं। उर्दू-हिन्दी हल्के में बड़े पाठक वर्ग तक उनकी रचनाएं पहुंचती रहीं।
स्मृति सभा की अध्यक्षता जाने माने लेखक और कार्टूनिस्ट जनाब आबिद सुरती ने की। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में उन्होंने सलाम बिन रज़्जाक़ को एक बहु विज़नरी व्यक्ति बताया। आबिद साहब ने बताया कि उनके द्वारा चलाये जा रहे पानी बचाओ अभियान अर्थात ‘ड्राप डेड फाउंडेशन’ नाम सलाम बिन रज़्जाक़ की सलाह पर ही रखा गया था बड़ी खुशी की बात है आज इस संस्था की ब्रांडिंग संयुक्त राष्ट्र संघ कर रहा है। यह उनकी दूरदर्शिता की ही देन है।
‘रोहज़िनन’ उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित रहमान अब्बास ने उन्हें अदब की सेकुलर रिवायतों का अमीन बताया। इस अवसर पर फिल्म और नाटक की दुनिया से जुड़े अजय रोहिल्ला ने सलाम साहब की कहानी ‘दहशत’ का पाठ किया, साथ ही उन्होंने सलाम साहब से जुड़े कई संस्मरण भी सुनाए। हृदयेश मयंक ने सलाम बिन रज़्जाक़ के शुरुआती दिनों को याद किया। उन्होंने कहा कि सलाम उर्दू-हिन्दी की साझा संस्कृति के सच्चे वाहक थे। उन्हें याद रखना अपनी रिवायत को ज़िंदा रखना है।

शैलेश सिंह ने कहा सलाम का सम्बंध निम्न मध्यवर्ग से रहा। उन्होंने इसी वर्ग की मेहरूमियों को अपने अफसानों में बयान किया। शायर शमीम अब्बास ने सलाम बिन रज़्जाक़ को सत्तर की दहाई के बाद उभरे अफसानानिगारों का आखिरी चिराग कहा। शादाब रशीद ने कहा कि हम नए लिखने वालों के लिये सलाम साहब एक सरपरस्त की तरह थे। इनके अलावा रमन मिश्रा ने अपने विद्यार्थी जीवन में पढ़ी गयी सलाम साहब की कहानियों का ज़िक्र किया। वहीं राकेश शर्मा ने सलाम बिन रज़्जाक़ की कहानियों की मंज़र निगारी की तारीफ की।
पुलक चक्रवर्ती ने कहा कि सुनील गांगुली को हमने रास्ते पर आन्दोलन करते नहीं देखा वहीं सलाम ने नाइंसाफ़ी के खिलाफ रास्ते पर उतरने का हौसला दिखाया। सभी वक्ताओं ने सलाम बिन रज़्जाक़ से जुड़ी अपनी यादों को साझा किया। उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर अपनी बातें रखीं और उनके जीवन के मानवीय पक्ष को खास तवज्जो दी।
सलाम साहब का बचपन पनवेल में बीता। अपनी नौकरी के दौरान वे कुर्ला में रहे। उसके बाद कई वर्ष मीरा रोड में गुज़ारे। उन्हें मीरा रोड पसंद था और वह यहीं रहना चाहते थे लेकिन अंत समय की शारीरिक अशक्तता ने उन्हें अपने बच्चियों के पास जाने के लिए विवश किया। उनके द्वारा लिखी गई कहानियां उनके जीवन को समझने में सहायक हैं। उनकी कहानियों में इंसानियत का पक्ष प्रबल हैं।

कार्यक्रम के संयोजन में मुख्तार खान की भूमिका महत्वपूर्ण रही और उन्होंने ही आज के कार्यक्रम का संचालन भी किया। स्मृति सभा में पधारे सभी लोग के पास सलाम बिन रज़्जाक़ के की यादें थीं। सभी लोग कुछ न कुछ साझा करना चाहते थे लेकिन समय की कमी के कारण सभी को अवसर नहीं मिल सका। इस अवसर पर डॉ. रमेश गुप्त मिलन, अनवर मिर्ज़ा, इश्तियाक़ सईद, मिस्टर और मिसेस विकल, फरहान हनीफ़, ज़ुबेर साहब, अंसार मास्टर साहब, आफाक़ अल्मास, आदिल राही, फरहत क़ुरेशी, अनिल गौड़, राजेश दीवान, कॉमरेड मोईन अंसार, मो.अय्यूब, अली फाज़िल आदि उपस्थित थे।
आखिर में सभा में यह आम राय बनी कि इस कमी को पूरा करने के लिए सलाम बिन रज़्जाक़ पर एक बड़ा आयोजन किया जाय इसी उम्मीद के साथ आभार प्रदर्शन करते हुए स्वर संगम फाउंडेशन के सचिव हरि प्रसाद राय ने कार्यक्रम का समापन किया।
(मुंबई से मुख्तार खान की रिपोर्ट।)
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